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Foreign Policy of India: Principles, Evolution, and Contemporary Challenges भारत की विदेश नीति: सिद्धांत, विकास और समकालीन चुनौतियाँ


परिचय (Introduction):

विदेश नीति किसी भी देश की शासन व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण पहलू होती है, क्योंकि यह अन्य देशों के साथ उसके राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को निर्धारित करती है। यह नीति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि, उसकी संप्रभुता की रक्षा, राष्ट्रीय हितों की पूर्ति और वैश्विक मंच पर प्रभावी उपस्थिति सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत की विदेश नीति उसके ऐतिहासिक अनुभवों, भौगोलिक स्थिति और आर्थिक विकास की आकांक्षाओं से निर्मित हुई है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से, भारत ने वैश्विक परिदृश्य में आए परिवर्तनों के अनुसार अपनी विदेश नीति को समय-समय पर ढालते हुए अपनी प्राथमिकताओं को निर्धारित किया है। भारत की विदेश नीति का मूलभूत उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना, आर्थिक विकास को गति देना, पड़ोसी देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखना और वैश्विक शांति व स्थिरता में योगदान देना रहा है। इसके अलावा, बदलते वैश्विक समीकरणों और तकनीकी विकास ने भी भारत की कूटनीतिक रणनीतियों को प्रभावित किया है। भारत ने गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाते हुए, आत्मनिर्भरता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, बहुपक्षीय सहयोग और वैश्विक साझेदारी पर बल दिया है। हाल के वर्षों में, भारत ने न केवल क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंध मजबूत किए हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संगठनों और व्यापारिक मंचों पर भी अपनी सक्रिय भागीदारी बढ़ाई है। आर्थिक उदारीकरण के बाद, भारत की विदेश नीति का झुकाव आर्थिक कूटनीति की ओर बढ़ा है, जहां व्यापारिक सहयोग, निवेश प्रवाह और वैश्विक बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना प्रमुख प्राथमिकताओं में शामिल हो गया है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा, ऊर्जा संसाधन और आतंकवाद जैसे विषय भी विदेश नीति के प्रमुख मुद्दों में शामिल हो गए हैं। कुल मिलाकर, भारत की विदेश नीति समय के साथ विकसित हुई है और यह राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए वैश्विक स्तर पर प्रभावशाली भूमिका निभाने की दिशा में अग्रसर है।

भारत की विदेश नीति के मूल सिद्धांत:

भारत की विदेश नीति उसके ऐतिहासिक अनुभवों, भू-राजनीतिक परिस्थितियों और विश्व शांति व सहयोग की आकांक्षाओं से प्रेरित है। इसके कई मूलभूत सिद्धांत देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा निर्धारित किए गए थे, जो आज भी भारत की अंतर्राष्ट्रीय नीति को दिशा देते हैं। भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं:

1. पंचशील: शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पाँच सिद्धांत:

भारत ने 1954 में पंचशील के सिद्धांतों को अपनी कूटनीति का आधार बनाया, विशेष रूप से चीन और अन्य पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में। यह सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान: भारत सभी राष्ट्रों की संप्रभुता को मान्यता देता है और उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता।

आक्रामकता से परहेज: भारत सैन्य आक्रमण का विरोध करता है और शांतिपूर्ण समाधान को प्राथमिकता देता है।

आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना: भारत अन्य देशों की शासन व्यवस्था और नीतियों में दखल देने से बचता है।

समानता और पारस्परिक लाभ: भारत कूटनीतिक संबंधों में निष्पक्षता, पारस्परिक सहयोग और विकास को बढ़ावा देता है।

शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व: विचारधाराओं में भिन्नता के बावजूद, भारत सभी देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखने का पक्षधर है।

2. गुटनिरपेक्षता की नीति (NAM):

शीत युद्ध के दौरान, जब विश्व दो ध्रुवों में बँटा हुआ था—एक पक्ष अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी गुट और दूसरा सोवियत संघ के नेतृत्व में पूर्वी गुट—भारत ने किसी भी गुट में शामिल होने के बजाय स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई। गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) उन नवस्वतंत्र देशों के लिए एक मंच बना, जो अपनी संप्रभुता को बनाए रखते हुए अंतरराष्ट्रीय मामलों में स्वतंत्र निर्णय लेना चाहते थे। वर्तमान में भी, भारत संतुलित और स्वतंत्र विदेश नीति पर चलता है।

3. वैश्विक शांति और स्थिरता के प्रति प्रतिबद्धता:

भारत हमेशा से विश्व शांति का समर्थक रहा है और कूटनीतिक तरीकों से विवादों को हल करने पर जोर देता है। यह संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में सक्रिय रूप से भाग लेता रहा है और संघर्ष क्षेत्रों में शांति स्थापना व मानवीय सहायता के लिए अपनी सेनाएँ भेजता है। भारत परमाणु निरस्त्रीकरण, हथियारों की होड़ पर नियंत्रण और संवाद के माध्यम से समस्याओं के समाधान का समर्थन करता है।

4. उपनिवेशवाद, रंगभेद और नस्लीय भेदभाव का विरोध:

भारत स्वयं औपनिवेशिक शासन का शिकार रहा है, इसलिए उसने दुनिया भर में स्वतंत्रता संग्रामों का समर्थन किया है। स्वतंत्रता के बाद से, भारत ने संयुक्त राष्ट्र और गुटनिरपेक्ष आंदोलन जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर साम्राज्यवाद, रंगभेद (जैसे दक्षिण अफ्रीका में अपार्थाइड) और अन्य प्रकार के भेदभाव का विरोध किया। भारत ने एशिया और अफ्रीका के कई स्वतंत्रता संग्रामों को नैतिक और कूटनीतिक समर्थन दिया।

5. आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को बढ़ावा:

भारत समानता और साझेदारी पर आधारित वैश्विक आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देता है। यह विकासशील देशों के बीच आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिए दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Cooperation) का समर्थन करता है। भारत BRICS, SAARC, BIMSTEC जैसे क्षेत्रीय संगठनों के माध्यम से आर्थिक एकीकरण, तकनीकी सहयोग और व्यापार विस्तार को बढ़ावा दे रहा है। साथ ही, यह द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों के जरिए वैश्विक आर्थिक स्थिरता और सतत विकास में योगदान देता है।

भारत की विदेश नीति का विकास

भारत की विदेश नीति समय के साथ बदलती वैश्विक परिस्थितियों और राष्ट्रीय हितों के अनुसार विकसित हुई है। यह विकास विभिन्न चरणों में देखा जा सकता है, जो स्वतंत्रता के बाद से लेकर वर्तमान तक फैला हुआ है।

1. स्वतंत्रता-उपरांत काल (1947–1962):

भारत ने स्वतंत्रता के तुरंत बाद एक स्वतंत्र और संतुलित विदेश नीति अपनाने का निर्णय लिया। इसकी प्राथमिकता थी संप्रभुता और स्वतंत्रता की रक्षा करना, साथ ही वैश्विक औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ आवाज़ उठाना।

गुटनिरपेक्ष नीति: भारत ने किसी भी वैश्विक शक्ति गुट का हिस्सा बनने से इनकार किया और स्वतंत्र निर्णय लेने पर जोर दिया।

औपनिवेशिक विरासत के खिलाफ रुख: भारत ने विश्व स्तर पर उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का विरोध किया तथा नवस्वतंत्र देशों के समर्थन में खड़ा हुआ।

चीन के साथ प्रारंभिक मैत्रीपूर्ण संबंध: भारत ने चीन के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने की कोशिश की, और पंचशील सिद्धांतों के माध्यम से शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा दिया। हालांकि, 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद यह संबंध तनावपूर्ण हो गए।

2. शीत युद्ध काल (1962–1991):

इस अवधि में भारत ने अपनी विदेश नीति में महत्वपूर्ण बदलाव किए, खासकर सुरक्षा और आर्थिक विकास के संदर्भ में।

सोवियत संघ के साथ घनिष्ठ संबंध: 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारत और सोवियत संघ की मित्रता और मजबूत हुई, जिससे भारत की क्षेत्रीय शक्ति के रूप में पहचान बनी।

रक्षा और आर्थिक सहयोग: भारत को रक्षा और औद्योगिक विकास के लिए सोवियत संघ से महत्वपूर्ण सहायता प्राप्त हुई।

आर्थिक नीति में बदलाव की शुरुआत: 1980 के दशक के अंत में भारत ने वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़ने की दिशा में कदम बढ़ाए। 1991 में आर्थिक उदारीकरण के साथ भारत की विदेश नीति में भी व्यापक बदलाव आए।

3. शीत युद्ध के बाद और वैश्वीकरण का दौर (1991–2010):

सोवियत संघ के विघटन और वैश्वीकरण की लहर के बीच भारत ने अपनी विदेश नीति में नए दृष्टिकोण अपनाए।
अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ संबंधों में सुधार: भारत ने अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ व्यापार और कूटनीतिक सहयोग बढ़ाया।

"लुक ईस्ट पॉलिसी" की शुरुआत: भारत ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों (ASEAN) और पूर्वी एशिया के साथ व्यापारिक और सामरिक संबंध मजबूत करने पर ध्यान दिया।

चीन और पाकिस्तान के साथ संबंधों में संतुलन: भारत ने चीन और पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों में सुधार की दिशा में काम किया, हालांकि कश्मीर और सीमा विवाद जैसे मुद्दे चुनौती बने रहे।

आर्थिक कूटनीति और व्यापार उदारीकरण: भारत ने वैश्विक निवेश आकर्षित करने, मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर हस्ताक्षर करने, और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अपनी भूमिका बढ़ाने के लिए प्रयास किए।

4. समकालीन दौर (2010–वर्तमान):

वर्तमान समय में भारत एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है और इसकी विदेश नीति बहुआयामी हो गई है।

(क) एक्ट ईस्ट पॉलिसी:

पूर्वी और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ संबंधों को गहरा करना: भारत ने ASEAN, जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ आर्थिक और सामरिक सहयोग को मजबूत किया है।

सुरक्षा और समुद्री सहयोग: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की भूमिका बढ़ी है, जिससे चीन के प्रभाव को संतुलित करने की रणनीति अपनाई गई है।

(ख) नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी:

दक्षिण एशियाई देशों के साथ सहयोग को प्राथमिकता: भारत अपने पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव के साथ कूटनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत कर रहा है।

सार्क (SAARC) और बिम्सटेक (BIMSTEC) के माध्यम से क्षेत्रीय सहयोग: भारत इन संगठनों के जरिए व्यापार, कनेक्टिविटी और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

(ग) रणनीतिक साझेदारियाँ (Strategic Partnerships):

रक्षा और आर्थिक सहयोग: भारत ने अमेरिका, रूस, जापान, फ्रांस और यूरोपीय संघ के कई देशों के साथ रक्षा और आर्थिक साझेदारियों को बढ़ावा दिया है।

उन्नत प्रौद्योगिकी और ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग: भारत परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष, साइबर सुरक्षा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसे क्षेत्रों में वैश्विक सहयोग को मजबूत कर रहा है।

(घ) वैश्विक नेतृत्व की आकांक्षा (Global Leadership Aspirations):

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता की मांग: भारत लंबे समय से UNSC में स्थायी सदस्यता प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है और वैश्विक मंचों पर अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है।

जलवायु परिवर्तन और सतत विकास में सक्रिय भूमिका: भारत जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्व कर रहा है और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को लागू करने में योगदान दे रहा है।

ग्लोबल साउथ का नेतृत्व: भारत विकासशील देशों के लिए एक प्रभावशाली आवाज बनकर उभर रहा है और BRICS, G20, और अन्य वैश्विक संगठनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

आज की भारत की विदेश नीति के प्रमुख पहलू:

भारत की विदेश नीति लगातार बदलते वैश्विक परिदृश्य और राष्ट्रीय हितों के अनुसार विकसित हो रही है। वर्तमान में भारत की कूटनीति बहुआयामी है, जिसमें वैश्विक शक्ति संतुलन, आर्थिक विकास, रक्षा रणनीति, और बहुपक्षीय सहयोग जैसे विभिन्न पहलू शामिल हैं।

1. प्रमुख देशों के साथ भारत के संबंध:

(क) अमेरिका के साथ संबंध:

भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी लगातार मजबूत हो रही है। दोनों देश रक्षा, व्यापार और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा रहे हैं। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने के लिए दोनों देशों के बीच नौसैनिक सहयोग और सैन्य अभ्यासों में वृद्धि हुई है। अमेरिका भारत में डिजिटल और नवाचार क्षेत्र में निवेश कर रहा है, जिससे दोनों देशों के आर्थिक और तकनीकी संबंध और प्रगाढ़ हो रहे हैं।

(ख) चीन के साथ संबंध:

भारत और चीन के संबंध जटिल हैं, जिसमें सीमा विवाद, व्यापारिक प्रतिस्पर्धा और कूटनीतिक संवाद तीनों शामिल हैं। गलवान घाटी संघर्ष जैसे सीमा विवादों ने द्विपक्षीय संबंधों में तनाव पैदा किया, लेकिन व्यापारिक लेन-देन अभी भी जारी है। भारत "चीन-प्लस-वन" रणनीति के तहत वैकल्पिक वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने के प्रयास में है।

(ग) रूस के साथ संबंध:

भारत और रूस के बीच लंबे समय से रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में गहरे संबंध हैं। भारत रूसी रक्षा उपकरणों का प्रमुख खरीदार रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया, पश्चिमी देशों और रूस के बीच कूटनीतिक संतुलन बनाए रखा। ऊर्जा सहयोग भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत रूस से सस्ते कच्चे तेल की आपूर्ति प्राप्त कर रहा है।

(घ) पाकिस्तान के साथ संबंध:

भारत और पाकिस्तान के संबंध अक्सर सीमा विवादों और आतंकवाद के मुद्दों के कारण तनावपूर्ण रहे हैं। पुलवामा हमले और सर्जिकल स्ट्राइक जैसी घटनाओं ने द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित किया है, हालांकि दोनों देशों के बीच राजनयिक वार्ताएं जारी रहती हैं। हाल ही में व्यापार और मानवीय आधार पर संवाद स्थापित करने के कुछ प्रयास किए गए हैं।

2. आर्थिक कूटनीति (Economic Diplomacy):

भारत वैश्विक व्यापार संगठनों जैसे विश्व व्यापार संगठन (WTO), BRICS, और G20 में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। "मेक इन इंडिया" और "आत्मनिर्भर भारत" जैसी पहलों के माध्यम से देश में विनिर्माण को बढ़ावा देने और विदेशी निवेश आकर्षित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। भारत मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर हस्ताक्षर कर रहा है, जिससे यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ व्यापार को बढ़ावा मिले। डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं से भारत नवाचार और स्टार्टअप इकोसिस्टम में एक वैश्विक केंद्र बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

3. रक्षा और रणनीतिक हित (Defense and Strategic Interests):

भारत अपनी सैन्य क्षमता को मजबूत कर रहा है और स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए "मेक इन इंडिया" पहल के तहत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

क्वाड (Quad) में सक्रिय भागीदारी – भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के इस समूह का उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना और मुक्त एवं स्वतंत्र समुद्री मार्ग सुनिश्चित करना है।

इंडो-पैसिफिक रणनीति – भारत इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा, व्यापार और संचार मार्गों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

रक्षा समझौतों और सैन्य अभ्यासों में वृद्धि – भारत अमेरिका, फ्रांस, रूस और इजराइल जैसे देशों के साथ रक्षा सहयोग बढ़ा रहा है, जिससे रक्षा तकनीक में उन्नति हो रही है।

4. बहुपक्षीय सहयोग (Multilateral Engagements):

भारत संयुक्त राष्ट्र (UN), G20, BRICS, और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे वैश्विक मंचों पर सक्रिय भूमिका निभा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता के लिए भारत जोर दे रहा है, जिससे उसकी वैश्विक प्रभावशीलता बढ़े।

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance - ISA) के माध्यम से भारत जलवायु परिवर्तन और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए नेतृत्व कर रहा है।

G20 की अध्यक्षता और वैश्विक आर्थिक नीति में योगदान – भारत ने हाल ही में G20 की अध्यक्षता संभाली और वैश्विक आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण नीतिगत सुझाव दिए।

भारत की विदेश नीति की प्रमुख चुनौतियाँ:

भारत की विदेश नीति वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर विभिन्न जटिलताओं का सामना कर रही है। बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों, आर्थिक मुद्दों और सुरक्षा संबंधी चिंताओं के बीच संतुलन बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। निम्नलिखित प्रमुख चुनौतियाँ भारत की विदेश नीति को प्रभावित कर रही हैं:

1. सीमा विवाद और क्षेत्रीय तनाव:

भारत की सीमाएँ चीन और पाकिस्तान सहित कई पड़ोसी देशों से जुड़ी हुई हैं, जहाँ ऐतिहासिक और भौगोलिक कारणों से विवाद बने हुए हैं।

चीन के साथ तनाव: लद्दाख क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर अक्सर तनाव उत्पन्न होता रहता है। गलवान घाटी में 2020 की झड़प जैसी घटनाएँ दोनों देशों के बीच अविश्वास बढ़ाती हैं।

पाकिस्तान के साथ विवाद: कश्मीर मुद्दे को लेकर दोनों देशों के बीच लंबे समय से मतभेद बने हुए हैं। नियंत्रण रेखा (LoC) पर संघर्ष विराम के उल्लंघन की घटनाएँ और घुसपैठ की कोशिशें भारत की सुरक्षा के लिए एक निरंतर चुनौती बनी हुई हैं।

अन्य सीमा विवाद: नेपाल के साथ कालापानी और लिपुलेख क्षेत्र में दावे-प्रतिदावे, बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा विवाद (हालांकि 2015 में इसका समाधान हुआ) और म्यांमार के साथ सीमाई मुद्दे भी भारत की विदेश नीति के लिए महत्वपूर्ण हैं।

2. आतंकवाद और सुरक्षा चुनौतियाँ:

भारत को लंबे समय से आतंकवाद का सामना करना पड़ा है, विशेष रूप से पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों की गतिविधियाँ एक बड़ी समस्या बनी हुई हैं।

सीमा पार आतंकवाद: जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों द्वारा आतंकवादी हमले, पुलवामा (2019) और उरी (2016) जैसी घटनाएँ भारत की सुरक्षा को प्रभावित करती हैं।

आंतरिक सुरक्षा: आतंकवाद के अलावा उग्रवाद और अलगाववादी आंदोलनों से भी भारत की सुरक्षा नीति प्रभावित होती है, जिससे सरकार को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कदम उठाने पड़ते हैं।

वैश्विक आतंकवाद से निपटना: भारत विभिन्न वैश्विक मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ ठोस रणनीति अपनाने की वकालत करता है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में इस मुद्दे पर अपेक्षित सफलता नहीं मिली है।

3. भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धाएँ और कूटनीतिक संतुलन: भारत को अमेरिका, रूस और चीन जैसे वैश्विक शक्ति केंद्रों के बीच संतुलन बनाए रखना पड़ता है।

अमेरिका के साथ संबंध: अमेरिका के साथ रक्षा, व्यापार और रणनीतिक साझेदारी लगातार मजबूत हो रही है, लेकिन रूस और ईरान जैसे देशों के साथ संबंध बनाए रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

रूस के साथ ऐतिहासिक संबंध: भारत पारंपरिक रूप से रूस का रणनीतिक सहयोगी रहा है, लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बीच संतुलन बनाना आवश्यक हो गया है।

चीन से प्रतिस्पर्धा: भारत-चीन संबंध जटिल हैं, क्योंकि व्यापारिक निर्भरता के बावजूद सीमाई तनाव और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन को लेकर प्रतिस्पर्धा बनी हुई है।

4. वैश्विक आर्थिक मंदी और व्यापार बाधाएँ:

भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, लेकिन वैश्विक आर्थिक मंदी, व्यापार प्रतिबंध और आपूर्ति श्रृंखला में रुकावटें इसकी प्रगति में बाधा डाल सकती हैं।

वैश्विक व्यापार अस्थिरता: कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बनी हुई है, जिससे भारत के निर्यात और आयात पर प्रभाव पड़ा है।

स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा: 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' जैसी नीतियाँ अपनाई गई हैं, लेकिन विदेशी निवेश आकर्षित करने और व्यापार संतुलन बनाए रखने की चुनौती बनी हुई है।

चीन पर व्यापारिक निर्भरता: भारत ने कई चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाए हैं और घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के प्रयास किए हैं, लेकिन चीन के साथ व्यापार असंतुलन अभी भी एक बड़ी समस्या है।

5. क्षेत्रीय स्थिरता और पड़ोसी देशों में संकट:

दक्षिण एशियाई क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता और मानवीय संकट भारत की विदेश नीति के लिए प्रमुख चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं।

अफगानिस्तान संकट: तालिबान के दोबारा सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान में स्थिरता बनाए रखना और वहाँ भारतीय हितों की रक्षा करना कठिन हो गया है।

म्यांमार की स्थिति: 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद म्यांमार में हिंसा और अस्थिरता बनी हुई है, जो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है।

श्रीलंका और नेपाल: श्रीलंका के आर्थिक संकट और नेपाल में बदलती राजनीतिक परिस्थितियाँ भी भारत के लिए चिंता का विषय हैं, क्योंकि ये दोनों देश भारत की सुरक्षा और व्यापार रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

निष्कर्ष:

भारत की विदेश नीति समय के साथ बदल रही है, जिसमें पारंपरिक सिद्धांतों और नई रणनीतिक तथा आर्थिक वास्तविकताओं के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया जा रहा है। वैश्विक शक्ति के रूप में उभरते हुए भारत का उद्देश्य न केवल अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराना है, बल्कि बहुपक्षीय सहयोग, क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक कूटनीति के माध्यम से अपनी स्थिति को सुदृढ़ करना भी है। भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने, व्यापारिक अवसरों का विस्तार करने और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने की दिशा में कार्य कर रहा है। हालाँकि, इसे सीमा विवादों, सुरक्षा चुनौतियों और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा जैसी कई जटिल परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में भारत को एक संतुलित और दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जिससे वह न केवल अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर सके, बल्कि वैश्विक स्थिरता और शांति में भी योगदान दे सके। तकनीकी प्रगति, आत्मनिर्भरता और वैश्विक साझेदारी को बढ़ावा देकर भारत अपनी विदेश नीति को और अधिक प्रभावी बना सकता है। भविष्य में, भारत को अपनी रणनीतियों को लचीला और सुदृढ़ बनाते हुए अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में अपनी भूमिका को और अधिक मजबूत करने की दिशा में कार्य करना होगा।

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