परिचय
श्वसन तंत्र मानव शरीर का अत्यंत महत्वपूर्ण तंत्र है, जो शरीर को ऑक्सीजन उपलब्ध कराता है और कार्बन डाइऑक्साइड — जो चयापचय की एक अपशिष्ट गैस है — को बाहर निकालता है। शरीर की प्रत्येक कोशिका को ऊर्जा प्राप्त करने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, और यदि श्वसन की प्रक्रिया सुचारू रूप से न चले तो जीवन संभव नहीं है। श्वसन तंत्र निरंतर और स्वचालित रूप से कार्य करता है, जिससे शरीर के अंदर और बाहर गैसों का आदान-प्रदान होता रहता है और शरीर का संतुलन बना रहता है।
परिभाषा
श्वसन तंत्र को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है —
यह अंगों और संरचनाओं का एक जैविक तंत्र है जो जीवों को ऑक्सीजन ग्रहण करने और कार्बन डाइऑक्साइड को निष्कासित करने में सहायता करता है।
यह श्वास लेने (Inhalation) और छोड़ने (Exhalation) की प्रक्रिया तथा बाह्य वातावरण और शरीर के बीच गैसों के आदान-प्रदान को सम्मिलित करता है।
श्वसन तंत्र के प्रमुख अंग (Main Organs of Respiratory System)
मानव श्वसन तंत्र में कई अंग होते हैं जो मिलकर श्वसन की प्रक्रिया को संचालित करते हैं। इन्हें दो भागों में विभाजित किया जा सकता है —
ऊपरी श्वसन पथ (Upper Respiratory Tract) और
निचला श्वसन पथ (Lower Respiratory Tract)।
1. नाक और नासिका गुहा (Nose and Nasal Cavity)
नाक श्वसन तंत्र का मुख्य द्वार है जिसके माध्यम से वायु शरीर में प्रवेश करती है। नासिका गुहा वायु को छानने, गर्म करने और नम बनाए रखने का कार्य करती है। इसमें उपस्थित सिलिया (Cilia) और श्लेष्मा (Mucus) धूल, कीटाणु और अन्य कणों को रोकते हैं ताकि वे फेफड़ों तक न पहुँचें।
2. ग्रसनी (Pharynx)
ग्रसनी वायु और भोजन दोनों के लिए एक सामान्य मार्ग है। यह नासिका गुहा को कंठ (Larynx) से जोड़ती है और यह सुनिश्चित करती है कि वायु सुरक्षित रूप से श्वसन मार्ग में प्रवेश करे।
3. कंठ (Larynx)
कंठ, जिसे आवाज का डिब्बा (Voice Box) भी कहा जाता है, ग्रसनी के नीचे स्थित होता है। इसमें स्वर-तंतु (Vocal Cords) होते हैं जो ध्वनि उत्पन्न करते हैं। साथ ही यह भोजन या तरल पदार्थ को श्वासनली (Trachea) में जाने से रोकता है।
4. श्वासनली (Trachea)
श्वासनली एक लंबी नली होती है जिसमें C-आकार की उपास्थि की अंगूठियाँ होती हैं। यह कंठ से वायु को फेफड़ों तक पहुँचाने का कार्य करती है। इसकी भीतरी दीवारों पर मौजूद सिलिया अशुद्ध कणों को ऊपर की ओर धकेलकर बाहर निकाल देती हैं।
5. श्वसन नलिकाएँ और सूक्ष्म नलिकाएँ (Bronchi and Bronchioles)
श्वासनली दो मुख्य नलिकाओं — दाएँ और बाएँ ब्रॉन्कस — में विभाजित हो जाती है, जो क्रमशः दाएँ और बाएँ फेफड़ों में प्रवेश करती हैं। ये नलिकाएँ आगे चलकर अनेक सूक्ष्म शाखाओं में विभाजित होती हैं जिन्हें ब्रॉन्किओल्स कहा जाता है।
6. फेफड़े (Lungs)
फेफड़े श्वसन के मुख्य अंग हैं। ये स्पंजी (Spongy) संरचना वाले दो बड़े थैले हैं जो वक्ष गुहा (Thoracic Cavity) में स्थित हैं। दाएँ फेफड़े में तीन खंड (Lobes) और बाएँ फेफड़े में दो खंड होते हैं ताकि हृदय के लिए स्थान बना रहे। फेफड़ों के भीतर सबसे अंत में छोटी-छोटी थैलियाँ होती हैं जिन्हें वायुकोष (Alveoli) कहा जाता है, जहाँ गैसों का वास्तविक आदान-प्रदान होता है।
7. वायुकोष (Alveoli)
वायुकोष सूक्ष्म थैलीनुमा संरचनाएँ हैं जिनके चारों ओर केशिकाएँ (Capillaries) होती हैं। यहाँ ऑक्सीजन रक्त में प्रवेश करती है और कार्बन डाइऑक्साइड रक्त से बाहर निकलती है। यही प्रक्रिया श्वसन का सबसे महत्वपूर्ण चरण है।
8. डायाफ्राम (Diaphragm)
डायाफ्राम एक गुंबदाकार पेशी (Muscle) है जो फेफड़ों के नीचे स्थित होती है। यह श्वास लेने और छोड़ने के दौरान संकुचन और प्रसार करती है, जिससे वक्ष गुहा का दबाव बदलता है और वायु का प्रवाह संभव होता है।
श्वसन की प्रक्रिया (Mechanism of Breathing)
श्वसन की प्रक्रिया दो भागों में होती है — श्वास ग्रहण (Inhalation) और श्वास त्याग (Exhalation)।
श्वास ग्रहण (Inhalation):
इस अवस्था में डायाफ्राम नीचे की ओर खिंचता है और पसलियाँ ऊपर उठती हैं, जिससे वक्ष गुहा का आकार बढ़ जाता है और वायु फेफड़ों में प्रवेश करती है।
श्वास त्याग (Exhalation):
इसमें डायाफ्राम ऊपर की ओर उठता है और पसलियाँ नीचे की ओर जाती हैं, जिससे वक्ष गुहा का आकार घटता है और वायु फेफड़ों से बाहर निकलती है।
गैसों का आदान-प्रदान (Gas Exchange)
- गैसों का आदान-प्रदान वायुकोषों (Alveoli) में प्रसरण (Diffusion) की प्रक्रिया द्वारा होता है।
- ऑक्सीजन वायुकोष से रक्त में प्रवेश करती है।
- कार्बन डाइऑक्साइड रक्त से वायुकोष में प्रवेश कर बाहर निकल जाती है।
- इसके बाद ऑक्सीजनयुक्त रक्त शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुँचता है।
श्वसन तंत्र के प्रमुख कार्य (Functions of Respiratory System)
1. गैसों का आदान-प्रदान: रक्त को ऑक्सीजन देना और कार्बन डाइऑक्साइड को निकालना।
2. रक्त के pH का नियमन: CO₂ के स्तर को नियंत्रित कर अम्ल-क्षार संतुलन बनाए रखना।
3. ध्वनि उत्पन्न करना: कंठ में स्थित स्वर-तंतु ध्वनि और वाणी का निर्माण करते हैं।
4. सुरक्षा: नासिका गुहा, श्लेष्मा और सिलिया धूल और जीवाणुओं को रोकते हैं।
5. गंध पहचान: नासिका गुहा में गंधग्राही तंत्रिका (Olfactory Receptors) होती हैं।
6. तापमान नियंत्रण: श्वसन के दौरान ऊष्मा का विनिमय शरीर के तापमान को संतुलित रखता है।
श्वसन तंत्र की बीमारियाँ (Disorders of the Respiratory System)
1. अस्थमा (Asthma): श्वसन मार्ग की सूजन जिसके कारण सांस लेने में कठिनाई होती है।
2. ब्रोंकाइटिस (Bronchitis): श्वसन नलिकाओं की सूजन और संक्रमण।
3. निमोनिया (Pneumonia): फेफड़ों के वायुकोषों में संक्रमण और सूजन।
4. क्षयरोग (Tuberculosis): माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु से होने वाला संक्रमण।
5. फेफड़ों का कैंसर (Lung Cancer): फेफड़ों में असामान्य कोशिकाओं की वृद्धि।
6. सीओपीडी (COPD): धूम्रपान या प्रदूषण से वायु मार्ग का दीर्घकालीन अवरोध।
स्वस्थ श्वसन तंत्र के लिए आदतें (Healthy Habits for a Strong Respiratory System)
- धूम्रपान और प्रदूषण से बचें।
- प्राणायाम जैसे श्वास अभ्यास नियमित रूप से करें।
- विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर संतुलित आहार लें।
- नियमित व्यायाम करें जिससे फेफड़ों की क्षमता बढ़े।
- स्वच्छता बनाए रखें ताकि संक्रमण से बचा जा सके।
- फ्लू और निमोनिया जैसी बीमारियों से बचाव के लिए टीकाकरण करवाएँ।
निष्कर्ष (Conclusion)
श्वसन तंत्र जीवन को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यह शरीर को निरंतर ऑक्सीजन प्रदान करता है और कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालता है। स्वस्थ श्वसन तंत्र शरीर के सभी कार्यों को सुचारू रूप से संचालित करता है और व्यक्ति के संपूर्ण स्वास्थ्य में सुधार लाता है। स्वच्छता, स्वास्थ्यवर्धक आदतों और प्रदूषण से बचाव द्वारा हम अपने फेफड़ों और श्वसन तंत्र को दीर्घकाल तक स्वस्थ रख सकते हैं।
Related to...
