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Role of Civics in Promoting International Understanding अंतरराष्ट्रीय समझ बढ़ाने में नागरिक शास्त्र की भूमिका

प्रस्तावना

आज का युग विज्ञान, प्रौद्योगिकी और संचार के क्षेत्र में तीव्र प्रगति का युग है, जिसने पूरे विश्व को एक “वैश्विक ग्राम” (Global Village) में परिवर्तित कर दिया है। ऐसी स्थिति में विभिन्न राष्ट्रों, संस्कृतियों, भाषाओं और परंपराओं के लोगों के बीच सौहार्द, सहयोग और परस्पर सम्मान का होना अत्यंत आवश्यक हो गया है। अंतरराष्ट्रीय समझ (International Understanding) का तात्पर्य केवल राष्ट्रों के बीच राजनीतिक संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी मानवीय भावना है जो पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में देखने का दृष्टिकोण प्रदान करती है।

नागरिक शास्त्र (Civics) का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति को उसके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनाना है, ताकि वह एक जिम्मेदार और संवेदनशील नागरिक बन सके। जब यही शिक्षा वैश्विक दृष्टिकोण के साथ दी जाती है, तब यह व्यक्ति में विश्वबंधुत्व, शांति और सहअस्तित्व की भावना को जन्म देती है। इस प्रकार नागरिक शास्त्र केवल राष्ट्र निर्माण का नहीं, बल्कि “विश्व निर्माण” का भी एक प्रभावी साधन बन जाता है।

1. वैश्विक नागरिकता का विकास

नागरिक शास्त्र विद्यार्थियों में यह विचार उत्पन्न करता है कि वे केवल किसी एक देश या समुदाय के सदस्य नहीं, बल्कि समूचे मानव समाज के अभिन्न अंग हैं। यह विषय विद्यार्थियों को सिखाता है कि सभी मनुष्य समान हैं और सभी का लक्ष्य एक शांतिपूर्ण तथा प्रगतिशील जीवन प्राप्त करना है। जब व्यक्ति सीमाओं, धर्म, भाषा या जातीयता से ऊपर उठकर मानवता के दृष्टिकोण से सोचता है, तब उसमें “वैश्विक नागरिकता” (Global Citizenship) की भावना विकसित होती है।

वैश्विक नागरिकता का यह विचार विद्यार्थियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे परिवर्तनों, संघर्षों और उपलब्धियों से जोड़ता है। वे यह समझने लगते हैं कि एक देश की समृद्धि दूसरे देशों से अलग नहीं हो सकती। उदाहरण के लिए, पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन, या गरीबी जैसी समस्याएँ ऐसी हैं जिन्हें वैश्विक दृष्टिकोण से ही हल किया जा सकता है। नागरिक शास्त्र विद्यार्थियों को यह सिखाता है कि विश्व में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति समान रूप से इस ग्रह के कल्याण के लिए उत्तरदायी है।

2. शांति और सहयोग की भावना का संवर्धन

नागरिक शास्त्र विद्यार्थियों के मन में यह विश्वास स्थापित करता है कि स्थायी शांति (Permanent Peace) केवल सहयोग और संवाद से ही संभव है, संघर्ष या युद्ध से नहीं। यह विषय उन्हें बताता है कि हिंसा और युद्ध मानव सभ्यता को नष्ट करते हैं, जबकि सहयोग, समझ और सहिष्णुता सभ्यता को आगे बढ़ाते हैं।

पाठ्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO), यूनेस्को (UNESCO), यूनिसेफ (UNICEF), और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) जैसी संस्थाओं की जानकारी दी जाती है, जिनका उद्देश्य विश्व में शांति, समानता और कल्याण स्थापित करना है। इनके अध्ययन से विद्यार्थियों में यह प्रेरणा जागृत होती है कि वे भी ऐसे वैश्विक उद्देश्यों के लिए कार्य करें जो समस्त मानवता के हित में हों। इस प्रकार नागरिक शास्त्र विद्यार्थियों में “विश्व-शांति के दूत” बनने की भावना विकसित करता है।

3. वैश्विक समस्याओं के प्रति जागरूकता

आज की दुनिया अनेक जटिल समस्याओं से जूझ रही है—जैसे जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण प्रदूषण, गरीबी, आतंकवाद, मानवाधिकार हनन और असमानता। नागरिक शास्त्र इन समस्याओं का परिचय विद्यार्थियों को कराता है और उन्हें इनके वास्तविक कारणों तथा संभावित समाधान के प्रति सोचने के लिए प्रेरित करता है।

यह विषय विद्यार्थियों को सिखाता है कि ये सभी चुनौतियाँ केवल एक देश की नहीं, बल्कि पूरे विश्व की सामूहिक समस्या हैं। जब विद्यार्थी यह समझने लगते हैं कि एक देश की क्रियाएँ दूसरे देशों को प्रभावित कर सकती हैं, तब उनमें अंतरराष्ट्रीय उत्तरदायित्व (International Responsibility) की भावना उत्पन्न होती है। वे यह जान पाते हैं कि वैश्विक सहयोग और साझा प्रयासों से ही इन समस्याओं का स्थायी समाधान संभव है। इस तरह नागरिक शास्त्र उन्हें “वैश्विक सोच और स्थानीय कार्य” (Think Globally, Act Locally) का संदेश देता है।

4. मानवाधिकार और समानता की भावना का प्रसार

नागरिक शास्त्र मानवाधिकारों, स्वतंत्रता, न्याय और समानता जैसे मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित विषय है। यह विद्यार्थियों को यह समझाता है कि प्रत्येक व्यक्ति, चाहे उसकी राष्ट्रीयता, जाति, धर्म या लिंग कुछ भी हो, उसे समान अधिकार और अवसर प्राप्त होने चाहिए। जब विद्यार्थी इन मूल्यों को आत्मसात करते हैं, तो उनमें दूसरों के प्रति सम्मान, सहानुभूति और संवेदनशीलता की भावना विकसित होती है।

मानवाधिकारों का सम्मान ही अंतरराष्ट्रीय समझ की वास्तविक नींव है। जब एक व्यक्ति दूसरे की स्वतंत्रता और अस्तित्व को स्वीकार करता है, तब ही वह विश्व शांति के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। नागरिक शास्त्र इस दिशा में विद्यार्थियों को सजग बनाता है और उन्हें सिखाता है कि किसी भी प्रकार का भेदभाव मानवता के सिद्धांतों के विरुद्ध है।

5. सांस्कृतिक विविधता और सहिष्णुता का सम्मान

नागरिक शास्त्र विद्यार्थियों को विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और परंपराओं के अध्ययन का अवसर देता है, जिससे उनमें विविधता के प्रति सम्मान और सहिष्णुता की भावना विकसित होती है। यह विषय बताता है कि विविधता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि समाज की सबसे बड़ी शक्ति है, जो मानव सभ्यता को समृद्ध बनाती है।

जब विद्यार्थी दूसरों की परंपराओं, त्योहारों और जीवनशैलियों को समझने और स्वीकार करने लगते हैं, तब पूर्वाग्रह और भेदभाव स्वतः समाप्त होने लगते हैं। ऐसी शिक्षा समाज में सह-अस्तित्व, एकता और विश्वबंधुत्व की भावना को प्रोत्साहित करती है। नागरिक शास्त्र इस प्रकार एक ऐसा वातावरण निर्मित करता है जहाँ लोग “विविधता में एकता” (Unity in Diversity) के सिद्धांत को अपनाते हैं।

6. जिम्मेदार और जागरूक नागरिकों का निर्माण

नागरिक शास्त्र व्यक्ति को केवल अधिकारों की जानकारी नहीं देता, बल्कि उसके कर्तव्यों का भी बोध कराता है। यह विद्यार्थियों को यह सिखाता है कि एक सच्चा नागरिक न केवल अपने देश के प्रति बल्कि संपूर्ण मानवता के प्रति भी उत्तरदायी होता है। जब व्यक्ति में यह चेतना विकसित होती है कि उसके कर्म विश्व समुदाय को प्रभावित कर सकते हैं, तब वह अपने व्यवहार और निर्णयों में अधिक नैतिक और संवेदनशील बनता है।

नागरिक शास्त्र के माध्यम से विद्यार्थियों में न्याय, सहानुभूति, सहयोग और सेवा जैसे गुण विकसित होते हैं, जो उन्हें स्थानीय और वैश्विक स्तर पर जिम्मेदार नागरिक बनाते हैं। ऐसे नागरिक न केवल अपने समाज में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी शांति, न्याय और सतत विकास (Sustainable Development) में योगदान देते हैं।

निष्कर्ष

अंत में कहा जा सकता है कि नागरिक शास्त्र वह विषय है जो व्यक्ति को एक “वैश्विक नागरिक” के रूप में सोचने, समझने और कार्य करने की प्रेरणा देता है। यह विद्यार्थियों में सहयोग, सहिष्णुता, समानता, मानवाधिकार, और विश्वबंधुत्व जैसी सार्वभौमिक मान्यताओं को स्थापित करता है।

यदि प्रत्येक व्यक्ति नागरिक शास्त्र के आदर्शों को अपने जीवन में अपनाए, तो राष्ट्रों के बीच दीवारें नहीं, बल्कि पुल निर्मित होंगे। ऐसी स्थिति में न केवल राष्ट्रीय एकता बल्कि विश्व शांति और मानवता का सशक्त ताना-बाना भी स्थापित होगा। इस प्रकार नागरिक शास्त्र अंतरराष्ट्रीय समझ को बढ़ाने और एक बेहतर, शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण में अत्यंत प्रभावी भूमिका निभाता है।

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