सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Social Constructivist Perspective of Curriculum पाठ्यचर्या का सामाजिक संरचनावादी दृष्टिकोण

प्रस्तावना (Introduction)

आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में पाठ्यचर्या को अब केवल विषयवस्तु की सूची नहीं माना जाता, बल्कि उसे एक सक्रिय, सामाजिक और रचनात्मक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है। पहले यह समझा जाता था कि ज्ञान बाहर से विद्यार्थी के मन में डाला जाता है, परंतु अब यह स्वीकृत हो चुका है कि ज्ञान का निर्माण विद्यार्थी स्वयं अपने अनुभवों, सामाजिक संवाद और परिवेश के माध्यम से करता है। इसी धारणा पर आधारित शैक्षिक विचारधारा को सामाजिक संरचनावाद (Social Constructivism) कहा जाता है।

यह दृष्टिकोण यह मानता है कि सीखना केवल एक मानसिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह समाज, संस्कृति, भाषा, परंपराओं और पारस्परिक संबंधों से गहराई से जुड़ा हुआ है। पाठ्यचर्या का सामाजिक संरचनावादी दृष्टिकोण विद्यार्थी को निष्क्रिय श्रोता नहीं, बल्कि एक सचेत, विचारशील और सामाजिक प्राणी के रूप में विकसित करने पर बल देता है।

सामाजिक संरचनावाद का अर्थ (Meaning of Social Constructivism)

सामाजिक संरचनावाद वह सिद्धांत है, जिसके अनुसार ज्ञान व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि सामाजिक अंतःक्रियाओं के माध्यम से निर्मित होता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार कोई भी व्यक्ति अकेले सीखकर पूर्ण ज्ञान अर्जित नहीं कर सकता, बल्कि उसे समाज के अन्य सदस्यों, शिक्षक, सहपाठी, परिवार और संस्कृति से निरंतर संवाद करना पड़ता है।

यह सिद्धांत यह मानता है कि—

ज्ञान स्थिर (Static) नहीं होता, बल्कि बदलते सामाजिक अनुभवों के अनुसार निरंतर विकसित होता रहता है।

भाषा, संवाद और सहभागिता ज्ञान के निर्माण के प्रमुख साधन होते हैं।

शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया मनुष्य के सामाजिक जीवन से अलग नहीं हो सकती।

इस प्रकार सामाजिक संरचनावाद शिक्षा को एक सामूहिक, संवादात्मक और अनुभवपरक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित करता है।

सामाजिक संरचनावादी दृष्टिकोण के प्रमुख विचारक (Major Thinkers)

(i) लेव वायगोत्स्की (Lev Vygotsky)

वायगोत्स्की ने यह सिद्ध किया कि बच्चे का बौद्धिक विकास समाज से अलग नहीं होता। उन्होंने Zone of Proximal Development (ZPD) की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसके अनुसार बच्चा अकेले जो सीख सकता है और किसी सक्षम व्यक्ति की सहायता से जो सीख सकता है, उसके बीच का अंतर ही वास्तविक अधिगम को दर्शाता है। उनका मानना था कि शिक्षक, माता-पिता और सहपाठी सीखने की प्रक्रिया को दिशा प्रदान करते हैं।


(ii) जेरोम ब्रूनर (Jerome Bruner)

ब्रूनर ने खोज आधारित अधिगम (Discovery Learning) पर बल दिया। उनके अनुसार जब विद्यार्थी स्वयं खोज के माध्यम से ज्ञान तक पहुँचता है, तो वह ज्ञान अधिक स्थायी और प्रभावी होता है। इस दृष्टिकोण में पाठ्यचर्या को इस प्रकार संगठित किया जाता है कि छात्र स्वयं प्रश्न पूछें, प्रयोग करें और निष्कर्ष निकालें।


(iii) जॉन डीवी (John Dewey)

जॉन डीवी ने शिक्षा को अनुभव आधारित, लोकतांत्रिक तथा व्यावहारिक जीवन से जुड़ा हुआ माना। उन्होंने विद्यालय को समाज का लघु रूप (Miniature Society) माना, जहाँ बच्चे जीवन के वास्तविक अनुभव प्राप्त करते हैं। उनका मानना था कि शिक्षा समाज के पुनर्निर्माण का माध्यम है।


सामाजिक संरचनावादी दृष्टिकोण में पाठ्यचर्या की अवधारणा (Concept of Curriculum)

सामाजिक संरचनावादी दृष्टिकोण में पाठ्यचर्या को केवल विषयों का संकलन न मानकर उसे अनुभव, संवाद, सहयोग और सामाजिक सहभागिता का माध्यम माना जाता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार पाठ्यचर्या का निर्माण विद्यार्थियों के जीवन, समाज की आवश्यकताओं और समकालीन समस्याओं को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।


इस प्रकार की पाठ्यचर्या—

विद्यार्थी के अनुभवों पर आधारित होती है।

समाज की वास्तविक समस्याओं से जुड़ी होती है।

लोकतांत्रिक मूल्यों को विकसित करती है।

समूह कार्य, परियोजना कार्य और चर्चा को महत्व देती है।


सामाजिक संरचनावादी पाठ्यचर्या की प्रमुख विशेषताएँ (Characteristics)

1. विद्यार्थी-केंद्रित पाठ्यचर्या

इस दृष्टिकोण में विद्यार्थी शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का केंद्र होता है। उसकी रुचि, क्षमता, अनुभव और आवश्यकता के अनुसार पाठ्यचर्या को लचीला बनाया जाता है।


2. सहयोगात्मक अधिगम

विद्यार्थी समूह में मिलकर सीखते हैं। वे अपने विचार साझा करते हैं, दूसरों के दृष्टिकोण को समझते हैं और सामूहिक रूप से ज्ञान का निर्माण करते हैं।


3. अनुभव आधारित अधिगम

यह पाठ्यचर्या जीवन के वास्तविक अनुभवों से जुड़ी होती है। विद्यार्थी केवल पुस्तकों से नहीं, बल्कि गतिविधियों, प्रयोगों और परियोजनाओं से सीखता है।


4. संवाद और भाषा का महत्व

चर्चा, वाद-विवाद, संवाद और सहमति-असहमति के माध्यम से विद्यार्थी अपने विचारों को स्पष्ट करना सीखता है।


5. लचीलापन

यह पाठ्यचर्या कठोर नहीं होती, बल्कि समय, समाज और परिस्थितियों के अनुसार बदली जा सकती है।


6. समस्या आधारित अधिगम

विद्यार्थियों को समाज की वास्तविक समस्याओं से अवगत कराया जाता है और उनके समाधान खोजने के लिए प्रेरित किया जाता है।


सामाजिक संरचनावादी दृष्टिकोण में शिक्षक की भूमिका (Role of Teacher)

इस दृष्टिकोण में शिक्षक केवल ज्ञान देने वाला नहीं होता, बल्कि वह एक मार्गदर्शक, सहयोगी और प्रेरक (Facilitator) होता है। उसकी भूमिका इस प्रकार होती है—


विद्यार्थियों को स्वतंत्र रूप से सोचने के अवसर देना।

समूह चर्चा को प्रोत्साहित करना।

परियोजना कार्यों का मार्गदर्शन करना।

विद्यार्थियों के अनुभवों को सीखने से जोड़ना।

कक्षा में लोकतांत्रिक वातावरण का निर्माण करना।


सामाजिक संरचनावादी दृष्टिकोण में विद्यार्थी की भूमिका (Role of Learner)


इस दृष्टिकोण में विद्यार्थी सक्रिय शिक्षार्थी होता है। वह—

प्रश्न पूछता है।

प्रयोग करता है।

अपने विचार व्यक्त करता है।

समूह में सहयोग करता है।

अपने अनुभवों से ज्ञान का निर्माण करता है।

इस प्रकार विद्यार्थी केवल सूचना ग्रहण करने वाला नहीं रहता, बल्कि वह ज्ञान का सह-निर्माता (Co-Creator) बन जाता है।


सामाजिक संरचनावादी पाठ्यचर्या के उद्देश्य (Objectives)

इस दृष्टिकोण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं—

1. सामाजिक सहभागिता का विकास

2. आलोचनात्मक चिंतन का विकास

3. समस्या समाधान क्षमता का विकास

4. लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास

5. आत्मनिर्भरता और रचनात्मकता का विकास

6. सामाजिक जिम्मेदारी की भावना का विकास


सामाजिक संरचनावादी दृष्टिकोण का शैक्षिक महत्व (Educational Importance)

यह दृष्टिकोण शिक्षा को पुस्तकों की सीमा से बाहर निकालकर जीवन से जोड़ देता है। इसके माध्यम से—

विद्यार्थी सोचने और तर्क करने में सक्षम बनता है।

सामाजिक न्याय, समानता और सहयोग की भावना विकसित होती है।

विद्यार्थी समाज की समस्याओं को समझकर उनके समाधान की दिशा में कार्य करता है।

शिक्षा केवल परीक्षा केंद्रित न रहकर जीवनोपयोगी बनती है।


सामाजिक संरचनावादी दृष्टिकोण की सीमाएँ (Limitations)

यद्यपि यह दृष्टिकोण अत्यंत उपयोगी है, फिर भी इसकी कुछ सीमाएँ हैं—

बड़ी कक्षाओं में इसे लागू करना कठिन होता है।

प्रशिक्षित शिक्षकों की आवश्यकता होती है।

समय अधिक लगता है।

कुछ सैद्धांतिक विषयों में इसे पूर्ण रूप से लागू करना कठिन होता है।

आधुनिक शिक्षा में सामाजिक संरचनावादी दृष्टिकोण की प्रासंगिकता (Relevance in Modern Education)

आज के डिजिटल युग में—

ऑनलाइन समूह अधिगम

परियोजना आधारित शिक्षण

गतिविधि आधारित अधिगम

स्मार्ट कक्षा

सभी में सामाजिक संरचनावादी सिद्धांतों का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) भी अनुभव आधारित और कौशल आधारित शिक्षण पर बल देती है, जो इस दृष्टिकोण से पूरी तरह मेल खाता है।


निष्कर्ष (Conclusion)

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि सामाजिक संरचनावादी दृष्टिकोण आधुनिक शिक्षा की आत्मा है। यह शिक्षा को केवल सूचना का साधन नहीं, बल्कि मानव निर्माण का माध्यम बनाता है। यह विद्यार्थी को सामाजिक रूप से जागरूक, जिम्मेदार, रचनात्मक और चिंतनशील नागरिक बनने में सहायता करता है। आज के तेज़ी से बदलते सामाजिक और तकनीकी युग में यही दृष्टिकोण शिक्षा को वास्तविक अर्थों में समाजोपयोगी और जीवनोपयोगी बनाता है।


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

B.Ed. Detailed Notes in Hindi बी. एड. पाठ्यक्रम के हिन्दी में विस्तृत नोट्स

B.Ed. Curriculum Papers: Childhood, Growing up and Learning Contemporary India and Education Yoga for Holistic Health Understanding Discipline and Subjects Teaching and Learning Knowledge and Curriculum Part I Assessment for Learning Gender, School and Society Knowledge and Curriculum Part II Creating an Inclusive School Guidance and Counseling Health and Physical Education Environmental Studies Pedagogy of School Subjects Pedagogy of Civics Pedagogy of Art Pedagogy of Social Science Pedagogy of Financial Accounting Topics related to B.Ed. Topics related to Political Science

Assessment for Learning

List of Contents: Meaning & Concept of Assessment, Measurement & Evaluation and their Interrelationship मूल्यांकन, मापन और मूल्यनिर्धारण का अर्थ एवं अवधारणा तथा इनकी पारस्परिक सम्बद्धता Purpose of Evaluation शिक्षा में मूल्यांकन का उद्देश्य Principles of Assessment आकलन के सिद्धांत Functions of Measurement and Evaluation in Education शिक्षा में मापन और मूल्यांकन की कार्यप्रणालियाँ Steps of Evaluation Process | मूल्यांकन प्रक्रिया के चरण Types of Measurement मापन के प्रकार Tools of Measurement and Evaluation मापन और मूल्यांकन के उपकरण Techniques of Evaluation मूल्यांकन की तकनीकें Guidelines for Selection, Construction, Assembling, and Administration of Test Items परीक्षण कथनों के चयन, निर्माण, संयोजन और प्रशासन के दिशानिर्देश Characteristics of a Good Evaluation System – Reliability, Validity, Objectivity, Comparability, Practicability एक अच्छी मूल्यांकन प्रणाली की विशेषताएँ – विश्वसनीयता, वैधता, वस्तुनिष्ठता, तुलनात्मकता, व्यावहारिकता Analysis and Interpretation of ...

Understanding discipline and subjects

Click the Topic Name given below: Knowledge - Definition, its genesis and general growth from the remote past to 21st Century  ज्ञान - परिभाषा, उत्पत्ति और प्राचीन काल से लेकर 21वीं सदी तक इसका सामान्य विकास Nature and Role of Disciplinary Knowledge in the School Curriculum  अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और स्कूल पाठ्यक्रम में इसकी भूमिका Paradigm Shifts in the Nature of Discipline  अनुशासन की प्रकृति में रूपांतरकारी परिवर्तन Redefinition and Reformulation of Disciplines and School Subjects Over the Last Two Centuries  पिछली दो शताब्दियों में विषयों और शैक्षणिक अनुशासनों का पुनर्परिभाषीकरण और पुनरूपण John Dewey's Vision: The Role of Core Disciplines in School Curriculum  जॉन डी.वी. की दृष्टि: स्कूल पाठ्यक्रम में मुख्य विषयों की भूमिका Sea Change in Disciplinary Areas: A Perspective on Social Science, Natural Science, and Linguistics  विषय क्षेत्रों में व्यापक परिवर्तन: सामाजिक विज्ञान, प्राकृतिक विज्ञान और भाषाविज्ञान पर एक दृष्टिकोण Selection Criteria of C...