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Knowledge - Definition, its genesis and general growth from the remote past to 21st Century. ज्ञान - परिभाषा, उत्पत्ति और प्राचीन काल से लेकर 21वीं सदी तक इसका सामान्य विकास

Knowledge - Definition, Origin, and Evolution from Ancient Times to the 21st Century | ज्ञान - परिभाषा, उत्पत्ति और प्राचीन काल से 21वीं सदी तक विकास


ज्ञान की परिभाषा (Definition of Knowledge)

ज्ञान (Knowledge) मनुष्य के मानसिक एवं बौद्धिक विकास की वह सर्वोच्च अवस्था है, जिसके माध्यम से वह किसी वस्तु, व्यक्ति, घटना अथवा सार्वभौमिक सत्य की वास्तविकता को पहचानने, समझने, विश्लेषण करने और विवेचित करने की क्षमता प्राप्त करता है। यह केवल तथ्यों या सूचनाओं (Information) का साधारण संग्रह मात्र नहीं है, बल्कि उन सूचनाओं का अनुभवजन्य परीक्षण, तार्किक विश्लेषण, विवेकपूर्ण उपयोग और सत्य के साथ सामंजस्य स्थापित करने की प्रक्रिया है।

भारतीय दार्शनिक दृष्टिकोण में ज्ञान को अत्यंत व्यापक और गहन स्वरूप में देखा गया है। यहाँ ज्ञान केवल बाहरी इंद्रिय अनुभवों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आत्मानुभूति, आत्मबोध और परम सत्य की प्रत्यक्ष अनुभूति तक विस्तृत है। उपनिषदों ने ज्ञान को "ब्रह्मविद्या" की संज्ञा दी है, जिसका उद्देश्य आत्मा और परमात्मा के शाश्वत संबंध का उद्घाटन करना है। इसी कारण भारतीय परंपरा में ज्ञान को केवल लौकिक जीवन के लिए आवश्यक माना गया है, बल्कि आध्यात्मिक मुक्ति (मोक्ष) का मार्ग भी समझा गया है।

इसके विपरीत पाश्चात्य दार्शनिक परंपरा में ज्ञान की परिभाषा अधिकतर तार्किकता और विवेचनात्मक दृष्टिकोण पर आधारित रही है। यूनानी दार्शनिक प्लेटो ने ज्ञान को Justified True Belief (औचित्यपूर्ण सत्य विश्वास) कहा। उनके अनुसार कोई भी धारणा तभी ज्ञान कही जा सकती है जब उसमें तीन तत्व निहित हों

1.      वह विचार या धारणा सत्य (Truth) हो,

2.      उसका उचित और तार्किक औचित्य (Justification) हो,

3.      और व्यक्ति उस पर दृढ़ विश्वास (Belief) करता हो।

इन तीनों शर्तों के बिना कोई भी जानकारी केवल "मत" या "अनुमान" मानी जाएगी, परंतु उसे ज्ञान नहीं कहा जा सकता।

इस प्रकार स्पष्ट है कि ज्ञान केवल बाहरी जगत की वस्तुओं को जानने का साधन नहीं है, बल्कि यह मनुष्य को अज्ञान से ज्ञान की ओर, भ्रम से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और अराजकता से सुव्यवस्था की ओर ले जाने वाला सेतु है। यह व्यक्ति के व्यक्तित्व को परिष्कृत करता है, सामाजिक जीवन को संगठित करता है और आध्यात्मिक जीवन को ऊँचाइयों तक पहुँचाता है।

ज्ञान का उद्गम (Genesis of Knowledge)

ज्ञान का उद्गम मानव सभ्यता की उत्पत्ति से ही जुड़ा है। प्रारंभिक अवस्था में मनुष्य ने अपने इंद्रियों के माध्यम से आसपास की वस्तुओं, घटनाओं और प्राकृतिक परिस्थितियों को अनुभव किया। आग का आविष्कार, औजारों का निर्माण और कृषि का विकास ज्ञान के शुरुआती चरणों के उदाहरण हैं। धीरे-धीरे मनुष्य ने मौखिक परंपरा के माध्यम से इस अर्जित ज्ञान को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाया।

ज्ञान का उद्गम और विकास

1. प्रागैतिहासिक काल

प्रागैतिहासिक काल मानव जीवन की सबसे प्रारंभिक अवस्था थी, जब मनुष्य पूर्णतः प्राकृतिक परिस्थितियों पर निर्भर था। उस समय तो भाषा का विकास हुआ था, ही लेखन और संगठित शिक्षा प्रणाली अस्तित्व में थी। मनुष्य ने अपनी जिज्ञासा और आवश्यकताओं के आधार पर प्रकृति का निरीक्षण करते हुए धीरे-धीरे ज्ञान अर्जित किया। वह अपने परिवेश से सीखता और अनुभवों को व्यवहार में लाता था। भोजन प्राप्त करने के लिए उसने शिकार करना सीखा, पशुओं को वश में किया और कृषि की प्रारंभिक विधियाँ विकसित कीं। आग की खोज ने उसके जीवन को सुरक्षा, ऊर्जा और भोजन पकाने की सुविधा प्रदान की। उसने पत्थर, हड्डी और धातु से औजार एवं हथियार बनाना शुरू किया, जिससे उसका जीवन अपेक्षाकृत सरल और सुरक्षित हुआ। इसके अतिरिक्त, गुफाओं की दीवारों पर बनाई गई चित्रकारी, शिकार के दृश्य और प्रतीकात्मक आकृतियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि मनुष्य ने संकेतों और प्रतीकों के माध्यम से अपने अनुभव साझा करने और संप्रेषण की कला विकसित कर ली थी। इस युग का ज्ञान मुख्यतः अनुभवजन्य (Experiential), व्यवहारिक (Practical) और अस्तित्वपरक (Existential) था। इसका प्रमुख उद्देश्य जीवन-निर्वाह, सुरक्षा और प्राकृतिक शक्तियों के साथ संतुलन बनाए रखना था।

2. वैदिक और प्राचीन सभ्यताएँ

सभ्यताओं के विकास के साथ ज्ञान का स्वरूप और अधिक गहन, संगठित और विविधतापूर्ण हो गया। वैदिक काल भारतीय ज्ञान परंपरा का स्वर्णिम अध्याय माना जाता है। यहाँ ज्ञान केवल भौतिक आवश्यकताओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह दार्शनिक, धार्मिक, भाषाई और आध्यात्मिक चिंतन से जुड़ गया। ऋग्वेद में प्राकृतिक शक्तियों (अग्नि, वायु, आदित्य आदि) की उपासना और उनके माध्यम से जीवन के नियमों की व्याख्या की गई। उपनिषदों ने "आत्मा और ब्रह्म" के शाश्वत रहस्यों की खोज की और मनुष्य के आध्यात्मिक उत्थान पर बल दिया। आयुर्वेद जैसे ग्रंथों ने चिकित्सा को व्यवस्थित विज्ञान का रूप दिया, जिसमें आहार-विहार, औषधि और रोग-निवारण की पद्धतियों का वर्णन मिलता है। इसी काल में संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा का विकास हुआ, जिसने विचारों और ज्ञान को स्थायी रूप से अभिव्यक्त करने का माध्यम प्रदान किया। गणित, ज्योतिष और खगोल विज्ञान के प्रारंभिक स्वरूप भी इसी युग में उभरकर आए। परिणामस्वरूप यह काल केवल व्यावहारिक जीवन की आवश्यकताओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि मानव अस्तित्व की सार्थकता, जीवन के रहस्यों और ब्रह्मांड के स्वरूप की गहन खोज भी इसका अभिन्न अंग बन गई।

3. यूनानी दर्शन

पश्चिमी जगत में यूनानी दार्शनिकों ने ज्ञान की परिभाषा और उसकी प्रकृति को एक नया आयाम दिया। सुकरात ने ज्ञान को आत्मा की जागरूकता और आत्मबोध से जोड़ा तथा सत्य तक पहुँचने के लिए प्रश्नोत्तर पद्धति (Socratic Method) को अपनाया। उनके अनुसार ज्ञान तभी प्राप्त होता है जब व्यक्ति स्वयं प्रश्न पूछकर और तर्क-वितर्क द्वारा सत्य तक पहुँचे। प्लेटो ने ज्ञान को Justified True Belief (औचित्यपूर्ण सत्य विश्वास) कहा। उनका मानना था कि इंद्रिय बोध अधूरा और अस्थायी है, जबकि वास्तविक ज्ञान उन "आदर्श रूपों" (Ideal Forms) से जुड़ा है, जो शाश्वत और अपरिवर्तनीय हैं। अरस्तु ने ज्ञान को और भी अधिक व्यवस्थित ढाँचा दिया। उन्होंने तर्कशास्त्र (Logic) का विकास किया और प्राकृतिक विज्ञान, राजनीति, जीवविज्ञान, साहित्य और दर्शन को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। उनका दृष्टिकोण अनुभव और तर्क पर आधारित था, जिसने आगे चलकर आधुनिक विज्ञान की नींव रखी।

यूनानी दर्शन ने ज्ञान को धार्मिक और आध्यात्मिक सीमाओं से निकालकर तार्किक, विवेचनात्मक और वैज्ञानिक दिशा दी। इसने पश्चिमी सभ्यता में तर्कवाद, विवेक और वैज्ञानिक चिंतन की ठोस नींव रखी, जिसके परिणामस्वरूप पुनर्जागरण और वैज्ञानिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त हुआ।

4. भारतीय परंपरा

भारतीय परंपरा में ज्ञान का स्वरूप अत्यंत समन्वयकारी, गहन और व्यापक रहा है। यहाँ ज्ञान केवल भौतिक जीवन सुधार का साधन नहीं, बल्कि आत्मा की मुक्ति और ब्रह्मांडीय रहस्यों की खोज का साधन भी था। योग ने आत्म-नियंत्रण, साधना और ध्यान के माध्यम से आत्मज्ञान की राह दिखाई। आयुर्वेद ने शरीर, स्वास्थ्य और चिकित्सा को वैज्ञानिक आधार पर स्थापित किया। नाट्यशास्त्र ने कला, संगीत, नृत्य और नाटक को जीवन का दर्पण मानते हुए ज्ञान को सामाजिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति से जोड़ा। भारतीय गणितज्ञों ने शून्य (Zero) और दशमलव पद्धति का आविष्कार किया, जिसने विश्व गणित और विज्ञान की दिशा बदल दी। ज्योतिष और खगोल विज्ञान ने आकाशीय घटनाओं, समय-निर्धारण और ग्रह-नक्षत्रों के अध्ययन को व्यवस्थित किया। इस परंपरा की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि यहाँ अनुभवजन्य (Empirical) और आध्यात्मिक (Spiritual) दोनों प्रकार के ज्ञान को समान महत्व दिया गया। भारतीय दृष्टिकोण में ज्ञान केवल जीवन की भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने वाला साधन था, बल्कि यह समाज की नैतिकता, संस्कृति और आध्यात्मिकता को भी आकार देने वाला आधार था। यही कारण है कि भारतीय परंपरा को विश्व की सबसे प्राचीन और संतुलित ज्ञान परंपरा माना जाता है।

 

ज्ञान का सामान्य विकास (General Growth of Knowledge)

1. प्राचीन काल (Remote Past)

प्राचीन काल मानव सभ्यता के ज्ञान-परंपरा का प्रारंभिक और सबसे महत्वपूर्ण चरण माना जाता है। इस युग में ज्ञान का संचार मुख्यतः गुरु-शिष्य परंपरा और मौखिक परंपरा के माध्यम से होता था। शिक्षा को केवल रोजगार या व्यावहारिक साधन के रूप में नहीं, बल्कि जीवन का पवित्र उद्देश्य और आत्मा की उन्नति का साधन माना जाता था।

  • इस काल में ज्योतिष, गणित, कृषि, चिकित्सा और खगोल विज्ञान जैसे विषयों में उल्लेखनीय प्रगति हुई। उदाहरण के लिए, भारतीय गणितज्ञों ने शून्य और दशमलव पद्धति की खोज की, जिसने आगे चलकर पूरी दुनिया की गणितीय परंपरा को प्रभावित किया।
  • धार्मिक साहित्य, शास्त्रों और ग्रंथों ने उस समय के ज्ञान को संगठित और स्थायी रूप से संरक्षित किया। वेद, उपनिषद, आयुर्वेद और ज्योतिष शास्त्र इस काल के बौद्धिक वैभव के उदाहरण हैं।
  • शिक्षा केंद्रित संस्थान जैसे नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय केवल भारत में बल्कि विश्व स्तर पर ज्ञान के प्रसार के केंद्र बने। यहाँ एशिया और अन्य देशों से छात्र अध्ययन के लिए आते थे।

इस प्रकार प्राचीन काल का ज्ञान अनुभवजन्य भी था और दार्शनिक भी, जिसने समाज को संगठित और सभ्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2. मध्यकाल

मध्यकालीन समय में ज्ञान का स्वरूप मुख्यतः धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संस्थाओं के साथ जुड़ा रहा। शिक्षा का केंद्र धार्मिक आश्रमों, मठों, विश्वविद्यालयों और दरबारों तक सीमित रहा।

  • भारत में नालंदा, विक्रमशिला, जयसलमेर और काशी जैसे विश्वविद्यालयों ने विद्या के संरक्षण और प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
  • इस युग में साहित्य, चिकित्सा, स्थापत्य कला, दर्शन और इतिहास की नई धाराएँ विकसित हुईं। संस्कृत साहित्य में कवि और नाटककारों ने उत्कृष्ट योगदान दिया, जबकि फारसी और अरबी साहित्य ने भी नए आयाम जोड़े।
  • इस्लामी शिक्षा प्रणाली के आगमन के बाद गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा और साहित्य में नई ऊर्जा आई। इस्लामी विद्वानों ने ग्रीक और भारतीय ग्रंथों का अध्ययन एवं अनुवाद कर उन्हें और अधिक व्यापक बनाया।
  • संस्कृत, फारसी और अरबी जैसी भाषाओं ने ज्ञान के आदान-प्रदान और सांस्कृतिक संवाद को नई दिशा दी, जिससे विभिन्न सभ्यताओं के बीच बौद्धिक सेतु का निर्माण हुआ।

मध्यकाल का ज्ञान धार्मिकता से गहराई से जुड़ा था, लेकिन साथ ही उसने सांस्कृतिक समृद्धि और बहुभाषिकता को भी बढ़ावा दिया।

3. आधुनिक काल (16वीं से 19वीं शताब्दी)

आधुनिक काल का आरंभ यूरोप में हुए पुनर्जागरण (Renaissance) से माना जाता है, जिसने तर्क, विवेक, विज्ञान और खोज की भावना को पुनर्जीवित किया। यह युग मानव इतिहास में एक नए बौद्धिक जागरण का काल था।

  • वैज्ञानिक क्रांति के दौरान गैलीलियो, न्यूटन, कोपरनिकस जैसे विद्वानों ने प्रकृति के नियमों और ब्रह्मांड की संरचना की तार्किक और गणितीय व्याख्या की।
  • औद्योगिक क्रांति ने उत्पादन, प्रौद्योगिकी और सामाजिक संरचना को नया रूप दिया। मशीनों और तकनीकी नवाचारों ने केवल आर्थिक जीवन को बदला, बल्कि ज्ञान को व्यावहारिकता और अनुप्रयोग से जोड़ दिया।
  • इस समय ज्ञान केवल धार्मिक या दार्शनिक चिंतन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उसका आधार अनुभवजन्य प्रमाण, प्रयोग और वैज्ञानिक पद्धति बन गया।
  • आधुनिक चिकित्सा, भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान और अभियांत्रिकी (Engineering) की नींव इसी काल में पड़ी, जिसने मानव सभ्यता को नए युग की ओर अग्रसर किया।

आधुनिक काल ने यह सिद्ध कर दिया कि ज्ञान केवल परंपरा और आस्था का विषय नहीं है, बल्कि यह जिज्ञासा, शोध और वैज्ञानिक अन्वेषण का परिणाम है।

4. 20वीं शताब्दी

20वीं शताब्दी में ज्ञान की प्रगति बहुआयामी और तीव्र हो गई। इस काल ने केवल विज्ञान और तकनीक को अभूतपूर्व ऊँचाइयाँ दीं, बल्कि समाज विज्ञानों और मानविकी को भी महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाया।

  • वैज्ञानिक आविष्कारों जैसे परमाणु ऊर्जा, बिजली, रेडियो, हवाई जहाज और कंप्यूटर ने मानव जीवन की दिशा बदल दी।
  • शिक्षा का प्रसार व्यापक हुआ। विश्व भर में विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों और पुस्तकालयों ने ज्ञान को व्यवस्थित करने और साझा करने का कार्य किया।
  • समाज विज्ञानोंमनोविज्ञान, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्रने मानव जीवन, समाज और संस्कृति की जटिलताओं को समझने के नए दृष्टिकोण प्रस्तुत किए।
  • कंप्यूटर और संचार तकनीक ने सूचना क्रांति (Information Revolution) की नींव रखी। रेडियो, टेलीविजन और टेलीफोन ने ज्ञान और सूचना के आदान-प्रदान की गति को कई गुना तेज कर दिया।

20वीं शताब्दी का ज्ञान वैश्विक और अंतःविषयक (Interdisciplinary) बन गया, जिसमें विज्ञान, तकनीक और समाज सभी एक साथ जुड़े।

5. 21वीं शताब्दी

21वीं शताब्दी को उचित रूप से "ज्ञान आधारित समाज" (Knowledge-Based Society) का युग कहा जाता है। यहाँ ज्ञान अब केवल संस्थानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर व्यक्ति की पहुँच में है।

  • इंटरनेट, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), बायोटेक्नोलॉजी, नैनोटेक्नोलॉजी और अंतरिक्ष विज्ञान ने ज्ञान को नई सीमाएँ और नई संभावनाएँ दी हैं।
  • डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म, ऑनलाइन शिक्षा, -लाइब्रेरी और सोशल मीडिया ने ज्ञान को लोकतांत्रिक बना दिया है, जहाँ हर व्यक्ति सूचना और शिक्षा तक आसानी से पहुँच सकता है।
  • वैश्वीकरण (Globalization) ने ज्ञान को राष्ट्रीय सीमाओं से मुक्त कर वैश्विक साझा पूँजी में बदल दिया है। अब किसी भी देश की प्रगति और शक्ति उसके ज्ञान, नवाचार और शोध पर आधारित मानी जाती है।
  • शिक्षा, शोध और तकनीकी नवाचार 21वीं सदी में किसी भी राष्ट्र की प्रतिस्पर्धात्मकता और विकास का आधार बन चुके हैं।

21वीं शताब्दी का ज्ञान केवल भौतिक प्रगति का साधन नहीं, बल्कि यह मानवता, स्थिरता (Sustainability), और सामाजिक न्याय के लिए भी केंद्रीय भूमिका निभा रहा है।

निष्कर्ष

ज्ञान का इतिहास यह स्पष्ट करता है कि यह कोई स्थिर अवस्था नहीं है, बल्कि एक निरंतर परिवर्तनशील, गतिशील और विस्तारशील प्रक्रिया है। मानव सभ्यता के प्रारंभिक चरणों में जब मनुष्य प्रकृति पर पूर्णतः निर्भर था, तब उसका ज्ञान केवल जीवन-निर्वाह और सुरक्षा तक सीमित था। प्राचीन काल में यह अनुभव और व्यवहार से आगे बढ़कर आध्यात्मिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक चिंतन का आधार बना, जिसने जीवन और ब्रह्मांड के रहस्यों को समझने का मार्ग प्रशस्त किया। मध्यकाल में ज्ञान ने धार्मिक, भाषाई और सामाजिक परंपराओं के माध्यम से एक समन्वित स्वरूप धारण किया, जहाँ विविध सभ्यताओं और संस्कृतियों के मेल ने इसे और अधिक समृद्ध बनाया।

आधुनिक काल में पुनर्जागरण और वैज्ञानिक क्रांति ने ज्ञान को तार्किकता, विवेक और अनुभवजन्य प्रमाणों पर आधारित किया, जिससे विज्ञान और प्रौद्योगिकी की नींव रखी गई। 20वीं शताब्दी में ज्ञान ने गति पकड़ी और समाज विज्ञान, तकनीकी नवाचार तथा सूचना क्रांति के रूप में यह अधिक व्यापक और बहुआयामी हो गया। अंततः 21वीं सदी में ज्ञान एक नए आयाम तक पहुँचा, जहाँ डिजिटल तकनीक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और वैश्वीकरण ने इसे हर व्यक्ति की पहुँच तक पहुँचा दिया।

इस प्रकार, ज्ञान केवल मानव अस्तित्व की आवश्यकता है, बल्कि उसकी प्रगति और शक्ति का मूल आधार भी है। यह मनुष्य को अज्ञान के अंधकार से निकालकर विवेक, सत्य और प्रकाश की ओर ले जाता है। आज के दौर में ज्ञान का महत्व केवल व्यक्तिगत उत्थान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय, वैश्विक सहयोग, स्थिरता (sustainability) और मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए भी उतना ही आवश्यक है। वास्तव में, ज्ञान ही वह शाश्वत शक्ति है जो समय और परिस्थितियों से परे मानव सभ्यता को निरंतर आगे बढ़ाती है और आने वाली पीढ़ियों को दिशा प्रदान करती है।


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