परिचय (Introduction)
21वीं सदी की शिक्षा केवल ज्ञान प्राप्त करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक विद्यार्थी के समग्र व्यक्तित्व, कौशलों और मूल्यों के विकास का माध्यम भी है। पारंपरिक परीक्षा प्रणाली, जो मुख्यतः सत्र के अंत में होने वाले मूल्यांकन पर आधारित है, को लंबे समय से कठोर, तनावपूर्ण और छात्रों की वास्तविक प्रगति को सही रूप में न दर्शाने वाली प्रणाली के रूप में देखा गया है। इसी पृष्ठभूमि में सतत और व्यापक मूल्यांकन (CCE) की अवधारणा सामने आई, जो इन कमियों को दूर करने के उद्देश्य से एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण प्रदान करती है। यह प्रणाली निरंतर और समग्र मूल्यांकन के सिद्धांतों पर आधारित है, जिसमें शैक्षणिक, सामाजिक, भावनात्मक और शारीरिक सभी पहलुओं का मूल्यांकन शामिल है। CBSE द्वारा लागू की गई और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2005 में प्रस्तावित CCE प्रणाली रटने की पद्धति से हटकर अनुभवात्मक और कौशल-आधारित शिक्षा को बढ़ावा देती है।
CCE का अर्थ (Meaning of CCE)
सतत और व्यापक मूल्यांकन (CCE) शब्द को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है – ‘सतत (Continuous)’ और ‘व्यापक (Comprehensive)’। सतत मूल्यांकन का अर्थ है किसी छात्र के सीखने की प्रगति का नियमित और समय-समय पर मूल्यांकन करना। यह औपचारिक और अनौपचारिक तरीकों जैसे – कक्षा कार्य, मौखिक प्रश्नोत्तर, समूह गतिविधियाँ, शिक्षक अवलोकन और गृहकार्य के माध्यम से किया जाता है। यह निरंतर निगरानी छात्रों की कठिनाइयों को समय रहते पहचानने और तुरंत मार्गदर्शन देने में सहायक होती है। वहीं, व्यापक मूल्यांकन का आशय केवल शैक्षणिक प्रदर्शन तक सीमित नहीं होकर भावनात्मक विकास, नैतिक मूल्यों, जीवन कौशल, दृष्टिकोण, सामाजिक सहभागिता, रचनात्मकता, खेल और कला में भागीदारी जैसे क्षेत्रों का भी समावेश करना है। इस प्रकार, CCE का उद्देश्य केवल संज्ञानात्मक (cognitive) ही नहीं, बल्कि भावात्मक (affective) और क्रियात्मक (psychomotor) क्षेत्रों का भी मूल्यांकन कर छात्रों के समग्र विकास को सुनिश्चित करना है।
CCE के उद्देश्य (Objectives of CCE)
CCE का मुख्य उद्देश्य मूल्यांकन प्रक्रिया को छात्र-अनुकूल, समावेशी और विकासोन्मुख बनाना है। इसका एक प्रमुख लक्ष्य है कि परीक्षा के बोझ और तनाव को कम किया जाए, जिससे विद्यार्थी पूरे वर्ष सीखने की प्रक्रिया से जुड़े रहें। CCE का उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाना है, जिससे कक्षा में सक्रिय और अर्थपूर्ण सहभागिता को बढ़ावा मिले। यह प्रणाली व्यक्तिगत शिक्षण को प्रोत्साहित करती है, जिसमें प्रत्येक छात्र की विशेषताओं, क्षमताओं और कमियों को पहचानकर उचित मार्गदर्शन दिया जाता है। साथ ही, यह प्रणाली विद्यार्थियों में जीवन कौशल – जैसे निर्णय लेना, समस्या समाधान, संवाद कौशल और भावनात्मक बुद्धिमता – के विकास पर भी बल देती है। गैर-शैक्षणिक क्षेत्रों में छात्रों की उपलब्धियों को पहचानकर उनका आत्मविश्वास और प्रेरणा भी बढ़ाई जाती है। संक्षेप में, CCE शिक्षा को केवल ज्ञान हस्तांतरण की प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक समग्र मानव निर्माण की प्रक्रिया मानती है।
CCE की मुख्य विशेषताएँ (Key Features of CCE)
CCE कई नवाचारी और छात्र-केंद्रित विशेषताओं पर आधारित है। इसका प्रमुख अंग है मूल्यांकन को दो भागों में विभाजित करना – औपचारिक (Formative) और सामूहिक (Summative)।
औपचारिक मूल्यांकन (FA) शिक्षण प्रक्रिया के दौरान निरंतर किया जाता है। इसमें कक्षा कार्य, गृहकार्य, परियोजनाएँ, गतिविधियाँ और छात्र पोर्टफोलियो जैसे विविध साधनों का उपयोग किया जाता है। यह सुधारात्मक और मार्गदर्शी होता है।
सामूहिक मूल्यांकन (SA) सत्र के अंत में किया जाता है ताकि छात्रों की समग्र उपलब्धियों का आंकलन किया जा सके।
CCE में गैर-शैक्षणिक क्षेत्रों का मूल्यांकन भी एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है – जैसे जीवन कौशल, सामाजिक व्यवहार, स्वास्थ्य, खेल और रचनात्मक कलाएँ।
इसके अलावा, वर्णनात्मक संकेतकों (Descriptive Indicators) के उपयोग से छात्रों की क्षमताओं की बेहतर और स्पष्ट व्याख्या संभव होती है।
CCE में आत्म-मूल्यांकन और सहपाठी मूल्यांकन को भी प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे छात्र आत्म-चिंतन और सहयोगात्मक सीखने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं।
CCE के लाभ (Advantages of CCE)
CCE एक उन्नत और समावेशी मूल्यांकन प्रणाली के रूप में कई लाभ प्रदान करती है। सबसे पहले, यह समग्र विकास को बढ़ावा देती है, जिसमें केवल शैक्षणिक उपलब्धियों पर नहीं, बल्कि खेल, कला, संगीत, नाट्य और नेतृत्व क्षमताओं पर भी ध्यान दिया जाता है।
दूसरे, यह प्रणाली परीक्षा के तनाव को कम करती है, क्योंकि मूल्यांकन पूरे वर्ष छोटे-छोटे भागों में किया जाता है, जिससे विद्यार्थियों का आत्मविश्वास बना रहता है।
तीसरे, CCE की निरंतर फीडबैक प्रणाली से शिक्षक और छात्र दोनों को यह पता चलता है कि किस क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है।
यह प्रणाली व्यक्तिगत शिक्षा को भी बढ़ावा देती है, जिससे शिक्षकों को छात्रों के स्तर के अनुसार शिक्षण रणनीतियाँ तय करने में सुविधा होती है।
CCE में समूह चर्चा, प्रस्तुति और परियोजना कार्य जैसे अनुभवात्मक शिक्षण विधियों के माध्यम से रचनात्मकता, आलोचनात्मक सोच और संवाद कौशल का विकास होता है।
इस प्रकार, CCE कक्षा को एक सक्रिय और आनंददायक सीखने का केंद्र बना देती है।
लागू करने में चुनौतियाँ (Challenges in Implementation)
CCE के लाभों के बावजूद, इसके प्रभावी कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ आती हैं। सबसे बड़ी समस्या है शिक्षकों को पर्याप्त प्रशिक्षण और उन्मुखीकरण न मिलना।
कई शिक्षक CCE की विधियों और दर्शन से परिचित नहीं होते, जिससे मूल्यांकन की गुणवत्ता में असंगतता आ जाती है।
दूसरी चुनौती है शिक्षकों का बढ़ा हुआ कार्यभार – उन्हें प्रत्येक छात्र के लिए अलग-अलग मूल्यांकन तैयार करने, रिकॉर्ड रखने और विश्लेषण करने की आवश्यकता होती है।
इसके अलावा, गैर-शैक्षणिक क्षेत्रों का मूल्यांकन करते समय विषयिवता (subjectivity) का खतरा रहता है, जिससे निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।
अभिभावकों और छात्रों की मानसिकता भी एक बाधा बनती है, क्योंकि वे पारंपरिक अंक आधारित प्रणाली के अभ्यस्त होते हैं।
इसके साथ ही, डिजिटल साधनों और आधारभूत ढाँचे की कमी, विशेषकर ग्रामीण और कम संसाधन वाले विद्यालयों में, इसे सफलतापूर्वक लागू करने में अड़चन बनती है।
CCE को प्रभावी बनाने हेतु इन समस्याओं को नीति-स्तर पर हल करने की आवश्यकता है।
प्रभावी कार्यान्वयन की रणनीतियाँ (Strategies for Effective Implementation)
CCE के सफल कार्यान्वयन हेतु एक सुव्यवस्थित और सहयोगात्मक रणनीति आवश्यक है। सबसे पहले, शिक्षकों के लिए नियमित प्रशिक्षण और कार्यशालाएँ आयोजित की जानी चाहिए, जिससे वे विभिन्न मूल्यांकन विधियों का व्यवहारिक रूप में प्रयोग करना सीखें।
प्रौद्योगिकी का समावेश भी कार्यभार को कम करने और रिकॉर्ड प्रबंधन को सरल बनाने में सहायक हो सकता है।
विद्यालयों में डिजिटल मूल्यांकन उपकरण और डेटा प्रबंधन प्रणाली को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
अभिभावकों की जागरूकता कार्यशालाओं के माध्यम से उन्हें CCE की भावना और लाभों से अवगत कराना आवश्यक है।
विद्यालयों में सहयोगी शिक्षण संस्कृति विकसित की जानी चाहिए, जहाँ समूह कार्य, रचनात्मक गतिविधियाँ और विद्यार्थी सहभागिता को बढ़ावा मिले।
लचीली पाठ्यचर्या और समय-सारणी तैयार कर सह-शैक्षणिक गतिविधियों को उचित समय और महत्व दिया जाए।
शैक्षिक अधिकारियों द्वारा नियमित निगरानी और मूल्यांकन सुनिश्चित किया जाना चाहिए, जिसमें स्पष्ट दिशानिर्देश और मूल्यांकन मापदंड हों।
अंततः, विद्यालयों के बीच सहयोग और श्रेष्ठ प्रथाओं का आदान-प्रदान भी इस दिशा में सहायक सिद्ध हो सकता है।
CCE में शिक्षक की भूमिका (Role of Teachers in CCE)
CCE प्रणाली में शिक्षक केवल ज्ञान देने वाले नहीं, बल्कि मार्गदर्शक, मूल्यांकनकर्ता और प्रेरक की भूमिका निभाते हैं। उन्हें छात्रों की भिन्न-भिन्न सीखने की शैलियों को ध्यान में रखते हुए विविध मूल्यांकन विधियाँ तैयार करनी होती हैं।
शिक्षकों को छात्रों का लगातार अवलोकन करना, उनकी क्षमताओं को पहचानना और उन्हें आवश्यक रचनात्मक प्रतिक्रिया देना होता है।
विशेष रूप से सह-शैक्षणिक क्षेत्रों में निष्पक्ष मूल्यांकन करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, जिसके लिए बाल मनोविज्ञान और संवेदनशील दृष्टिकोण आवश्यक है।
शिक्षक आत्म-मूल्यांकन और सहपाठी मूल्यांकन को भी प्रोत्साहित करते हैं, जिससे छात्रों में आत्म-जागरूकता और आलोचनात्मक चिंतन विकसित होता है।
इसके साथ ही, शिक्षक को अभिभावकों के साथ नियमित संवाद कर विद्यार्थी की प्रगति साझा करनी होती है।
इस प्रकार, शिक्षक CCE प्रणाली की रीढ़ होते हैं और उनकी प्रशिक्षण, प्रतिबद्धता और समर्पण से ही मूल्यांकन प्रक्रिया की सफलता सुनिश्चित होती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
सतत और व्यापक मूल्यांकन (CCE) एक प्रगतिशील मूल्यांकन प्रणाली है जो विद्यार्थियों के समग्र विकास को केंद्र में रखती है। यह केवल शैक्षणिक ज्ञान के बजाय व्यवहारिक कौशल, जीवन मूल्यों, रचनात्मकता और भावनात्मक बुद्धिमत्ता जैसे पहलुओं को भी समान महत्व देती है।
CCE विद्यार्थियों को सीखने की प्रक्रिया में लगातार जोड़े रखती है और शिक्षा को अधिक मानवीय और आनंददायक बनाती है।
हालाँकि इसके कार्यान्वयन में कुछ चुनौतियाँ हैं – जैसे शिक्षक प्रशिक्षण की कमी, संसाधनों की अपर्याप्तता और मानसिकता में परिवर्तन की आवश्यकता – परंतु इन समस्याओं का समाधान सामूहिक प्रयासों, नीतिगत समर्थन और आधुनिक तकनीकों के माध्यम से किया जा सकता है।
CCE एक ऐसी दिशा में कदम है जो शिक्षा को केवल अंक और परीक्षाओं तक सीमित नहीं रखती, बल्कि व्यक्ति निर्माण और समाज के समग्र विकास को प्राथमिकता देती है।
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