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Meaning, Concept and Construction of Diagnostic Test नैदानिक परीक्षण का अर्थ, धारणा और निर्माण

1. भूमिका I Introduction

शिक्षण और अधिगम की प्रक्रिया में मूल्यांकन (Assessment) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह शिक्षकों को विद्यार्थियों की प्रगति, समस्याओं और उपलब्धियों के बारे में आवश्यक जानकारी प्रदान करता है। मूल्यांकन के विभिन्न प्रकारों में, नैदानिक परीक्षण (Diagnostic Test) एक विशेष स्थान रखता है क्योंकि इसका उद्देश्य छात्रों को अंक देना नहीं होता, बल्कि उनके सीखने में आने वाली कठिनाइयों की पहचान करना होता है। यह परीक्षण किसी पाठ इकाई की शुरुआत में या तब उपयोगी होता है जब कोई छात्र किसी अवधारणा को समझने में कठिनाई का अनुभव करता है। इससे शिक्षक यह समझ पाते हैं कि छात्र को कहाँ भ्रम है या किस पूर्व ज्ञान की कमी है। इस तरह, नैदानिक परीक्षण व्यक्तिगत सहायक शिक्षण के लिए मार्ग प्रशस्त करता है और छात्रों को आगे बढ़ने से पहले मजबूत आधार प्रदान करता है।

2. नैदानिक परीक्षण का अर्थ I Meaning of Diagnostic Test

नैदानिक परीक्षण एक विशेष प्रकार का शैक्षिक मूल्यांकन है जिसका उद्देश्य विद्यार्थियों की शैक्षणिक कठिनाइयों के कारणों की पहचान करना होता है। यह छात्रों की संपूर्ण उपलब्धि को आंकने के बजाय, उन विशिष्ट क्षेत्रों को पहचानने के लिए बनाया जाता है जहाँ छात्रों को समझने में दिक्कत हो रही है। जैसे चिकित्सा में रोग का निदान किया जाता है, वैसे ही शिक्षा में नैदानिक परीक्षण छात्रों के सीखने में अवरोधों की जड़ को समझने का प्रयास करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई छात्र बीजगणित के समीकरण नहीं हल कर पा रहा है, तो नैदानिक परीक्षण यह बता सकता है कि समस्या संख्याओं की समझ में है, गणितीय क्रियाओं में है या सूत्रों को लगाने में। इस प्रकार, यह परीक्षण रूपांतरणात्मक (formative) होता है और यह जानने में मदद करता है कि छात्र क्या जानते हैं, क्या नहीं जानते और क्यों नहीं जानते।

3. नैदानिक परीक्षण की अवधारणा I Concept of Diagnostic Test

नैदानिक परीक्षण की धारणा एक व्यक्तिकृत अधिगम और लक्षित हस्तक्षेप की अवधारणा पर आधारित है। यह परीक्षण इस प्रकार डिज़ाइन किया जाता है कि यह छात्र की सीखने की प्रक्रिया का विश्लेषण कर सके और यह पता लगा सके कि कौन सी अवधारणाएँ स्पष्ट नहीं हैं या कौन सी जानकारी अधूरी है। इसका मुख्य उद्देश्य अंक देना नहीं, बल्कि सीखने में आने वाली बाधाओं को पहचानना है। ऐसे परीक्षण विषयवस्तु को छोटे-छोटे घटकों में बाँटते हैं और प्रत्येक बिंदु पर जांच करते हैं कि छात्र की कठिनाई कहाँ से शुरू होती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई छात्र अंग्रेज़ी में सही वाक्य नहीं बना पा रहा है, तो नैदानिक परीक्षण यह समझा सकता है कि समस्या क्रियाओं में है, वाक्य संरचना में है या शब्दावली में। यह शिक्षण को विद्यार्थी-केंद्रित बनाने की दिशा में एक प्रभावी उपकरण है।

4. नैदानिक परीक्षण के उद्देश्य I Objectives of Diagnostic Test

नैदानिक परीक्षण का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों की कठिनाइयों को पहचानना और उन्हें समझदारीपूर्वक सहायता प्रदान करना है। इसके विशेष उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
  • विषय विशेष में सीखने की कठिनाइयों की पहचान करना।
  • उन कठिनाइयों के मूल कारणों का विश्लेषण करना जैसे – पूर्व ज्ञान की कमी, भ्रम, या रुचि का अभाव।
  • सटीक उपचारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching) की योजना बनाना।
  • छात्रों की व्यक्तिगत प्रगति की निगरानी करना और सुधार की जाँच करना।
  • प्रारंभिक हस्तक्षेप के अवसर प्रदान करना ताकि बाद में समस्या गंभीर न हो।
इस प्रकार, नैदानिक परीक्षण शिक्षण को समझदारीपूर्ण, प्रभावी और छात्र-उन्मुख बनाता है।

5. नैदानिक परीक्षण का महत्व I Importance of Diagnostic Test

नैदानिक परीक्षण आधुनिक, समावेशी और व्यक्तिगत शिक्षण प्रणाली में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह शिक्षकों को यह जानने में मदद करता है कि किस छात्र को किस प्रकार की सहायता की ज़रूरत है। इसके प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं:

लक्षित शिक्षण को प्रोत्साहित करता है – इससे शिक्षक छात्र की ज़रूरत के अनुसार सामग्री तैयार कर सकते हैं।

सीखने में कठिनाइयों की प्रारंभिक पहचान – जिससे समय रहते सुधार किया जा सके।

समावेशी शिक्षा को बढ़ावा – कमजोर या विशेष आवश्यकताओं वाले विद्यार्थियों को सहायता मिलती है।

छात्रों में आत्मविश्वास विकसित करता है – जब उन्हें उनकी समझ के अनुसार पढ़ाया जाता है।

शिक्षण की गुणवत्ता को सुधारता है – क्योंकि शिक्षक ठीक उसी बिंदु पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं जहाँ समस्या है।

नैदानिक परीक्षण इसलिए मूल्यांकन और शिक्षण के बीच एक सेतु का कार्य करता है।

6. नैदानिक परीक्षण का निर्माण I Construction of Diagnostic Test

एक प्रभावशाली नैदानिक परीक्षण के निर्माण के लिए एक व्यवस्थित, उद्देश्यपूर्ण और चरणबद्ध प्रक्रिया अपनाई जाती है:

6.1 उद्देश्य तय करना और विषयवस्तु का चयन I Define the Purpose and Select the Content Area

सबसे पहले शिक्षक को यह तय करना होता है कि वह किस विषय या अध्याय के लिए नैदानिक परीक्षण बनाना चाहता है। यह कोई गणितीय संकल्पना, व्याकरणिक नियम या विज्ञान का कोई विषय हो सकता है।

6.2 विषयवस्तु को छोटे उद्देश्यों में बाँटना I Breakdown of Topic into Learning Objectives or Sub-skills

अब विषयवस्तु को छोटे उप-अवधारणाओं या उप-कौशलों में विभाजित किया जाता है। जैसे, 'भिन्न' अध्याय को – हर और अंश, सम भिन्नों का जोड़, अशुद्ध भिन्नों का रूपांतरण आदि भागों में बाँटा जा सकता है।

6.3 प्रत्येक उद्देश्य के लिए प्रश्न तैयार करना I Preparation of Test Items for Each Objective

अब प्रत्येक उप-कौशल के लिए एक-एक प्रश्न तैयार किया जाता है। प्रश्न स्पष्ट, संक्षिप्त और केवल एक अवधारणा पर केंद्रित होना चाहिए।

6.4 प्रश्नों की नैदानिक प्रकृति सुनिश्चित करना I Ensure Diagnostic Nature of Items

प्रश्न केवल उत्तर न माँगें, बल्कि गलती के प्रकार का भी पता लगाएँ। जैसे, यदि कोई छात्र 12/18 को 6/9 लिखता है तो वह घटाने में तो सक्षम है लेकिन पूर्ण सरलीकरण नहीं कर पा रहा।

6.5 प्रश्नों का क्रमबद्ध आयोजन I Logical Arrangement of Questions

प्रश्नों को सरल से जटिल क्रम में व्यवस्थित करें ताकि यह समझा जा सके कि छात्र किस बिंदु पर चूकता है।

6.6 तनाव रहित वातावरण में परीक्षण कराना I Administer the Test in a Non-Threatening Environment

परीक्षण को सहायक और गैर-मूल्यांकनात्मक वातावरण में कराना चाहिए जिससे छात्र तनाव मुक्त होकर अपनी वास्तविक समझ दिखा सकें।

6.7 छात्रों की प्रतिक्रिया का विश्लेषण I Analyze Student Responses Thoroughly

प्रत्येक उत्तर का गहराई से विश्लेषण किया जाना चाहिए ताकि यह समझा जा सके कि गलती क्यों हुई।

6.8 उपचारात्मक शिक्षण की योजना बनाना I Develop and Implement Remedial Strategies

अब व्यक्तिगत और उपयुक्त शिक्षण रणनीतियाँ बनाकर छात्रों की कठिनाइयाँ दूर की जाती हैं।

6.9 पुनः मूल्यांकन और निगरानी I Follow-Up Assessment and Monitoring

उपचारात्मक शिक्षण के बाद, पुनः परीक्षण लेकर देखा जाता है कि सुधार हुआ या नहीं। आवश्यकता होने पर नई रणनीति अपनाई जा सकती है।

7. एक अच्छे नैदानिक परीक्षण की विशेषताएँ I Characteristics of a Good Diagnostic Test (Extended & Original)

एक प्रभावी और उपयोगी नैदानिक परीक्षण (Diagnostic Test) वह होता है जो छात्र की विशिष्ट कठिनाइयों की सटीक, विश्वसनीय और शिक्षाप्रद पहचान कर सके। ऐसा परीक्षण शिक्षण को अधिक अर्थपूर्ण और व्यक्तिगत बनाने में सहायक सिद्ध होता है। नीचे एक अच्छे नैदानिक परीक्षण की मुख्य विशेषताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है:

1. विशिष्टता (Specificity)

एक अच्छा नैदानिक परीक्षण विभिन्न विषयों या अवधारणाओं से संबंधित प्रत्येक उप-कौशल या सूक्ष्म घटक की स्पष्ट पहचान करता है। इसका उद्देश्य व्यापक मूल्यांकन न होकर, उन विशेष क्षेत्रों को चिन्हित करना होता है जिनमें छात्र को कठिनाई हो रही है। जैसे गणित में यदि छात्र जोड़ सही कर लेता है, लेकिन घटाव में गलती करता है, तो परीक्षण इसे स्पष्ट रूप से उजागर करता है। यह विशिष्टता शिक्षक को उचित उपचारात्मक रणनीति अपनाने में मदद करती है।

2. समग्रता (Comprehensiveness)

एक अच्छा नैदानिक परीक्षण केवल एक पहलू तक सीमित नहीं रहता, बल्कि किसी विषय या कौशल के सभी प्रासंगिक आयामों को समग्र रूप से शामिल करता है। यह सुनिश्चित करता है कि छात्र की संपूर्ण कठिनाइयों की पहचान हो सके और कोई पहलू अनदेखा न रह जाए। समग्रता से शिक्षण का आधार मजबूत होता है और सुधार की प्रक्रिया अधिक प्रभावी बनती है।

3. विश्वसनीयता (Reliability)

विश्वसनीय परीक्षण वह होता है जिसके परिणाम हर बार एक समान और सुसंगत आते हैं, भले ही वह अलग-अलग समय पर या विभिन्न परिस्थितियों में लिया गया हो। यदि एक ही छात्र को एक जैसे परीक्षण अलग समय पर देने पर भिन्न-भिन्न परिणाम मिलते हैं, तो वह परीक्षण अविश्वसनीय माना जाएगा। इसलिए नैदानिक परीक्षण को इस तरह डिजाइन किया जाना चाहिए कि उसके निष्कर्ष स्थिर और भरोसेमंद हों।

4. वैधता (Validity)

परीक्षण में प्रयुक्त प्रश्नों और गतिविधियों को इस प्रकार निर्मित किया जाना चाहिए कि वे उसी कौशल या ज्ञान को मापें, जिसके लिए परीक्षण बनाया गया है। उदाहरण के लिए, यदि परीक्षण का उद्देश्य पढ़ने की समझ को मापना है, तो उसमें गणना से संबंधित प्रश्न शामिल नहीं होने चाहिए। वैधता परीक्षण की प्रामाणिकता और उपयुक्तता का प्रतीक होती है।

5. सरलता (Simplicity)

एक अच्छा नैदानिक परीक्षण भाषा, संरचना और प्रस्तुति में सरल और सहज होना चाहिए ताकि छात्र बिना किसी डर या भ्रम के उसे हल कर सकें। जटिल या तकनीकी शब्दों का प्रयोग छात्रों को भयभीत कर सकता है और वास्तविक कठिनाई को छिपा सकता है। इसलिए परीक्षण का स्वरूप ऐसा हो कि छात्र उसे स्वाभाविक रूप से समझ सकें और उत्तर दे सकें।

6. गैर-आलोचनात्मक प्रकृति (Non-judgmental Nature)

नैदानिक परीक्षण का उद्देश्य छात्र की कमजोरियों की आलोचना करना नहीं, बल्कि उनकी सहायता करना और सुधार की दिशा दिखाना है। इसलिए यह परीक्षण इस भावना से तैयार किया जाना चाहिए कि छात्र में सुधार की संभावना है और उसे सहयोग की आवश्यकता है। इससे छात्र में आत्मविश्वास बना रहता है और वह खुलकर अपनी कठिनाइयों को व्यक्त करता है।

7. लचीलापन (Adaptability)

एक अच्छा नैदानिक परीक्षण विभिन्न आयु समूहों, शैक्षिक स्तरों और विषयों के अनुसार आसानी से अनुकूलित किया जा सकता है। यह गुण विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण होता है जब विविध पृष्ठभूमि के छात्रों के साथ कार्य करना हो। परीक्षण में इतना लचीलापन होना चाहिए कि शिक्षक उसकी संरचना और प्रश्नों को छात्रों की आवश्यकता के अनुसार संशोधित कर सके।

8. उपसंहार I Conclusion 

अंततः यह स्पष्ट होता है कि नैदानिक परीक्षण (Diagnostic Test) आज की शिक्षण प्रणाली में एक अनिवार्य और सशक्त उपकरण के रूप में उभरा है। यह केवल छात्रों की उपलब्धियों का मूल्यांकन करने तक सीमित नहीं रहता, बल्कि उनके सीखने में आने वाली सूक्ष्म और विशिष्ट समस्याओं की पहचान करने का कार्य करता है। यह परीक्षण शिक्षकों को यह समझने में सक्षम बनाता है कि किन अवधारणाओं को छात्र पूरी तरह से नहीं समझ पाए हैं, कौन-से पूर्वज्ञान के अभाव में उनकी कठिनाई उत्पन्न हुई है, और वे किस प्रकार के शैक्षणिक समर्थन के पात्र हैं। इस प्रकार, नैदानिक परीक्षण शिक्षा को विद्यार्थियों की वास्तविक ज़रूरतों से जोड़ने की प्रक्रिया में एक सेतु का कार्य करता है। इसके माध्यम से व्यक्तिकृत शिक्षण रणनीतियाँ (individualized teaching strategies) विकसित की जाती हैं, जो छात्र की गति, समझ और क्षमता के अनुसार शिक्षा प्रदान करने में मदद करती हैं। यह शिक्षण को न केवल अधिक प्रभावशाली बनाता है, बल्कि छात्रों में आत्मविश्वास, सक्रियता और सीखने के प्रति रुचि भी उत्पन्न करता है। जब छात्र यह महसूस करते हैं कि उनकी कठिनाइयों को समझा जा रहा है और उनके अनुसार सहायता दी जा रही है, तो वे शिक्षण प्रक्रिया में अधिक संलग्न और प्रेरित रहते हैं। इससे केवल शैक्षिक प्रदर्शन ही नहीं सुधरता, बल्कि उनका समग्र मानसिक और बौद्धिक विकास भी होता है। नैदानिक परीक्षण की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह उपचारात्मक शिक्षण (Remedial Teaching) के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। यह शिक्षा को उस रूप में प्रस्तुत करने की अनुमति देता है जो हर विद्यार्थी की व्यक्तिगत आवश्यकता के अनुकूल हो। यह मूल्यांकन को एक सकारात्मक, निर्माणात्मक और सहायक प्रक्रिया में बदल देता है, जहाँ लक्ष्य केवल कमज़ोरियों की पहचान नहीं, बल्कि उन्हें दूर करना होता है। 

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