Constituent Assembly of India: A Detailed Overview भारतीय संविधान सभा: एक विस्तृत विश्लेषण

भूमिका (Preface):
भारतीय संविधान सभा का गठन 1946 में कैबिनेट मिशन योजना की सिफारिशों के परिणामस्वरूप किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य एक समावेशी और व्यापक संविधान का निर्माण करना था, जो स्वतंत्र भारत के कानूनी और संस्थागत ढांचे के रूप में कार्य करेगा। संविधान सभा ने राष्ट्र की राजनीतिक संरचना, शासन के सिद्धांतों और प्रशासनिक तंत्र को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विभिन्न क्षेत्रों, समुदायों और विचारधाराओं के प्रतिनिधियों से बनी इस सभा ने व्यापक चर्चाओं और बहसों के माध्यम से यह सुनिश्चित किया कि संविधान देश की आकांक्षाओं, विविधता और सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों को सही ढंग से प्रतिबिंबित करे। इसका उद्देश्य एक लोकतांत्रिक प्रणाली की स्थापना करना था, जो न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे मूल्यों को बनाए रखे, जैसा कि संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित है।
संविधान निर्माण की प्रक्रिया में मौलिक अधिकारों, संघीय ढांचे, शक्तियों के विभाजन और सामाजिक-आर्थिक सुधारों जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गहन विचार-विमर्श किया गया। संविधान सभा ने एक ऐसे शासन मॉडल को विकसित करने का प्रयास किया, जो केंद्रीय सत्ता और राज्यीय स्वायत्तता के बीच संतुलन बनाए रखते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय की रक्षा कर सके। अपने समर्पित सदस्यों के प्रयासों से, इसने भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने की आधारशिला रखी।
संविधान सभा का गठन (Formation of the Constituent Assembly):
संविधान सभा का गठन भारत के भविष्य को आकार देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। यह सभा विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, और राजनीतिक समूहों के प्रतिनिधियों से मिलकर बनी थी, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि संविधान हर वर्ग की आकांक्षाओं को समाहित करे। इसके सदस्यों में प्रमुख नेता, विधि विशेषज्ञ, और समाज सुधारक शामिल थे, जिन्होंने गहन विचार-विमर्श और बहस के माध्यम से भारत के लिए एक सशक्त और समावेशी संविधान बनाने की दिशा में कार्य किया।
संविधान सभा ने अपने कार्यों को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए कई महत्वपूर्ण समितियों का गठन किया। इनमें सबसे महत्वपूर्ण मसौदा समिति थी, जिसकी अध्यक्षता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने की। इस समिति का कार्य विभिन्न सुझावों और चर्चाओं को संकलित कर संविधान का प्रारूप तैयार करना था। इसके अलावा, मौलिक अधिकार समिति, संघ शक्ति समिति, और प्रांतीय संविधान समिति जैसी अन्य समितियों ने भी संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सभा ने लगभग 2 वर्ष, 11 महीने, और 18 दिन तक विचार-विमर्श किया और इस दौरान 114 दिन खुले सत्रों में चर्चा हुई, जिनमें विभिन्न प्रावधानों पर विस्तार से मंथन किया गया। सभी वर्गों और समुदायों के विचारों को ध्यान में रखते हुए, संविधान को एक ऐसा स्वरूप दिया गया जो भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करता है।
अंततः, संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को भारत के संविधान को अपनाया, जिसे 26 जनवरी 1950 को औपचारिक रूप से लागू किया गया। इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन भारत ने एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में कार्य करना शुरू किया। संविधान सभा की इस ऐतिहासिक उपलब्धि ने भारत के नागरिकों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों का एक सशक्त मार्गदर्शन प्रदान किया, जो आज भी देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की आधारशिला बना हुआ है।
भारतीय संविधान सभा की संरचना (Structure of Indian Constitution Assembly):
भारतीय संविधान सभा की स्थापना 1946 में स्वतंत्र भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए की गई थी। इसकी सदस्य संख्या 1946 के प्रांतीय चुनावों के आधार पर तय की गई थी, जो कैबिनेट मिशन योजना के तहत हुए थे।
1. ब्रिटिश भारत के प्रांतों से सदस्य (296 सदस्य):
ये 296 सदस्य प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के माध्यम से चुने गए थे।
सीटों का वितरण तीन प्रमुख वर्गों में किया गया था:
सामान्य वर्ग – 210 सदस्य
मुस्लिम समुदाय – 78 सदस्य
सिख समुदाय – 8 सदस्य
ये सदस्य उन प्रांतों से थे, जो सीधे ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आते थे, जैसे – बंगाल, पंजाब, बॉम्बे, मद्रास, संयुक्त प्रांत, बिहार, उड़ीसा, असम आदि।
प्रमुख सदस्य: डॉ. भीमराव अंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद आदि प्रमुख नेता थे, जो ब्रिटिश भारतीय प्रांतों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
2. देशी रियासतों से सदस्य (93 सदस्य):
93 सदस्य देशी रियासतों के शासकों द्वारा मनोनीत किए गए थे, न कि चुने गए। हालांकि, कई रियासतों ने संविधान सभा की कार्यवाही में सक्रिय रूप से भाग नहीं लिया, क्योंकि उन्हें स्वतंत्र भारत में अपनी राजनीतिक स्थिति को लेकर अनिश्चितता थी।
अनुपस्थिति का प्रभाव:
प्रारंभ में, कई देशी रियासतें भारतीय संघ में शामिल होने से हिचक रही थीं, क्योंकि वे ब्रिटिश शासन के अंतर्गत स्वायत्तता का आनंद ले रही थीं।
1947 में स्वतंत्रता के बाद, सरदार पटेल और वी.पी. मेनन ने देशी रियासतों के भारत में विलय की प्रक्रिया शुरू की।
अंततः, अधिकांश रियासतों ने भारत में विलय स्वीकार कर लिया और उनके प्रतिनिधियों ने संविधान सभा की चर्चाओं में भाग लिया।
कुल सदस्य संख्या और बाद के बदलाव:
प्रारंभ में, संविधान सभा में 389 सदस्य थे (296 ब्रिटिश प्रांतों से + 93 देशी रियासतों से)।
1947 में विभाजन के बाद, पाकिस्तान के अलग हो जाने से इसकी संख्या घटकर 299 रह गई।
इन सभी परिवर्तनों के बावजूद, संविधान सभा ने भारतीय संविधान का निर्माण सफलतापूर्वक किया, जिसे 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
संविधान सभा के प्रमुख नेता (Main Leaders of the Constituent Assembly):
1. डॉ. राजेंद्र प्रसाद – संविधान सभा के अध्यक्ष
संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान निर्माण प्रक्रिया का नेतृत्व किया और पूरे सत्र के दौरान निष्पक्षता और कुशलता बनाए रखी। वे एक प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी और विद्वान थे, जिन्होंने विभिन्न गुटों के बीच संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में, वे स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति बने।
2. डॉ. भीमराव अंबेडकर – प्रारूप समिति के अध्यक्ष
डॉ. बी.आर. अंबेडकर को संविधान की प्रारूप समिति (Drafting Committee) के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। उन्हें भारतीय संविधान का “जनक” (Father of Indian Constitution) कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने इसके प्रारूप को अंतिम रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।उन्होंने विशेष रूप से समानता, मौलिक अधिकार, सामाजिक न्याय, और दलित वर्गों के अधिकारों पर जोर दिया। उनका योगदान भारतीय लोकतंत्र के स्तंभों में से एक माना जाता है।
3. जवाहरलाल नेहरू – उद्देशिका प्रस्ताव (Objectives Resolution) के प्रस्तुतकर्ता
13 दिसंबर 1946 को, पंडित नेहरू ने उद्देशिका प्रस्ताव (Objectives Resolution) प्रस्तुत किया, जो भारतीय संविधान की नींव बना। इस प्रस्ताव में संप्रभुता, लोकतंत्र, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, और मौलिक अधिकारों की नींव रखी गई थी। वे संविधान सभा में एक प्रमुख वक्ता थे और आधुनिक भारत की परिकल्पना को दिशा देने में सहायक रहे।स्वतंत्रता के बाद, वे भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत किया।
4. सरदार वल्लभभाई पटेल – रियासतों के एकीकरण में मुख्य भूमिका
सरदार पटेल ने भारतीय रियासतों को संघ में एकीकृत (Integration of Princely States) करने में अहम भूमिका निभाई। उनकी सूझबूझ और नेतृत्व के कारण 500 से अधिक रियासतों का भारत में विलय हुआ। संविधान सभा में उन्होंने संविधान में संघीय ढांचे और प्रशासनिक सुधारों को लेकर महत्वपूर्ण योगदान दिया। स्वतंत्रता के बाद, वे भारत के पहले गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री बने।
5. मौलाना अबुल कलाम आजाद – शिक्षा और धर्मनिरपेक्षता पर योगदान
मौलाना आजाद स्वतंत्रता संग्राम के वरिष्ठ नेता और प्रख्यात विद्वान थे। संविधान सभा में उन्होंने शिक्षा, धार्मिक स्वतंत्रता, और बहुलवाद पर जोर दिया। वे भारत के पहले शिक्षा मंत्री बने और आईआईटी, यूजीसी, और अन्य शैक्षिक संस्थानों की स्थापना में अहम भूमिका निभाई।
6. श्यामा प्रसाद मुखर्जी – अल्पसंख्यकों और उद्योग नीति पर योगदान
मुखर्जी ने संविधान सभा में अल्पसंख्यकों के अधिकारों और उद्योग नीति को लेकर महत्वपूर्ण बहसें की। वे बाद में भारत के पहले उद्योग मंत्री बने और भारतीय जनसंघ (अब भारतीय जनता पार्टी) की स्थापना की।
7. के.एम. मुंशी – मौलिक अधिकारों और नागरिक संहिता पर कार्य
मुंशी संविधान सभा की विभिन्न समितियों में सक्रिय थे, विशेष रूप से मौलिक अधिकारों और नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) से संबंधित मुद्दों पर। उन्होंने भारतीय संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहर को संविधान में स्थान दिलाने का प्रयास किया।
8. बी.एन. राव – संवैधानिक सलाहकार और कानूनी विशेषज्ञ
बी.एन. राव संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार (Constitutional Advisor) थे। उन्होंने विभिन्न विदेशी संविधानों का अध्ययन कर भारतीय संविधान की रूपरेखा तैयार करने में सहायता की। उनके कानूनी ज्ञान के कारण संविधान निर्माण की प्रक्रिया अधिक व्यवस्थित और सुसंगत बनी।
संविधान सभा का कार्यशीलन (Working of the Constituent Assembly):
भारतीय संविधान सभा ने कुल 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिनों तक कार्य किया, जिसकी शुरुआत 9 दिसंबर 1946 से हुई और यह 26 नवंबर 1949 को समाप्त हुई। इस अवधि के दौरान, सभा ने व्यापक विचार-विमर्श किया, जिसमें गहन बहस, चर्चाएँ और संशोधन शामिल थे, ताकि स्वतंत्र भारत के लिए एक समग्र संविधान का मसौदा तैयार किया जा सके। सभा के सदस्यों, जो विभिन्न पृष्ठभूमियों का प्रतिनिधित्व करते थे, ने विभिन्न समितियों के माध्यम से अथक परिश्रम किया, जिससे एक ऐसा दस्तावेज़ तैयार किया जा सके जो राष्ट्र की शासन व्यवस्था की आधारशिला बने। 26 नवंबर 1949 को, संविधान के अंतिम मसौदे को औपचारिक रूप से अपनाया गया, जो भारत के लोकतांत्रिक सफर में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। हालांकि, इसे आधिकारिक रूप से 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया, यह तिथि पूर्ण स्वराज दिवस (1930) की वर्षगांठ के रूप में चुनी गई थी, ताकि आत्म-शासन की भावना को सम्मान दिया जा सके। यह दिन अब प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो भारत के एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बनने का प्रतीक है।
संविधान सभा की मुख्य समितियां (Important Committees of the Assembly) -
संविधान सभा ने संविधान निर्माण की प्रक्रिया को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए कई समितियों का गठन किया था। ये समितियाँ विशेष विषयों पर गहन अध्ययन और चर्चा करके संविधान का प्रारूप तैयार करने में सहायक रहीं। इनमें से कुछ प्रमुख समितियाँ निम्नलिखित थीं:
1. प्रमुख विषयगत समितियाँ:
1. संविधान प्रारूप समिति (Drafting Committee) – अध्यक्ष: डॉ. भीमराव अंबेडकर
2. संघ शक्ति समिति (Union Powers Committee) – अध्यक्ष: पंडित जवाहरलाल नेहरू
3. राज्य संविधान समिति (Provincial Constitution Committee) – अध्यक्ष: सरदार वल्लभभाई पटेल
4. संघीय संविधान समिति (Union Constitution Committee) – अध्यक्ष: पंडित जवाहरलाल नेहरू
5. संविधान परामर्श समिति (Advisory Committee on Fundamental Rights, Minorities, and Tribal and Excluded Areas) – अध्यक्ष: सरदार वल्लभभाई पटेल
6. न्यायपालिका पर विशेष समिति (Committee on Judiciary, Fundamental Rights & Directive Principles) – अध्यक्ष: बी.एल. मित्तर (बाद में डॉ. अंबेडकर)
2. प्रशासनिक और प्रक्रिया संबंधी समितियाँ:
1. संविधान सभा की नियम समिति (Rules of Procedure Committee) – अध्यक्ष: डॉ. राजेंद्र प्रसाद
2. राजनीतिक शपथ एवं कार्यालय समिति (Committee on the Functioning of the Constituent Assembly) – अध्यक्ष: डॉ. राजेंद्र प्रसाद
3. ध्वज समिति (Flag Committee) – अध्यक्ष: डॉ. राजेंद्र प्रसाद
4. भाषा समिति (Committee on the National Language) – अध्यक्ष: मोटुरी सत्यनारायण
प्रस्तावित संविधान की प्रमुख विशेषताएँ (Key Features of the Constitution Drafted):
संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान ने एक संघीय ढांचे की स्थापना की, जिसमें केंद्र सरकार को मजबूत बनाया गया, ताकि संघ और राज्यों के बीच शक्ति संतुलन बना रहे। इसमें मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 12-35) को शामिल किया गया, जो नागरिकों को समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शोषण के विरुद्ध सुरक्षा, धार्मिक स्वतंत्रता और संवैधानिक उपचार जैसे अधिकार प्रदान करते हैं। साथ ही, राज्य के नीति निदेशक तत्व (अनुच्छेद 36-51) जोड़े गए, जो सरकार को आर्थिक समानता, सामाजिक न्याय और सार्वजनिक कल्याण से संबंधित नीतियां बनाने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। संविधान ने एक संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाया, जिसमें कार्यपालिका को विधायिका के प्रति उत्तरदायी बनाया गया, जिससे उत्तरदायी शासन सुनिश्चित हो सके। इसमें सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को लागू किया गया, जिससे जाति, लिंग, धर्म या आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना सभी वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार मिला और लोकतांत्रिक भागीदारी को सशक्त किया गया। शासन में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए, स्वतंत्र संस्थानों जैसे कि सर्वोच्च न्यायालय, चुनाव आयोग और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की स्थापना की गई, ताकि न्यायिक निष्पक्षता, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव तथा वित्तीय जवाबदेही सुनिश्चित हो सके। इसके अलावा, संविधान ने सातवीं अनुसूची के तहत विधायी शक्तियों को तीन सूचियों में विभाजित किया: संघ सूची, जिसमें राष्ट्रीय महत्व के विषय केंद्र सरकार के अधीन रखे गए; राज्य सूची, जिसमें राज्यों द्वारा प्रबंधित विषय शामिल किए गए; और समवर्ती सूची, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को विधायी अधिकार दिए गए, जिससे सहकारी संघवाद को बढ़ावा मिला। ये सभी प्रमुख विशेषताएँ मिलकर भारत में एक सशक्त लोकतांत्रिक प्रणाली की नींव रखती हैं।
महत्व और विरासत (Significance and Legacy):
भारतीय संविधान न केवल दुनिया का सबसे विस्तृत और लिखित संविधान है, बल्कि यह एक ऐसा जीवंत दस्तावेज भी है जो देश की बहुसांस्कृतिक, बहुधार्मिक और विविधतापूर्ण संरचना को प्रतिबिंबित करता है। इसे अत्यंत विचारशीलता और परिश्रम के साथ तैयार किया गया था, ताकि भारत के जटिल सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य में संतुलन स्थापित किया जा सके। इसकी एक महत्वपूर्ण विशेषता इसका लचीला और कठोर स्वभाव है, जिससे संविधान में आवश्यकतानुसार संशोधन किए जा सकते हैं, लेकिन इसकी मूलभूत संरचना और लोकतांत्रिक सिद्धांत अक्षुण्ण बने रहते हैं। यह संविधान प्रस्तावना में उल्लिखित न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के मूल्यों पर आधारित है, जो भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित करते हैं। इन आदर्शों का उद्देश्य हर नागरिक को गरिमा, सामाजिक सुरक्षा और अधिकारों की गारंटी देना है, ताकि देश में समावेशी और न्यायसंगत विकास सुनिश्चित किया जा सके। संविधान के अस्तित्व के सात दशकों में इसे कई बार संशोधित किया गया है, ताकि यह बदलते समय और सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप बना रहे। इन संशोधनों के माध्यम से शिक्षा, सामाजिक न्याय, आर्थिक सुधार और राजनीतिक प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए, जिससे लोकतंत्र और अधिक मजबूत हुआ। हालांकि, तमाम परिवर्तनों के बावजूद संविधान के मूलभूत सिद्धांत, जैसे कि लोकतंत्र, नागरिक स्वतंत्रता, न्यायिक स्वतंत्रता और विधि का शासन, आज भी उतने ही प्रासंगिक और सशक्त बने हुए हैं। भारतीय संविधान न केवल कानूनों और नीतियों का एक दस्तावेज है, बल्कि यह देश के राजनीतिक, कानूनी और सामाजिक ताने-बाने को दिशा देने वाला एक महत्वपूर्ण स्तंभ भी है। यह नागरिकों को समान अवसर प्रदान करने, समाज में समरसता बनाए रखने और सत्ता के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक ठोस आधार प्रदान करता है। यह संविधान न केवल भारत की वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों का मार्गदर्शन करता है, बल्कि यह दुनिया भर में अन्य लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिए भी एक प्रेरणास्रोत बना हुआ है।
निष्कर्ष (Conclusion):
भारत की संविधान सभा एक अद्वितीय संस्था थी, जिसने आधुनिक भारतीय लोकतंत्र की नींव रखी। यह सभा विविध सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों से मिलकर बनी थी, जिन्होंने व्यापक विचार-विमर्श, गहन बहस और ठोस शोध के माध्यम से एक ऐसा संविधान तैयार किया, जिसने पिछले सात दशकों से भारत को एक स्थिर और प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में दिशा प्रदान की है। संविधान सभा का कार्य न केवल स्वतंत्र भारत की शासन प्रणाली को स्थापित करने तक सीमित था, बल्कि इसका उद्देश्य एक ऐसा समावेशी और न्यायसंगत ढांचा तैयार करना भी था, जो सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे और लोकतांत्रिक मूल्यों को सशक्त बनाए। संविधान सभा के सदस्यों ने कानून, प्रशासन, अर्थव्यवस्था और समाज से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर विचार करते हुए एक ऐसा दस्तावेज तैयार किया, जो समय की कसौटी पर खरा उतरे और बदलते परिदृश्य के अनुरूप आवश्यक सुधारों को आत्मसात कर सके। इस संविधान ने भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में परिभाषित किया, जिसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों को सर्वोपरि स्थान दिया गया। आज भी संविधान सभा का दूरदर्शी कार्य देश की शासन प्रणाली और विधिक ढांचे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस संविधान ने भारत को एक सशक्त लोकतंत्र बनाने में सहायता की, जहां सत्ता का विकेंद्रीकरण, मौलिक अधिकारों की रक्षा और विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच संतुलन सुनिश्चित किया गया है। संविधान सभा द्वारा रखी गई आधारशिला केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अन्य लोकतांत्रिक देशों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
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