Evolution of Comparative Politics तुलनात्मक राजनीति का विकास
प्रस्तावना (Introduction):
तुलनात्मक राजनीति राजनीतिक विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जो विभिन्न देशों की राजनीतिक प्रणालियों, संस्थानों और शासन संरचनाओं का गहन अध्ययन और विश्लेषण करती है। इसका उद्देश्य यह समझना है कि विभिन्न राष्ट्रों में सरकारें कैसे कार्य करती हैं, नीति निर्माण की प्रक्रियाएँ कैसी होती हैं, और सत्ता तथा संसाधनों का वितरण किस प्रकार किया जाता है। यह अध्ययन न केवल शासन के औपचारिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और ऐतिहासिक कारकों की भी पड़ताल करता है, जो किसी देश की राजनीतिक संरचना को प्रभावित करते हैं।
समय के साथ तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। जहाँ प्रारंभिक अध्ययन मुख्य रूप से सरकारी संस्थाओं और संवैधानिक व्यवस्थाओं की तुलना पर आधारित थे, वहीं अब इस क्षेत्र में राजनीतिक व्यवहार, सार्वजनिक नीति, नागरिक भागीदारी, और वैश्विककरण के प्रभावों का विश्लेषण भी शामिल हो गया है। आधुनिक तुलनात्मक राजनीति मात्र राजनीतिक प्रणालियों की तुलना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इस बात की भी पड़ताल करती है कि लोकतंत्र, अधिनायकवाद, संघवाद, और अन्य शासन प्रणालियाँ समाजों के विकास में किस तरह योगदान करती हैं।
इसके अतिरिक्त, इस क्षेत्र में अनुसंधान पद्धतियों में भी क्रांतिकारी बदलाव आए हैं। जहाँ पहले तुलनात्मक राजनीति मुख्य रूप से वर्णनात्मक (descriptive) पद्धतियों पर निर्भर थी, वहीं अब सांख्यिकीय विश्लेषण, केस स्टडी, ऐतिहासिक तुलनात्मक दृष्टिकोण, और क्षेत्रीय अध्ययन जैसी वैज्ञानिक पद्धतियों को अपनाया जाने लगा है। प्रौद्योगिकी के विकास और डेटा विज्ञान की उन्नति के साथ अब तुलनात्मक राजनीति अधिक सटीक और व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत कर पा रही है।
आज के वैश्विक युग में तुलनात्मक राजनीति की प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है। यह अध्ययन न केवल विभिन्न देशों की शासन प्रणालियों को समझने में सहायक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे विभिन्न राजनीतिक संरचनाएँ सामाजिक स्थिरता, आर्थिक विकास और नागरिक स्वतंत्रता को प्रभावित करती हैं। लोकतंत्र और सत्तावाद के बीच के अंतर, सार्वजनिक नीतियों की सफलता, तथा राजनीतिक परिवर्तन की प्रक्रियाएँ तुलनात्मक राजनीति के महत्वपूर्ण विषय हैं। इस क्षेत्र का अध्ययन न केवल राजनीतिक वैज्ञानिकों बल्कि नीति-निर्माताओं, शोधकर्ताओं और आम नागरिकों के लिए भी उपयोगी है, क्योंकि यह वैश्विक राजनीति की गहरी समझ प्रदान करता है।
प्रारम्भिक आधार (प्राचीन और मध्यकालीन अवधि)
Early Foundations (Ancient and Medieval Periods):
तुलनात्मक राजनीति की जड़ें प्राचीन ग्रीस और रोम में देखी जा सकती हैं, जहाँ दार्शनिकों ने विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों का अध्ययन कर उनकी तुलना करने की नींव रखी। प्लेटो और अरस्तू जैसे महान विचारकों ने शासन प्रणालियों के स्वरूप और प्रभावशीलता का विश्लेषण किया। विशेष रूप से, अरस्तू ने अपनी प्रसिद्ध कृति पॉलिटिक्स में सरकारों को उनके लक्षणों और प्रभावशीलता के आधार पर राजतंत्र, अभिजाततंत्र और लोकतंत्र में वर्गीकृत किया। उन्होंने यह भी जांचा कि कौन-सा शासन मॉडल समाज के लिए अधिक उपयुक्त और स्थायी हो सकता है।
मध्यकालीन युग में, राजनीति पर धर्म और नैतिकता के प्रभाव को विशेष महत्व दिया गया। सेंट ऑगस्टिन और थॉमस एक्विनास जैसे विचारकों ने शासन की वैधता, धार्मिक नैतिकता, और सामाजिक व्यवस्था में चर्च की भूमिका पर गहन चर्चा की। इस अवधि में राजनीतिक चिंतन मुख्य रूप से धर्मशास्त्र से प्रेरित था, और शासन की अवधारणाओं को ईश्वरीय सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों से जोड़ा गया। इस समय के दार्शनिकों ने न्याय, कानून और नैतिकता को राज्य की स्थिरता और शासकों की वैधता का आधार माना।
इसके अलावा, इस युग में विभिन्न प्रकार की राजनीतिक व्यवस्थाएँ उभरने लगीं, जिनमें सामंती प्रणाली प्रमुख थी। यूरोप में सामंतवाद ने राजनीतिक सत्ता के विकेंद्रीकरण को जन्म दिया, जहाँ स्थानीय शासकों के पास सीमित स्वायत्तता थी, जबकि धार्मिक सत्ता, विशेष रूप से कैथोलिक चर्च, का शासन पर महत्वपूर्ण प्रभाव था। इस युग में इस्लामी और एशियाई राजनीतिक परंपराओं का भी विकास हुआ, जहाँ शासकों ने धार्मिक सिद्धांतों के आधार पर शासन किया और न्याय प्रणाली को धार्मिक कानूनों के अनुरूप रखा।
इस प्रकार, प्राचीन और मध्यकालीन काल ने तुलनात्मक राजनीति की आधारशिला रखी, जहाँ विभिन्न दार्शनिकों और विचारकों ने शासन प्रणालियों की प्रकृति, उनके नैतिक पहलुओं और सामाजिक प्रभावों का अध्ययन किया। इन विचारों ने आगे चलकर आधुनिक राजनीतिक चिंतन और तुलनात्मक राजनीति के सिद्धांतों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पुनर्जागरण और प्रबुद्धता युग (The Renaissance and Enlightenment Periods):
पुनर्जागरण (14वीं–17वीं शताब्दी) और प्रबुद्धता युग (17वीं–18वीं शताब्दी) ने तुलनात्मक राजनीतिक चिंतन को एक नई दिशा प्रदान की। इस दौर में राजनीतिक विचारधारा में तर्कसंगतता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानव स्वतंत्रता पर अधिक जोर दिया गया। निकोलो मैकियावेली, जॉन लॉक, मोंटेस्क्यू और जीन-जैक्स रूसो जैसे प्रमुख विचारकों ने राजनीतिक सिद्धांतों को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मैकियावेली की प्रसिद्ध कृति द प्रिंस ने सत्ता, कूटनीति और राजनीतिक यथार्थवाद पर जोर दिया, जिसमें उन्होंने सुझाव दिया कि एक शासक को व्यावहारिक और कठोर रणनीतियाँ अपनाकर अपनी सत्ता बनाए रखनी चाहिए। उनकी व्याख्या नैतिकता के बजाय शक्ति और व्यावहारिकता पर आधारित थी, जिसने आधुनिक यथार्थवादी राजनीति को जन्म दिया। वहीं, जॉन लॉक ने सामाजिक अनुबंध और प्राकृतिक अधिकारों (जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति) के सिद्धांत को विकसित किया, जिससे लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की नींव पड़ी।
मोंटेस्क्यू की द स्पिरिट ऑफ द लॉज़ में शक्ति के पृथक्करण (विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन) की अवधारणा प्रस्तुत की गई, जिसने आधुनिक संवैधानिक लोकतंत्रों की नींव रखने में मदद की। जीन-जैक्स रूसो ने अपने विचारों में जनता की संप्रभुता और प्रत्यक्ष लोकतंत्र की वकालत की, जिसमें उन्होंने बताया कि सरकार को आम जनता की इच्छाओं के अनुरूप कार्य करना चाहिए।
इन विचारों ने आगे चलकर आधुनिक लोकतांत्रिक शासन प्रणालियों, संवैधानिक व्यवस्थाओं और तुलनात्मक राजनीतिक विश्लेषण के विकास को प्रेरित किया। पुनर्जागरण और प्रबुद्धता युग ने न केवल शासन प्रणालियों की तुलना को सैद्धांतिक आधार दिया, बल्कि स्वतंत्रता, समानता और मानव अधिकारों जैसे मूल्यों को भी केंद्र में रखा, जिनका प्रभाव आज भी वैश्विक राजनीति में देखा जा सकता है।
19वीं शताब्दी: संस्थागत दृष्टिकोण (The 19th Century: Institutional Approach):
19वीं शताब्दी में राजनीतिक संस्थानों के व्यवस्थित अध्ययन की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। इस दौर में विद्वानों ने शासन प्रणालियों, संविधानों, विधायी निकायों और न्यायिक प्रक्रियाओं के औपचारिक ढांचे पर गहराई से ध्यान केंद्रित किया। इस युग में संस्थागत दृष्टिकोण प्रभावी रहा, जो सरकार की संरचना और कार्यप्रणाली के विस्तृत विश्लेषण पर आधारित था।
एलेक्सिस डी टोकेविल की प्रसिद्ध कृति डेमोक्रेसी इन अमेरिका ने अमेरिकी लोकतंत्र और यूरोपीय शासन प्रणालियों के बीच तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया। उन्होंने लोकतांत्रिक समाजों में स्वतंत्रता, समानता और नागरिक भागीदारी की भूमिका को विस्तार से समझाया, जिससे लोकतांत्रिक संस्थानों की जड़ों और उनके सामाजिक प्रभावों को समझने में सहायता मिली। उनके अध्ययन ने यह दिखाया कि कैसे अमेरिका में लोकतांत्रिक परंपराएं विकसित हुईं और वे यूरोप की पारंपरिक राजशाही प्रणालियों से किस प्रकार भिन्न थीं।
इस समय राजनीतिक विश्लेषण में विधायी संस्थाओं, न्यायिक निकायों और सरकारी संरचनाओं की गहरी पड़ताल की गई। संविधानों, कानूनी ढांचों और प्रशासनिक प्रक्रियाओं के अध्ययन को केंद्र में रखा गया, जिससे शासन की स्थिरता और प्रभावशीलता का मूल्यांकन किया जा सके। इस दौर के राजनीतिक चिंतन ने आधुनिक संवैधानिक लोकतंत्रों के विकास को दिशा दी और शासन की संस्थागत व्यवस्था के महत्व को स्थापित किया।
संस्थागत दृष्टिकोण के प्रभाव के कारण, राजनीतिक विज्ञान का अध्ययन मुख्य रूप से सरकारी निकायों की औपचारिक संरचना और उनकी कार्यप्रणाली पर केंद्रित हो गया। इस पद्धति ने सत्ता के वितरण, विधायी प्रक्रियाओं और प्रशासनिक दक्षता के तुलनात्मक विश्लेषण को बढ़ावा दिया, जिससे आगे चलकर 20वीं शताब्दी में व्यवहारवादी दृष्टिकोण के उदय की पृष्ठभूमि तैयार हुई।
20वीं शताब्दी का प्रारंभिक दौर: व्यवहारवादी क्रांति (The Early 20th Century: Behavioral Revolution):
20वीं शताब्दी की शुरुआत में तुलनात्मक राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ, जहाँ अध्ययन का केंद्र संस्थागत ढांचे से हटकर राजनीतिक व्यवहार के विश्लेषण की ओर चला गया। इस दौर में व्यवहारवादी क्रांति ने राजनीतिक विज्ञान में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जिसमें राजनीतिक संस्थानों की औपचारिक संरचना के बजाय व्यक्तियों और समूहों के राजनीतिक आचरण को केंद्र में रखा गया।
गेब्रियल आल्मंड और डेविड ईस्टन जैसे प्रमुख विद्वानों ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और राजनीतिक अध्ययन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने अनुभवजन्य अनुसंधान (empirical research) और मात्रात्मक विधियों (quantitative methods) के उपयोग को प्राथमिकता दी, जिससे राजनीतिक व्यवहार को मापने और समझने की नई पद्धतियाँ विकसित हुईं। इस दृष्टिकोण ने मतदाता व्यवहार, विचारधाराओं, जनमत सर्वेक्षणों, राजनीतिक दलों की भूमिका, और सार्वजनिक नीतियों के प्रभाव का गहन अध्ययन किया।
इस परिवर्तन के साथ, तुलनात्मक राजनीति केवल सरकारों और उनके संस्थानों के अध्ययन तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसका दायरा व्यापक हो गया। अब शोधकर्ता इस पर ध्यान देने लगे कि किस प्रकार सामाजिक मूल्यों, राजनीतिक संस्कृति, जनसंचार माध्यमों, और आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव राजनीतिक निर्णय-निर्माण प्रक्रिया पर पड़ता है।
इस दृष्टिकोण का प्रभाव इतना व्यापक था कि इसने भविष्य के राजनीतिक अध्ययन की नींव रखी। व्यवहारवादी क्रांति के कारण राजनीतिक विज्ञान अधिक वैज्ञानिक और विश्लेषणात्मक बन गया, जिससे राजनीतिक प्रवृत्तियों, सार्वजनिक राय, और चुनावी प्रक्रियाओं को समझने के लिए सांख्यिकीय और गणितीय तकनीकों का उपयोग बढ़ा। इस परिवर्तन ने आधुनिक तुलनात्मक राजनीति को नई दिशा दी और इसे राजनीति की गतिशीलता का अधिक सटीक अध्ययन करने में सक्षम बनाया।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद: प्रणाली सिद्धांत और संरचनात्मक-कार्यात्मकता (Post-World War II: Systems Theory and Structural-Functionalism):
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, तुलनात्मक राजनीति में नए विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण विकसित हुए, जिन्होंने राजनीतिक प्रणालियों को व्यापक और व्यवस्थित रूप से समझने में मदद की। इन नए ढांचों में प्रणाली सिद्धांत (Systems Theory) और संरचनात्मक-कार्यात्मकता (Structural-Functionalism) प्रमुख थे, जो राजनीतिक प्रक्रियाओं के गहन अध्ययन में सहायक बने।
डेविड ईस्टन द्वारा विकसित प्रणाली सिद्धांत ने राजनीति को एक खुले तंत्र के रूप में देखा, जो विभिन्न प्रविष्टियों (inputs) और निष्कर्षों (outputs) के माध्यम से कार्य करता है। इस सिद्धांत के अनुसार, सरकारें बाहरी पर्यावरण से सूचनाएँ, जनमत और आवश्यकताएँ ग्रहण करती हैं, जिनका प्रसंस्करण कर वे नीतियाँ और निर्णय उत्पन्न करती हैं। इस प्रक्रिया में सरकार की स्थिरता और प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह किस हद तक नागरिकों की अपेक्षाओं को पूरा कर पाती है और प्रतिक्रिया देने की क्षमता रखती है।
संरचनात्मक-कार्यात्मक दृष्टिकोण, जिसे टैल्कट पार्सन्स और गेब्रियल आल्मंड ने विकसित किया, राजनीतिक प्रणालियों को एक संगठित ढांचे के रूप में देखता है, जहाँ प्रत्येक इकाई या संस्था विशिष्ट कार्यों का निर्वहन करती है। यह दृष्टिकोण शासन के विभिन्न तत्वों—जैसे विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, राजनीतिक दल, और नौकरशाही—की भूमिकाओं और उनके पारस्परिक संबंधों का विश्लेषण करता है। इसके माध्यम से यह समझने का प्रयास किया गया कि विभिन्न देशों में राजनीतिक स्थिरता, विकास और आधुनिकीकरण की प्रक्रियाएँ किस प्रकार कार्य करती हैं।
इन सिद्धांतों का तुलनात्मक राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा। इनके माध्यम से विद्वानों को विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों के बीच समानताएँ और भिन्नताएँ समझने में सहायता मिली। इसके अलावा, इन दृष्टिकोणों ने राजनीतिक स्थिरता और परिवर्तन के कारकों को बेहतर ढंग से विश्लेषण करने के लिए एक सुसंगत पद्धति प्रदान की। इन विचारों का प्रयोग विकासशील और औद्योगिक देशों में शासन प्रणालियों की तुलना करने के लिए किया गया, जिससे आधुनिकीकरण और लोकतंत्रीकरण की प्रक्रियाओं पर व्यापक शोध संभव हुआ।
20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध: आश्रयता सिद्धांत और तर्कसंगत चयन सिद्धांत (Late 20th Century: Dependency Theory and Rational Choice):
20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आश्रयता सिद्धांत (Dependency Theory) का उदय हुआ, जिसने विकासशील देशों की विकसित राष्ट्रों पर आर्थिक और राजनीतिक निर्भरता का विश्लेषण किया। इमैनुएल वालरस्टीन जैसे विचारकों ने वैश्विक असमानताओं और शक्ति संतुलन के प्रभावों का अध्ययन किया, जिससे यह समझने में मदद मिली कि किस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था विकासशील देशों के संसाधनों और विकास को प्रभावित करती है।
इसी समय, तर्कसंगत चयन सिद्धांत (Rational Choice Theory) भी प्रभावी हुआ, जो अर्थशास्त्र से प्रेरित होकर राजनीति में व्यक्तिगत निर्णय-निर्माण पर केंद्रित था। एंथनी डाउंस और मैंकुर ओल्सन जैसे विद्वानों ने इस सिद्धांत को आगे बढ़ाया, जिसमें यह तर्क दिया गया कि राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने वाले व्यक्ति अपने स्वयं के लाभ और प्रेरणाओं के आधार पर निर्णय लेते हैं। यह दृष्टिकोण चुनावी व्यवहार, नीति-निर्माण, और सामूहिक कार्रवाई की प्रक्रियाओं को समझने में सहायक बना।
समकालीन प्रवृत्तियाँ (21वीं सदी)
Contemporary Trends (21st Century):
आधुनिक तुलनात्मक राजनीति विभिन्न दृष्टिकोणों को समाहित करते हुए निरंतर विकसित हो रही है। आज इसका दायरा वैश्वीकरण अध्ययन, पहचान राजनीति और डिजिटल लोकतंत्र जैसे महत्वपूर्ण विषयों तक फैला हुआ है। समकालीन राजनीति में अधिनायकवाद, लोकतंत्रीकरण, सुशासन, सार्वजनिक नीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंध जैसे विषय अध्ययन के केंद्र में बने हुए हैं।
इसके अतिरिक्त, तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में उभरती प्रवृत्तियाँ—जैसे जनसांख्यिकीय परिवर्तन, जलवायु नीति, प्रवासन, और सामाजिक आंदोलनों की बढ़ती भूमिका—भी तुलनात्मक राजनीति के विश्लेषण में महत्वपूर्ण हो गई हैं। अब शोधकर्ता न केवल पारंपरिक शासन संरचनाओं का अध्ययन कर रहे हैं, बल्कि यह भी देख रहे हैं कि डिजिटल प्रौद्योगिकी, सोशल मीडिया और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसी नवाचारात्मक तकनीकें राजनीतिक भागीदारी और नीति-निर्माण को कैसे प्रभावित कर रही हैं।
बिग डेटा और गणनात्मक विधियों (computational methods) के बढ़ते उपयोग ने तुलनात्मक राजनीतिक अध्ययन को और अधिक परिष्कृत बना दिया है। अब राजनीतिक प्रवृत्तियों और नीतिगत प्रभावों का विश्लेषण मात्रात्मक और गुणात्मक डेटा के संयोजन से किया जा रहा है, जिससे राजनीतिक व्यवहार और प्रशासनिक निर्णय-निर्माण की अधिक सटीक समझ विकसित हो रही है।
आधुनिक तुलनात्मक राजनीति पारंपरिक संस्थागत और व्यवहारवादी दृष्टिकोणों से आगे बढ़कर, बहुआयामी अनुसंधान पद्धतियों को अपनाते हुए एक अधिक व्यापक और सटीक अनुशासन के रूप में उभर रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भविष्य में भी तुलनात्मक राजनीति न केवल शासन प्रणालियों की तुलना करने में बल्कि जटिल वैश्विक चुनौतियों के समाधान खोजने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
निष्कर्ष (Conclusion):
तुलनात्मक राजनीति का विकास विद्वानों की बदलती प्राथमिकताओं, अनुसंधान पद्धतियों में हुए नवाचारों और वैश्विक परिदृश्य में आए परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करता है। प्राचीन काल में अरस्तू द्वारा प्रस्तुत शासन प्रणालियों के वर्गीकरण से लेकर आधुनिक अनुभवजन्य और सैद्धांतिक ढांचों तक, यह क्षेत्र लगातार विस्तार और परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है।
समय के साथ, तुलनात्मक राजनीति ने केवल संस्थागत संरचनाओं और सरकारों की तुलना तक सीमित रहने के बजाय, राजनीतिक व्यवहार, नीति-निर्माण, और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के व्यापक पहलुओं को भी शामिल करना शुरू किया। व्यवहारवादी क्रांति, संरचनात्मक-कार्यात्मक दृष्टिकोण, तर्कसंगत चयन सिद्धांत और डिजिटल युग में उभरी नई प्रवृत्तियाँ इस अनुशासन को अधिक समृद्ध और जटिल बनाती हैं।
आज तुलनात्मक राजनीति वैश्वीकरण, सामाजिक आंदोलनों, पहचान राजनीति, और तकनीकी नवाचारों जैसे विषयों को अपने अध्ययन का हिस्सा बना रही है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, बिग डेटा, और सांख्यिकीय विश्लेषण के उपयोग ने इस क्षेत्र में शोध की संभावनाओं को और अधिक सशक्त किया है। इसके माध्यम से विद्वान न केवल विभिन्न शासन प्रणालियों की तुलना कर रहे हैं, बल्कि लोकतंत्र, अधिनायकवाद, विकासशील नीतियों और सार्वजनिक प्रशासन पर उनके प्रभावों का गहन अध्ययन भी कर रहे हैं।
इस निरंतर विकासशील क्षेत्र की महत्ता इस तथ्य में निहित है कि यह न केवल राजनीतिक प्रणालियों की कार्यप्रणाली को समझने में मदद करता है, बल्कि वैश्विक राजनीतिक घटनाओं, शासन के बदलते स्वरूप, और नीति-निर्माण की जटिलताओं को भी उजागर करता है। बदलते समय के साथ तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन और अधिक प्रासंगिक होता जा रहा है, जिससे शासन व्यवस्था, राजनीतिक स्थिरता और लोकतांत्रिक मूल्यों की गहरी समझ विकसित करने में सहायता मिलती है।
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