राज्य की उत्पत्ति: विकासवादी सिद्धांत की व्याख्या
राज्य की उत्पत्ति एक दिलचस्प और विवादास्पद विषय है, जिस पर विभिन्न राजनीतिक दार्शनिकों, इतिहासकारों और विद्वानों ने कई सिद्धांत दिए हैं। इन सिद्धांतों में सबसे प्रसिद्ध विकासवादी सिद्धांत है, जो राज्य के उत्पत्ति के बारे में एक प्राकृतिक और क्रमिक दृष्टिकोण प्रदान करता है। इस सिद्धांत के अनुसार, राज्य अचानक उत्पन्न नहीं हुआ, बल्कि यह धीरे-धीरे समाज की आवश्यकताओं और स्थितियों के अनुसार विकसित हुआ।
आइए, इस सिद्धांत के प्रमुख पहलुओं को समझें:
विकासवादी सिद्धांत: मुख्य विशेषताएँ
1. क्रमिक विकास
विकासवादी सिद्धांत यह मानता है कि राज्य का निर्माण एक निरंतर और क्रमबद्ध प्रक्रिया थी। इसका मतलब यह है कि राज्य की संरचना कभी अचानक अस्तित्व में नहीं आई। शुरुआत में मानव समाज छोटे पारिवारिक और कबीलाई समूहों में विभाजित था, जहाँ नेतृत्व प्राकृतिक रूप से विवादों के समाधान और व्यवस्था बनाए रखने के लिए उभरता था। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ी और समाज जटिल हुआ, वैसे-वैसे एक संगठित और केंद्रीकृत शासन की आवश्यकता महसूस हुई।
2. विकास के चार चरण
विकासवादी सिद्धांत के अनुसार, राज्य के गठन की प्रक्रिया चार चरणों में विभाजित की जा सकती है:
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रक्त संबंध और परिवार का चरण: समाज के प्रारंभिक रूप में परिवार और कबीले मुख्य इकाई थे। यहां नेतृत्व स्वाभाविक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी पारित होता था और सामाजिक संरचना काफी साधारण होती थी।
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कबीलाई समाज: जब जनजातियाँ बड़ी हुईं, तो एक मजबूत और केंद्रित नेतृत्व की आवश्यकता महसूस हुई। इस चरण में प्रमुख या बुजुर्गों के नेतृत्व में कबीले संगठित हुए।
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कृषि और आर्थिक विकास: कृषि के आगमन से समाज स्थिर हुआ और इसके साथ ही शासन व्यवस्था की नींव भी मजबूत हुई। कृषि उत्पादन, व्यापार और जनसंख्या वृद्धि ने प्रशासन और न्याय व्यवस्था की आवश्यकता को बढ़ाया।
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राजनीतिक संगठन और राज्य: जैसे-जैसे बस्तियाँ बढ़ी और समाज जटिल हुआ, संगठित शासन की आवश्यकता बढ़ी, जिससे राज्य की स्थापना हुई। अब राज्य ने कानून, न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्रीकृत प्रणाली अपनाई।
3. सामाजिक संस्थाओं का प्रभाव
राज्य निर्माण में सामाजिक संस्थाएँ जैसे परिवार, धर्म और अर्थव्यवस्था महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं। धर्म अक्सर शासकों को दैवीय अधिकार देता था, जिससे उनकी सत्ता को वैधता मिलती थी। इसके अलावा, परिवार और रिवाजों ने समाज में जिम्मेदारियों और कर्तव्यों का निर्धारण किया, जबकि अर्थव्यवस्था ने राज्य की शक्ति और संसाधनों के नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
4. प्राकृतिक विकास, कृत्रिम निर्माण नहीं
विकासवादी सिद्धांत के अनुसार, राज्य कोई कृत्रिम निर्माण नहीं था। यह समाज और अर्थव्यवस्था की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप स्वाभाविक रूप से विकसित हुआ। यह प्राकृतिक रूप से एक विकसित प्रक्रिया थी, न कि कोई बाहरी तत्व जैसे क्रांति या बल द्वारा थोपे गए निर्माण का परिणाम।
विकासवादी सिद्धांत को समझाने वाले प्रमुख विद्वान
कई प्रमुख विद्वानों ने इस सिद्धांत को अपने दृष्टिकोण से समर्थन दिया। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण नाम हैं:
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Sir Henry Maine: उन्होंने बताया कि समाज ने समय के साथ "स्थिति" (वंश या परिवार आधारित शासन) से "संविदा" (कानूनी समझौतों पर आधारित शासन) की ओर विकास किया।
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Herbert Spencer: डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को समाज पर लागू करते हुए, उन्होंने कहा कि जैसे जीवों की जटिलता बढ़ती है, वैसे ही राज्य भी समाज की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार विकसित होते हैं।
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Aristotle: उन्होंने राज्य को एक प्राकृतिक संस्था माना, जो मानव समाज की संगठनात्मक आवश्यकताओं से उत्पन्न होती है। उनके अनुसार, जैसे-जैसे समाज का आकार और जटिलता बढ़ी, वैसे-वैसे राज्य की आवश्यकता महसूस हुई।
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Frederic Engels: उन्होंने कहा कि राज्य का निर्माण आर्थिक विकास और वर्ग संघर्षों को नियंत्रित करने की आवश्यकता के परिणामस्वरूप हुआ। राज्य ने इन संघर्षों को शांत करने के लिए एक कानूनी और राजनीतिक ढाँचा तैयार किया।
विकासवादी सिद्धांत की आलोचना
हालांकि, विकासवादी सिद्धांत को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है, फिर भी इसके खिलाफ कुछ आलोचनाएँ की गई हैं:
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निश्चित समयरेखा का अभाव: यह सिद्धांत राज्य के विकास के लिए कोई विशिष्ट समयसीमा नहीं देता। विभिन्न सभ्यताएँ अलग-अलग गति से विकसित हुईं, और इसका परिणाम अलग-अलग समय पर हुआ।
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बाहरी कारकों की उपेक्षा: कुछ आलोचक मानते हैं कि बाहरी कारक, जैसे युद्ध, आक्रमण और विजय, भी राज्य के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह सिद्धांत केवल आंतरिक विकास की बात करता है, लेकिन बाहरी संघर्षों और विजय के परिणामस्वरूप भी राज्य का गठन हुआ है।
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अचानक राज्य निर्माण की व्याख्या नहीं करता: इतिहास में कई उदाहरण हैं जहाँ राज्य अचानक और तीव्र रूप से बने। उदाहरण के तौर पर, फ्रांसीसी क्रांति और अक्टूबर क्रांति जैसी घटनाएँ जहाँ हिंसा और संघर्ष के माध्यम से नए राज्य स्थापित हुए। यह विकासवादी सिद्धांत पूरी तरह से नहीं समझा पाता।
निष्कर्ष
राज्य की उत्पत्ति का विकासवादी सिद्धांत यह स्पष्ट करता है कि राज्य का निर्माण एक प्राकृतिक, क्रमिक और अनुकूलनशील प्रक्रिया है। समय के साथ, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों ने एक संगठित शासन प्रणाली की आवश्यकता को जन्म दिया, और धीरे-धीरे यह प्रक्रिया जटिल होती गई। हालांकि, बाहरी दबाव और अचानक घटनाओं के कारण भी राज्य का निर्माण हुआ, जो विकासवादी सिद्धांत के दायरे से बाहर है। फिर भी, यह सिद्धांत राज्य के निर्माण को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करता है, और यह दिखाता है कि राज्य और शासन के रूप में हमारी राजनीतिक संस्थाएँ समय के साथ किस प्रकार विकसित होती हैं।
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