Non-Aligned Movement (NAM): A Comprehensive Overview गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM): एक व्यापक परिचय
परिचय (Introduction):
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) उन राष्ट्रों का एक गठबंधन है जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय सत्ता संघर्षों में, विशेष रूप से शीत युद्ध के दौरान, स्वतंत्र और तटस्थ रहने का मार्ग चुना। जब दुनिया दो प्रमुख महाशक्तियों—संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ—के बीच बंटी हुई थी, तब NAM सदस्य देशों ने अपनी संप्रभुता की रक्षा करने और किसी भी सैन्य गठबंधन, जैसे कि नाटो या वारसॉ संधि, में शामिल होने से परहेज किया। इन देशों ने बाहरी राजनीतिक या सैन्य प्रभावों से मुक्त रहकर अपने विकास और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया।
इस आंदोलन की स्थापना वैश्विक शांति, स्थिरता और विकासशील तथा नव स्वतंत्र राष्ट्रों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी। इसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करना था, जो शीत युद्ध के वैचारिक संघर्षों से प्रभावित न हो। इसके तहत, सदस्य देशों को अपनी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक नीतियों को स्वतंत्र रूप से विकसित करने का अवसर मिला, जिससे वे बाहरी हस्तक्षेप से बचते हुए आत्मनिर्भर बन सकें।
इसके अलावा, गुटनिरपेक्ष आंदोलन निरस्त्रीकरण, आर्थिक आत्मनिर्भरता और न्यायसंगत वैश्विक शासन की वकालत करता रहा है। यह शक्तिशाली सैन्य और आर्थिक गुटों के प्रभाव को रोकने के लिए भी कार्य करता है। समय के साथ, NAM अपने शीत युद्ध के उद्देश्यों से आगे बढ़कर वैश्विक आर्थिक असमानता, जलवायु परिवर्तन और भू-राजनीतिक संघर्षों जैसी समकालीन चुनौतियों का सामना करने के लिए विकसित हुआ। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद भी, यह आंदोलन विकासशील देशों की आवाज़ बना हुआ है और एक ऐसे न्यायसंगत और संतुलित वैश्विक व्यवस्था की मांग करता है, जहाँ संप्रभुता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का सम्मान किया जाए।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background):
उत्पत्ति और विकास (Origins and Evolution):
गुटनिरपेक्षता का विचार द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उस समय उभरा जब कई राष्ट्र, जो हाल ही में उपनिवेशवाद से मुक्त हुए थे, अपनी संप्रभुता को बनाए रखना चाहते थे और शीत युद्ध के बढ़ते तनाव में किसी भी महाशक्ति के अधीन नहीं होना चाहते थे। ये नव स्वतंत्र देश एक ऐसी स्वतंत्र विदेश नीति अपनाने के इच्छुक थे, जो उन्हें किसी भी वैश्विक शक्ति गुट से जुड़े बिना अपने राष्ट्रीय विकास, आर्थिक स्थिरता और राजनीतिक स्वायत्तता पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति दे।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की नींव 1955 में आयोजित बांडुंग सम्मेलन के दौरान रखी गई, जहाँ एशियाई और अफ्रीकी देशों के नेताओं ने उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और नस्लीय भेदभाव के खिलाफ अपने साझा अनुभवों पर चर्चा की। इस ऐतिहासिक सम्मेलन ने आपसी सहयोग, आर्थिक आत्मनिर्भरता और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के महत्व को रेखांकित किया। इसके साथ ही, इस सम्मेलन ने नव स्वतंत्र देशों को बाहरी राजनीतिक दबावों और नव-औपनिवेशवाद से बचाने की आवश्यकता पर भी बल दिया, जिससे वे अपने भविष्य का निर्धारण स्वतंत्र रूप से कर सकें।
बांडुंग में स्थापित सिद्धांतों ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन के वैचारिक आधार को मजबूत किया, जो आधिकारिक रूप से 1961 में यूगोस्लाविया के बेलग्रेड में पहले शिखर सम्मेलन के साथ अस्तित्व में आया। भारत के जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के गमाल अब्देल नासर, यूगोस्लाविया के जोसेप ब्रोज़ टीटो, इंडोनेशिया के सukarno और घाना के क्वामे नक्रूमा जैसे प्रभावशाली नेताओं के नेतृत्व में, यह आंदोलन उन देशों के लिए एक साझा मंच बन गया, जो वैश्विक महाशक्तियों के प्रभुत्व से मुक्त रहना चाहते थे।
समय के साथ, गुटनिरपेक्ष आंदोलन अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक प्रमुख शक्ति बन गया, जो वैश्विक शांति, निरस्त्रीकरण और एक न्यायसंगत विश्व व्यवस्था की वकालत करता रहा, जहाँ विकासशील देशों की आवाज़ को अधिक सशक्त बनाया जा सके।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना (Founding of NAM):
पहला गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन 1961 में यूगोस्लाविया के बेलग्रेड में आयोजित किया गया, जिसका नेतृत्व किया गया था:
1. जोसेप ब्रोज़ टीटो (यूगोस्लाविया)
2. जवाहरलाल नेहरू (भारत)
3. गमाल अब्देल नासर (मिस्र)
4. सुकर्णो (इंडोनेशिया)
5. क्वामे नक्रूमा (घाना)
इन नेताओं की यह साझा दृष्टि थी कि नव स्वतंत्र राष्ट्र बाहरी हस्तक्षेप से मुक्त रहते हुए अपनी स्वायत्तता बनाए रख सकें।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्य (Objectives of NAM):
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना कई प्रमुख उद्देश्यों के साथ की गई थी:
1. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व (Peaceful Coexistence):
गुटनिरपेक्ष आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य वैश्विक शांति को बढ़ावा देना और युद्ध या टकराव की संभावनाओं को कम करना है। यह विभिन्न देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को प्रोत्साहित करता है ताकि सभी राष्ट्र आपसी सहयोग और समझदारी से आगे बढ़ सकें।
यह आंदोलन किसी भी प्रकार के सैन्य गुटों में शामिल होने का विरोध करता है और सभी देशों को यह अधिकार देता है कि वे बाहरी दबावों से मुक्त होकर अपनी विदेश नीति का निर्धारण कर सकें। इसके अंतर्गत सदस्य राष्ट्रों को आपसी विवादों को सुलझाने के लिए शांतिपूर्ण वार्ता, कूटनीतिक प्रयासों और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
2. राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा (Protection of National Sovereignty):
NAM सदस्य देशों की स्वतंत्रता और संप्रभुता को सुरक्षित रखना इसका एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है। यह आंदोलन इस बात का समर्थन करता है कि किसी भी देश पर बाहरी ताकतों का दबाव या प्रभुत्व नहीं होना चाहिए। प्रत्येक राष्ट्र को अपनी आंतरिक और विदेशी नीतियाँ स्वयं तय करने का अधिकार होना चाहिए, जिससे वे अपनी सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान को सुरक्षित रख सकें।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन उपनिवेशवाद, नव-औपनिवेशवाद और किसी भी प्रकार की राजनीतिक या आर्थिक निर्भरता का विरोध करता है। यह राष्ट्रों को उनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से बचाने और उन्हें स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय का अधिकार सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करता है।
3. आर्थिक विकास और सहयोग (Economic Development and Cooperation):
NAM आर्थिक विकास को प्राथमिकता देता है और विकासशील देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करता है। यह आंदोलन इस बात पर जोर देता है कि आर्थिक संसाधनों और अवसरों का न्यायसंगत वितरण होना चाहिए ताकि कोई भी देश गरीबी, असमानता या आर्थिक निर्भरता का शिकार न हो।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के तहत सदस्य देशों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, व्यापार संवर्धन, वैज्ञानिक अनुसंधान और औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इसके अलावा, NAM अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और विकसित देशों से निष्पक्ष आर्थिक नीतियों की मांग करता है ताकि विकासशील देशों को उचित संसाधन और बाजार तक पहुंच मिल सके।
4. उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का विरोध (Opposition to Colonialism and Imperialism):
NAM उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद का कड़ा विरोध करता है और स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन करता है। यह आंदोलन किसी भी प्रकार की राजनीतिक, सैन्य या आर्थिक दासता को अस्वीकार करता है और सभी देशों के आत्मनिर्णय के अधिकार की रक्षा करता है।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने ऐतिहासिक रूप से उन देशों का समर्थन किया है जो विदेशी शासन से स्वतंत्र होने के लिए संघर्ष कर रहे थे। यह किसी भी देश द्वारा दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की प्रवृत्ति की निंदा करता है। NAM के सदस्य देश नव-औपनिवेशिक नीतियों और बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा शोषण का विरोध करने के लिए एकजुट होते हैं।
5. निरस्त्रीकरण और हथियारों की दौड़ को रोकना (Disarmament and Prevention of Arms Race):
गुटनिरपेक्ष आंदोलन का एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य दुनिया को अधिक शांतिपूर्ण और सुरक्षित बनाना है, जिसके लिए यह परमाणु निरस्त्रीकरण और हथियारों की होड़ को समाप्त करने की वकालत करता है।
NAM यह मानता है कि हथियारों की अंधाधुंध होड़ से दुनिया में अस्थिरता बढ़ती है और यह संसाधनों को बर्बाद करती है, जिन्हें मानव विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और गरीबी उन्मूलन के लिए उपयोग किया जा सकता है। यह आंदोलन वैश्विक स्तर पर परमाणु हथियारों और अन्य घातक हथियारों पर नियंत्रण की मांग करता है।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन सदस्य देशों को अपनी सुरक्षा नीतियों को संतुलित करने और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सैन्य प्रतिस्पर्धा को कम करने के लिए कूटनीतिक प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करता है।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सिद्धांत Principles of the Non-Aligned Movement (NAM):
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की स्थापना पंचशील के सिद्धांतों के आधार पर की गई थी, जिन्हें 1954 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई ने प्रस्तुत किया था। इन सिद्धांतों का उद्देश्य नव स्वतंत्र देशों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सहयोग को बढ़ावा देना था, ताकि वे बाहरी हस्तक्षेप से मुक्त रहकर अपनी संप्रभुता बनाए रख सकें। NAM ने इन मूल्यों को अपनाया ताकि इसके सदस्य राष्ट्र स्वतंत्र विदेश नीति अपना सकें और वैश्विक शांति, स्थिरता तथा समावेशी विकास को प्रोत्साहित कर सकें।
इसके पाँच प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं:
1. क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए आपसी सम्मान (Mutual Respect for Territorial Integrity and Sovereignty):
यह सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि प्रत्येक देश को अपनी भौगोलिक सीमाओं और संप्रभुता की रक्षा करने का पूरा अधिकार है, और अन्य राष्ट्रों को इसे सम्मान देना चाहिए। किसी भी देश को बलपूर्वक, राजनीतिक दबाव डालकर, सैन्य हस्तक्षेप के माध्यम से या किसी अन्य अप्रत्यक्ष उपाय से किसी राष्ट्र की सीमाओं को बदलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
NAM के सदस्य देशों ने हाल ही में औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की थी, इसलिए उनके लिए यह सिद्धांत अत्यंत महत्वपूर्ण था। यह सुनिश्चित करता है कि कोई बाहरी शक्ति उनके आंतरिक मामलों में दखल न दे सके और वे अपनी नीतियाँ स्वतंत्र रूप से निर्धारित कर सकें। इस सिद्धांत का पालन करके NAM एक ऐसा विश्व बनाने का प्रयास करता है, जहाँ सभी राष्ट्र समान रूप से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हो सकें।
2. आपसी अनाक्रमण (Mutual Non-Aggression):
NAM हिंसा और युद्ध के सख्त खिलाफ है और सदस्य देशों को आपसी टकराव से बचने के लिए संवाद, कूटनीति और शांतिपूर्ण समाधान अपनाने के लिए प्रेरित करता है। यह आंदोलन निरस्त्रीकरण (disarmament) की वकालत करता है, विशेष रूप से परमाणु हथियारों के निषेध के लिए, ताकि वैश्विक सैन्य तनाव को कम किया जा सके।
यह सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि किसी भी विवाद को हल करने के लिए सैन्य बल का सहारा नहीं लिया जाना चाहिए। इसके बजाय, देश राजनयिक वार्ता, संयुक्त समझौते और शांतिपूर्ण तरीकों से समस्याओं का समाधान करें। NAM इस बात को भी सुनिश्चित करता है कि किसी देश को सैन्य गठबंधनों में शामिल होने के लिए मजबूर न किया जाए, जिससे वैश्विक शांति और स्थिरता को बढ़ावा मिले।
3. आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना (Mutual Non-Interference in Internal Affairs):
NAM का यह प्रमुख सिद्धांत कहता है कि कोई भी देश किसी अन्य संप्रभु राष्ट्र के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। यह प्रत्येक राष्ट्र को अपने राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक निर्णय स्वतंत्र रूप से लेने का अधिकार देता है।
विशेष रूप से, कई NAM सदस्य देशों ने हाल ही में विदेशी शासन से मुक्ति प्राप्त की थी और वे नव-औपनिवेशिक प्रभाव से बचना चाहते थे। NAM यह सुनिश्चित करता है कि कोई बाहरी शक्ति किसी देश की राजनीतिक व्यवस्था, सांस्कृतिक परंपराओं या आर्थिक नीतियों को प्रभावित न करे। यह नीति अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में समानता और स्वतंत्रता के मूल्यों को बनाए रखने में सहायक है।
4. समानता और पारस्परिक लाभ (Equality and Mutual Benefit):
NAM इस विचार को बढ़ावा देता है कि सभी देशों को समानता के आधार पर देखा जाना चाहिए, चाहे वे आर्थिक या सैन्य रूप से कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों। यह सिद्धांत न्यायसंगत व्यापार, आर्थिक सहयोग, और वैज्ञानिक एवं तकनीकी साझेदारी को प्रोत्साहित करता है, ताकि कोई भी देश शोषण का शिकार न बने।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन आर्थिक निर्भरता और असमानता का विरोध करता है और विकासशील देशों के बीच आत्मनिर्भरता और सहयोग को बढ़ावा देता है।
NAM आर्थिक सहयोग के माध्यम से यह सुनिश्चित करता है कि गरीब और पिछड़े देश भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में भागीदारी कर सकें।
यह निष्पक्ष व्यापार समझौतों और संसाधनों के उचित वितरण की मांग करता है, ताकि किसी भी देश का शोषण न हो।
इस सिद्धांत का पालन करके NAM वैश्विक आर्थिक असंतुलन को कम करने और एक न्यायसंगत आर्थिक व्यवस्था स्थापित करने का प्रयास करता है।
5. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व (Peaceful Coexistence):
NAM की मूल विचारधारा विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं, धार्मिक मान्यताओं और शासन प्रणालियों वाले देशों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना है। आंदोलन का मानना है कि भले ही देशों की विचारधाराएँ और व्यवस्थाएँ अलग-अलग हों, फिर भी वे आपसी सम्मान और सहयोग के आधार पर शांतिपूर्ण संबंध बना सकते हैं।
इस सिद्धांत के प्रमुख पहलू इस प्रकार हैं:
सैन्य गठबंधनों और शीत युद्ध जैसी नीतियों का विरोध
साझा वैश्विक समस्याओं जैसे गरीबी, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य संकट और आतंकवाद से निपटने के लिए सहयोग को बढ़ावा देना
सांस्कृतिक और वैचारिक भिन्नताओं के बावजूद कूटनीतिक संबंधों को मजबूत बनाना
NAM का मानना है कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व से सभी देशों को सुरक्षा मिलेगी और वैश्विक स्तर पर तनाव कम होगा। इसके माध्यम से सदस्य राष्ट्र आपसी सहयोग के द्वारा टिकाऊ विकास और समग्र कल्याण को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर सकते हैं।
शीत युद्ध (1947–1991) के दौरान गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM During the Cold War):
(NAM) ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह वह समय था जब दुनिया दो प्रमुख गुटों में बँटी हुई थी—एक ओर अमेरिका के नेतृत्व वाला NATO (North Atlantic Treaty Organization) ब्लॉक था, और दूसरी ओर सोवियत संघ के नेतृत्व वाला वारसा पैक्ट (Warsaw Pact)। इन दो महाशक्तियों के बीच वैचारिक और सैन्य प्रतिस्पर्धा के कारण कई देशों को किसी न किसी गुट में शामिल होने के लिए दबाव डाला जा रहा था।
इस चुनौतीपूर्ण समय में, NAM ने अपनी गुटनिरपेक्ष नीति के तहत कई महत्वपूर्ण कार्य किए, जिससे विकासशील देशों को अपनी संप्रभुता बनाए रखने और स्वतंत्र विदेश नीति अपनाने में सहायता मिली। इसके मुख्य योगदान निम्नलिखित हैं:
1. तटस्थता बनाए रखना (Maintaining Neutrality):
NAM का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य यह था कि इसके सदस्य राष्ट्र किसी भी महाशक्ति गुट (Superpower Bloc) के प्रभाव में न आएं। इसने सुनिश्चित किया कि वे अमेरिका या सोवियत संघ के बीच किसी भी सैन्य गठबंधन का हिस्सा न बनें और अपनी आंतरिक तथा बाहरी नीतियों पर स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकें।
कई विकासशील देशों पर दबाव डाला जा रहा था कि वे NATO या वारसा पैक्ट में शामिल हों, लेकिन NAM के सिद्धांतों ने इन्हें स्वतंत्र बने रहने का अवसर दिया।
इस नीति के कारण NAM देशों ने अपनी विदेश नीति को किसी बाहरी शक्ति के दबाव के बिना निर्धारित किया और अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी।
गुटनिरपेक्षता ने सदस्य राष्ट्रों को सैन्य प्रतिस्पर्धा से दूर रखा और संसाधनों को आर्थिक और सामाजिक विकास की ओर केंद्रित करने में मदद की।
2. शांति पहल और मध्यस्थता (Peace Initiatives and Mediation in Global Conflicts):
NAM ने वैश्विक स्तर पर शांति स्थापित करने और संघर्षों को समाप्त करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
यह आंदोलन कई अंतरराष्ट्रीय विवादों में एक निष्पक्ष मध्यस्थ (Neutral Mediator) के रूप में कार्य करता रहा, ताकि वार्ता और कूटनीतिक समाधानों के माध्यम से युद्ध को रोका जा सके।
NAM के नेताओं ने कोरिया युद्ध (1950-1953), अरब-इजराइल संघर्ष, वियतनाम युद्ध और अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका के विभिन्न स्वतंत्रता आंदोलनों में शांति वार्ताओं को बढ़ावा देने के लिए काम किया।
भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, यूगोस्लाविया के जोसिप ब्रोज़ टीटो और मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासर जैसे नेताओं ने शीत युद्ध के तनाव को कम करने के लिए बातचीत और कूटनीति को प्राथमिकता दी।
NAM ने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हथियारों की होड़ को समाप्त करने और निरस्त्रीकरण की वकालत की।
3. आर्थिक सहयोग और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा (Economic Cooperation and Promoting Self-Reliance):
शीत युद्ध के दौरान, दुनिया की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से दो शक्तिशाली गुटों (अमेरिका और सोवियत संघ) पर निर्भर थी। NAM ने इस आर्थिक निर्भरता को कम करने और विकासशील देशों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम किया।
NAM सदस्य देशों ने आपसी व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए कई पहल कीं, ताकि वे महाशक्तियों की आर्थिक नीतियों से प्रभावित हुए बिना स्वतंत्र रूप से व्यापार कर सकें।
गुटनिरपेक्ष देशों ने अपने आर्थिक संसाधनों का उपयोग घरेलू उद्योगों, बुनियादी ढांचे, कृषि और विज्ञान-प्रौद्योगिकी के विकास में किया, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें।
विकासशील देशों ने एक-दूसरे के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों (IMF और World Bank) द्वारा लगाए गए कठोर आर्थिक शर्तों से बचने का प्रयास किया।
1970 के दशक में, NAM ने एक नई आर्थिक व्यवस्था (New International Economic Order - NIEO) की मांग उठाई, जिससे वैश्विक व्यापार और वित्तीय प्रणाली को और अधिक न्यायसंगत बनाया जा सके।
4. उपनिवेशवाद और नव-औपनिवेशिकता का विरोध (Opposition to Colonialism and Neo-Colonialism):
NAM ने केवल राजनीतिक तटस्थता बनाए रखने तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने पूरी दुनिया में उपनिवेशवाद (Colonialism) और नव-औपनिवेशवाद (Neo-Colonialism) के खिलाफ संघर्ष किया।
अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में कई देश अभी भी यूरोपीय शक्तियों के अधीन थे, और NAM ने उनकी स्वतंत्रता के लिए समर्थन प्रदान किया।
NAM ने संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंचों पर उपनिवेशवाद के अंत की मांग की और स्वतंत्रता संग्रामों का नैतिक और राजनयिक समर्थन किया।
यह आंदोलन इस बात को लेकर सतर्क था कि स्वतंत्र हुए देश बाद में पश्चिमी शक्तियों की आर्थिक और राजनीतिक नीतियों का शिकार न बनें।
5. निरस्त्रीकरण और सैन्य गुटों का विरोध (Disarmament and Opposition to Military Alliances):
शीत युद्ध के दौरान, दुनिया में परमाणु हथियारों की दौड़ (Nuclear Arms Race) तेज हो गई थी। अमेरिका और सोवियत संघ के बीच न्यूक्लियर मिसाइल्स और अन्य हथियारों का भंडारण लगातार बढ़ रहा था।
NAM ने निरस्त्रीकरण (Disarmament) की मांग की और दुनिया को परमाणु हथियारों के खतरे से बचाने के लिए कई प्रस्ताव रखे।
यह आंदोलन सैन्य गुटों और सैन्य ठिकानों के निर्माण के विरोध में था, ताकि दुनिया में शांति बनी रहे और सैन्य प्रतिस्पर्धा से बचा जा सके।
NAM ने संयुक्त राष्ट्र (UN) में परमाणु हथियारों के निषेध और हथियारों की होड़ को नियंत्रित करने के लिए कई प्रयास किए।
शीत युद्ध के बाद गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता (Post-Cold War Relevance of NAM):
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, शीत युद्ध समाप्त हो गया और वैश्विक राजनीति में बड़े बदलाव आए। कुछ विश्लेषकों ने यह तर्क दिया कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की प्रासंगिकता अब समाप्त हो गई है क्योंकि विश्व अब द्विध्रुवीय (Bipolar) नहीं रहा। लेकिन NAM ने इन बदलती परिस्थितियों के अनुरूप खुद को ढाल लिया और नई वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी नीतियों में बदलाव किया।
शीत युद्ध के बाद NAM की भूमिका केवल सैन्य गुटों से दूरी बनाए रखने तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसने वैश्विक विकास, सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और बहुपक्षवाद (Multilateralism) को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
1. वैश्वीकरण और आर्थिक असमानता का समाधान (Addressing Globalization and Economic Inequality):
शीत युद्ध के बाद वैश्वीकरण (Globalization) का दौर शुरू हुआ, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था में नए अवसर तो आए, लेकिन इसके साथ ही विकसित और विकासशील देशों के बीच आर्थिक असमानता (Economic Inequality) भी बढ़ी।
NAM ने इस असमानता को कम करने के लिए न्यायसंगत व्यापार नीतियों (Fair Trade Policies) की वकालत की, जिससे विकासशील देशों को भी वैश्विक बाजारों में समान अवसर मिल सकें।
यह आंदोलन आर्थिक नव-उपनिवेशवाद (Neo-Colonialism) के खिलाफ रहा और इसने उन नीतियों का विरोध किया जिनसे गरीब देश अमीर देशों पर आर्थिक रूप से निर्भर हो जाते हैं।
NAM ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों (IMF, World Bank) में सुधार की मांग की ताकि विकासशील देशों को उचित वित्तीय सहायता मिल सके और वे अपने आर्थिक संसाधनों पर नियंत्रण रख सकें।
यह आंदोलन गरीब देशों के लिए ऋण राहत (Debt Relief) और निवेश के अवसर बढ़ाने की दिशा में भी काम कर रहा है।
2. आतंकवाद और वैश्विक सुरक्षा चुनौतियाँ (Combating Terrorism and Ensuring Global Security):
शीत युद्ध के बाद, आतंकवाद (Terrorism) एक प्रमुख वैश्विक चुनौती बन गया। 9/11 हमले (2001) और अन्य आतंकवादी गतिविधियों के कारण वैश्विक शांति को खतरा हुआ।
NAM ने आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद विरोधी प्रयासों (Counter-Terrorism Initiatives) को समर्थन दिया।
यह आंदोलन इस विचार को बढ़ावा देता है कि आतंकवाद का समाधान केवल सैन्य कार्रवाई से नहीं किया जा सकता, बल्कि इसके पीछे के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक कारणों को भी दूर करना आवश्यक है।
NAM ने आतंकवाद से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में बहुपक्षीय सहयोग (Multilateral Cooperation) को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
इसके सदस्य देशों ने आतंकवाद विरोधी रणनीतियों को बढ़ावा देने के लिए आपसी सुरक्षा सहयोग (Security Cooperation) को मजबूत किया।
3. जलवायु परिवर्तन और सतत विकास (Addressing Climate Change and Promoting Sustainable Development):
आज के समय में जलवायु परिवर्तन (Climate Change) सबसे गंभीर वैश्विक समस्याओं में से एक है, और इसके प्रभाव विकासशील देशों पर अधिक पड़ रहे हैं।
NAM ने सतत विकास (Sustainable Development) और पर्यावरण संरक्षण (Environmental Protection) को बढ़ावा देने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय भूमिका निभाई।
यह आंदोलन विकसित देशों से यह मांग करता रहा कि वे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (Greenhouse Gas Emissions) को कम करें और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए विकासशील देशों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करें।
NAM के सदस्य देशों ने जलवायु न्याय (Climate Justice) के सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए यह तर्क दिया कि औद्योगिक देशों को अधिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए क्योंकि वे ऐतिहासिक रूप से सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले रहे हैं।
इस आंदोलन ने सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals - SDGs) को अपनाने के लिए विकासशील देशों को प्रोत्साहित किया और नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) के उपयोग को बढ़ावा देने की दिशा में काम किया।
4. बहुपक्षवाद को मजबूत करना और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग (Strengthening Multilateralism and Cooperation with International Organizations):
शीत युद्ध के बाद, वैश्विक शासन (Global Governance) की संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव आए। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर बहुपक्षवाद (Multilateralism) को मजबूत करना NAM का एक प्रमुख उद्देश्य बन गया।
NAM ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA), विश्व व्यापार संगठन (WTO), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक (World Bank) जैसे संस्थानों में विकासशील देशों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपनी आवाज उठाई।
यह आंदोलन संयुक्त राष्ट्र सुधार (UN Reforms) की मांग करता रहा, ताकि सुरक्षा परिषद (UNSC) में विकासशील देशों को अधिक प्रतिनिधित्व मिल सके।
NAM ने दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Cooperation) को बढ़ावा दिया, जिससे विकासशील देशों के बीच व्यापार, प्रौद्योगिकी और संसाधनों का आदान-प्रदान हो सके।
यह आंदोलन वैश्विक मुद्दों जैसे मानव अधिकार, स्वास्थ्य, शिक्षा और गरीबी उन्मूलन (Poverty Eradication) पर अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध है।
गुट निरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका (Role of India in NAM):
भारत एक संस्थापक सदस्य रहा है और गैर-आलाइसी आंदोलन (NAM) का मजबूत समर्थक रहा है। इसके प्रमुख योगदानों में शामिल हैं:
1. शांति प्रयासों में नेतृत्व (Leadership in Peace Initiatives):
भारत ने वैश्विक स्तर पर शांति स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब विश्व दो ध्रुवों – अमेरिका और सोवियत संघ – में बंट गया था, तब भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के माध्यम से स्वतंत्र कूटनीतिक नीति अपनाई। भारत ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संघर्षों, जैसे कोरिया युद्ध (1950-53), वियतनाम युद्ध और इजराइल-फिलिस्तीन विवाद में मध्यस्थता की पेशकश की और कूटनीतिक समाधान को प्राथमिकता दी।
इसके अलावा, भारत संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों (UN Peacekeeping Missions) में महत्वपूर्ण योगदान देता रहा है। भारतीय सेना ने अफ्रीका, एशिया और यूरोप के विभिन्न देशों में शांति बनाए रखने के लिए अपनी सेवाएं दी हैं। भारत हमेशा वार्ता, समझौते और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों पर जोर देता आया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने में मदद मिली है।
2. आर्थिक सहयोग को बढ़ावा (Promoting Economic Cooperation):
भारत ने हमेशा विकासशील और अल्पविकसित देशों के आर्थिक हितों की रक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाई है। गुटनिरपेक्ष आंदोलन के तहत भारत ने दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Cooperation) को बढ़ावा देने की दिशा में काम किया, ताकि आर्थिक संसाधनों और व्यापार अवसरों का समान वितरण हो सके।
भारत ने निष्पक्ष व्यापार नीतियों और बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्थाओं (Multilateral Trade Agreements) की वकालत की है, जिससे छोटे देशों को अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में अपनी स्थिति मजबूत करने का अवसर मिले। इसके अलावा, भारत ने तकनीकी सहयोग, कृषि विकास और औद्योगिक प्रगति के लिए अन्य विकासशील देशों के साथ भागीदारी की है। ब्रिक्स (BRICS), जी-77 (G-77) और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों के माध्यम से भारत ने एक निष्पक्ष वैश्विक आर्थिक व्यवस्था की मांग की है, जिससे कमजोर अर्थव्यवस्थाओं को प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में बढ़ने का अवसर मिले।
3. ग़ैर-हस्तक्षेप की विदेश नीति (Non-Interventionist Foreign Policy):
भारत ने हमेशा अपनी विदेश नीति को स्वतंत्र और स्वायत्त बनाए रखा है। गुटनिरपेक्ष आंदोलन के मूल सिद्धांतों में से एक यह था कि कोई भी सदस्य राष्ट्र सैन्य गुटों का हिस्सा नहीं बनेगा, जिससे उसकी नीतियां किसी महाशक्ति के प्रभाव में न आएं।
भारत ने इस नीति का पालन करते हुए विभिन्न वैश्विक मंचों पर निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाया है। शीत युद्ध के दौरान भी भारत ने न तो अमेरिका और न ही सोवियत संघ का पक्ष लिया, बल्कि दोनों के साथ संतुलित संबंध बनाए। वर्तमान में भी, भारत बहुपक्षीय कूटनीति (Multilateral Diplomacy) के माध्यम से अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है और किसी भी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बचता है।
हालांकि, हाल के वर्षों में भारत ने प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ अपने रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत किया है। अमेरिका, रूस, यूरोपीय संघ और जापान के साथ बढ़ते द्विपक्षीय सहयोग के कारण यह चर्चा होने लगी है कि भारत की भूमिका अब NAM में किस प्रकार परिवर्तित हो रही है। फिर भी, भारत आज भी अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रखने और गुटनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों का पालन करने की दिशा में कार्यरत है।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ (Challenges Faced by NAM):
1. घटता प्रभाव (Declining Influence):
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासंगिकता पिछले कुछ दशकों में कमजोर होती दिखी है। शीत युद्ध के दौरान, यह आंदोलन वैश्विक शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच था, लेकिन वर्तमान में इसकी भूमिका सीमित हो गई है। इसके पीछे एक प्रमुख कारण यह है कि कई सदस्य राष्ट्र अब आर्थिक और रणनीतिक कारणों से अमेरिका, चीन, रूस जैसी बड़ी शक्तियों के करीब आ गए हैं। द्विपक्षीय और बहुपक्षीय गठबंधनों की बढ़ती संख्या के कारण NAM के सदस्य देशों की प्राथमिकताएँ बदल रही हैं, जिससे आंदोलन का प्रभाव सीमित हो गया है।
2. आंतरिक मतभेद (Internal Divisions):
NAM के सदस्य देशों के बीच वैश्विक मुद्दों पर एकरूपता की कमी देखी जाती है। चूंकि यह आंदोलन 100 से अधिक देशों का समूह है, इसलिए विभिन्न राजनीतिक, आर्थिक और क्षेत्रीय हितों के कारण आपसी मतभेद उभरते रहते हैं। कुछ देश पश्चिमी शक्तियों के करीब हैं, तो कुछ रूस या चीन के प्रभाव में आ गए हैं। इसके अलावा, विभिन्न सदस्य देशों के आपसी विवाद, जैसे भारत-पाकिस्तान, ईरान-सऊदी अरब और अन्य क्षेत्रीय टकराव, NAM को एकजुटता के साथ कार्य करने से रोकते हैं। यह आंतरिक विभाजन संगठन की सामूहिक निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है।
3. सीमित आर्थिक और सैन्य शक्ति (Limited Economic and Military Power):
NAM उन अंतरराष्ट्रीय संगठनों में से एक है, जिनका सैन्य गठबंधन या आर्थिक शक्ति पर कोई प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं है। नाटो (NATO) और यूरोपीय संघ (EU) जैसे संगठन जहां सामूहिक रक्षा और आर्थिक सहयोग की गारंटी देते हैं, वहीं NAM के पास ऐसा कोई तंत्र नहीं है, जो इसे एक प्रभावशाली शक्ति बना सके। चूंकि इसके अधिकांश सदस्य विकासशील या अल्पविकसित देश हैं, इसलिए उनके पास वैश्विक मंच पर आर्थिक या सैन्य दबदबा बनाने की सीमित क्षमता होती है। नतीजतन, बड़े और प्रभावशाली देशों के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा में NAM की भूमिका कमजोर होती जा रही है।
4. वैश्विक भू-राजनीतिक बदलाव (Global Geopolitical Shifts):
विश्व राजनीति में हाल के वर्षों में बड़े बदलाव हुए हैं। शीत युद्ध के बाद अमेरिका एकमात्र महाशक्ति के रूप में उभरा था, लेकिन अब चीन, रूस और यूरोपीय संघ जैसी शक्तियाँ भी वैश्विक मंच पर निर्णायक भूमिका निभा रही हैं। इसके अलावा, ब्रिक्स (BRICS), क्वाड (QUAD), एशियान (ASEAN) और जी-20 (G20) जैसे नए क्षेत्रीय और वैश्विक गुटों का उदय हुआ है, जो NAM की पारंपरिक भूमिका को चुनौती दे रहे हैं। इन बदलावों के कारण, कई देश अपनी कूटनीति को नए गठबंधनों की ओर मोड़ रहे हैं, जिससे NAM की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
गुट निरपेक्ष आन्दोलन का भविष्य (Future of NAM):
21वीं सदी में प्रासंगिक बने रहने के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) को चाहिए कि:
1. आर्थिक सहयोग को मजबूत बनाना (Strengthen Economic Cooperation):
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) को अपने सदस्य देशों के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए स्वतंत्र वित्तीय संस्थानों की स्थापना करनी चाहिए। वर्तमान में, कई विकासशील देश विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसी संस्थाओं पर निर्भर हैं, जो अक्सर पश्चिमी देशों की शर्तों के अनुसार काम करती हैं। NAM एक स्वतंत्र विकास बैंक या आर्थिक सहायता कोष बना सकता है, जिससे सदस्य राष्ट्रों को बिना राजनीतिक दबाव के ऋण और वित्तीय सहायता मिल सके। इसके अलावा, व्यापारिक सहयोग बढ़ाने के लिए NAM के भीतर एक मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement) की संभावनाओं पर विचार किया जा सकता है, जिससे सदस्य राष्ट्रों के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिले।
2. आधुनिक चुनौतियों के अनुरूप ढलना (Adapt to Modern Challenges):
21वीं सदी में वैश्विक समस्याएँ अधिक जटिल और बहुआयामी हो गई हैं। केवल पारंपरिक कूटनीति पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, NAM को आधुनिक चुनौतियों से निपटने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए।
साइबर सुरक्षा (Cybersecurity): डिजिटल युग में साइबर हमले और डेटा चोरी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरे बन गए हैं। NAM को साइबर सुरक्षा सहयोग बढ़ाने और अपने सदस्य देशों को इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करना चाहिए।
जलवायु परिवर्तन (Climate Change): विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन का असर अधिक पड़ता है। NAM को एक साझा मंच बनाकर टिकाऊ विकास (Sustainable Development) की योजनाओं पर ध्यान देना चाहिए और विकसित देशों से जलवायु वित्त पोषण (Climate Finance) की मांग करनी चाहिए।
वैश्विक स्वास्थ्य संकट (Global Health Crises): COVID-19 महामारी ने दिखाया कि वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा कितनी महत्वपूर्ण है। NAM को स्वास्थ्य अनुसंधान, वैक्सीन उत्पादन और आपातकालीन चिकित्सा सहायता के लिए एक संयुक्त ढांचा विकसित करना चाहिए।
3. राजनीतिक एकता को मजबूत करना (Enhance Political Unity):
NAM की सबसे बड़ी चुनौती उसके सदस्य देशों के बीच मतभेद और वैचारिक विभाजन हैं। यदि संगठन को प्रभावी बने रहना है, तो उसे बेहतर समन्वय और एकजुटता की आवश्यकता होगी।
सामूहिक निर्णय लेने की प्रक्रिया (Collective Decision-Making): सदस्य देशों को वैश्विक मुद्दों पर एक साझा दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जिससे NAM की आवाज़ अधिक प्रभावी हो।
संयुक्त शिखर सम्मेलन और संवाद (Joint Summits & Dialogues): सदस्य राष्ट्रों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए नियमित शिखर सम्मेलन, मंत्रिस्तरीय बैठकें और नीति संवाद आयोजित किए जाने चाहिए।
सामूहिक कूटनीति (Collective Diplomacy): वैश्विक स्तर पर प्रभाव बढ़ाने के लिए NAM को संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों में एकीकृत रणनीति अपनानी चाहिए।
4. उभरती शक्तियों के साथ संतुलित संबंध बनाना (Engage with Emerging Powers):
गुटनिरपेक्ष आंदोलन को अपनी पारंपरिक नीति बनाए रखते हुए बदलते वैश्विक परिदृश्य में उभरती महाशक्तियों के साथ संतुलित संबंध विकसित करने चाहिए।
रणनीतिक साझेदारी (Strategic Partnerships): चीन, रूस, यूरोपीय संघ और अमेरिका के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए रखते हुए, NAM को अपने सदस्य देशों के हितों की रक्षा करनी चाहिए।
निष्पक्षता और स्वतंत्रता (Neutrality & Autonomy): संगठन को किसी भी सैन्य गठबंधन का हिस्सा बनने से बचना चाहिए और अपनी स्वतंत्रता को प्राथमिकता देनी चाहिए।
विकासशील देशों के साथ सहयोग (Cooperation with Developing Nations): अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया के विकासशील देशों के साथ सहयोग बढ़ाकर, NAM एक अधिक प्रभावी और सशक्त संगठन बन सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion):
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) आज भी विकासशील देशों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बना हुआ है, जहाँ वे अपने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक हितों की रक्षा के लिए वैश्विक समुदाय के समक्ष अपनी आवाज़ बुलंद कर सकते हैं। यह संगठन उन देशों का प्रतिनिधित्व करता है, जो किसी भी सैन्य गठबंधन का हिस्सा बने बिना अपने संप्रभुता के अधिकार को बनाए रखना चाहते हैं। संयुक्त राष्ट्र और अन्य बहुपक्षीय संगठनों में, NAM सदस्य देशों को एक ऐसा मंच प्रदान करता है, जहाँ वे अपने साझा हितों की रक्षा और वैश्विक नीतियों पर प्रभाव डाल सकते हैं।
हालांकि, बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों और बढ़ते वैश्विक गठबंधनों के कारण NAM को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। कई सदस्य राष्ट्र अब बड़ी शक्तियों के साथ द्विपक्षीय समझौते और रणनीतिक साझेदारियाँ विकसित कर रहे हैं, जिससे संगठन की एकजुटता प्रभावित हो रही है। इसके अलावा, साइबर सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य संकट और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता जैसी नई चुनौतियाँ भी उभर रही हैं, जिनसे निपटने के लिए NAM को अपनी भूमिका को पुनर्परिभाषित करना होगा।
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