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Post-Behaviourism in Political Science राजनीति विज्ञान में उत्तर-व्यवहारवाद

Post-Behaviourism in Political Science | राजनीति विज्ञान में उत्तर-व्यवहारवाद

व्यवहारवाद (Behaviouralism) 20वीं सदी के मध्य में राजनीतिक विज्ञान में एक प्रभावी दृष्टिकोण के रूप में उभरा, जिसने राजनीति के अध्ययन में वैज्ञानिक पद्धतियों, मात्रात्मक विश्लेषण और अनुभवजन्य शोध पर विशेष बल दिया। इस दृष्टिकोण का मुख्य उद्देश्य राजनीति को पूर्वाग्रहों, मूल्यों और नैतिक धारणाओं से मुक्त करके इसे एक वस्तुनिष्ठ और तटस्थ अनुशासन के रूप में स्थापित करना था। व्यवहारवादी विद्वानों का मानना था कि राजनीति को केवल संस्थाओं और विचारधाराओं के आधार पर नहीं, बल्कि मानव व्यवहार और निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं के अध्ययन के माध्यम से समझा जाना चाहिए। इसने राजनीतिक विज्ञान को अधिक व्यवस्थित और विश्लेषणात्मक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, 1960 के दशक में विश्व में हो रहे व्यापक सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन, जैसे कि वियतनाम युद्ध, नस्लीय भेदभाव, नागरिक अधिकार आंदोलनों और आर्थिक असमानताओं ने व्यवहारवाद की सीमाओं को उजागर किया। आलोचकों का तर्क था कि मात्र आंकड़ों और वैज्ञानिक विधियों के माध्यम से राजनीति का संपूर्ण विश्लेषण संभव नहीं है, क्योंकि राजनीतिक घटनाएं सामाजिक संदर्भों, नैतिक प्रश्नों और मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी होती हैं। इस पृष्ठभूमि में, राजनीतिक सिद्धांतकारों ने तर्क दिया कि राजनीतिक विज्ञान को केवल निष्पक्षता और निष्कर्षों तक सीमित रखने के बजाय सामाजिक सरोकारों को भी समाहित करना चाहिए। यही सोच उत्तर-व्यवहारवाद (Post-Behaviouralism) की उत्पत्ति का आधार बनी, जिसे डेविड ईस्टन, गेब्रियल आलमंड और अन्य प्रमुख विद्वानों ने विकसित किया। उत्तर-व्यवहारवाद ने इस विचार को बढ़ावा दिया कि राजनीतिक अध्ययन को केवल वैज्ञानिक विधियों तक सीमित न रखते हुए, उसमें सामाजिक समस्याओं और मानवीय मूल्यों को भी शामिल किया जाना चाहिए। इसने व्यवहारवाद की कठोर तटस्थता को चुनौती देते हुए इसे अधिक व्यावहारिक और समाजोपयोगी बनाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त किया।

उत्तर-व्यवहारवाद: एक परिचय (Post-Behaviourism: An Introduction):

उत्तर-व्यवहारवाद का मुख्य उद्देश्य न केवल व्यवहारवाद की सीमाओं को उजागर करना था, बल्कि राजनीतिक विज्ञान को सामाजिक और नैतिक रूप से अधिक प्रासंगिक बनाना भी था। यह दृष्टिकोण मानता है कि राजनीति का अध्ययन केवल तथ्यों, आंकड़ों और वैज्ञानिक विश्लेषण तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे व्यापक सामाजिक संदर्भों में देखा जाना चाहिए। उत्तर-व्यवहारवादी विद्वानों का तर्क था कि राजनीतिक घटनाओं और नीतियों का समाज पर सीधा प्रभाव पड़ता है, इसलिए राजनीति का अध्ययन ऐसा होना चाहिए जो सामाजिक समस्याओं को समझने और उनके समाधान में सहायक हो। इस विचारधारा के तहत, राजनीतिक विज्ञान को एक निष्क्रिय अकादमिक अनुशासन के बजाय समाज में सक्रिय भूमिका निभाने वाला विषय माना गया। डेविड ईस्टन, जो उत्तर-व्यवहारवाद के प्रमुख प्रवर्तकों में से एक थे, ने इसे "आवश्यकता और प्रासंगिकता का आंदोलन" (Movement of Relevance) कहा। उनका मानना था कि राजनीतिक अध्ययन का उद्देश्य केवल तटस्थ विश्लेषण करना नहीं, बल्कि समाज की वास्तविक समस्याओं के प्रति संवेदनशील रहना भी होना चाहिए। उन्होंने राजनीतिक विज्ञान को मानवता के कल्याण के लिए अधिक उत्तरदायी और क्रियाशील बनाने पर जोर दिया। उत्तर-व्यवहारवाद इस धारणा को मजबूत करता है कि राजनीतिक वैज्ञानिकों को केवल निष्कर्ष निकालने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें नीतियों के निर्माण और समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए भी प्रयास करने चाहिए। इस दृष्टिकोण ने राजनीतिक विज्ञान को अधिक गतिशील, व्यावहारिक और सामाजिक न्याय से जुड़ा बनाने की दिशा में एक नई दिशा प्रदान की।

उत्तर-व्यवहारवाद के सिद्धांत (Principles of Post-Behaviourism):

1. मूल्यों का महत्व (Importance of Values):

उत्तर-व्यवहारवाद यह स्वीकार करता है कि राजनीति केवल शक्ति और सत्ता के खेल तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें नैतिकता, न्याय और मानवीय मूल्यों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह दृष्टिकोण राजनीतिक विज्ञान को निष्पक्ष मात्रात्मक विश्लेषण से आगे बढ़ाकर नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी से जोड़ता है। उत्तर-व्यवहारवादी विद्वान मानते हैं कि राजनीतिक अध्ययन को सामाजिक न्याय, समानता और मानव कल्याण को ध्यान में रखते हुए विकसित किया जाना चाहिए, ताकि यह वास्तविक दुनिया की समस्याओं के समाधान में सहायक हो सके।

2. प्रासंगिकता (Relevance):

उत्तर-व्यवहारवाद का एक प्रमुख सिद्धांत यह है कि राजनीतिक विज्ञान को समाज की जमीनी हकीकत और वास्तविक समस्याओं से जोड़कर देखा जाना चाहिए। केवल सैद्धांतिक चर्चाओं, आंकड़ों और निष्कर्षों तक सीमित रहने के बजाय, इसका उद्देश्य सामाजिक बदलाव लाने और नीतिगत सुधारों में योगदान देना होना चाहिए। यह दृष्टिकोण राजनीतिक अध्ययन को अधिक व्यावहारिक बनाता है और इसे सामाजिक मुद्दों जैसे गरीबी, असमानता, मानवाधिकार और पर्यावरणीय संकटों के समाधान की दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।

3. सक्रियता (Action-Oriented Approach):

उत्तर-व्यवहारवाद केवल समस्याओं की पहचान करने और उनका विश्लेषण करने तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह सक्रिय हस्तक्षेप और समाधान के प्रयासों पर भी बल देता है। राजनीतिक वैज्ञानिकों का कर्तव्य केवल निष्कर्ष निकालना नहीं, बल्कि उन निष्कर्षों को समाज के हित में लागू करने की दिशा में प्रयास करना भी होना चाहिए। इस सिद्धांत के अनुसार, विद्वानों को निष्क्रिय पर्यवेक्षक के रूप में नहीं, बल्कि परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में कार्य करना चाहिए, जिससे उनके अध्ययन समाज के कल्याण में सीधा योगदान दे सकें।

4. सामाजिक जिम्मेदारी (Social Responsibility):

उत्तर-व्यवहारवादी दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि विद्वानों और शोधकर्ताओं को केवल राजनीतिक घटनाओं का विश्लेषण करने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। राजनीति विज्ञान का अध्ययन समाज में व्याप्त असमानताओं, मानवाधिकार हनन, दमनकारी नीतियों और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ सचेत रूप से कार्य करने के लिए किया जाना चाहिए। इस दृष्टिकोण के अनुसार, राजनीतिक वैज्ञानिकों को निष्पक्ष आलोचना और सामाजिक सुधार की दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

5. परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता (Sensitivity towards Change):

उत्तर-व्यवहारवाद इस विचार को स्वीकार करता है कि समाज और राजनीति निरंतर परिवर्तनशील हैं। इसलिए, राजनीतिक अध्ययन को भी इन परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील और लचीला होना चाहिए। यह दृष्टिकोण इस बात पर जोर देता है कि राजनीतिक विज्ञान को स्थिर या अपरिवर्तनीय सिद्धांतों पर आधारित न होकर, समसामयिक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों के अनुरूप विकसित किया जाना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि अध्ययन और नीतिगत सिफारिशें बदलते सामाजिक संदर्भों में भी प्रभावी बनी रहें।

6. समन्वय और बहुविषयकता (Coordination and Multidisciplinarity):

उत्तर-व्यवहारवाद का एक अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि राजनीति विज्ञान को अन्य सामाजिक विज्ञानों जैसे समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, नृविज्ञान और इतिहास के साथ समन्वय स्थापित करना चाहिए। चूंकि राजनीतिक घटनाएं केवल एक पहलू तक सीमित नहीं होतीं, बल्कि वे विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारकों से प्रभावित होती हैं, इसलिए राजनीतिक अध्ययन को बहुविषयक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। इस सिद्धांत के अनुसार, विभिन्न सामाजिक विज्ञानों की विधियों और निष्कर्षों को मिलाकर राजनीति को अधिक व्यापक और प्रभावी ढंग से समझा जा सकता है।

इन सिद्धांतों के माध्यम से उत्तर-व्यवहारवाद ने राजनीतिक विज्ञान को अधिक सामाजिक रूप से उत्तरदायी, प्रासंगिक और व्यावहारिक बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने का प्रयास किया।

उत्तर-व्यवहारवाद की आलोचना (Criticism of Post-Behaviourism):

1. अति-विचारशीलता (Overthinking):

उत्तर-व्यवहारवाद को लेकर एक प्रमुख आलोचना यह है कि यह अत्यधिक आदर्शवादी दृष्टिकोण अपनाता है और व्यवहारिकता से दूर रहता है। इसके समर्थक राजनीति विज्ञान को नैतिकता, सामाजिक न्याय और मूल्यों से जोड़ने की वकालत करते हैं, लेकिन व्यावहारिक राजनीति में इनका पालन हमेशा संभव नहीं होता। आलोचकों का तर्क है कि यह दृष्टिकोण वास्तविक राजनीतिक परिस्थितियों की जटिलताओं को पूरी तरह समझने में असफल रहता है और अक्सर सैद्धांतिक चर्चाओं तक ही सीमित रह जाता है। इससे यह नीति-निर्माण और शासन-प्रक्रिया में व्यावहारिक योगदान देने में कम प्रभावी साबित हो सकता है।

2. सटीकता की कमी (Lack of Accuracy):

उत्तर-व्यवहारवाद में नैतिकता, मूल्यों और सामाजिक न्याय को केंद्र में रखा जाता है, लेकिन इससे शोध की निष्पक्षता और सटीकता प्रभावित हो सकती है। वैज्ञानिक और मात्रात्मक विश्लेषण की तुलना में, यह दृष्टिकोण राजनीतिक अध्ययन में व्यक्तिनिष्ठता (subjectivity) को बढ़ावा दे सकता है, जिससे निष्कर्षों की वस्तुनिष्ठता (objectivity) कम हो सकती है। इसके आलोचकों का कहना है कि राजनीतिक विज्ञान को तथ्यों और प्रमाणों पर आधारित रहना चाहिए, न कि व्यक्तिगत या सामाजिक मूल्यों के आधार पर निष्कर्ष निकालने चाहिए।

3. विविधता में एकता का अभाव (Lack of Unity in Diversity):

उत्तर-व्यवहारवाद बहुविषयक (multidisciplinary) दृष्टिकोण को अपनाने पर बल देता है, जिससे राजनीतिक विज्ञान का अध्ययन विभिन्न सामाजिक विज्ञानों, जैसे समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान और इतिहास से प्रभावित होता है। हालांकि, कुछ आलोचकों का मानना है कि यह अत्यधिक विस्तृत और अस्पष्ट हो सकता है, जिससे राजनीतिक विज्ञान की मूल पहचान और केंद्र बिंदु कमजोर पड़ सकता है। विभिन्न विषयों से विचारों को समाहित करने के प्रयास में, यह कभी-कभी एक निश्चित और सुसंगत (coherent) ढांचे को बनाए रखने में असफल हो सकता है।

4. समयबद्धता (Timeliness):

उत्तर-व्यवहारवाद की एक अन्य आलोचना यह है कि यह 1960 और 1970 के दशकों की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों की प्रतिक्रिया में विकसित हुआ था। उस समय, नस्लीय भेदभाव, वियतनाम युद्ध और अन्य वैश्विक संकटों ने राजनीतिक अध्ययन को अधिक नैतिक और सामाजिक रूप से उत्तरदायी बनाने की आवश्यकता को जन्म दिया था। हालांकि, वर्तमान वैश्विक राजनीति में, जहां तकनीकी प्रगति, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जलवायु परिवर्तन, और भू-राजनीतिक जटिलताएं प्रमुख मुद्दे बन चुके हैं, उत्तर-व्यवहारवाद की उपयोगिता सीमित लग सकती है। कुछ विद्वानों का मानना है कि यह दृष्टिकोण आधुनिक राजनीतिक विज्ञान की नई चुनौतियों से निपटने में उतना प्रभावी नहीं है जितना कि अपने समय में था।

इन आलोचनाओं के बावजूद, उत्तर-व्यवहारवाद ने राजनीतिक विज्ञान को एक नया दृष्टिकोण दिया और इसे सामाजिक प्रासंगिकता के साथ जोड़ने का प्रयास किया। हालांकि, इसका प्रभाव और उपयोगिता समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलती रही है।

उत्तर-व्यवहारवाद का योगदान (Contribution of Post-Behaviourism):

उत्तर-व्यवहारवाद ने राजनीतिक विज्ञान को केवल सैद्धांतिक और अकादमिक अध्ययन तक सीमित न रखते हुए इसे एक प्रभावी सामाजिक विज्ञान के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने राजनीति को निष्पक्ष विश्लेषण से आगे बढ़ाकर सामाजिक सरोकारों और व्यावहारिक समाधान से जोड़ा। इसके प्रमुख योगदान निम्नलिखित हैं:

1. नैतिकता का पुनर्जागरण (Renaissance of Morality):

उत्तर-व्यवहारवाद ने राजनीति विज्ञान को नैतिकता और मूल्यों से पुनः जोड़ने का प्रयास किया, जिससे इसे समाज के लिए अधिक उपयोगी और प्रासंगिक बनाया जा सके। इस दृष्टिकोण के तहत, राजनीतिक अध्ययन केवल सत्ता, संस्थानों और नीतियों के विश्लेषण तक सीमित न रहकर मानवीय मूल्यों, समानता, न्याय और नैतिक सिद्धांतों पर भी केंद्रित हुआ। इससे राजनीति विज्ञान केवल एक ठोस और तटस्थ अनुशासन न होकर, समाज के नैतिक उत्थान और लोकहित के लिए कार्य करने वाला क्षेत्र बन गया।

2. सामाजिक प्रासंगिकता (Social Relevance):

उत्तर-व्यवहारवाद का एक महत्वपूर्ण योगदान यह रहा कि इसने राजनीति विज्ञान को वास्तविक जीवन के मुद्दों से जोड़ने पर जोर दिया। यह दृष्टिकोण मानता है कि राजनीतिक अध्ययन का उद्देश्य केवल सैद्धांतिक चर्चाएं करना नहीं, बल्कि समाज में व्याप्त असमानता, मानवाधिकार हनन, आर्थिक विषमताओं और अन्य ज्वलंत समस्याओं का समाधान खोजना भी होना चाहिए। इस सोच ने राजनीतिक वैज्ञानिकों को अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने और अपने शोध को समाज के समक्ष आने वाली वास्तविक चुनौतियों के समाधान के लिए उपयोगी बनाने के लिए प्रेरित किया।

3. बहुविषयकता का विकास (Development of Multidisciplinarity):

उत्तर-व्यवहारवाद ने राजनीति विज्ञान को अन्य सामाजिक विज्ञानों जैसे कि समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, नृविज्ञान और इतिहास के साथ समन्वय स्थापित करने की दिशा में विकसित किया। इस बहुविषयक दृष्टिकोण ने राजनीतिक घटनाओं और नीतियों के अध्ययन को अधिक समग्र (holistic) और व्यापक बनाया। राजनीतिक घटनाएं केवल एक ही कारक से प्रभावित नहीं होतीं, बल्कि वे सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भों से भी जुड़ी होती हैं। इसीलिए, उत्तर-व्यवहारवाद ने राजनीति विज्ञान को अन्य अनुशासनों के साथ जोड़ने का मार्ग प्रशस्त किया, जिससे इसका अध्ययन अधिक गहन और प्रभावशाली बन सका।

4. सक्रियता की भावना (Spirit of Activism):

उत्तर-व्यवहारवाद ने राजनीतिक वैज्ञानिकों को केवल पर्यवेक्षक या विश्लेषक बनने तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्हें सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं के समाधान में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया। इस दृष्टिकोण के तहत, विद्वानों को समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इससे राजनीति विज्ञान न केवल सैद्धांतिक अध्ययन का विषय बना, बल्कि इसे सामाजिक बदलाव लाने का एक प्रभावी उपकरण भी माना जाने लगा। इसने विद्वानों को निष्क्रिय अनुसंधानकर्ता के बजाय नीति-निर्माण और सामाजिक सुधार की दिशा में सक्रिय योगदान देने के लिए प्रेरित किया।

इन योगदानों के माध्यम से उत्तर-व्यवहारवाद ने राजनीतिक विज्ञान को अधिक नैतिक, प्रासंगिक, बहुआयामी और व्यावहारिक बनाया। इस दृष्टिकोण ने राजनीति के अध्ययन को समाजोपयोगी बनाने के साथ-साथ विद्वानों को अधिक सक्रिय और उत्तरदायी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया।

आधुनिक राजनीति विज्ञान में उत्तर-व्यवहारवाद का प्रभाव (Impact of Post-Behaviourism in Modern Political Science):

उत्तर-व्यवहारवाद ने आधुनिक राजनीति विज्ञान को व्यापक और बहुआयामी दृष्टिकोण प्रदान किया है। यह दृष्टिकोण केवल सत्ता और शासन-प्रणाली के अध्ययन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सामाजिक न्याय, नैतिकता और मानव कल्याण को भी राजनीतिक अध्ययन का अभिन्न हिस्सा बना दिया। इसके प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं:

1. सामाजिक न्याय और मानवाधिकार पर जोर (Emphasis on Social Justice and Human Rights):

उत्तर-व्यवहारवाद के प्रभाव के कारण, आधुनिक राजनीति विज्ञान में सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा है। अब राजनीति का अध्ययन केवल संस्थानों और नीतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें नागरिक अधिकार, जातीय और लैंगिक समानता, तथा अल्पसंख्यकों के अधिकारों जैसे महत्वपूर्ण विषयों को भी शामिल किया गया है।

2. पर्यावरण और सतत विकास का महत्व (Focus on Environment and Sustainable Development):

उत्तर-व्यवहारवाद के बाद राजनीति विज्ञान में पर्यावरणीय मुद्दों को अधिक महत्व दिया गया है। जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और सतत विकास अब राजनीतिक अध्ययन के महत्वपूर्ण विषय बन चुके हैं। सरकारों की नीतियों और अंतरराष्ट्रीय समझौतों का मूल्यांकन अब इस आधार पर भी किया जाता है कि वे पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान किस प्रकार कर रही हैं।

3. राजनीति का बहुविषयक दृष्टिकोण (Multidisciplinary Approach in Political Science):

उत्तर-व्यवहारवाद के प्रभाव से राजनीति विज्ञान को अन्य सामाजिक विज्ञानों जैसे समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान और नृविज्ञान के साथ जोड़ने का प्रयास किया गया। इससे राजनीतिक घटनाओं और नीतियों को अधिक समग्र (holistic) और व्यापक दृष्टि से समझने में सहायता मिली है।

4. लोकतंत्र और नागरिक भागीदारी का विस्तार (Expansion of Democracy and Citizen Participation):

आधुनिक राजनीतिक अध्ययन में लोकतंत्र की मजबूती और नागरिक भागीदारी को अधिक महत्व दिया जाने लगा है। उत्तर-व्यवहारवादी दृष्टिकोण के कारण न केवल चुनावी राजनीति पर ध्यान केंद्रित किया गया, बल्कि नागरिक आंदोलनों, जनसहभागिता, और लोकतांत्रिक जवाबदेही जैसे मुद्दों को भी प्रमुखता मिली।

5. नीति-निर्माण में सक्रिय योगदान (Active Role in Policy-Making):

उत्तर-व्यवहारवाद ने राजनीति विज्ञान को एक निष्क्रिय विश्लेषणात्मक क्षेत्र से आगे बढ़ाकर नीति-निर्माण और सामाजिक बदलाव में योगदान देने वाला अनुशासन बना दिया। आज राजनीतिक वैज्ञानिक विभिन्न नीतिगत अनुसंधानों में योगदान कर रहे हैं और शासन-प्रणालियों को अधिक प्रभावी और समावेशी बनाने के लिए सिफारिशें प्रस्तुत कर रहे हैं।

6. सामाजिक आंदोलनों और सक्रियता की वृद्धि (Growth of Social Movements and Activism):

उत्तर-व्यवहारवाद की विचारधारा ने राजनीतिक वैज्ञानिकों और आम जनता को सामाजिक बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया। मानवाधिकार आंदोलन, जलवायु परिवर्तन के लिए वैश्विक पहल, नस्लीय और लैंगिक समानता के आंदोलन – ये सभी आधुनिक राजनीति में उत्तर-व्यवहारवाद की सक्रियता और प्रासंगिकता को दर्शाते हैं।

7. राजनीतिक अध्ययन का वैश्वीकरण (Globalization of Political Studies):

उत्तर-व्यवहारवाद के प्रभाव के कारण, राजनीति विज्ञान केवल राष्ट्रीय राजनीति तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वैश्विक मुद्दों का अध्ययन भी इसमें शामिल हो गया। अंतरराष्ट्रीय संबंध, वैश्विक शांति, आतंकवाद, और आप्रवासन जैसे विषय अब राजनीतिक विज्ञान के महत्वपूर्ण पहलू बन चुके हैं।

निष्कर्ष (Conclusion):

उत्तर-व्यवहारवाद ने राजनीति विज्ञान को अधिक समावेशी, सामाजिक रूप से प्रासंगिक और बहुआयामी बनाया है। इस दृष्टिकोण के कारण, अब राजनीति का अध्ययन केवल सत्ता और संस्थानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज के व्यापक हितों से भी जुड़ा हुआ है। आधुनिक राजनीति विज्ञान में नैतिकता, सामाजिक न्याय और वैश्विक मुद्दों को शामिल करने में उत्तर-व्यवहारवाद की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जिससे यह एक अधिक व्यावहारिक और प्रभावी अनुशासन बन गया है। उत्तर-व्यवहारवाद ने राजनीतिक विज्ञान को एक नया दृष्टिकोण और उद्देश्य प्रदान किया। यह न केवल राजनीतिक अध्ययन को अधिक प्रासंगिक और नैतिक बनाता है, बल्कि समाज के लिए एक उपयोगी विज्ञान के रूप में इसकी पहचान भी स्थापित करता है। हालांकि इसे कुछ आलोचनाओं का सामना करना पड़ा, इसके बावजूद इसका योगदान निर्विवाद है। आज के समय में, जब विश्व नई चुनौतियों का सामना कर रहा है, उत्तर-व्यवहारवाद के सिद्धांत हमें राजनीतिक विज्ञान को और अधिक मानवीय और प्रभावी बनाने की प्रेरणा देते हैं। इससे प्रेरित होकर, राजनीतिक विज्ञान को न केवल समस्याओं की पहचान करनी चाहिए, बल्कि उनके समाधान का भी मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।

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