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Learning – Meaning, Characteristics, Learning Factors, and Influencing Factors अधिगम – अर्थ, विशेषताएँ, अधिगम के कारक और प्रभावकारी कारक

अधिगम का अर्थ (Meaning of Learning)

अधिगम एक निरंतर और आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से कोई व्यक्ति अध्ययन, अनुभव या शिक्षण के माध्यम से नए ज्ञान, कौशल, व्यवहार, दृष्टिकोण या मूल्यों को प्राप्त करता है। यह केवल औपचारिक शिक्षा (स्कूल, कॉलेज आदि) तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि यह अनौपचारिक परिस्थितियों जैसे कि अवलोकन, अभ्यास, दैनिक अनुभवों और सामाजिक संपर्क के माध्यम से भी होता है। अधिगम के द्वारा व्यक्ति में व्यवहार या समझ में ऐसा परिवर्तन आता है जो अपेक्षाकृत स्थायी होता है। यह परिवर्तन व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व, सोचने के ढंग, कार्यशैली और सामाजिक संबंधों को भी प्रभावित करता है। अधिगम व्यक्ति को समय, स्थान और परिस्थिति के अनुसार अनुकूलन (adaptation) की क्षमता प्रदान करता है, जिससे वह समाज में प्रभावशाली रूप से कार्य कर सके। अधिगम केवल जानकारी का संग्रह नहीं है, बल्कि यह जानकारी के प्रभावी उपयोग, व्यावहारिक प्रयोग और भावनात्मक विकास की दिशा में भी व्यक्ति को आगे बढ़ाता है। यह व्यक्ति को आत्मनिर्भर, विवेकशील और समस्याओं के प्रति समाधान-उन्मुख बनाता है।

अधिगम की परिभाषाएँ (Definitions of Learning):

बी.एफ. स्किनर:
"अधिगम प्रगतिशील व्यवहार अनुकूलन की एक प्रक्रिया है।"

क्रो और क्रो: 
"अधिगम में आदतों, ज्ञान और दृष्टिकोणों की प्राप्ति शामिल होती है।"

गेट्स:
"अनुभव के माध्यम से व्यवहार में होने वाला संशोधन ही अधिगम है।"

किम्बल:
"अधिगम व्यवहार की संभाव्यता में अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन है, जो प्रबलित अभ्यास (reinforced practice) के परिणामस्वरूप होता है।"

हिलगार्ड:
"अधिगम एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से किसी गतिविधि की उत्पत्ति होती है या वह प्रशिक्षण की प्रक्रिया द्वारा परिवर्तित होती है।"

वुडवर्थ:
"अधिगम नई जानकारी और नई प्रतिक्रियाएँ प्राप्त करने की प्रक्रिया है।"

अधिगम की विशेषताएँ (Characteristics of Learning):

अधिगम एक निरंतर चलने वाली मानसिक प्रक्रिया है जो व्यक्ति के अनुभवों, परिवेश और प्रयत्नों के आधार पर विकसित होती है। यह केवल सूचना ग्रहण करने तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह व्यक्ति के व्यवहार, सोच, भावना और दृष्टिकोण में परिवर्तन लाता है। नीचे अधिगम की कुछ प्रमुख विशेषताओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है:

1. अधिगम एक आजीवन प्रक्रिया है (Learning is a Lifelong Process):

अधिगम का आरंभ जन्म से ही हो जाता है और यह जीवन के अंत तक चलता रहता है। मनुष्य अपने अनुभवों, परिस्थितियों और परिवेश में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार निरंतर नई-नई बातें सीखता रहता है। शैक्षिक संस्थानों में औपचारिक शिक्षा के बाद भी व्यक्ति अपने जीवन के विभिन्न पड़ावों पर व्यक्तिगत, सामाजिक और व्यावसायिक अनुभवों से सीखता है। इस प्रकार, अधिगम सीमित समय तक नहीं, बल्कि जीवन भर चलने वाली सतत प्रक्रिया है।

2. अधिगम से व्यवहार में परिवर्तन आता है (Learning Leads to Behavioral Change):

अधिगम का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन लाना होता है। यह परिवर्तन सोचने के तरीके, भावनाओं, दृष्टिकोण या कार्य करने की शैली में हो सकता है। ये परिवर्तन सकारात्मक (जैसे – आत्मविश्वास में वृद्धि) या नकारात्मक (जैसे – भय या संकोच की भावना) दोनों प्रकार के हो सकते हैं। व्यवहार में यह परिवर्तन अनुभवों और अभ्यास के माध्यम से स्थायी रूप ले लेता है।

3. अधिगम उद्देश्यपूर्ण और लक्ष्य-निर्देशित होता है (Learning is Purposeful and Goal-Oriented):

अधिगम तब अधिक प्रभावशाली होता है जब वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाए। जब शिक्षार्थी के सामने स्पष्ट लक्ष्य होते हैं, तो वह अधिक उत्साह और एकाग्रता के साथ सीखने की प्रक्रिया में भाग लेता है। उद्देश्य और प्रेरणा की उपस्थिति अधिगम को दिशात्मक और प्रभावशाली बनाती है।

4. अधिगम एक सक्रिय प्रक्रिया है (Learning is Active):

अधिगम में शिक्षार्थी की सक्रिय भागीदारी आवश्यक होती है। केवल जानकारी को सुनना या पढ़ना पर्याप्त नहीं होता, बल्कि उसे समझना, विश्लेषण करना और व्यावहारिक रूप में प्रयोग करना भी जरूरी होता है। सक्रिय अधिगम में मस्तिष्क और कभी-कभी शरीर दोनों की संलग्नता होती है। निष्क्रिय रूप से जानकारी ग्रहण करने की तुलना में सक्रिय अधिगम अधिक गहन और स्थायी होता है।

5. अधिगम एक व्यक्तिगत प्रक्रिया है (Learning is an Individual Process):

हर व्यक्ति की अधिगम शैली, गति, रुचि और समझने की क्षमता भिन्न होती है। एक ही जानकारी को दो व्यक्ति अलग-अलग तरीके से ग्रहण कर सकते हैं। यह अंतर उनके पूर्व ज्ञान, सामाजिक पृष्ठभूमि, मानसिक स्तर और व्यक्तिगत अनुभवों पर निर्भर करता है। इसलिए प्रभावी अधिगम के लिए व्यक्ति-केंद्रित पद्धतियाँ अपनाना आवश्यक है।

6. अधिगम औपचारिक और अनौपचारिक दोनों हो सकता है (Learning Can Be Formal or Informal):

अधिगम केवल स्कूल, कॉलेज या कोचिंग संस्थानों तक सीमित नहीं होता। औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ व्यक्ति अनौपचारिक रूप से भी अपने परिवार, समाज, मीडिया और जीवन के अनुभवों से निरंतर सीखता रहता है। उदाहरण के रूप में, माता-पिता से नैतिक मूल्य सीखना या किसी कठिन परिस्थिति से समाधान निकालना अनौपचारिक अधिगम के उदाहरण हैं।

7. अधिगम परिवेश से प्रभावित होता है (Learning is Affected by Environment):

व्यक्ति का भौतिक, सामाजिक और भावनात्मक वातावरण उसके अधिगम पर गहरा प्रभाव डालता है। एक सुरक्षित, प्रेरणादायक और सहयोगपूर्ण वातावरण सीखने को आसान और प्रभावशाली बनाता है, जबकि भय या तनावयुक्त माहौल अधिगम में बाधा उत्पन्न कर सकता है। परिवार, शिक्षक, साथियों और समाज की भूमिका भी अधिगम को आकार देने में महत्वपूर्ण होती है।

8. अधिगम मापनीय होता है (Learning is Measurable):

अधिगम के प्रभावों को व्यक्ति के प्रदर्शन, समझ और व्यवहार में हुए बदलाव के माध्यम से मापा जा सकता है। परीक्षा, मूल्यांकन, प्रायोगिक कार्य या जीवन में किए गए निर्णय अधिगम की प्रगति और प्रभाव को दर्शाते हैं। इससे यह पता चलता है कि अधिगम कितना सफल रहा है और किन क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है।

अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Learning):

अधिगम एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है जो कई आंतरिक और बाह्य कारकों से प्रभावित होती है। यह कारक न केवल सीखने की गति और गुणवत्ता को निर्धारित करते हैं, बल्कि यह भी तय करते हैं कि अधिगम कितना स्थायी और प्रभावी रहेगा। इन कारकों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जा सकता है – आंतरिक (विद्यार्थी-केंद्रित) और बाह्य (पर्यावरण-केंद्रित)।

A. आंतरिक कारक (Internal Factors – Within the Learner):

1. प्रेरणा (Motivation):

प्रेरणा अधिगम की आधारशिला मानी जाती है। जब विद्यार्थी के भीतर सीखने की तीव्र इच्छा या उद्देश्य होता है, तो वह विषयवस्तु को ध्यानपूर्वक ग्रहण करता है और अधिक समय तक याद रखता है। आंतरिक प्रेरणा जैसे आत्म-विकास की भावना या लक्ष्य प्राप्ति की आकांक्षा, और बाह्य प्रेरणा जैसे पुरस्कार या प्रशंसा, अधिगम को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। बिना प्रेरणा के अधिगम प्रक्रिया निष्क्रिय और असफल हो सकती है।

2. रुचि (Interest):

जब कोई विद्यार्थी किसी विषय में विशेष रुचि रखता है, तो वह अधिक ध्यान और उत्साह के साथ सीखता है। रुचि अधिगम की गुणवत्ता को बेहतर बनाती है और जिज्ञासा को जागृत करती है। जिस विषय में विद्यार्थियों की भागीदारी स्वाभाविक रूप से होती है, वहाँ अधिगम की गति और गहराई दोनों में वृद्धि होती है।

3. मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य (Mental and Physical Health):

एक अच्छे स्वास्थ्य वाले विद्यार्थी में एकाग्रता, स्मरणशक्ति और सीखने की क्षमता बेहतर होती है। तनाव, चिंता, थकान या बीमारी अधिगम को बाधित कर सकते हैं। इसी प्रकार, पर्याप्त नींद, संतुलित आहार और मानसिक सशक्तता अधिगम को समर्थ बनाते हैं।

4. बुद्धिमत्ता और संज्ञानात्मक क्षमता (Intelligence and Cognitive Ability):

विद्यार्थियों की बौद्धिक क्षमता यह निर्धारित करती है कि वे कितनी जल्दी और कितनी गहराई से किसी विषय को समझ सकते हैं। उच्च संज्ञानात्मक क्षमता वाले विद्यार्थी विश्लेषण, तुलना और समस्या-समाधान में अधिक सक्षम होते हैं, जिससे अधिगम तीव्र और सुसंगत हो जाता है।

5. अभिरुचि (Aptitude):

किसी विशेष क्षेत्र में जन्मजात योग्यता या अभिरुचि रखने वाले विद्यार्थी उस क्षेत्र में आसानी और आनंदपूर्वक सीखते हैं। जैसे किसी को गणित में रुचि और प्रतिभा है तो वह गणितीय अवधारणाएँ जल्दी समझ लेता है। सही दिशा में इस योग्यता का पोषण करके अधिगम को और प्रभावशाली बनाया जा सकता है।

6. दृष्टिकोण और भावनाएँ (Attitudes and Emotions):

विद्यार्थी का सीखने के प्रति दृष्टिकोण और उसकी भावनात्मक स्थिति भी अधिगम पर गहरा प्रभाव डालती है। सकारात्मक दृष्टिकोण, आत्म-विश्वास और भावनात्मक संतुलन अधिगम को सरल बनाते हैं, जबकि भय, कुंठा या नकारात्मकता बाधा उत्पन्न कर सकती है। एक भावनात्मक रूप से संतुलित विद्यार्थी सीखने की प्रक्रिया में खुलकर भाग लेता है।

B. बाह्य कारक (External Factors – Environmental and Social):

1. पारिवारिक वातावरण (Home Environment):

घर का माहौल बच्चों के प्रारंभिक अधिगम का आधार होता है। यदि घर में सीखने के लिए अनुकूल, शांतिपूर्ण और प्रेरक वातावरण हो, तो बच्चे सीखने के लिए अधिक उत्साहित होते हैं। माता-पिता का प्रोत्साहन, समय पर सहयोग और सकारात्मक संवाद अधिगम को सुदृढ़ बनाते हैं।

2. विद्यालयीय वातावरण (School Environment):

विद्यालय अधिगम का प्रमुख स्थान है और उसका वातावरण इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रशिक्षित शिक्षक, आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता, अनुशासित और प्रेरणादायक माहौल विद्यार्थियों के अधिगम को सशक्त बनाते हैं। इसके विपरीत अव्यवस्थित, अव्यवसायिक या तनावपूर्ण वातावरण अधिगम में रुकावट पैदा कर सकता है।

3. शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods):

शिक्षण की पद्धतियाँ अधिगम की सफलता में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। यदि शिक्षण शैली संवादात्मक, भागीदारीपूर्ण और विद्यार्थी-केंद्रित हो, तो विद्यार्थी अधिक रुचि के साथ सीखते हैं। व्याख्यान पद्धति के बजाय समूह-चर्चा, प्रोजेक्ट कार्य, गतिविधि आधारित अधिगम आदि विधियाँ अधिक प्रभावी सिद्ध होती हैं।

4. सहपाठी समूह (Peer Group):

विद्यार्थियों का अपने साथियों के साथ संपर्क और सहभागिता उनके अधिगम व्यवहार को प्रभावित करता है। सकारात्मक, मेहनती और सहयोगी सहपाठी एक प्रेरणादायक वातावरण बनाते हैं जिससे अन्य विद्यार्थी भी सीखने की ओर प्रवृत्त होते हैं। वहीं नकारात्मक संगति अधिगम को भटकाने का कारण बन सकती है।

5. सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि (Cultural and Social Background):

व्यक्ति की सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि भी उसकी सीखने की शैली और दृष्टिकोण को प्रभावित करती है। उसकी भाषा, मूल्य, परंपराएँ और सामाजिक अपेक्षाएँ यह निर्धारित करती हैं कि वह ज्ञान को कैसे ग्रहण करता है और उसका प्रयोग कैसे करता है। विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों वाले विद्यार्थियों के लिए समावेशी शिक्षण आवश्यक होता है।

6. संसाधनों की उपलब्धता (Availability of Resources):

शैक्षिक संसाधन जैसे – पुस्तकें, इंटरनेट, शैक्षणिक उपकरण, डिजिटल सामग्री आदि अधिगम को सुगम और प्रभावी बनाते हैं। जिन विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण संसाधनों की सुविधा मिलती है, वे विषयवस्तु को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं और आत्मनिर्भर रूप से सीखने में सक्षम होते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion):

अधिगम एक सतत, परिवर्तनशील और जीवंत प्रक्रिया है, जो न केवल व्यक्ति के व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि सामाजिक समरसता और व्यावसायिक सफलता के लिए भी अनिवार्य भूमिका निभाती है। यह प्रक्रिया अनुभव, अभ्यास और परिवेश से निरंतर प्रभावित होती है और समय के साथ विकसित होती रहती है। अधिगम केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में सोच, व्यवहार और कार्यशैली को प्रभावित करता है। जब हम अधिगम की प्रकृति, इसकी विशिष्टताओं और उसे प्रभावित करने वाले आंतरिक एवं बाह्य कारकों को गहराई से समझते हैं, तो हम शिक्षण और अधिगम को अधिक प्रभावी, उद्देश्यपूर्ण और उपयोगी बना सकते हैं। शिक्षकों, अभिभावकों और नीति-निर्माताओं के लिए यह आवश्यक है कि वे विद्यार्थियों की मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ऐसा शिक्षण वातावरण निर्मित करें जो जिज्ञासा को प्रोत्साहित करे, रचनात्मकता को विकसित करे और आत्म-प्रेरित अधिगम की ओर प्रेरित करे। जब अधिगम की रणनीतियाँ विद्यार्थियों की रुचि, योग्यता और उनके जीवन परिवेश के अनुसार बनाई जाती हैं, तब न केवल ज्ञान की गुणवत्ता में वृद्धि होती है, बल्कि यह अधिगम जीवन भर के लिए स्थायी और उपयोगी भी बन जाता है। इस प्रकार, यदि हम अधिगम को एक समग्र और बहुआयामी प्रक्रिया के रूप में स्वीकार करें, तो हम एक ऐसे समाज की रचना कर सकते हैं जो ज्ञानवान, संवेदनशील और प्रगतिशील हो।

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