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Traditional, Modern and Contemporary Perspectives of Political Theory राजनीतिक सिद्धांत के पारंपरिक, आधुनिक और समकालीन दृष्टिकोण


राजनीतिक सिद्धांत (Political Theory) राजनीति विज्ञान की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जो राजनीतिक संस्थाओं, विचारधाराओं, सरकारों, और नीतियों का अध्ययन करती है। यह अध्ययन सत्ता, अधिकार, न्याय, स्वतंत्रता, समानता, और वैधता जैसे महत्वपूर्ण राजनीतिक अवधारणाओं के मूल्यों और उनके व्यावहारिक अनुप्रयोगों को समझने में मदद करता है। राजनीतिक सिद्धांत यह विश्लेषण करता है कि विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाएँ कैसे कार्य करती हैं और समाज में सत्ता संरचनाओं का प्रभाव कैसे पड़ता है। यह अध्ययन ऐतिहासिक और समकालीन संदर्भों में राजनीतिक दर्शन, विचारधाराओं, और राजनीतिक प्रक्रियाओं की तुलना करने का भी प्रयास करता है। राजनीतिक सिद्धांत को पारंपरिक, आधुनिक और समकालीन दृष्टिकोणों में विभाजित किया जा सकता है। पारंपरिक दृष्टिकोण मुख्य रूप से नैतिक और दार्शनिक सिद्धांतों पर आधारित होता है, जबकि आधुनिक दृष्टिकोण व्यवहारवादी और वैज्ञानिक पद्धतियों को अपनाता है। समकालीन दृष्टिकोण नए सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों, जैसे कि वैश्वीकरण, पर्यावरणीय राजनीति और पहचान की राजनीति को शामिल करता है।

1. पारंपरिक दृष्टिकोण (Traditional Perspective):

पारंपरिक राजनीतिक सिद्धांत मुख्य रूप से दर्शनशास्त्र, नैतिकता और इतिहास पर आधारित होता है। इसमें राजनीति को एक नैतिक विज्ञान के रूप में देखा जाता है और यह विचारधारा पर आधारित होता है कि राजनीति को न्याय, स्वतंत्रता, समानता, और नैतिकता के साथ जोड़ा जाना चाहिए। यह दृष्टिकोण आदर्श राज्य की संकल्पना पर केंद्रित होता है, जहाँ नीतियों को नैतिकता और समाज के कल्याण के आधार पर परखा जाता है।

नैतिक और आदर्शवादी दृष्टिकोण (Ethical and Ideal Thought):

राजनीतिक चिंतन के प्रारंभिक चरणों में प्लेटो और अरस्तू जैसे दार्शनिकों ने राजनीति को नैतिकता और आदर्श राज्य की संकल्पना से जोड़ा। प्लेटो के अनुसार, एक न्यायसंगत राज्य वह होता है, जहाँ दार्शनिक राजा शासन करते हैं क्योंकि वे ज्ञान और नैतिकता से प्रेरित होते हैं। उनके ग्रंथ 'रिपब्लिक' में उन्होंने एक ऐसे समाज की कल्पना की, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता के आधार पर स्थान दिया जाता है। दूसरी ओर, अरस्तू ने राजनीति को एक व्यावहारिक और नैतिक विज्ञान के रूप में देखा, जिसमें राज्य का उद्देश्य नागरिकों के नैतिक और बौद्धिक विकास को सुनिश्चित करना होता है। उनके अनुसार, राज्य का सर्वोच्च उद्देश्य 'सार्वजनिक भलाई' (Common Good) को बढ़ावा देना है।

ऐतिहासिक पद्धति (Historical Method):

इस दृष्टिकोण के तहत राजनीतिक विचारों और सिद्धांतों का अध्ययन ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में किया जाता है। राजनीतिक विचारधाराओं के विकास को समय की कसौटी पर परखा जाता है और यह देखा जाता है कि विभिन्न ऐतिहासिक परिस्थितियों में राजनीतिक संस्थाएँ और व्यवस्थाएँ कैसे बदलीं। उदाहरण के लिए, यूनानी लोकतंत्र, रोमन गणराज्य, मध्यकालीन राजतंत्र और आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का अध्ययन इस दृष्टिकोण के अंतर्गत किया जाता है। यह अध्ययन यह समझने में मदद करता है कि विभिन्न युगों में राजनीतिक चिंतन कैसे विकसित हुआ और किस प्रकार की विचारधाराएँ प्रभावी रहीं।

संस्थागत अध्ययन (Institutional Studies):

यह दृष्टिकोण राज्य, सरकार, संविधान और कानूनों के अध्ययन पर केंद्रित होता है। इसमें यह देखा जाता है कि राजनीतिक संस्थाएँ कैसे कार्य करती हैं और वे समाज में किस प्रकार स्थिरता बनाए रखती हैं। यह अध्ययन प्रशासनिक संस्थाओं, विधायिकाओं, न्यायालयों, और कार्यपालिका के बीच संबंधों को समझने में सहायक होता है। इस दृष्टिकोण के तहत यह विश्लेषण किया जाता है कि राजनीतिक संस्थाएँ किस प्रकार शक्ति का प्रयोग करती हैं और उनके कार्यों का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है।

मूल्यपरकता (Normative Approach):

इस दृष्टिकोण के अंतर्गत राजनीति को केवल सत्ता और शक्ति के संदर्भ में नहीं देखा जाता, बल्कि इसमें नैतिकता और मूल्यों को भी महत्वपूर्ण माना जाता है। यह दृष्टिकोण इस बात पर बल देता है कि राजनीतिक निर्णय केवल तर्कसंगत और व्यावहारिक न होकर नैतिक रूप से उचित भी होने चाहिए। इस दृष्टिकोण के अनुसार, राजनीति का उद्देश्य केवल शासन करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि समाज में न्याय, स्वतंत्रता और समानता को बढ़ावा मिले। इस सिद्धांत के समर्थक मानते हैं कि राजनीति को मानव कल्याण और समाज में नैतिक आदर्शों की स्थापना के लिए प्रयुक्त किया जाना चाहिए।

2. आधुनिक दृष्टिकोण (Modern Perspective):

आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत वैज्ञानिक पद्धतियों पर आधारित है और इसे अनुभववाद तथा व्यवहारवाद (Behavioralism) के प्रभाव से विकसित किया गया। यह दृष्टिकोण राजनीति को एक वैज्ञानिक अध्ययन के रूप में देखता है, जो तथ्यों, आंकड़ों और प्रमाणों पर आधारित होता है। आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत में राजनीति को केवल एक दार्शनिक विषय न मानकर एक व्यवहारिक विज्ञान के रूप में देखा जाता है, जिसमें राजनीतिक प्रक्रियाओं और व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है।

व्यवहारवादी दृष्टिकोण (Behavioral Approach):

यह दृष्टिकोण राजनीतिक अध्ययन को एक वैज्ञानिक अनुशासन के रूप में स्थापित करने पर बल देता है। इसमें व्यक्ति और समाज के राजनीतिक व्यवहार को मात्र कानूनी और संस्थागत ढांचे में न देखकर मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्रीय और सांस्कृतिक संदर्भों में भी समझने का प्रयास किया जाता है। इस दृष्टिकोण का मूल उद्देश्य राजनीतिक प्रक्रियाओं को आंकड़ों, सर्वेक्षणों और वैज्ञानिक पद्धतियों के माध्यम से समझना है। इसके तहत, यह देखा जाता है कि राजनीतिक निर्णय लेने में व्यक्तियों की सोच, उनकी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि, विचारधारा और मानसिकता की क्या भूमिका होती है। इस दृष्टिकोण का विकास 20वीं सदी में हुआ और इसे अमेरिकी राजनीतिक वैज्ञानिकों द्वारा विशेष रूप से लोकप्रिय बनाया गया।

संस्थागत और संरचनात्मक अध्ययन (Institutional and Structural Studies):

इस दृष्टिकोण के अंतर्गत राजनीतिक संस्थाओं और उनकी संरचनाओं का विश्लेषण किया जाता है। पारंपरिक अध्ययन जहाँ केवल कानूनी और दार्शनिक आधारों पर राजनीतिक संस्थानों की व्याख्या करता था, वहीं आधुनिक दृष्टिकोण उनके व्यावहारिक कार्यों, प्रभावशीलता और समाज पर पड़ने वाले प्रभावों का भी वैज्ञानिक परीक्षण करता है। इसमें सरकार, विधायिका, न्यायपालिका और प्रशासनिक निकायों की भूमिका और उनके बीच के संबंधों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। यह दृष्टिकोण यह समझने का प्रयास करता है कि राजनीतिक संस्थाएँ कैसे कार्य करती हैं, वे सत्ता के संतुलन को कैसे बनाए रखती हैं और समाज के विकास में उनकी क्या भूमिका होती है।

तथ्यात्मकता (Empirical Approach):

यह दृष्टिकोण राजनीति के अध्ययन में अनुभवजन्य (Empirical) और प्रमाण-आधारित पद्धतियों को प्राथमिकता देता है। इसमें राजनीतिक घटनाओं और प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाता है, जिसमें आंकड़ों और तुलनात्मक अध्ययन का उपयोग किया जाता है। इस दृष्टिकोण के तहत परिकल्पना और वैज्ञानिक परीक्षण की प्रक्रिया को अपनाया जाता है, जिससे निष्कर्षों को प्रमाणित किया जा सके। यह पद्धति राजनीतिक निर्णयों और उनके प्रभावों को समझने के लिए मात्र विचारधारात्मक या दार्शनिक आधारों पर निर्भर नहीं करती, बल्कि इसके लिए अनुभवजन्य साक्ष्यों और आंकड़ों पर आधारित अनुसंधान किया जाता है।

राजनीतिक प्रक्रियाओं का विश्लेषण (Analysis of Political Process):

इस दृष्टिकोण में राजनीति को केवल संस्थानों और कानूनी संरचनाओं के अध्ययन तक सीमित न रखकर व्यापक स्तर पर देखा जाता है। इसमें चुनाव, नीति निर्माण, प्रशासनिक प्रक्रियाओं और राजनीतिक दलों की गतिविधियों का गहन विश्लेषण किया जाता है। यह अध्ययन इस बात पर केंद्रित होता है कि सरकारों द्वारा बनाई गई नीतियाँ कितनी प्रभावी हैं, उनका समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है और राजनीतिक प्रक्रियाओं में जनता की कितनी भागीदारी होती है। इसके तहत यह समझने की कोशिश की जाती है कि विभिन्न कारक, जैसे कि जनमत, मीडिया, सामाजिक आंदोलन और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, नीति-निर्माण और राजनीतिक फैसलों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।

3. समकालीन दृष्टिकोण (Contemporary Perspective):

समकालीन राजनीतिक सिद्धांत 20वीं और 21वीं सदी की जटिल राजनीतिक समस्याओं, जैसे कि वैश्वीकरण, पर्यावरणीय राजनीति, पहचान की राजनीति, और न्याय के नए रूपों का अध्ययन करता है। यह दृष्टिकोण पारंपरिक और आधुनिक विचारों का मिश्रण होते हुए भी नए सामाजिक और राजनीतिक संदर्भों को शामिल करता है। समकालीन राजनीतिक सिद्धांत में राजनीति को केवल सरकारों तक सीमित न रखकर इसे समाज, अर्थव्यवस्था, और पर्यावरण के संदर्भ में भी देखा जाता है।

समालोचनात्मक सिद्धांत (Critical Theory):

इस सिद्धांत का उद्देश्य समाज में सत्ता संरचनाओं, सामाजिक असमानताओं और दमनकारी संस्थागत व्यवस्थाओं की आलोचना करना है। यह मार्क्सवाद, नारीवाद, उत्तर-औपनिवेशिकता, और पहचान राजनीति जैसी विचारधाराओं को शामिल करता है। इसके तहत यह अध्ययन किया जाता है कि किस प्रकार आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक शक्तियाँ समाज के कमजोर वर्गों के शोषण में सहायक होती हैं और किस प्रकार इन असमानताओं को कम किया जा सकता है। इस दृष्टिकोण में यह भी देखा जाता है कि किस तरह से पूँजीवाद, पितृसत्ता, और औपनिवेशिक मानसिकता राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित करती है। यह सिद्धांत समानता, सामाजिक न्याय, और भागीदारी पर आधारित एक अधिक समतामूलक समाज की ओर बढ़ने पर बल देता है।

वैश्वीकरण और बहुसांस्कृतिकता (Globalization and Multiculturalism):

इस दृष्टिकोण में राजनीति को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखा जाता है और विभिन्न संस्कृतियों के अंतःक्रिया का अध्ययन किया जाता है। वैश्वीकरण ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला है, जिससे पारंपरिक राजनीतिक संरचनाओं में बदलाव आया है। इसके परिणामस्वरूप, राष्ट्र-राज्यों की भूमिका बदल रही है और नई बहुपक्षीय संस्थाएँ, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, अधिक प्रभावशाली होती जा रही हैं। साथ ही, यह दृष्टिकोण इस बात पर भी ध्यान देता है कि विभिन्न संस्कृतियाँ, प्रवासी समुदाय और अंतरराष्ट्रीय संबंध किस प्रकार राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं। बहुसांस्कृतिकता के तहत यह अध्ययन किया जाता है कि किस प्रकार विविध सांस्कृतिक समूहों को राजनीतिक प्रक्रिया में सम्मिलित किया जा सकता है और उनके अधिकारों की रक्षा कैसे की जा सकती है।

पर्यावरणीय राजनीति (Environmental Politics):

यह दृष्टिकोण पर्यावरण से संबंधित नीतियों और राजनीतिक निर्णयों के प्रभावों का अध्ययन करता है। इसमें जलवायु परिवर्तन, संसाधनों का अति-उपयोग, पारिस्थितिक असंतुलन, और सतत विकास जैसे महत्वपूर्ण विषयों को शामिल किया जाता है। आधुनिक समय में पर्यावरणीय राजनीति एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गई है, क्योंकि औद्योगीकरण, प्रदूषण और जलवायु संकट ने वैश्विक स्तर पर राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित किया है। इस दृष्टिकोण के तहत यह देखा जाता है कि किस प्रकार पर्यावरणीय नीतियाँ बनाई जा रही हैं, किन तत्वों का इन नीतियों पर प्रभाव पड़ता है और किस तरह से पर्यावरण-संबंधी समस्याओं का समाधान खोजा जा सकता है। सतत विकास (Sustainable Development) का विचार भी इस सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण भाग है, जिसमें आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करने पर बल दिया जाता है।

संवादात्मक दृष्टिकोण (Deliberative Democracy):

यह दृष्टिकोण लोकतंत्र में नागरिकों की अधिकतम भागीदारी और संवाद को बढ़ावा देने पर बल देता है। इसके अनुसार, एक प्रभावी लोकतंत्र वही होता है, जिसमें निर्णय लेने की प्रक्रिया में नागरिकों की सक्रिय भागीदारी हो। यह विचार करता है कि जनता को नीतिगत चर्चाओं में शामिल किया जाना चाहिए, जिससे वे अपने विचार व्यक्त कर सकें और शासन प्रक्रिया में योगदान दे सकें। संवादात्मक लोकतंत्र का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि राजनीतिक फैसले केवल अभिजात वर्ग या नौकरशाही तक सीमित न रहकर आम जनता की राय और सहमति के आधार पर लिए जाएँ। इस दृष्टिकोण के तहत, नागरिकों के बीच चर्चा, बहस और तर्क-वितर्क को लोकतांत्रिक प्रणाली का एक अनिवार्य भाग माना जाता है, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया अधिक उत्तरदायी और समावेशी बन सके।

निष्कर्ष (Conclusion):

राजनीतिक सिद्धांत का विकास विभिन्न दृष्टिकोणों के माध्यम से हुआ है, जो समय के साथ राजनीति और समाज में आए परिवर्तनों को दर्शाता है। पारंपरिक दृष्टिकोण नैतिकता, आदर्शवाद और दार्शनिक चिंतन पर केंद्रित था, जिसमें न्याय, स्वतंत्रता और राज्य की संकल्पना जैसे मूल्यों को प्रमुखता दी गई। इसके विपरीत, आधुनिक दृष्टिकोण ने राजनीति को एक वैज्ञानिक अनुशासन के रूप में देखने का प्रयास किया, जिसमें तथ्यों, आँकड़ों और व्यवहारिक विश्लेषण को प्राथमिकता दी गई। इसने राजनीति को केवल आदर्शवादी मान्यताओं तक सीमित न रखकर, उसे एक व्यावहारिक और अनुभवजन्य अध्ययन के रूप में प्रस्तुत किया।

समकालीन दृष्टिकोण ने राजनीति के अध्ययन को और अधिक व्यापक बना दिया है, जिसमें वैश्वीकरण, बहुसांस्कृतिकता, पर्यावरणीय मुद्दे और पहचान राजनीति जैसी आधुनिक चुनौतियों को शामिल किया गया है। इसने पारंपरिक और आधुनिक विचारों का मिश्रण करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण को अपनाया है, जिससे राजनीति को केवल संस्थागत व्यवस्था तक सीमित न रखकर सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संदर्भों में भी समझने का प्रयास किया जाता है।

इन सभी दृष्टिकोणों का समेकित अध्ययन राजनीतिक सिद्धांत को एक व्यापक और समृद्ध आयाम प्रदान करता है। यह राजनीति के विकास, इसके प्रभावों और भविष्य की संभावनाओं को समझने में सहायक होता है। राजनीतिक सिद्धांत का अध्ययन केवल शासन प्रणालियों और सत्ता संरचनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज में व्याप्त मूल्यों, सामाजिक न्याय, और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की समझ को भी सुदृढ़ करता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि राजनीतिक सिद्धांत न केवल अतीत और वर्तमान की राजनीति को समझने का साधन है, बल्कि यह भविष्य की राजनीति को अधिक समतामूलक और न्यायसंगत बनाने में भी सहायक सिद्ध हो सकता है।

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