What is the role of the Election Commission as per the Indian Constitution? I भारतीय संविधान के अनुसार चुनाव आयोग की क्या भूमिका है?
प्रस्तावना (Introduction):
भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है, जिसे देश में चुनावों के सुचारू, निष्पक्ष और पारदर्शी संचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत स्थापित यह आयोग संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति चुनाव सहित विभिन्न स्तरों पर चुनाव प्रबंधन का कार्य करता है। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसमें चुनावी कानूनों को लागू करना, राजनीतिक दलों की निगरानी करना और आचार संहिता का पालन सुनिश्चित करना शामिल है। हालांकि, लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने में इसकी अहम भूमिका के बावजूद, भारतीय चुनाव प्रणाली कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। धनबल और बाहुबल का प्रभाव, राजनीति का अपराधीकरण, मतदाता प्रलोभन और चुनावी कदाचार जैसी समस्याएँ चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करती हैं। इसके अलावा, राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता की कमी, दलों के भीतर लोकतंत्र की आवश्यकता और डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से गलत सूचना के प्रसार जैसी समस्याएँ चुनावी प्रणाली को और जटिल बना रही हैं। इन चुनौतियों से निपटने और लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने के लिए निरंतर चुनावी सुधार आवश्यक हैं। इन सुधारों का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना, जवाबदेही सुनिश्चित करना और तकनीकी प्रगति को अपनाकर चुनाव प्रक्रिया को अधिक सशक्त और समावेशी बनाना होना चाहिए।
भारतीय निर्वाचन आयोग: संरचना और कार्य (Election Commission of India: Structure and Functions):
निर्वाचन आयोग की संरचना (Structure of the Election Commission):
भारतीय निर्वाचन आयोग (Election Commission of India – ECI) एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है, जो देश में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी है। इसकी संरचना बहु-स्तरीय है, जिसमें विभिन्न अधिकारी अलग-अलग भूमिकाएँ निभाते हैं। निर्वाचन आयोग न केवल संसदीय और विधानसभा चुनावों के आयोजन के लिए जिम्मेदार है, बल्कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों को भी संचालित करता है।
1. मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner – CEC):
मुख्य चुनाव आयुक्त आयोग का प्रमुख होता है और संपूर्ण चुनावी प्रक्रिया की निगरानी करता है। इसका चयन भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है और इसका कार्यकाल छह वर्षों या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) तक होता है। CEC की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह आयोग की नीतियों और निर्णयों को अंतिम रूप देने में प्रमुख भूमिका निभाता है। हालांकि, CEC को व्यक्तिगत रूप से सरकार द्वारा हटाया नहीं जा सकता, बल्कि इसे संसद द्वारा महाभियोग प्रक्रिया के माध्यम से हटाया जा सकता है, जिससे इसकी स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है।
2. चुनाव आयुक्त (Election Commissioners – ECs):
मुख्य चुनाव आयुक्त के अलावा, आयोग में दो अन्य चुनाव आयुक्त भी होते हैं, जो CEC की सहायता करते हैं। 1993 में निर्वाचन आयोग को बहु-सदस्यीय निकाय बना दिया गया था, जिसके बाद यह प्रणाली लागू हुई। ये तीनों सदस्य मिलकर निर्णय लेते हैं और किसी भी मतभेद की स्थिति में बहुमत के आधार पर निर्णय लिया जाता है। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति और कार्यकाल की शर्तें मुख्य चुनाव आयुक्त के समान होती हैं।
3. राज्य निर्वाचन आयोग (State Election Commissions – SECs):
राज्य निर्वाचन आयोग, राज्य स्तर पर स्थानीय निकायों के चुनावों का आयोजन करने के लिए उत्तरदायी होता है। यह पंचायतों, नगरपालिकाओं और अन्य स्थानीय निकायों के चुनाव करवाता है। राज्य निर्वाचन आयुक्त (State Election Commissioner) की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है, लेकिन उसकी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए, उसे राज्य सरकार के नियंत्रण से मुक्त रखा गया है।
भारतीय निर्वाचन आयोग के प्रमुख कार्य (Key Functions of the Election Commission of India):
1. चुनावों का संचालन और प्रबंधन (Conducting and Managing Elections):
भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) देश में निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव सुनिश्चित करने के लिए लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के चुनावों का आयोजन करता है। यह संपूर्ण चुनावी प्रक्रिया की विस्तृत योजना बनाता है, जिसमें विभिन्न चरणों जैसे चुनावी अधिसूचना जारी करना, उम्मीदवारों का नामांकन, उनकी पात्रता की जाँच, चुनाव प्रचार की निगरानी, मतदान केंद्रों की व्यवस्था, सुरक्षा प्रबंधन, मतदान प्रक्रिया, मतगणना, और परिणामों की घोषणा शामिल होती है। इसके अलावा, आयोग पुनर्निर्धारित या उपचुनाव की व्यवस्था भी करता है यदि किसी क्षेत्र में चुनावी प्रक्रिया बाधित होती है या किसी कारणवश आवश्यक होती है।
2. राजनीतिक दलों की मान्यता और निगरानी (Recognition and Monitoring of Political Parties):
निर्वाचन आयोग देश में कार्यरत राजनीतिक दलों को नियंत्रित करने और उनके कामकाज की निगरानी करने की जिम्मेदारी निभाता है। आयोग यह तय करता है कि किसी दल को राष्ट्रीय दल, राज्य स्तरीय दल, या एक सामान्य राजनीतिक दल के रूप में मान्यता दी जाए। इसके लिए दलों को कुछ आवश्यक शर्तों को पूरा करना होता है, जैसे निर्धारित प्रतिशत में वोट प्राप्त करना, एक निश्चित संख्या में सीटें जीतना, या लगातार चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करना। आयोग को यह अधिकार भी है कि यदि कोई राजनीतिक दल नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसकी मान्यता रद्द कर सकता है। इसके अलावा, ECI दलों को चुनावी चिह्न आवंटित करता है और उम्मीदवारों के लिए नियम निर्धारित करता है।
3. चुनाव आचार संहिता (Model Code of Conduct – MCC) लागू करना Implementation of the Model Code of Conduct (MCC):
चुनावों के दौरान निष्पक्षता बनाए रखने के लिए निर्वाचन आयोग चुनाव आचार संहिता (MCC) लागू करता है, जिसका पालन सभी राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और सरकार को करना अनिवार्य होता है। इस आचार संहिता के तहत, सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग पर रोक, जाति और धर्म के आधार पर प्रचार की मनाही, सरकारी परियोजनाओं की घोषणा पर प्रतिबंध, और चुनावी प्रचार के लिए सरकारी तंत्र के दुरुपयोग को नियंत्रित करने जैसे नियम लागू होते हैं। चुनाव आयोग MCC के उल्लंघन की शिकायतों की जाँच करता है और दोषी उम्मीदवारों या दलों के खिलाफ कार्रवाई करता है, जिससे चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी बने रहें।
4. मतदाता सूची का प्रबंधन और अद्यतन (Management and Updating of Voter Lists):
भारतीय निर्वाचन आयोग समय-समय पर मतदाता सूची (Electoral Roll) को अद्यतन करता है ताकि प्रत्येक योग्य नागरिक को मतदान का अधिकार मिल सके। इसके तहत नए मतदाताओं का नाम जोड़ा जाता है, मृत मतदाताओं के नाम हटाए जाते हैं, और यदि कोई मतदाता किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित हो गया हो, तो उसके नाम को स्थानांतरित किया जाता है। इसके अलावा, आयोग यह सुनिश्चित करता है कि फर्जी या दोहरे नामांकन को रोका जाए और प्रत्येक नागरिक को अपनी पहचान के अनुसार सही मतदाता पहचान पत्र प्रदान किया जाए।
5. चुनावी अनियमितताओं की रोकथाम (Prevention of Electoral Malpractices):
चुनावी धांधली और अनियमितताओं को रोकने के लिए ECI विशेष निगरानी रखता है। इसमें फर्जी मतदान, बूथ कैप्चरिंग, मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए धनबल और बाहुबल का प्रयोग, आचार संहिता का उल्लंघन, चुनाव प्रचार में अवैध साधनों का उपयोग, और मतदाता सूची में गड़बड़ी जैसी समस्याओं को नियंत्रित किया जाता है। आयोग इन गतिविधियों को रोकने के लिए फ्लाइंग स्क्वॉड (Flying Squads), स्टैटिक सर्विलांस टीमें, और डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम का उपयोग करता है, जिससे पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया सुनिश्चित की जा सके।
6. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और VVPAT का उपयोग (Use of Electronic Voting Machines (EVMs) and VVPAT):
निर्वाचन आयोग ने पारदर्शिता बढ़ाने और मतदान प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) को लागू किया है। साथ ही, वोटर वेरीफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) को भी जोड़ा गया है, जिससे मतदाता अपने द्वारा डाले गए वोट की पुष्टि कर सकता है। यह प्रणाली चुनावी प्रक्रिया को अधिक विश्वसनीय और पारदर्शी बनाती है। आयोग यह भी सुनिश्चित करता है कि EVM और VVPAT की सुरक्षा बनी रहे और चुनावों में इनका दुरुपयोग न हो।
7. चुनाव खर्च की निगरानी (Monitoring of Election Expenditure):
चुनावों में अनावश्यक खर्च और धनबल के दुरुपयोग को रोकने के लिए निर्वाचन आयोग उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के चुनावी खर्च पर निगरानी रखता है। प्रत्येक उम्मीदवार को अपने चुनावी खर्च का विस्तृत विवरण आयोग को सौंपना होता है, और यदि कोई उम्मीदवार निर्धारित सीमा से अधिक खर्च करता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। चुनाव आयोग चुनावी वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड्स और ऑनलाइन चंदे के नियमों को भी नियंत्रित करता है।
8. मतदाता जागरूकता अभियान (Voter Awareness Campaigns):
निर्वाचन आयोग यह सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न जागरूकता अभियान चलाता है कि अधिक से अधिक नागरिक अपने मताधिकार का प्रयोग करें। "स्वीप" (Systematic Voters' Education and Electoral Participation) कार्यक्रम के तहत नागरिकों को मतदान प्रक्रिया, उनके अधिकारों और मतदाता पंजीकरण के बारे में शिक्षित किया जाता है। आयोग विशेष रूप से युवाओं, महिलाओं, और शहरी क्षेत्रों में कम मतदान दर वाले क्षेत्रों में मतदाता भागीदारी बढ़ाने के लिए पहल करता है।
9. चुनावी सुधारों की सिफारिश करना (Recommendations for Electoral Reforms):
भारतीय निर्वाचन आयोग समय-समय पर सरकार को चुनावी सुधारों के लिए सिफारिशें भेजता है ताकि लोकतंत्र को और अधिक मजबूत किया जा सके। इसमें राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाना, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों पर प्रतिबंध लगाना, "एक राष्ट्र, एक चुनाव" (One Nation, One Election) लागू करना, और ऑनलाइन मतदान प्रणाली को विकसित करना जैसी सिफारिशें शामिल हैं। आयोग का मानना है कि यदि इन सुधारों को प्रभावी रूप से लागू किया जाए, तो भारत में चुनावी प्रक्रिया अधिक निष्पक्ष, पारदर्शी और उत्तरदायी बन सकती है।
भारतीय निर्वाचन आयोग लोकतंत्र की रक्षा करने और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य करता है। हालांकि, चुनावी प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी, समावेशी और प्रभावी बनाने के लिए निरंतर सुधारों की आवश्यकता बनी हुई है। यदि आयोग को और अधिक स्वतंत्रता और संसाधन प्रदान किए जाएँ, तो यह भारतीय लोकतंत्र को और अधिक मजबूत और जवाबदेह बना सकता है।
भारतीय निर्वाचन प्रणाली की प्रमुख समस्याएं (Major Issues in the Indian Electoral System):
भारत की निर्वाचन प्रणाली, जो विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में से एक है, कई चुनौतियों का सामना कर रही है। ये चुनौतियाँ इसकी दक्षता, पारदर्शिता और निष्पक्षता को प्रभावित करती हैं। इनमें राजनीति का अपराधीकरण, धन और बाहुबल का प्रभाव, राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र की कमी, मीडिया का दुरुपयोग, और प्रथम-पहले-क्रमागत (FPTP) प्रणाली की खामियाँ प्रमुख हैं। इन समस्याओं का समाधान लोकतंत्र को मज़बूत बनाने और चुनावों को वास्तविक जनादेश का प्रतिबिंब बनाने के लिए आवश्यक है।
1. राजनीति का अपराधीकरण (Criminalization of Politics):
भारतीय राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों की बढ़ती उपस्थिति लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है। कई निर्वाचित प्रतिनिधियों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज होते हैं, जिनमें भ्रष्टाचार, हिंसा और अन्य अपराध शामिल हैं। कड़े कानूनी प्रावधानों के बावजूद, राजनीतिक दल चुनाव जीतने की संभावना को प्राथमिकता देते हुए ऐसे उम्मीदवारों को टिकट देते हैं। इस समस्या को और बढ़ावा इस तथ्य से मिलता है कि सख्त अयोग्यता कानूनों की अनुपस्थिति के कारण ऐसे व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोका नहीं जाता। परिणामस्वरूप, मतदाताओं के पास सीमित विकल्प होते हैं और वे अक्सर संदिग्ध नैतिकता वाले प्रतिनिधियों को चुनने के लिए मजबूर होते हैं, जिससे लोकतांत्रिक संस्थानों में जनता का विश्वास कम होता है। इस समस्या से निपटने के लिए त्वरित न्यायिक कार्यवाही, कठोर चुनावी कानून, और मजबूत निगरानी तंत्र आवश्यक हैं।
2. धन और बाहुबल का प्रभाव (Influence of Money and Muscle Power):
चुनावों में धन और बाहुबल की भूमिका खतरनाक स्तर तक बढ़ चुकी है, जिससे ईमानदार और योग्य उम्मीदवारों के लिए चुनाव लड़ना मुश्किल हो गया है। चुनावी अभियान के लिए भारी वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है, और कई उम्मीदवार चुनावी खर्च को पूरा करने के लिए धनी दानदाताओं, कॉर्पोरेट घरानों या अवैध वित्तीय स्रोतों पर निर्भर रहते हैं। इससे चुनावी प्रतिस्पर्धा में असमानता बढ़ती है, जहाँ अमीर उम्मीदवारों को स्पष्ट लाभ मिलता है। इसके अलावा, नकद वितरण, उपहार और अन्य प्रलोभनों के माध्यम से मतदाताओं को लुभाना एक सामान्य प्रथा बन गई है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करती है। चुनावी वित्त पोषण पर सख्त नियम, राजनीतिक चंदों में अधिक पारदर्शिता, और प्रभावी निगरानी तंत्र की स्थापना से इस समस्या को कम किया जा सकता है।
3. चुनावों में काले धन का प्रयोग (Use of Black Money in Elections):
चुनावों में बेहिसाब और अज्ञात स्रोतों से मिलने वाले धन का व्यापक उपयोग एक गंभीर चुनौती है। राजनीतिक दल और उम्मीदवार गुप्त रूप से भारी मात्रा में धन प्राप्त करते हैं, जिससे भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताएँ बढ़ती हैं। पारदर्शिता बढ़ाने के लिए चुनावी बांड (Electoral Bonds) की शुरुआत की गई थी, लेकिन उनकी गोपनीयता और संभावित दुरुपयोग को लेकर कई चिंताएँ उठी हैं। आलोचकों का कहना है कि चुनावी बांड अनाम दानदाताओं को राजनीति को प्रभावित करने का अवसर देते हैं, जिससे जवाबदेही कमजोर होती है। चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाने के लिए राजनीतिक वित्त पोषण प्रणाली में अधिक पारदर्शिता, सख्त प्रकटीकरण मानदंड, और चंदों पर सार्वजनिक निगरानी आवश्यक है।
4. राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र की कमी (Lack of Internal Democracy in Political Parties):
भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव एक गंभीर समस्या है। नेतृत्व आमतौर पर कुछ चुनिंदा व्यक्तियों या एक ही परिवार के सदस्यों के हाथों में केंद्रित रहता है। इससे भाई-भतीजावाद और पक्षपात को बढ़ावा मिलता है, जबकि जमीनी स्तर के योग्य नेताओं को उचित अवसर नहीं मिल पाता। कई दलों में आंतरिक चुनाव नहीं होते, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया कुछ लोगों तक सीमित रह जाती है। इस समस्या से निपटने के लिए दलों में नियमित आंतरिक चुनावों को अनिवार्य बनाना, उम्मीदवार चयन में पारदर्शिता लाना, और योग्यता आधारित नेतृत्व को बढ़ावा देना आवश्यक है।
5. पेड न्यूज़ और मीडिया का दुरुपयोग (Paid News and Media Manipulation):
चुनावों के दौरान मीडिया कवरेज में धन के प्रभाव के कारण 'पेड न्यूज़' की समस्या उत्पन्न होती है, जहाँ उम्मीदवार या राजनीतिक दल मीडिया संगठनों को भुगतान करके अपनी छवि को सकारात्मक रूप से प्रस्तुत कराते हैं और नकारात्मक समाचारों को दबाते हैं। यह अनुचित प्रथा मतदाताओं को गुमराह करती है और उन्हें सही जानकारी से वंचित करती है। इसके अलावा, सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण गलत सूचना और फर्जी खबरों की घटनाएँ बढ़ गई हैं, जिससे मतदाताओं की राय को प्रभावित किया जाता है। चुनावी प्रचार में डिजिटल रणनीतियों, बॉट्स, डीपफेक तकनीक और लक्षित विज्ञापनों का दुरुपयोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा सकता है। मीडिया नैतिकता को सख्ती से लागू करना, पेड न्यूज़ पर कड़े प्रतिबंध लगाना, और तथ्य-जांच तंत्र को मजबूत करना आवश्यक है।
6. प्रथम-पहले-क्रमागत (FPTP) प्रणाली की खामियाँ (Issues with the First-Past-the-Post (FPTP) System):
भारत में अपनाई गई FPTP प्रणाली के तहत, जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, वह विजेता घोषित होता है, भले ही उसे कुल मतों का बहुमत न मिला हो। इससे प्रतिनिधित्व की असमानता उत्पन्न होती है, क्योंकि बहुदलीय चुनावों में कई बार 50% से कम वोट प्राप्त करने वाला उम्मीदवार भी जीत सकता है। इससे बड़ी संख्या में मतदाता बिना प्रतिनिधित्व के रह जाते हैं, जिससे जनादेश की वैधता पर सवाल उठते हैं। कुछ विशेषज्ञ आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation) को अपनाने की वकालत करते हैं, जिससे सीटों का वितरण वोट शेयर के अनुसार अधिक न्यायसंगत हो सके। हालांकि, इस प्रणाली को लागू करने से पहले इसकी व्यवहारिकता और संभावित प्रभावों पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।
7. चुनावी अनियमितताएँ और बूथ कैप्चरिंग (Electoral Malpractices and Booth Capturing):
तकनीकी प्रगति के बावजूद, चुनावी अनियमितताओं की समस्या बनी हुई है। फर्जी मतदान, पहचान की चोरी, और बूथ कैप्चरिंग की घटनाएँ कुछ क्षेत्रों में अब भी देखी जाती हैं। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की कथित गड़बड़ियों को लेकर संदेह व्यक्त किया जाता है, हालांकि इन दावों के कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं। इसके अलावा, सत्ताधारी दलों द्वारा सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग की घटनाएँ भी चिंता का विषय हैं। निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए सख्त निगरानी, संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की तैनाती और मतदाताओं के बीच जागरूकता अभियान आवश्यक हैं।
8. बार-बार होने वाले चुनाव और शासन पर उनका प्रभाव (Frequent Elections and Their Impact on Governance):
भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे बार-बार चुनाव आयोजित करने की आवश्यकता होती है। इससे प्रशासन और वित्त पर भारी बोझ पड़ता है। लगातार चुनावी गतिविधियाँ शासन में रुकावट डालती हैं, क्योंकि नीति-निर्माता और राजनेता लंबे समय तक चुनावी अभियानों में व्यस्त रहते हैं। 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' (One Nation, One Election) का विचार बार-बार चुनावों की समस्या को हल करने के लिए प्रस्तावित किया गया है, लेकिन इसे लागू करने के लिए संवैधानिक संशोधन और व्यापक राजनीतिक सहमति की आवश्यकता होगी।
भारतीय निर्वाचन प्रणाली को पारदर्शी, निष्पक्ष और प्रभावी बनाने के लिए व्यापक सुधारों की आवश्यकता है। राजनीति के अपराधीकरण, धनबल और बाहुबल के प्रभाव, आंतरिक लोकतंत्र की कमी, और मीडिया के दुरुपयोग जैसी समस्याओं को हल करना अत्यंत आवश्यक है। चुनावी सुधारों का उद्देश्य मतदाताओं को सशक्त बनाना, प्रतियोगिता को निष्पक्ष बनाना, और लोकतांत्रिक संस्थानों में जनता का विश्वास बढ़ाना होना चाहिए।
भारत में चुनावी सुधार (Electoral Reforms in India):
भारत ने लोकतंत्र को मजबूत करने, पारदर्शिता बढ़ाने और चुनावी प्रक्रिया में कदाचार को रोकने के लिए कई चुनावी सुधार लागू किए हैं। हालांकि, कानूनी खामियों और राजनीतिक दलों के विरोध के कारण कई चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं। निम्नलिखित कुछ प्रमुख चुनावी सुधार हैं जो समय-समय पर लागू किए गए हैं:
1. दल-बदल विरोधी कानून (1985) Anti-Defection Law (1985):
दल-बदल विरोधी कानून को संविधान के 52वें संशोधन के तहत लागू किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप दसवीं अनुसूची जोड़ी गई। इस कानून का उद्देश्य निर्वाचित प्रतिनिधियों को व्यक्तिगत लाभ या राजनीतिक स्वार्थ के लिए दल बदलने से रोकना था। यह कानून संसद और राज्य विधानसभाओं दोनों पर लागू होता है और पार्टी छोड़ने वाले सदस्यों को अयोग्य घोषित करने का प्रावधान करता है। हालांकि, यदि किसी राजनीतिक दल का कम से कम दो-तिहाई हिस्सा किसी अन्य दल में विलय के पक्ष में होता है, तो इसे दल-बदल नहीं माना जाता। इस प्रावधान का कई बार दुरुपयोग किया जाता है, जिससे सरकारों को अस्थिर करने और राजनीतिक लाभ लेने की घटनाएँ बढ़ी हैं। इस कानून की आलोचना इस आधार पर भी की जाती है कि यह विधायकों की स्वतंत्र सोच पर अंकुश लगाता है और उन्हें जनता की बजाय पार्टी नेतृत्व के प्रति जवाबदेह बनाता है।
2. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का परिचय (1998) Introduction of Electronic Voting Machines (EVMs) (1998):
चुनावी धांधली, बूथ कैप्चरिंग और मतपत्रों की हेराफेरी को रोकने के लिए भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) को चरणबद्ध तरीके से लागू किया, जिससे पारंपरिक मतपत्र प्रणाली समाप्त हो गई। 1982 में पहली बार प्रयोग के तौर पर EVM का उपयोग किया गया और 1998 तक इसे पूरे देश में लागू कर दिया गया। इससे मतदान प्रक्रिया सुगम हुई, त्रुटियाँ कम हुईं और मतगणना में तेजी आई। हालांकि, EVM की सुरक्षा को लेकर उठते सवालों के कारण 2013 में Voter Verified Paper Audit Trail (VVPAT) को जोड़ा गया। VVPAT से प्रत्येक मतदाता को यह सत्यापित करने की सुविधा मिलती है कि उसका वोट सही उम्मीदवार को गया है। बावजूद इसके, कुछ राजनीतिक दल समय-समय पर EVM की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं और पारंपरिक मतपत्र प्रणाली की मांग करते हैं।
3. सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम (2005) Right to Information (RTI) Act (2005):
सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 ने नागरिकों को सार्वजनिक संस्थानों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार दिया, जिसमें चुनावी और राजनीतिक प्रक्रियाओं से जुड़ी जानकारी भी शामिल है। इस कानून के तहत मतदाताओं को राजनीतिक दलों के वित्तीय रिकॉर्ड और प्रत्याशियों के आपराधिक इतिहास की जानकारी प्राप्त करने में मदद मिली है। RTI के माध्यम से कई संगठनों और मीडिया संस्थानों ने चुनावी पारदर्शिता को बढ़ावा दिया है। हालांकि, राजनीतिक दल इस कानून के तहत पूरी जानकारी देने से बचते रहे हैं। 2013 में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) ने निर्णय दिया कि राजनीतिक दलों को भी RTI के तहत लाना चाहिए, लेकिन इस फैसले का राजनीतिक दलों ने विरोध किया और इसे कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इसलिए, RTI कानून के बावजूद चुनावी पारदर्शिता अभी भी सीमित बनी हुई है।
4. नोटा का परिचय (2013) NOTA (None of the Above) (2013):
2013 में सुप्रीम कोर्ट ने भारत निर्वाचन आयोग को मतदान मशीनों में "नोटा" (None of the Above) का विकल्प जोड़ने का निर्देश दिया। इस सुधार का उद्देश्य मतदाताओं को यह अधिकार देना था कि यदि वे किसी भी उम्मीदवार से संतुष्ट नहीं हैं तो वे सभी को अस्वीकार कर सकते हैं। इसे मतदाताओं के सशक्तिकरण और राजनीतिक जवाबदेही बढ़ाने की दिशा में एक कदम माना गया। हालांकि, नोटा का कोई कानूनी प्रभाव नहीं है। यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में नोटा को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, तब भी दूसरा सबसे अधिक मत पाने वाला उम्मीदवार विजेता घोषित किया जाता है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक नोटा को प्रभावी बनाने के लिए दोबारा चुनाव या अयोग्यता जैसी कानूनी व्यवस्था नहीं होती, तब तक इसका वास्तविक असर सीमित ही रहेगा।
5. चुनावी खर्च पर सीमा (Ceiling on Election Expenditure):
चुनावी खर्च को सीमित करने और सभी उम्मीदवारों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग ने उम्मीदवारों के लिए खर्च की अधिकतम सीमा निर्धारित की है। वर्तमान में, लोकसभा चुनाव में बड़े राज्यों में प्रति उम्मीदवार ₹95 लाख और छोटे राज्यों में ₹75 लाख की सीमा तय की गई है, जबकि विधानसभा चुनावों में यह सीमा बड़े राज्यों में ₹40 लाख और छोटे राज्यों में ₹28 लाख है। हालांकि, यह सीमा केवल व्यक्तिगत उम्मीदवारों पर लागू होती है, राजनीतिक दलों पर नहीं। राजनीतिक दलों के खर्च पर कोई सीमा न होने के कारण उम्मीदवार अप्रत्यक्ष रूप से अपनी पार्टियों, कॉरपोरेट दानदाताओं और अन्य स्रोतों से वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकते हैं। इस वजह से चुनावों में धनबल का प्रभाव बना रहता है और असमानता बढ़ती है।
6. चुनावी बॉन्ड (2018) Electoral Bonds (2018):
राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए 2018 में सरकार ने चुनावी बॉन्ड योजना शुरू की। इस प्रणाली के तहत व्यक्ति और कंपनियाँ अधिकृत बैंकों से चुनावी बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को दान कर सकते हैं। इन बॉन्ड्स के माध्यम से किए गए दान की जानकारी आम जनता को नहीं होती, लेकिन राजनीतिक दल इन्हें एक निश्चित समय के भीतर भुना सकते हैं। इस योजना के समर्थकों का कहना है कि यह नगद दान की व्यवस्था को समाप्त कर पारदर्शिता बढ़ाती है। हालांकि, इसके आलोचकों का मानना है कि दानकर्ताओं की पहचान गुप्त रखे जाने से कॉरपोरेट और विदेशी प्रभाव बढ़ सकता है। चुनावी वित्त पोषण की इस प्रणाली को लेकर सुप्रीम कोर्ट और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अधिक सख्त नियमों की मांग की है।
प्रस्तावित चुनावी सुधार (Proposed Electoral Reforms):
भारत में लोकतंत्र को अधिक सशक्त और पारदर्शी बनाने के लिए कई चुनावी सुधारों की आवश्यकता महसूस की जा रही है। वर्तमान चुनावी प्रणाली में धनबल, बाहुबल, और राजनीतिक अनियमितताओं का प्रभाव बढ़ रहा है, जिससे निष्पक्ष चुनावों की अवधारणा प्रभावित होती है। इस संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण सुधार प्रस्तावित किए गए हैं, जिनका उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष, पारदर्शी और जवाबदेह बनाना है।
1. चुनावों के लिए राज्य द्वारा वित्त पोषण (State Funding of Elections):
चुनावों में कॉरपोरेट और व्यक्तिगत दान का अत्यधिक प्रभाव देखा जाता है, जिससे न केवल बड़े दानदाताओं को राजनीतिक लाभ मिलता है, बल्कि भ्रष्टाचार और नीतिगत पक्षपात की संभावना भी बढ़ जाती है। यदि चुनावों का वित्त पोषण सरकार द्वारा किया जाए, तो राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट फंडिंग पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा, जिससे चुनावी प्रक्रिया अधिक निष्पक्ष और पारदर्शी हो सकेगी। हालांकि, यह सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती होगी कि इस वित्त पोषण का न्यायसंगत वितरण कैसे किया जाए, ताकि सभी दलों को समान अवसर मिले और सत्ता में मौजूद पार्टियाँ इसका दुरुपयोग न कर सकें। इसके लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष निकाय का गठन किया जाना चाहिए, जो सार्वजनिक निधि के वितरण और उसके उपयोग की निगरानी करे।
2. राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ कड़े कानून (Stricter Laws Against Criminalization of Politics):
भारत की चुनावी प्रणाली में अपराधीकरण एक गंभीर समस्या बन चुका है, जहाँ अनेक आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार चुनाव जीतकर सत्ता में पहुँच जाते हैं। वर्तमान में, गंभीर आपराधिक मामलों में आरोपी व्यक्ति को अदालत द्वारा दोषी साबित किए जाने तक चुनाव लड़ने से रोका नहीं जाता, जिसका लाभ कई अपराधी उठाते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए एक स्वचालित अयोग्यता प्रणाली (Automatic Disqualification) लागू की जानी चाहिए, जिसके तहत हत्या, बलात्कार, भ्रष्टाचार और अन्य गंभीर अपराधों में चार्जशीटेड उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए। इसके साथ ही, राजनीतिक दलों को भी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए और यदि वे जानबूझकर अपराधियों को टिकट देते हैं, तो उनके खिलाफ भी सख्त दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।
3. आदर्श आचार संहिता को और अधिक प्रभावी बनाना (Strengthening the Model Code of Conduct):
चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) लागू की जाती है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता को लेकर कई बार सवाल उठते हैं। चुनावी सभाओं में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, फर्जी वादे, और अभद्र भाषा का उपयोग लगातार बढ़ रहा है, जिससे चुनावी प्रक्रिया प्रभावित होती है। इसे रोकने के लिए आचार संहिता के उल्लंघन को कानूनी दंड के दायरे में लाना आवश्यक है। इसके तहत राजनीतिक दलों और नेताओं पर जुर्माना, चुनाव लड़ने पर रोक, या अन्य कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। इसके अलावा, चुनाव आयोग को स्वतंत्र और मजबूत अधिकार दिए जाने चाहिए ताकि वह बिना किसी दबाव के आचार संहिता का पालन सुनिश्चित कर सके।
4. राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा (Inner-Party Democracy Reforms):
भारतीय राजनीति में वंशवाद और गुटबाजी की समस्या बढ़ती जा रही है, जहाँ उम्मीदवारों का चयन योग्यता के बजाय पारिवारिक और राजनीतिक संबंधों के आधार पर किया जाता है। यह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है और योग्य उम्मीदवारों के लिए चुनाव लड़ना मुश्किल बना देता है। इसे रोकने के लिए सभी राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए, जिसमें पार्टी के सभी प्रमुख पदों के लिए नियमित अंतराल पर आंतरिक चुनाव कराए जाएँ। इसके अलावा, उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और लोकतांत्रिक बनाने के लिए एक स्वतंत्र निकाय की निगरानी आवश्यक है। इससे वंशवाद और भाई-भतीजावाद को नियंत्रित किया जा सकेगा और योग्य व कर्मठ उम्मीदवारों को अवसर मिलेगा।
5. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की ओर बदलाव (Shift to Proportional Representation System):
भारत में वर्तमान चुनाव प्रणाली "फर्स्ट पास्ट द पोस्ट" (FPTP) प्रणाली पर आधारित है, जहाँ जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है, भले ही उसे कुल मतदान का 50% से कम मत मिले हों। इस प्रणाली में अक्सर ऐसा होता है कि एक ही पार्टी कम मत प्रतिशत पाने के बावजूद सत्ता में आ जाती है, जबकि अन्य पार्टियाँ उचित प्रतिनिधित्व नहीं प्राप्त कर पातीं। इसे संतुलित करने के लिए "अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली" (Proportional Representation System) या एक मिश्रित प्रणाली (Hybrid System) अपनाई जानी चाहिए, जिसमें विभिन्न समुदायों, छोटे दलों, और स्वतंत्र उम्मीदवारों को उचित प्रतिनिधित्व मिले। इससे लोकतंत्र अधिक समावेशी और प्रतिनिधित्वपूर्ण हो सकेगा।
6. सोशल मीडिया और पेड न्यूज़ को नियंत्रित करना (Regulating Social Media and Paid News):
आज के डिजिटल युग में चुनावी प्रचार का एक बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर केंद्रित हो गया है। हालाँकि, इसने गलत सूचना (Fake News), डिजिटल प्रोपेगेंडा, और पेड न्यूज़ जैसी समस्याओं को भी जन्म दिया है, जिससे मतदाता प्रभावित होते हैं। चुनाव आयोग को सोशल मीडिया निगरानी तंत्र को मजबूत करना चाहिए और चुनावों के दौरान भ्रामक खबरों, नफरत फैलाने वाले पोस्ट्स, और छेड़छाड़ किए गए वीडियो पर तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। इसके अलावा, सोशल मीडिया कंपनियों को चुनावी जानकारी की प्रमाणिकता सुनिश्चित करने और गलत सूचनाओं को फैलने से रोकने के लिए अधिक जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
7. 'वन नेशन, वन इलेक्शन' को लागू करना (Implementing 'One Nation, One Election'):
बार-बार होने वाले चुनावों के कारण न केवल सरकारी संसाधनों का अधिक व्यय होता है, बल्कि शासन और विकास कार्य भी प्रभावित होते हैं। इस समस्या को हल करने के लिए "एक देश, एक चुनाव" (One Nation, One Election) की अवधारणा प्रस्तावित की गई है, जिसके तहत लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएँ। इससे चुनावी खर्च में कमी आएगी, प्रशासनिक कार्यों में स्थिरता बनी रहेगी, और बार-बार आचार संहिता लागू होने से होने वाले व्यवधान कम होंगे। हालाँकि, इसे लागू करने के लिए संविधान में बड़े संशोधन करने होंगे और इसे सुचारू रूप से क्रियान्वित करने के लिए लॉजिस्टिक चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक होगा।
निष्कर्ष (Conclusion):
चुनावी सुधार भारत में लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने और चुनावी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी व निष्पक्ष बनाने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने समय-समय पर विभिन्न सुधार लागू किए हैं, जैसे ईवीएम और वीवीपैट का उपयोग, चुनावी खर्च पर सीमा, और आदर्श आचार संहिता को लागू करना। हालांकि, इसके बावजूद चुनावों में धनबल और बाहुबल का प्रभाव, राजनीति का अपराधीकरण, और पारदर्शिता की कमी जैसी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। कई बार राजनीतिक दल चुनावी सुधारों का विरोध करते हैं या उनके प्रभाव को सीमित करने के प्रयास करते हैं, जिससे सुधारों का वास्तविक प्रभाव कम हो जाता है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। सबसे पहले, राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए कड़े कानून बनाए जाने चाहिए, जिससे गंभीर आपराधिक मामलों में आरोपित उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोका जा सके। इसके अलावा, चुनावी वित्त पोषण को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग पर सख्त नियम लागू किए जाने चाहिए, जिससे अनियमितताओं और कॉरपोरेट लॉबिंग को रोका जा सके। तकनीकी नवाचार भी चुनावी सुधारों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ईवीएम और वीवीपैट जैसी तकनीकों को और अधिक सुरक्षित बनाया जाना चाहिए, ताकि चुनावों की विश्वसनीयता बनी रहे। साथ ही, डिजिटल माध्यमों से फैलने वाली गलत सूचनाओं और पेड न्यूज पर सख्त निगरानी रखी जानी चाहिए, ताकि मतदाताओं को सही जानकारी प्राप्त हो। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चुनावी सुधारों को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। जब तक राजनीतिक दल और सरकारें इन सुधारों को ईमानदारी से लागू करने के लिए प्रतिबद्ध नहीं होंगी, तब तक लोकतांत्रिक प्रक्रिया में वास्तविक बदलाव नहीं आ सकेगा। इसलिए, नागरिक समाज, मीडिया, और स्वतंत्र संस्थानों को मिलकर चुनावी सुधारों की दिशा में दबाव बनाना होगा, ताकि भारत में चुनावी प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी, और सशक्त हो सके। केवल तब ही लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों की रक्षा की जा सकेगी और भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकेगा।
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