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Meaning & Concept of Assessment, Measurement & Evaluation and their Interrelationship मूल्यांकन, मापन और मूल्यनिर्धारण का अर्थ एवं अवधारणा तथा इनकी पारस्परिक सम्बद्धता


1. प्रस्तावना (Introduction):

शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यांकन (Assessment), मापन (Measurement) और मूल्यनिर्धारण (Evaluation) ऐसे महत्वपूर्ण उपकरण हैं जो किसी भी शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया की दिशा, गुणवत्ता और प्रभावशीलता को जानने में सहायक होते हैं। इन तीनों शब्दों का प्रयोग अकसर एक-दूसरे के स्थान पर कर दिया जाता है, परंतु इनमें मौलिक अंतर होता है जिसे समझना आवश्यक है। मापन मुख्यतः मात्रात्मक जानकारी प्रदान करता है, जैसे अंक या स्कोर, जबकि मूल्यांकन उस जानकारी की व्याख्या कर यह बताता है कि छात्र ने क्या सीखा और वह ज्ञान कितना उपयोगी है। मूल्यनिर्धारण एक व्यापक प्रक्रिया है जो न केवल छात्र के प्रदर्शन को मापता और मूल्यांकन करता है, बल्कि शिक्षा की पूरी प्रक्रिया, शिक्षण पद्धतियों और पाठ्यक्रम की प्रभावशीलता का भी विश्लेषण करता है।

इन सभी अवधारणाओं की स्पष्ट समझ शिक्षकों, शैक्षिक योजनाकारों और नीति निर्माताओं के लिए अत्यंत आवश्यक है, ताकि वे छात्रों की संपूर्ण प्रगति का सम्यक् रूप से आकलन कर सकें। यह समझ न केवल छात्रों की कमजोरियों और क्षमताओं को पहचानने में सहायता करती है, बल्कि शिक्षण की गुणवत्ता को सुधारने और शिक्षा प्रणाली को अधिक सशक्त और परिणामदायी बनाने में भी योगदान देती है। इस प्रकार, मूल्यांकन, मापन और मूल्यनिर्धारण न केवल शैक्षिक प्रगति के सूचक हैं, बल्कि ये शिक्षा को अधिक प्रभावशाली, उद्देश्यपूर्ण और समावेशी बनाने के सशक्त साधन भी हैं।

2. अर्थ एवं अवधारणा (Meaning and Concept):

A. मूल्यांकन (Assessment):

मूल्यांकन एक व्यापक और समग्र प्रक्रिया है, जो विद्यार्थियों के अधिगम, व्यवहार, कौशल या प्रदर्शन से संबंधित आंकड़ों और साक्ष्यों को एकत्रित करने पर केंद्रित होती है। यह प्रक्रिया शिक्षण-अधिगम प्रणाली के हर स्तर पर लागू होती है और इसके माध्यम से यह समझने का प्रयास किया जाता है कि छात्र किस हद तक सीख रहे हैं, उनकी प्रगति किस दिशा में है, और उन्हें किस प्रकार की शैक्षणिक सहायता की आवश्यकता है। मूल्यांकन केवल परीक्षा लेने तक सीमित नहीं होता, बल्कि इसमें कई विविध और लचीली विधियाँ शामिल होती हैं—जैसे मौखिक प्रश्नोत्तरी, प्रोजेक्ट वर्क, गतिविधि आधारित मूल्यांकन, शिक्षक का अवलोकन, और सहकर्मी मूल्यांकन आदि। यह प्रक्रिया न केवल विद्यार्थियों के प्रदर्शन को रिकॉर्ड करने में सहायक होती है, बल्कि शिक्षण पद्धतियों की गुणवत्ता को सुधारने और पाठ्यक्रम की उपयुक्तता को जांचने का भी अवसर प्रदान करती है।

परिभाषा (Definition):

मूल्यांकन एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत अनुभवजन्य आंकड़ों का संग्रहण और दस्तावेजीकरण किया जाता है ताकि विद्यार्थियों के ज्ञान, कौशल, दृष्टिकोण और विश्वासों को मापा जा सके। यह एक सतत प्रक्रिया है, जो शिक्षण के दौरान निरंतर चलती रहती है और जिसका उद्देश्य केवल परीक्षा परिणाम तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह विद्यार्थी के सम्पूर्ण शैक्षिक और व्यवहारिक विकास को आंकने का प्रयास करती है।

उद्देश्य (Purpose):

मूल्यांकन का प्रमुख उद्देश्य छात्र के सीखने को बेहतर बनाना है। इसके द्वारा शिक्षकों को यह जानकारी मिलती है कि छात्र किस स्तर पर है, उसने क्या सीखा है और किन क्षेत्रों में उसे सहायता की आवश्यकता है। यह फीडबैक प्रदान करने का एक सशक्त माध्यम है, जिससे छात्र अपनी गलतियों को पहचानकर सुधार कर सकते हैं। साथ ही, मूल्यांकन शिक्षक को भी यह समझने में सहायता करता है कि उनकी शिक्षण विधियाँ कितनी प्रभावी हैं और उन्हें किन पहलुओं में बदलाव करने की आवश्यकता है। इसके माध्यम से छात्रों की क्षमताओं और कमजोरियों की पहचान कर उनके लिए उपयुक्त शैक्षिक रणनीतियाँ विकसित की जा सकती हैं। इस प्रकार, मूल्यांकन शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने, व्यक्तिगत मार्गदर्शन देने और शैक्षणिक निर्णयों को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

मूल्यांकन के प्रकार (Types of Assessment):

शिक्षा प्रणाली में मूल्यांकन के विभिन्न प्रकार होते हैं, जिनका उद्देश्य विद्यार्थियों के अधिगम को विभिन्न चरणों में समझना और विश्लेषित करना होता है। इनमें प्रमुख रूप से दो प्रकार के मूल्यांकन शामिल हैं – संचयनात्मक मूल्यांकन (Formative Assessment) और सारात्मक मूल्यांकन (Summative Assessment)। दोनों का उद्देश्य अलग-अलग होता है और इनका प्रयोग भिन्न-भिन्न शैक्षणिक संदर्भों में किया जाता है।

1. संचयनात्मक मूल्यांकन (Formative Assessment):

संचयनात्मक मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य छात्रों के सीखने की प्रगति की नियमित रूप से निगरानी करना होता है। यह शिक्षण के दौरान निरंतर किया जाता है और इसमें विविध तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जैसे — लघु प्रश्नोत्तरी, कक्षा चर्चाएँ, अभ्यास कार्य, परियोजनाएं, समूह गतिविधियाँ, और छात्रों की प्रतिक्रियाएँ। इसका प्रमुख उद्देश्य यह जानना होता है कि विद्यार्थी किसी विशेष विषयवस्तु को किस हद तक समझ रहे हैं और किस स्तर पर सुधार की आवश्यकता है। इस प्रकार का मूल्यांकन शिक्षकों को समय रहते छात्रों की कमजोरियों और मजबूती की पहचान करने में सहायता करता है, जिससे वे अपने शिक्षण दृष्टिकोण में आवश्यक परिवर्तन कर सकते हैं। यह न केवल छात्रों को सुधार के अवसर प्रदान करता है, बल्कि उन्हें सीखने के प्रति अधिक सक्रिय और जिम्मेदार भी बनाता है।

2. सारात्मक मूल्यांकन (Summative Assessment):

सारात्मक मूल्यांकन आमतौर पर किसी शैक्षणिक अवधि या इकाई के अंत में किया जाता है, जैसे कि सत्रांत परीक्षाएं, वार्षिक परीक्षाएं या अंतिम प्रोजेक्ट प्रस्तुतियाँ। इसका मुख्य उद्देश्य यह जानना होता है कि छात्र ने संपूर्ण पाठ्यक्रम या विशेष इकाई से क्या सीखा है और उसका अधिगम स्तर क्या है। यह मूल्यांकन विद्यार्थियों की अंतिम उपलब्धियों को मापता है और इसके आधार पर उन्हें ग्रेड या अंक प्रदान किए जाते हैं। यह परिणाम स्कूल, शिक्षक और माता-पिता को यह जानकारी देता है कि छात्र कितनी अच्छी तरह से अपेक्षित लक्ष्यों को प्राप्त कर पाए हैं। हालांकि यह प्रकार विद्यार्थियों को फीडबैक देने में सीमित होता है, फिर भी यह शिक्षा प्रणाली में उनकी योग्यता के निर्धारण का एक महत्वपूर्ण साधन है।

B. मापन (Measurement):

मापन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति की क्षमताओं, विशेषताओं या प्रदर्शन को विशेष नियमों और मानकों के अनुसार संख्यात्मक रूप में व्यक्त किया जाता है। यह प्रक्रिया शिक्षण-अधिगम के परिणामों को मात्रात्मक (quantitative) रूप में समझने का एक माध्यम है। शिक्षा में मापन का प्रयोग यह जानने के लिए किया जाता है कि विद्यार्थी ने किसी विषयवस्तु को कितना सीखा है और उसकी शैक्षणिक उपलब्धि का स्तर क्या है। यह एक वस्तुनिष्ठ प्रक्रिया है जिसमें किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत व्याख्या या अनुमान की संभावना न्यूनतम होती है।

परिभाषा (Definition):

मापन वह व्यवस्थित प्रक्रिया है जिसके माध्यम से विद्यार्थियों के अधिगम परिणामों का पूर्व निर्धारित मापदंड या पैमाने के आधार पर संख्यात्मक विवरण किया जाता है। इसमें प्राप्त जानकारी को अंकों, स्कोर या ग्रेड के रूप में व्यक्त किया जाता है, जिससे छात्र के प्रदर्शन की सटीक और स्पष्ट जानकारी प्राप्त होती है। मापन का उद्देश्य केवल परिणाम जानना नहीं होता, बल्कि यह जानकारी देना होता है कि छात्र की शैक्षणिक प्रगति किस स्तर पर है।

उद्देश्य (Purpose):

मापन का मूल उद्देश्य यह निर्धारण करना है कि छात्र ने किसी विषय में कितना ज्ञान अर्जित किया है। इसके माध्यम से छात्रों की उपलब्धियों का आकलन, उनकी योग्यता का वर्गीकरण (ranking) और एक-दूसरे से निष्पक्ष तुलना की जाती है। मापन के आंकड़े शिक्षा व्यवस्था को यह समझने में सहायता करते हैं कि पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धतियाँ कितनी प्रभावी हैं। साथ ही, यह परीक्षा परिणामों को मानकीकरण (standardization) की दिशा में ले जाता है, जिससे पूरे शैक्षणिक ढांचे में एकरूपता लाई जा सकती है।

उदाहरण (Examples):

एक छात्र का गणित की परीक्षा में 100 में से 85 अंक प्राप्त करना मापन का उदाहरण है, जो उसकी उस विषय में सीखने की मात्रात्मक अभिव्यक्ति है।

किसी बच्चे की ऊँचाई का 120 सेंटीमीटर होना भी एक शारीरिक विशेषता का मापन है।

इन दोनों उदाहरणों में देखा जा सकता है कि मापन केवल संख्यात्मक डाटा प्रदान करता है, जिसमें यह बताया जाता है कि 'कितना' अर्जित किया गया है, न कि 'कैसे' या 'क्यों'।

C. मूल्य निर्धारण (Evaluation):

मूल्य निर्धारण शिक्षा की एक समग्र और बहुआयामी प्रक्रिया है, जिसमें किसी व्यक्ति के प्रदर्शन या किसी शैक्षणिक कार्यक्रम की प्रभावशीलता के संबंध में निर्णायक मूल्यांकन किया जाता है। यह प्रक्रिया केवल यह जानने तक सीमित नहीं होती कि छात्र ने कितना सीखा है, बल्कि यह भी जांचती है कि उस अधिगम की गुणवत्ता क्या है, उसका व्यवहारिक उपयोग कितना है, और उसका शैक्षिक परिवेश पर क्या प्रभाव पड़ता है। मूल्य निर्धारण शिक्षण, अधिगम और शैक्षणिक योजनाओं की सार्थकता का विश्लेषण करने का एक सशक्त माध्यम है, जो शिक्षा प्रणाली के समग्र सुधार में सहायक होता है। इसमें मापन से प्राप्त आंकड़ों के साथ-साथ पर्यवेक्षण, विश्लेषण और अनुभवजन्य जानकारियों को मिलाकर गहन समीक्षा की जाती है।

परिभाषा (Definition):

मूल्य निर्धारण एक व्यवस्थित प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से किसी विषय, कार्यक्रम, कार्यप्रणाली या व्यक्ति की योग्यता, उपयोगिता और महत्व को निर्धारित किया जाता है। यह किसी पूर्व निर्धारित मानदंड और मापदंड के आधार पर किया जाता है, जिससे यह आकलन किया जा सके कि कोई कार्य या परिणाम किस हद तक अपेक्षित लक्ष्यों को पूरा करता है। मूल्य निर्धारण में मात्रात्मक और गुणात्मक दोनों प्रकार की सूचनाओं का प्रयोग होता है, जिससे किसी विषय की संपूर्णता को समझा जा सकता है।

उद्देश्य (Purpose):

मूल्य निर्धारण का प्रमुख उद्देश्य यह है कि शिक्षण और अधिगम की प्रक्रियाओं के बारे में सोच-समझकर निर्णय लिए जा सकें। इसके माध्यम से यह तय किया जाता है कि कोई पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि या शैक्षणिक गतिविधि कितनी प्रभावी है और उसमें सुधार की क्या संभावनाएँ हैं। यह शिक्षकों को यह निर्णय लेने में सहायता करता है कि उन्हें आगे किस दिशा में कार्य करना चाहिए, पाठ्यक्रम में क्या परिवर्तन आवश्यक हैं, और छात्रों की समग्र प्रगति को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है। मूल्य निर्धारण से प्राप्त निष्कर्ष नीति निर्धारण, पाठ्यक्रम विकास, अध्यापन पद्धतियों और छात्र मूल्यांकन की दिशा को निर्देशित करते हैं।

3. मूल्यांकन, मापन और मूल्यनिर्धारण का अर्थ एवं अवधारणा तथा इनकी पारस्परिक सम्बद्धता (Interrelationship Between Assessment, Measurement, and Evaluation):

मूल्यांकन (Assessment), मापन (Measurement) और मूल्यनिर्धारण (Evaluation) ये तीनों शब्द अपने-अपने अर्थ और उद्देश्यों में भिन्न हैं, फिर भी शैक्षिक प्रक्रिया में इनका गहरा आपसी संबंध होता है। इन तीनों का प्रयोग शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को समझने, नियंत्रित करने और बेहतर बनाने के लिए एक-दूसरे के पूरक के रूप में किया जाता है।

मूल्यांकन एक व्यापक अवधारणा है, जिसके अंतर्गत मापन और मूल्यनिर्धारण दोनों सम्मिलित होते हैं। जब किसी छात्र की अधिगम स्थिति को समझना होता है, तो सबसे पहले मापन के द्वारा उसके प्रदर्शन को संख्यात्मक रूप में रिकॉर्ड किया जाता है (जैसे अंकों या स्कोर के रूप में)। इसके बाद मूल्यनिर्धारण उस संख्यात्मक जानकारी का विश्लेषण करके यह निष्कर्ष निकालता है कि वह प्रदर्शन किस स्तर का है—उत्कृष्ट, औसत या कमजोर। अंततः मूल्यांकन इन दोनों प्रक्रियाओं का समन्वय करके शिक्षा की गुणवत्ता और प्रभावशीलता को समझने और सुधारने का प्रयास करता है।

इस प्रकार, ये तीनों घटक न केवल एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, बल्कि शिक्षकों, प्रशासकों और पाठ्यक्रम निर्माताओं के लिए निर्णय लेने के आधार भी प्रदान करते हैं।

4. पारस्परिक सम्बद्धता को समझने के उदाहरण (Example to Understand Interrelationship):

इस अंतर्संबंध को बेहतर समझने के लिए एक उदाहरण पर विचार करें:

मान लीजिए एक शिक्षक ने अपनी कक्षा में गणित की एक परीक्षा ली —

मापन (Measurement):

छात्र 'अ' ने परीक्षा में 100 में से 92 अंक प्राप्त किए। यह एक मात्रात्मक डाटा है जो उसकी गणितीय समझ का स्तर दर्शाता है।

मूल्यांकन (Assessment):

परीक्षा के साथ-साथ शिक्षक ने छात्र की कक्षा में भागीदारी, प्रश्नों की समझ, और होमवर्क की प्रस्तुति का भी अवलोकन किया। इससे यह ज्ञात हुआ कि छात्र 'अ' को बीजगणित में अच्छी समझ है लेकिन ज्यामिति में वह संघर्ष कर रहा है।

मूल्यनिर्धारण (Evaluation):

उपलब्ध आंकड़ों और पर्यवेक्षण के आधार पर शिक्षक यह निष्कर्ष निकालता है कि भले ही छात्र का कुल प्रदर्शन अच्छा है, लेकिन उसकी ज्यामिति की समझ को बेहतर करने के लिए अतिरिक्त अभ्यास और निर्देश की आवश्यकता है।

इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि ये तीनों प्रक्रियाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं और मिलकर विद्यार्थी के समग्र विकास में सहायक बनती हैं।

5. निष्कर्ष (Conclusion):

शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यांकन, मापन और मूल्यनिर्धारण की अवधारणाओं को समझना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यही तीनों तत्व प्रभावी शिक्षण और अधिगम का आधार बनते हैं। मापन यह दर्शाता है कि छात्र ने कितनी जानकारी अर्जित की है, मूल्यनिर्धारण उस जानकारी की गुणवत्ता और उपयुक्तता का विश्लेषण करता है, और मूल्यांकन इन दोनों को एकीकृत कर व्यापक समझ प्रदान करता है जिससे शिक्षण को दिशा मिलती है। जब इन प्रक्रियाओं को एक साथ मिलाकर उपयोग किया जाता है, तो इससे शिक्षकों को विद्यार्थियों की जरूरतों की पहचान करने, पाठ्यक्रम में सुधार लाने, और अनुकूल शिक्षण रणनीतियाँ अपनाने में मदद मिलती है। यह एक समग्र दृष्टिकोण है जो विद्यार्थियों की प्रगति को गति देने के साथ-साथ शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता बढ़ाने में भी योगदान देता है।

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