Dhyana (Meditation) and its Therapeutic Value ध्यान और उसका उपचारात्मक महत्त्व
प्रस्तावना (Introduction):
आज का मानव जीवन तीव्र गति से चल रही प्रतिस्पर्धा, मानसिक दबाव, कार्यभार और तकनीकी जटिलताओं से घिरा हुआ है। दिन-ब-दिन बढ़ती चिंताएं, भावनात्मक अस्थिरता और जीवन के प्रति असंतोष ने व्यक्ति को भीतर से कमजोर बना दिया है। ऐसे परिवेश में एक ऐसी विधि की आवश्यकता महसूस होती है जो न केवल मानसिक तनाव को कम करे, बल्कि आंतरिक शांति, स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा भी प्रदान करे। इस दिशा में ध्यान (Dhyana) एक अत्यंत प्रभावशाली और व्यावहारिक उपाय बनकर उभरता है। ध्यान केवल एक पारंपरिक या धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह एक समग्र अभ्यास है जो व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आत्मिक पक्षों को एकसाथ संतुलित करता है। यह अभ्यास व्यक्ति को स्वयं के भीतर झांकने, अपने विचारों को नियंत्रित करने और वर्तमान क्षण में जीने की प्रेरणा देता है। ध्यान का प्रभाव न केवल मानसिक शांति तक सीमित रहता है, बल्कि यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है, नींद की गुणवत्ता सुधारता है और जीवनशैली को संतुलित बनाता है। इसके अतिरिक्त, ध्यान को वैज्ञानिक रूप से भी स्वीकार्यता प्राप्त हो चुकी है। यह मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के साथ-साथ संज्ञानात्मक क्षमताओं को भी विकसित करता है। आज, जब हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में मानसिक थकान और बेचैनी का सामना कर रहा है, तब ध्यान एक सरल, सहज और प्रभावकारी मार्ग है, जो मानव को न केवल पूर्ण स्वास्थ्य की ओर ले जाता है, बल्कि उसे एक संतुलित, जागरूक और अर्थपूर्ण जीवन जीने में भी सहायता करता है।
ध्यान का अर्थ और स्वरूप (Meaning and Nature of Meditation):
ध्यान का शाब्दिक आशय है – मन को एकाग्र कर किसी एक विचार, ध्वनि, वस्तु, सांस या दिव्य सत्ता पर स्थिर करना। यह मानसिक ऊर्जा को इधर-उधर भटकने से रोककर एक केंद्र बिंदु पर स्थिर करने की प्रक्रिया है। ध्यान केवल विचारों को रोकना नहीं, बल्कि उन्हें साक्षी भाव से देखना और धीरे-धीरे उन्हें शांत कर आत्मिक स्तर पर गहराई से जुड़ना भी है। योग दर्शन के महान आचार्य महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्रों में ध्यान को अष्टांग योग का सातवाँ अंग बताया है, जो 'धारणा' के बाद आता है और 'समाधि' से पहले की अवस्था है। यह वह अवस्था है जिसमें साधक अपने मन की चंचलता को नियंत्रित करता है और अंतर्मन की ओर उन्मुख होता है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति बाहरी अनुभवों, इंद्रियों और विचारों से परे जाकर अपनी चेतना के गहरे स्तरों को स्पर्श करता है। ध्यान का स्वरूप अत्यंत सूक्ष्म और गहन होता है। यह कोई सतही क्रिया नहीं, बल्कि आत्म-अन्वेषण और आंतरिक जागरूकता का माध्यम है। जब व्यक्ति ध्यान में होता है, तब वह स्वयं को केवल शरीर या मन के रूप में नहीं देखता, बल्कि एक साक्षी भाव से अपने अस्तित्व को अनुभव करता है। धीरे-धीरे यह अभ्यास आत्मज्ञान की ओर ले जाता है, जहाँ विचार, भावनाएँ और इच्छाएँ शांत होकर एक व्यापक शांति और आनंद की अनुभूति में परिवर्तित हो जाती हैं। इस प्रकार, ध्यान एक साधारण मानसिक अभ्यास नहीं, बल्कि आत्मा से जुड़ने की एक प्रभावशाली प्रक्रिया है, जो व्यक्ति को स्वयं के वास्तविक स्वरूप से परिचित कराती है और उसे जीवन की गहराइयों में उतरने का अवसर देती है।
ध्यान के प्रकार (Types of Meditation):
ध्यान के विभिन्न प्रकार हैं, जो व्यक्ति की प्रवृत्ति और उद्देश्य पर निर्भर करते हैं:
1. साक्षी भाव ध्यान (Mindfulness Meditation) – यह ध्यान की एक ऐसी पद्धति है जिसमें साधक वर्तमान क्षण में पूरी तरह से सजग और जागरूक रहता है। इसका मूल उद्देश्य यह होता है कि व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं और शारीरिक अनुभवों को बिना किसी प्रतिक्रिया या निर्णय के केवल 'साक्षी भाव' से देखे और स्वीकार करे। इस ध्यान में व्यक्ति अतीत या भविष्य की चिंताओं से मुक्त होकर केवल "अब और यहाँ" की स्थिति में टिकने का अभ्यास करता है। यह ध्यान मानसिक शांति, तनाव मुक्ति और आत्मबोध को जागृत करने का एक प्रभावशाली माध्यम है।
2. मंत्र ध्यान (Mantra Meditation) – इस ध्यान विधि में साधक किसी विशेष मंत्र या ध्वनि का उच्चारण या मानसिक जप करता है। यह मंत्र पारंपरिक वैदिक, योगिक या व्यक्तिगत रूप से चुना गया हो सकता है जैसे "ॐ", "सोऽहम्", या कोई अन्य बीज मंत्र। मंत्र का नियमित और एकाग्र अभ्यास मन को एकाग्र करता है, विचारों की चंचलता को शांत करता है और अंदरूनी ऊर्जा को जागृत करता है। यह ध्यान अभ्यास मानसिक एकाग्रता, आध्यात्मिक उन्नति और चेतना की गहराई तक पहुँचने में सहायक होता है।
3. प्राण ध्यान (Breath Awareness) – प्राण ध्यान में साधक अपनी श्वास की गति, लय और प्रवाह पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करता है। यह ध्यान न केवल शारीरिक और मानसिक संतुलन को बढ़ाता है, बल्कि व्यक्ति को अपनी आंतरिक ऊर्जा (प्राणशक्ति) से भी जोड़ता है। साधक धीरे-धीरे सांसों को महसूस करता है—कैसे वह नाक से भीतर जाती है और फिर बाहर आती है। इस प्रक्रिया में ध्यान भटकता नहीं, बल्कि प्रत्येक सांस के साथ गहराई और स्थिरता प्राप्त करता है। यह ध्यान तनाव कम करने, वर्तमान में टिके रहने और चित्त की चंचलता को मिटाने का प्रभावशाली अभ्यास है।
4. त्राटक ध्यान – त्राटक का अर्थ है "निरंतर दृष्टि रखना"। इस ध्यान में साधक किसी निश्चित बिंदु, दीपक की लौ, किसी प्रतीक चिन्ह या मंत्र के अक्षरों पर बिना पलक झपकाए एकटक दृष्टि जमाए रखता है। यह साधना दृष्टि शक्ति को तीव्र करती है, एकाग्रता को बढ़ाती है और मानसिक स्थिरता लाने में सहायक होती है। जब आँखें थक जाती हैं, तो उन्हें बंद कर लिया जाता है और उस देखे गए बिंब की मानसिक छवि पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। यह अभ्यास मानसिक भ्रांति को दूर करता है और अंतःचक्षु (तीसरी आँख) को सक्रिय करने में भी सहायक होता है।
5. भक्ति ध्यान – यह ध्यान ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और प्रेम का भाव लिए होता है। इसमें साधक अपने इष्टदेव के रूप, नाम, लीलाओं या गुणों का स्मरण करता है और हृदय से उनका चिंतन करता है। यह ध्यान न केवल आत्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि व्यक्ति को अहंकार और आत्मकेंद्रित विचारों से मुक्त कर एक व्यापक प्रेमभाव और करुणा की ओर अग्रसर करता है। भक्ति ध्यान में श्रद्धा, भावना और समर्पण ही मुख्य आधार होते हैं, और इसका उद्देश्य होता है – आत्मा का परमात्मा से मिलन।
ध्यान के उपचारात्मक लाभ (Therapeutic Benefits of Meditation):
ध्यान केवल मानसिक शांति ही नहीं देता, बल्कि इसके अनेक चिकित्सकीय लाभ भी सिद्ध हो चुके हैं:
1. तनाव और चिंता से मुक्ति (Relief from Stress and Anxiety):
ध्यान मानसिक तनाव और चिंता को दूर करने का एक अत्यंत प्रभावशाली साधन है। जब हम नियमित रूप से ध्यान करते हैं, तो मस्तिष्क की तरंगें शांत होने लगती हैं और शरीर में तनाव पैदा करने वाले हार्मोन, जैसे कि कॉर्टिसोल, का स्तर धीरे-धीरे घटने लगता है। यह प्रक्रिया न केवल मन को शांत करती है, बल्कि शारीरिक रूप से भी राहत प्रदान करती है। व्यक्ति स्वयं को हल्का और संतुलित महसूस करता है। ध्यान के अभ्यास से नकारात्मक विचारों की पकड़ कमजोर होती है और मानसिक स्थिरता विकसित होती है, जिससे भावनात्मक उतार-चढ़ाव पर नियंत्रण प्राप्त होता है।
2. मानसिक रोगों में सहायक (Helpful in Mental Disorders):
ध्यान उन लोगों के लिए भी अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुआ है जो डिप्रेशन, बाइपोलर डिसऑर्डर, पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) जैसी मानसिक समस्याओं से जूझ रहे हैं। ध्यान के माध्यम से मस्तिष्क में सेरोटोनिन, डोपामिन जैसे रसायनों का संतुलन बना रहता है, जो भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होते हैं। वैज्ञानिक शोधों से यह प्रमाणित हुआ है कि नियमित ध्यान मस्तिष्क के एमिग्डाला (भावनात्मक प्रतिक्रिया केंद्र) की सक्रियता को कम करता है, जिससे व्यक्ति अधिक संतुलित और सकारात्मक व्यवहार अपनाता है। यह मानसिक रोगों के प्रबंधन में सहायक पूरक चिकित्सा के रूप में काम करता है।
3. रक्तचाप और हृदय स्वास्थ्य (Blood Pressure and Heart Health):
ध्यान का अभ्यास करने से श्वास-प्रश्वास की गति नियंत्रित होती है और मस्तिष्क को शांति का अनुभव होता है, जिससे हृदय की धड़कनें नियमित होती हैं। इससे हृदय पर पड़ने वाला अनावश्यक दबाव कम होता है और रक्तचाप सामान्य बना रहता है। ध्यान रक्त वाहिकाओं की कार्यप्रणाली को सुधारता है और संपूर्ण परिसंचरण तंत्र को सक्रिय एवं संतुलित करता है। जिन लोगों को उच्च रक्तचाप या हृदय संबंधी समस्याएं होती हैं, उनके लिए ध्यान एक प्राकृतिक और सुरक्षित सहायक चिकित्सा मानी जाती है।
4. नींद में सुधार (Insomnia Relief):
अनिद्रा की समस्या आजकल बहुत आम हो गई है, और ध्यान इस समस्या के लिए एक स्वाभाविक समाधान प्रस्तुत करता है। जब व्यक्ति ध्यान करता है, तो मस्तिष्क में अल्फा तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो नींद को प्रेरित करती हैं और मानसिक अशांति को दूर करती हैं। ध्यान शरीर और मन को गहरे स्तर पर विश्रांति प्रदान करता है, जिससे व्यक्ति को जल्दी और गहरी नींद आती है। यह न केवल नींद की गुणवत्ता को सुधारता है, बल्कि नींद के समय को भी नियमित करता है, जिससे व्यक्ति दिनभर तरोताजा और ऊर्जावान महसूस करता है।
5. इम्यून सिस्टम को सशक्त बनाना (Strengthening the Immune System):
ध्यान केवल मानसिक स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत बनाता है। जब व्यक्ति मानसिक रूप से शांत और तनावमुक्त होता है, तो उसका शरीर रोगों से लड़ने के लिए अधिक तैयार और सक्षम होता है। ध्यान से शरीर में सकारात्मक हार्मोन का स्तर बढ़ता है, और कोशिकाओं का पुनर्निर्माण सुचारु रूप से होता है। इससे सर्दी-जुकाम से लेकर गंभीर बीमारियों तक के खिलाफ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में उल्लेखनीय सुधार होता है।
6. मस्तिष्क की क्षमता में वृद्धि (Enhancement of Brain Function):
ध्यान मस्तिष्क की कार्यक्षमता को कई स्तरों पर सुदृढ़ करता है। यह ध्यान, स्मरण शक्ति, और निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाता है। शोध बताते हैं कि ध्यान करने वालों के मस्तिष्क में ग्रे मैटर की मात्रा अधिक होती है, जो सोचने, समझने और स्मृति से संबंधित क्षेत्रों को मजबूत करती है। विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं, प्रोफेशनल्स और नेतृत्वकर्ताओं के लिए ध्यान मानसिक कुशाग्रता और रचनात्मकता को बनाए रखने का उत्कृष्ट उपाय है। यह मस्तिष्क को थकान से बचाता है और विचारों में स्पष्टता लाता है।
ध्यान का वैज्ञानिक आधार (Scientific Basis of Meditation):
आज के युग में ध्यान को केवल आध्यात्मिक अभ्यास मानना सीमित दृष्टिकोण होगा, क्योंकि आधुनिक विज्ञान ने इसके प्रभावों को गहराई से परखा और स्वीकार किया है। अनेक अनुसंधानों और प्रयोगों में पाया गया है कि ध्यान का अभ्यास मस्तिष्क की संरचना और कार्यप्रणाली पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है। MRI (Magnetic Resonance Imaging) और EEG (Electroencephalogram) जैसी उन्नत तकनीकों की सहायता से वैज्ञानिकों ने यह जाना है कि नियमित ध्यान करने से मस्तिष्क के prefrontal cortex — जो निर्णय लेने, सोचने और एकाग्रता से जुड़ा होता है — में गतिविधि बढ़ती है। साथ ही, amygdala, जो भय और तनाव की प्रतिक्रियाओं से जुड़ी होती है, उसमें शांति और संतुलन देखा गया है, जिससे तनाव और चिंता में कमी आती है। इसके अतिरिक्त, hippocampus, जो याददाश्त और सीखने की प्रक्रिया से संबंधित होता है, वह भी ध्यान के अभ्यास से अधिक सक्रिय और सशक्त होता है। ध्यान मस्तिष्क की न्यूरोप्लास्टिसिटी (Neuroplasticity) — अर्थात नई न्यूरल कनेक्शन बनाने और पुराने को सशक्त करने की क्षमता — को भी बढ़ावा देता है। इसका अर्थ यह है कि हमारा मस्तिष्क ध्यान के माध्यम से स्वयं को न केवल तनावों से उबरने के लिए पुनर्गठित कर सकता है, बल्कि नए कौशल और अनुभवों को आत्मसात करने में भी अधिक सक्षम बन सकता है। विज्ञान ने यह भी प्रमाणित किया है कि ध्यान से शरीर में कोर्टिसोल जैसे तनाव हार्मोन का स्तर घटता है और सेरोटोनिन व डोपामिन जैसे सकारात्मक रसायनों का स्तर बढ़ता है, जो व्यक्ति को मानसिक शांति, ऊर्जा और उत्साह प्रदान करते हैं। इन सभी तथ्यों के आलोक में यह स्पष्ट है कि ध्यान एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत लाभकारी एवं प्रभावी साधना है, जिसे जीवन का आवश्यक हिस्सा बनाया जा सकता है।
ध्यान कैसे करें? (How to Practice Meditation):
ध्यान की शुरुआत कोई भी व्यक्ति निम्नलिखित सरल विधियों से कर सकता है:
1. शांत और स्वच्छ वातावरण का चयन करें
ध्यान की शुरुआत एक शांत और स्वच्छ वातावरण से करनी चाहिए, जहाँ बाहरी शोर, अव्यवस्था या अशांति न हो। वातावरण का प्रभाव हमारे चित्त पर अत्यंत गहरा होता है। जब हम किसी शुद्ध और शांत जगह पर बैठते हैं, तो मन स्वयं ही स्थिर होने लगता है। इस स्थान को रोजाना ध्यान के लिए ही चुनें, ताकि वहां सकारात्मक ऊर्जा का संचार बना रहे। आप चाहें तो वहां कुछ प्राकृतिक तत्व जैसे तुलसी का पौधा, दीपक या ध्यान-संगीत भी रख सकते हैं। एक ही स्थान पर नियमित अभ्यास करने से मन उस जगह से जुड़ने लगता है और ध्यान में जल्दी प्रवेश संभव होता है। शांत वातावरण का अर्थ केवल बाहरी शांति नहीं, बल्कि एक ऐसा स्थान भी है जो आपके भीतर की यात्रा के लिए अनुकूल हो। यदि संभव हो तो प्रातःकाल का समय चुनें, जब प्रकृति भी शांत होती है और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा होती है। इस प्रकार का वातावरण ध्यान को प्रभावी बनाने में सहायक सिद्ध होता है।
2. आरामदायक और स्थिर मुद्रा में बैठें
ध्यान करते समय शरीर की मुद्रा अत्यंत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि हमारा मन शरीर के माध्यम से ही नियंत्रित होता है। एक आरामदायक लेकिन स्थिर मुद्रा चुनें, जैसे सुखासन, पद्मासन या अर्धपद्मासन। यदि किसी को फर्श पर बैठना कठिन लगे तो वह कुर्सी पर बैठ सकता है, लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि रीढ़ की हड्डी सीधी और शरीर संतुलित हो। गर्दन, पीठ और कंधे तनावमुक्त हों ताकि शरीर लंबे समय तक स्थिर रह सके। शरीर की स्थिरता से मन को भी स्थिर होने में सहायता मिलती है। यदि शरीर बार-बार हिलता है तो ध्यान भंग हो सकता है। प्रारंभ में कुछ मिनट बैठने का अभ्यास करें और धीरे-धीरे समय बढ़ाएँ। हाथों को ज्ञान मुद्रा या सरल मुद्रा में घुटनों पर रखें। स्थिरता और सहजता का यह मेल ध्यान को गहराई देने में मदद करता है। जब शरीर स्थिर होता है, तो भीतर का मन भी धीरे-धीरे स्थिरता की ओर बढ़ता है।
3. आँखें बंद करें और श्वास पर ध्यान केंद्रित करें
आँखें बंद करना ध्यान की दिशा में पहला कदम है, जो हमें बाहरी दुनिया से काटकर अंतर्मुखी बनाता है। आँखें बंद करके जब हम अपने श्वास की गति पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हमारा चित्त धीरे-धीरे वर्तमान क्षण में ठहरने लगता है। इस अभ्यास में हमें केवल यह अनुभव करना होता है कि श्वास कैसे भीतर जा रही है और कैसे बाहर आ रही है — बिना उसे नियंत्रित किए, केवल उसे महसूस करते रहना है। श्वास पर ध्यान केंद्रित करने से विचारों की गति कम होती है और मन शांत होने लगता है। यह एक सरल किन्तु अत्यंत प्रभावशाली तकनीक है, जो हमें हमारे भीतर के मौन से जोड़ती है। जब बार-बार मन भटकने लगे तो श्वास की अनुभूति पर वापस आ जाएँ। धीरे-धीरे यह अभ्यास हमें ध्यान की गहराई में ले जाता है और आत्म-चेतना के अनुभव की ओर बढ़ाता है।
4. विचारों को आने दें, पर उनसे जुड़ें नहीं
ध्यान करते समय यह स्वाभाविक है कि मन में तरह-तरह के विचार उठें। उन्हें रोकने की कोशिश करना उल्टा असर डाल सकता है। इसलिए, विचारों को आने दें, लेकिन उनमें उलझें नहीं। उन्हें मात्र देखने वाले बनें — जैसे बादल आकाश में आते और चले जाते हैं, वैसे ही विचारों को आने-जाने दें। आप केवल उनके साक्षी बनें, न कि उनके प्रवाह में बह जाएँ। यह अभ्यास धीरे-धीरे मन को प्रशिक्षित करता है कि वह तटस्थ और शांत बना रह सके। जब हम विचारों से दूरी बना लेते हैं, तो एक आंतरिक मौन प्रकट होता है, जो ध्यान का मूल है। यही साक्षी भाव हमें आत्म-निरीक्षण और आत्मबोध की ओर ले जाता है। नियमित अभ्यास से यह प्रक्रिया सहज हो जाती है और मन अधिक स्थिर, गहरा और चेतनशील बनता है।
5. अभ्यास की अवधि धीरे-धीरे बढ़ाएँ
ध्यान कोई एक दिन की प्रक्रिया नहीं है, यह एक सतत अभ्यास है। प्रारंभ में 5 से 10 मिनट का समय पर्याप्त होता है ताकि शरीर और मन दोनों धीरे-धीरे इस प्रक्रिया के अभ्यस्त हो सकें। जैसे-जैसे अभ्यास में सहजता आती है, वैसे-वैसे ध्यान की अवधि को 20 से 30 मिनट तक धीरे-धीरे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन समय बढ़ाने के साथ धैर्य बनाए रखना जरूरी है — परिणाम धीरे-धीरे और गहराई से मिलते हैं। नियमित अभ्यास से ध्यान न केवल गहरा होता है, बल्कि जीवन में स्थायित्व, स्पष्टता और मानसिक संतुलन भी आता है। शुरुआत में एक तय समय और स्थान रखें ताकि शरीर और मन को एक अनुशासित लय मिल सके। जैसे-जैसे ध्यान जीवन का हिस्सा बनता है, आप उसमें सहजता, आनंद और आंतरिक ऊर्जा का अनुभव करने लगेंगे। ध्यान का यह अनुशासन ही इसे जीवन को रूपांतरित करने वाला अभ्यास बनाता है।
निष्कर्ष (Conclusion):
ध्यान केवल एक आध्यात्मिक साधना नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक और व्यावहारिक प्रक्रिया है जो मानव जीवन के प्रत्येक पहलू को छूती है। यह एक ऐसी विधि है जो हमें बाहरी शोर-शराबे और मानसिक तनावों से दूर ले जाकर आंतरिक शांति, स्पष्टता और जागरूकता की ओर मार्गदर्शित करती है। नियमित ध्यान अभ्यास से न केवल मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि हमारी निर्णय क्षमता, एकाग्रता और जीवन के प्रति दृष्टिकोण में भी सकारात्मक परिवर्तन आता है। ध्यान शरीर की ऊर्जा को पुनः सक्रिय करता है, मन को स्थिर करता है और आत्मा को उच्च चेतना से जोड़ता है। यह हमारे भीतर छिपी संभावनाओं को जाग्रत करने का माध्यम बनता है, जिससे हम अपने जीवन के उद्देश्य को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं और आत्मविकास की दिशा में ठोस कदम उठा सकते हैं। आज के भागदौड़ भरे जीवन में जहां चिंता, अवसाद और असंतुलन सामान्य होते जा रहे हैं, वहां ध्यान एक आवश्यक अभ्यास बन जाता है। अतः यह आवश्यक है कि हर व्यक्ति ध्यान को केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि जीवन की आवश्यकता समझे और इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करे। यह न केवल स्वयं को बदलने की प्रक्रिया है, बल्कि एक शांत, समृद्ध और सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण की दिशा में भी एक सशक्त कदम है।
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