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Integral Yoga of Sri Aurobindo and the Modern School of Yoga श्री अरविंद का एकात्म योग और आधुनिक योग विद्यालय

Integral Yoga of Sri Aurobindo and Modern School of Yoga – श्री अरविंद का एकात्म योग और आधुनिक योग परंपरा

प्रस्तावना (Introduction):

योग, भारत की प्राचीनतम आध्यात्मिक परंपराओं में से एक, आत्मिक रूपांतरण का मार्ग रहा है। यह न केवल शरीर और मन की शुद्धि का उद्देश्य रखता है, बल्कि आत्मा को उच्च विकास की दिशा में ले जाने का माध्यम भी है। समय के साथ योग ने भौगोलिक सीमाओं को पार किया और एक वैश्विक आंदोलन बन गया, जिसे उसके शारीरिक, मानसिक और उपचारात्मक लाभों के लिए सराहा जा रहा है। इस वैश्विक लोकप्रियता के बीच योग की गहराई और मौलिकता अक्सर सतही अभ्यासों के कारण धुंधली हो जाती है। ऐसे में, श्री अरविंद की दृष्टि एक प्रकाशस्तंभ के रूप में उभरती है, जो भीतर की रोशनी और समग्र रूपांतरण का मार्गदर्शन देती है। उनका एकात्म योग (पूर्ण योग) केवल व्यायाम या मानसिक शांति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष में दिव्यता को एकीकृत करने की एक परिवर्तनकारी दृष्टि प्रस्तुत करता है। यह योग संसार से विरक्ति नहीं, बल्कि जीवन के आध्यात्मीकरण की बात करता है। यह दृष्टिकोण उन आधुनिक योग विद्यालयों से बिल्कुल अलग है, जो योग को महज़ फिटनेस या तनाव प्रबंधन के एक साधन तक सीमित कर चुके हैं।

श्री अरविंद का एकात्म योग: एक परिचय (Sri Aurobindo's Integral Yoga: An Introduction):

श्री अरविंद ने योग को केवल व्यक्तिगत मोक्ष या संसार से पलायन का साधन नहीं माना, बल्कि मानव स्वभाव को परिवर्तित कर पृथ्वी पर दिव्य चेतना को अभिव्यक्त करने की एक शक्तिशाली प्रक्रिया के रूप में देखा। उनका विश्वास था कि सच्चा योग केवल आत्मा को नहीं, बल्कि मन, हृदय और शरीर को भी प्रकाशित और परिष्कृत करना चाहिए। एकात्म योग एक गतिशील समन्वय है—कर्म योग (निःस्वार्थ कार्य का योग), भक्ति योग (भक्ति का मार्ग), ज्ञान योग (बुद्धि का योग), और राज योग (आत्मनियंत्रण एवं ध्यान का मार्ग) को सम्मिलित करते हुए। यह मार्ग संकीर्ण नहीं, बल्कि समावेशी है। यह मानव जीवन के हर पहलू को स्वीकार करता है और मानता है कि प्रत्येक अनुभव, यदि जागरूकता के साथ जिया जाए, तो वह दिव्य साक्षात्कार का माध्यम बन सकता है।

मुख्य विशेषताएँ (Salient Features of Integral Yoga):

1. पूर्ण आत्म समर्पण (Total Self-Surrender):

एकात्म योग की आधारशिला है – साधक का अपने समग्र अस्तित्व को दिव्य सत्ता के चरणों में अर्पित कर देना। यह समर्पण केवल बाह्य क्रियाओं का त्याग नहीं, बल्कि भीतर की सबसे सूक्ष्म इच्छाओं, अहंकार के भावों और मानसिक प्रवृत्तियों को भी ईश्वर की इच्छा में विलीन कर देना है। श्री अरविंद के अनुसार, यह समर्पण निष्क्रियता नहीं, बल्कि एक जीवंत और जागरूक स्थिति है जिसमें साधक निरंतर ईश्वरीय संकेतों के प्रति सजग रहता है। इस समर्पण में एक ऐसा आंतरिक भाव होता है जो कहता है—"हे प्रभु, मैं कुछ नहीं जानता, आप ही मार्गदर्शक बनें।" जब साधक इस भाव में स्थिर हो जाता है, तभी भीतर से दिव्य शक्ति सक्रिय होती है और चेतना में वास्तविक रूपांतरण आरंभ होता है।

2. आंतरिक परिवर्तन (Inner Transformation):

एकात्म योग केवल बाह्य व्यवहार या दृष्टिगोचर उपलब्धियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह साधक के भीतर के हर स्तर—शरीर, मन, हृदय और आत्मा—में गहन और मूलभूत परिवर्तन का आग्रह करता है। यह साधना व्यक्ति को उसकी सीमित मानवीय प्रवृत्तियों से ऊपर उठाकर उच्च चेतना के प्रकाश में लाती है। विचारों की शुद्धि, भावनाओं का परिष्कार, इच्छाओं का नियंत्रण और संपूर्ण व्यक्तित्व का पुनर्गठन—यह सभी एकात्म योग के आंतरिक परिवर्तन के आयाम हैं। यह परिवर्तन धीरे-धीरे होता है, लेकिन एक बार जब यह प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है, तो साधक अपने ही भीतर एक नए 'स्व' का उदय अनुभव करता है जो शांत, साक्षी और दिव्य चेतना से जुड़ा होता है।

3. संपूर्ण जीवन का योगीकरण (Spiritualization of the Entire Life):

एकात्म योग का प्रमुख संदेश है कि आध्यात्मिक साधना जीवन से पलायन नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक पक्ष का आध्यात्मीकरण है। श्री अरविंद के अनुसार, घर, कार्यक्षेत्र, समाज, संबंध—इन सभी में योग संभव है यदि हम उन्हें दिव्य दृष्टि से देखें और योगिक भावना से निभाएँ। चाहे वह भोजन ग्रहण करना हो, वार्तालाप करना हो या कोई सांसारिक उत्तरदायित्व निभाना हो—हर क्रिया साधना बन सकती है, यदि वह आत्मसाक्षात्कार की दिशा में प्रेरित हो। इस प्रकार, जीवन का प्रत्येक क्षण एक तपस्या बन जाता है और साधक एक चलती-फिरती तपोभूमि का प्रतीक बन जाता है। यह दृष्टिकोण योग को एकांत साधना से निकालकर जीवन की धारा में प्रवाहित करता है।

4. अधोमुख से उर्ध्वमुख यात्रा (From Lower to Higher Consciousness):

एकात्म योग की प्रक्रिया व्यक्ति की सामान्य, सीमित और अहंकार से भरी चेतना से आरंभ होकर उसे क्रमशः उच्चतर चेतना की ओर ले जाती है। इस यात्रा में साधक अपनी आंतरिक कमजोरियों, अज्ञान के आवरणों और सांसारिक मोहों से मुक्ति पाकर सत्य, सौंदर्य और आनंद से युक्त दिव्यता का अनुभव करता है। श्री अरविंद इस मार्ग को केवल आत्मा में लीन हो जाने की बात नहीं करते, बल्कि उनका उद्देश्य पृथ्वी पर ही दिव्य जीवन की स्थापना है। इस योग में साधक अपने भीतर की अंधकारमयी प्रवृत्तियों को पहचानता है, उनसे संघर्ष करता है और धीरे-धीरे अपनी चेतना को ऊपर उठाता है—जहाँ आत्मा का प्रकाश, मन की शांति और हृदय की करुणा एक नई चेतन व्यवस्था का निर्माण करती है। यही यात्रा है—अधोमुख से उर्ध्वमुख की, अज्ञान से ज्ञान की, सीमित से अनंत की ओर।

आधुनिक योग विद्यालय: एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण (Modern Schools of Yoga: A Critical Perspective):

वर्तमान समय में योग का वैश्विक प्रसार अभूतपूर्व है। विशेष रूप से पश्चिमी देशों और शहरी भारतीय समाज में योग को एक लोकप्रिय स्वास्थ्यवर्धक गतिविधि के रूप में अपनाया गया है। परंतु, इस लोकप्रियता के साथ-साथ योग की मूल आध्यात्मिकता, दर्शन और गूढ़ तत्वों में गिरावट देखी जा रही है। आज योग अक्सर केवल शरीर को फिट रखने, तनाव घटाने या सौंदर्य बनाए रखने की तकनीक के रूप में देखा जा रहा है। यह दृष्टिकोण योग की पारंपरिक गहराई और उद्देश्य से भटकाव की ओर संकेत करता है। आइए इसके प्रमुख पहलुओं पर आलोचनात्मक दृष्टि डालें:

1. शारीरिक केंद्रितता (Physical Emphasis):

आज के योग अभ्यासों में शरीर को केंद्र में रखकर योग की व्याख्या की जाती है। अधिकांश योग कक्षाएँ आसनों और शारीरिक लचीलापन बढ़ाने पर केंद्रित होती हैं। प्राणायाम, धारणा, ध्यान, और यम-नियम जैसे सूक्ष्म और गहरे पहलुओं की या तो उपेक्षा होती है या उन्हें बहुत सतही रूप में प्रस्तुत किया जाता है। योग को केवल एक फिटनेस पद्धति मानने से उसकी मौलिकता प्रभावित होती है। योग केवल शरीर को मज़बूत या आकर्षक बनाने का साधन नहीं है, बल्कि यह आत्मा और ब्रह्म के मिलन की यात्रा है। जब शारीरिक व्यायाम को ही योग का पर्याय बना दिया जाता है, तो वह योग की आंतरिक यात्रा को बाधित करता है और व्यक्ति केवल बाह्य लाभों तक सीमित रह जाता है।

2. सामूहिक प्रदर्शन (Commercialized Performances):

आधुनिक दौर में योग बड़े स्तर पर आयोजित कार्यक्रमों, प्रतियोगिताओं और प्रदर्शनात्मक आयोजनों का हिस्सा बन गया है। इन आयोजनों में प्रतिभागी अक्सर जटिल और आकर्षक आसनों का प्रदर्शन करते हैं, जिससे योग एक सार्वजनिक तमाशा प्रतीत होता है। परंपरागत योग की दृष्टि में साधना एक व्यक्तिगत और अंतर्मुखी प्रक्रिया होती है, जहाँ साधक अपने भीतर के संसार से साक्षात्कार करता है। जब योग को प्रदर्शन की वस्तु बना दिया जाता है, तो उसका मौन, गूढ़ और आत्मसाक्षात्कारकारी स्वरूप पृष्ठभूमि में चला जाता है। यह योग के उस मौलिक दर्शन के विरुद्ध है, जिसमें दिखावे से नहीं, भीतर की शुद्धि और आत्म-उन्नयन से विकास होता है।

3. प्राचीनता का अभाव (Lack of Scriptural Foundation):

आधुनिक योग शैलियों में अक्सर पतंजलि के योगसूत्र, भगवद्गीता, हठयोग प्रदीपिका, उपनिषद आदि ग्रंथों की शिक्षाओं को या तो भुला दिया गया है या उन्हें बहुत सीमित रूप में प्रस्तुत किया गया है। इन शास्त्रों में योग के गहन तत्व, आत्मा-चेतना का विज्ञान और मानसिक अनुशासन की विधियाँ विस्तार से बताई गई हैं। किंतु आज के योग प्रशिक्षण कार्यक्रमों में इन शास्त्रों का अध्ययन अनिवार्य नहीं रह गया है। इसके स्थान पर, ब्रांडिंग, प्रमाणपत्र और कोर्स पैकेज प्रमुख हो गए हैं। इससे योग की प्राचीन गरिमा और ऋषियों की विचारशीलता धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है और योग एक ‘उत्पाद’ बनकर रह गया है।

4. आध्यात्मिकता की कमी (Absence of Spiritual Depth):

योग का अंतिम लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार और परम चेतना के साथ एकत्व है। यह केवल मन और शरीर को स्वस्थ रखने की पद्धति नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक यात्रा है जो व्यक्ति को उसके सत्य स्वरूप से परिचित कराती है। किंतु आधुनिक योग पद्धतियाँ इस उद्देश्य से भटक चुकी हैं। अब योग का प्रचार वजन घटाने, तनाव प्रबंधन, या नींद बेहतर करने जैसे लाभों के संदर्भ में किया जाता है। आत्मा और ब्रह्म का मिलन, चित्तवृत्ति निरोध, समाधि जैसे शब्द आधुनिक विमर्श से गायब हो गए हैं। आध्यात्मिक गहराई के अभाव में योग की आत्मा जैसे खो गई हो, और उसका स्थान व्यावसायिकता ने ले लिया है।

एकात्म योग बनाम आधुनिक योग विद्यालय: एक तुलनात्मक विश्लेषण (Integral Yoga vs Modern Schools of Yoga: A Comparative Analysis):

श्री अरविंद का एकात्म योग और आधुनिक योग विद्यालय दो अलग दिशाओं में विकसित परंपराएँ हैं। एकात्म योग का लक्ष्य है पूर्ण रूपांतरण — आत्मा का जागरण और मानव चेतना को दिव्य चेतना में रूपांतरित करना। यह योग केवल क्रियाओं का समूह नहीं, बल्कि जीवन की पूर्ण रूप से आध्यात्मिक पुनर्रचना है। इसके अभ्यास से साधक एक ऐसे संसार के सह-निर्माता बनते हैं जहाँ हर कर्म, भावना, और विचार दिव्य प्रेरणा से संचालित होता है। दूसरी ओर, आधुनिक योग सीमित उद्देश्यों जैसे तनाव घटाने, लचीलापन बढ़ाने और मानसिक स्पष्टता तक सीमित है। यह योग आत्मिक खोज की बजाय शारीरिक तंदुरुस्ती तक सीमित हो गया है। इन दोनों के बीच भिन्नता केवल विधियों में नहीं, बल्कि उद्देश्य, गहराई और दिशा में है। एक आत्मा की ओर ले जाता है, दूसरा शरीर और मन तक सीमित रह जाता है।

श्री अरविंद की वर्तमान प्रासंगिकता (The Relevance of Sri Aurobindo Today):

आज के समय में, जहाँ तनाव, उपभोक्तावाद, भावनात्मक अस्थिरता और आध्यात्मिक भ्रम व्यापक हैं, श्री अरविंद का एकात्म योग प्रकाश का मार्ग दिखाता है। वे मनुष्यता को यह संदेश देते हैं कि संसार से भागो मत, बल्कि इसे आध्यात्मिक चेतना से बदलो। उनका संदेश "संपूर्ण जीवन ही योग है" आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है। वे सिखाते हैं कि पारिवारिक जीवन, कार्य, संबंध और चुनौतियाँ भी चेतना को ऊँचा उठाने के अवसर हैं। उनके सिद्धांत द्वंद्वों से ऊपर उठने और अंतर्मन की दिव्यता को पुनः खोजने में सहायक हैं।

निष्कर्ष (Conclusion):

योग अपने सच्चे रूप में केवल आसनों, प्राणायाम या तनाव मुक्ति तक सीमित नहीं है। यह एक चेतन विकास की प्रक्रिया है, जो सीमित से असीमित तक पहुँचने का सेतु है। श्री अरविंद का एकात्म योग इस प्राचीन सार को पुनर्जीवित करता है और योग के मूल उद्देश्य — आत्मा और परमात्मा के मिलन — को सामने लाता है। जहाँ आधुनिक योग सुविधा और सतही लाभ प्रदान करता है, वहीं एकात्म योग आत्मा की गहरी प्यास को शांत कर सकता है। आज आवश्यकता है कि आधुनिक योग विद्यालय भारतीय ज्ञान परंपरा की गहराई को पुनः आत्मसात करें और श्री अरविंद जैसे योगियों की समग्र दिव्य दृष्टि को अपनाएँ — जिससे योग फिर से व्यक्तिगत कल्याण नहीं, बल्कि सार्वभौमिक उत्थान का माध्यम बन सके।

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