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Adolescent: Meaning, Concept and Characteristics किशोरावस्था - अर्थ, अवधारणा और विशेषताएँ

किशोरावस्था – अर्थ

किशोरावस्था मानव जीवन का वह अत्यंत महत्वपूर्ण चरण है, जिसमें व्यक्ति बचपन की निर्भरता से बाहर निकलकर वयस्क जीवन की ओर बढ़ता है। यह अवस्था प्रायः 12-13 वर्ष की आयु में प्रारंभ होकर 19-20 वर्ष तक रहती है, हालांकि सामाजिक, भौगोलिक और सांस्कृतिक भिन्नताओं के कारण इसकी अवधि अलग-अलग हो सकती है। इस समय व्यक्ति के शरीर में यौन परिपक्वता से संबंधित परिवर्तन होते हैं जैसे – लड़कों में दाढ़ी-मूंछ आना, आवाज का भारी होना और लड़कियों में मासिक धर्म की शुरुआत। साथ ही, मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी इसमें बहुत परिवर्तन आते हैं। किशोर अपने अस्तित्व, पहचान और स्वतंत्रता को समझने लगता है। इस अवस्था को विकासात्मक मनोविज्ञान में ‘Second Decade of Life’ कहा जाता है क्योंकि यह जीवन का दूसरा दशक होता है जिसमें व्यक्ति भविष्य की दिशा तय करता है और सामाजिक दायित्वों के प्रति सजग होने लगता है।

किशोरावस्था – अवधारणा

किशोरावस्था को संक्रमणकालीन अवस्था कहा जाता है क्योंकि यह बचपन की मासूमियत और वयस्कता की गंभीरता के बीच की कड़ी होती है। मनोवैज्ञानिक एरिक एरिक्सन के अनुसार यह “Identity vs Role Confusion” का काल है, जहां किशोर यह जानने का प्रयास करता है कि वह कौन है, उसका लक्ष्य क्या है, और समाज में उसकी क्या भूमिका है। इस समय किशोर का मस्तिष्क तेजी से विकसित होता है, जिससे उसमें तार्किकता, विश्लेषणात्मक क्षमता और विचारों की स्पष्टता आती है। साथ ही, इस अवस्था में कई बार दुविधा और असमंजस की स्थिति भी उत्पन्न होती है क्योंकि किशोर पारिवारिक, सामाजिक और शैक्षिक दबावों के बीच अपने लिए एक निश्चित राह तलाशने का प्रयास करता है। यही कारण है कि इस अवस्था को “सम्भावनाओं और चुनौतियों का काल” भी कहा जाता है, जिसमें उचित मार्गदर्शन और सहयोग न मिलने पर किशोर दिशाहीन भी हो सकता है।

किशोरावस्था की विशेषताएँ

1. शारीरिक विशेषताएँ

इस अवस्था में शारीरिक विकास की गति अत्यधिक तीव्र हो जाती है, जिसे “Adolescent Growth Spurt” कहा जाता है। लड़कों में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन की वृद्धि के कारण उनकी मांसपेशियां मजबूत होती हैं, कंधे चौड़े होते हैं, दाढ़ी-मूंछ उगने लगती है और आवाज भारी हो जाती है। वहीं लड़कियों में एस्ट्रोजन हार्मोन के प्रभाव से स्तनों का विकास होता है, कूल्हे चौड़े होते हैं, शरीर में वसा का वितरण बदलता है और मासिक धर्म चक्र की शुरुआत होती है। इस काल में हार्मोनल परिवर्तन के कारण चेहरे पर मुंहासे, त्वचा में तैलीयता और पसीने की ग्रंथियों की सक्रियता बढ़ जाती है। ये सभी परिवर्तन किशोर के आत्मविश्वास और छवि को भी प्रभावित करते हैं। कई बार किशोर इन परिवर्तनों को लेकर चिंतित, असहज या असुरक्षित महसूस करते हैं, इसलिए शिक्षकों और अभिभावकों का यह दायित्व है कि वे उन्हें इन बदलावों को सहजता से स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित करें।

2. संज्ञानात्मक (Cognitive) विशेषताएँ

किशोरावस्था में मस्तिष्क के प्री-फ्रंटल कॉर्टेक्स (Prefrontal Cortex) का विकास तीव्र होता है, जो निर्णय लेने, योजना बनाने और समस्याओं को हल करने में सहायक होता है। इस दौरान अमूर्त चिंतन (Abstract Thinking) विकसित होता है, जिसके कारण किशोर तर्क, सिद्धांत, नैतिकता और दर्शन जैसे जटिल विषयों को समझने में सक्षम हो जाते हैं। वे कल्पना शक्ति का अधिक प्रयोग करते हैं और भविष्य की योजनाओं तथा लक्ष्यों के प्रति गंभीरता दिखाने लगते हैं। यही कारण है कि किशोर इस समय अपने करियर विकल्पों, जीवन मूल्यों और सामाजिक विषयों पर गहराई से सोचने लगते हैं। हालांकि, अनुभव की कमी के कारण कई बार उनके निर्णय अव्यावहारिक भी हो सकते हैं, जिन्हें सही दिशा देने के लिए उचित मार्गदर्शन आवश्यक होता है।

3. सामाजिक विशेषताएँ

इस अवस्था में सामाजिक जीवन का दायरा व्यापक हो जाता है। किशोर अपने परिवार से थोड़ा अलग होकर मित्र समूहों में अधिक समय बिताना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें मित्रों से अपनी पहचान, स्वीकृति और समान विचारधारा का अनुभव होता है। Peer Group का प्रभाव इतना प्रबल होता है कि कई बार किशोर अपने परिवार की अपेक्षाओं से अधिक अपने मित्रों की राय को महत्व देने लगते हैं। इस काल में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण भी स्वाभाविक रूप से बढ़ जाता है, जिससे उनके व्यवहार और सोच में नई भावनाएँ जन्म लेती हैं। किशोरावस्था में नेतृत्व क्षमता, प्रतिस्पर्धा की भावना, सामाजिक भूमिका निभाने की इच्छा, समूह गतिविधियों में भागीदारी और सहयोग की प्रवृत्ति दिखाई देती है, जिससे उनका सामाजिक व्यक्तित्व धीरे-धीरे परिपक्व होने लगता है।

4. भावनात्मक विशेषताएँ

भावनात्मक दृष्टि से किशोरावस्था अत्यंत संवेदनशील काल होता है। इस समय हार्मोनल परिवर्तन के कारण उनके व्यवहार में तीव्र उतार-चढ़ाव देखा जाता है। कभी वे अत्यधिक प्रसन्न और आत्मविश्वासी महसूस करते हैं तो कभी निराशा, अवसाद और अकेलापन महसूस करने लगते हैं। उनका आत्मसम्मान बहुत नाजुक होता है, जिसके कारण थोड़ी सी आलोचना भी उन्हें आहत कर सकती है। इस अवस्था में प्रेम, आकर्षण, घृणा, ईर्ष्या, क्रोध, विद्रोह जैसी भावनाएँ प्रबल रूप से प्रकट होती हैं। यदि किशोरों को उचित भावनात्मक समर्थन, संवाद और सकारात्मक वातावरण न मिले तो वे तनाव, चिंता, हीनभावना या आत्मघात जैसे गंभीर मानसिक संकट का शिकार हो सकते हैं। इसलिए इस काल में माता-पिता, शिक्षकों और काउंसलर का संवेदनशील रवैया अत्यंत आवश्यक है।

5. नैतिक और आत्मिक विशेषताएँ

किशोरावस्था में व्यक्ति के नैतिक और आत्मिक विकास की नींव मजबूत होती है। इस समय वे सही-गलत, न्याय-अन्याय, धर्म-अधर्म जैसे विषयों पर विचार करना प्रारंभ करते हैं। समाज, धर्म, संस्कृति और आध्यात्मिकता के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होती है। आत्मविश्लेषण, आत्मनिरीक्षण और आत्मबोध की प्रवृत्ति विकसित होती है, जिसके कारण वे अपने कार्यों, विचारों और व्यवहार का मूल्यांकन करने लगते हैं। यही काल है जब किशोर अपने जीवन के उद्देश्यों, आदर्शों और मूल्यों का निर्धारण करते हैं। यदि इस अवस्था में उन्हें उचित प्रेरणा और दिशा मिले तो वे उच्च नैतिक मूल्यों वाले, जागरूक और जिम्मेदार नागरिक बन सकते हैं।

निष्कर्ष

किशोरावस्था मानव विकास का वह दौर है जो शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक और नैतिक दृष्टि से अत्यधिक परिवर्तनशील और संवेदनशील होता है। यह एक ऐसा काल है जिसमें किशोर की सही दिशा में वृद्धि न केवल उसके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करती है बल्कि परिवार, समाज और राष्ट्र के भविष्य को भी उज्ज्वल बनाती है। अतः अभिभावकों, शिक्षकों और समाज का यह कर्तव्य है कि वे किशोरों को समझें, उन्हें पर्याप्त स्वतंत्रता, प्रेम, मार्गदर्शन और सहयोग प्रदान करें ताकि वे अपनी क्षमताओं का पूर्ण विकास कर एक मजबूत, आत्मनिर्भर और संतुलित व्यक्तित्व का निर्माण कर सकें।

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