सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Gender Issues in Curriculum: Girls as Learners पाठ्यक्रम में जेंडर मुद्दे: बालिकाओं के रूप में शिक्षार्थी

Gender issues in curriculum highlighting girls as learners, classroom experiences, biases, and educational challenges


1. प्रस्तावना

शिक्षा को समाज में समानता लाने का सबसे सशक्त साधन माना जाता है। परंतु वास्तविकता यह है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में भी जेंडर आधारित असमानताएँ गहराई से मौजूद हैं। जब हम बालिकाओं के शिक्षार्थी के रूप में अनुभवों को देखते हैं, तो स्पष्ट होता है कि उन्हें न केवल पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है बल्कि विद्यालय और पाठ्यक्रम भी कहीं न कहीं इस भेदभाव को संरक्षित करते हैं। यह आवश्यक है कि हम उनके अनुभवों का विश्लेषण करें ताकि शिक्षा व्यवस्था को जेंडर समावेशी बनाया जा सके और बालिकाओं के विकास में किसी भी प्रकार की बाधा न रहे।

2. बालिकाओं की स्थिति: एक सामाजिक परिप्रेक्ष्य

भारतीय समाज में बालिकाओं की भूमिका को पारंपरिक दृष्टिकोणों से जोड़ा जाता रहा है। जन्म से ही उन्हें ‘पराया धन’ मानना, उनके पालन-पोषण में निवेश को व्यर्थ समझना और उनकी शिक्षा को केवल विवाह तक सीमित देखने की सोच आज भी व्यापक है। बालिकाओं पर घरेलू कार्यों का बोझ डालना, भाई के पढ़ने के दौरान उन्हें काम के लिए बुलाना, या यह कहना कि 'तुम्हें तो ससुराल ही जाना है' – ये सभी बातें उनके आत्मविश्वास, शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण और सीखने की क्षमता को प्रभावित करती हैं। इस सोच का प्रभाव यह होता है कि बालिकाएँ स्वयं को द्वितीयक नागरिक मानने लगती हैं और उनकी आकांक्षाएँ सीमित हो जाती हैं।

3. पाठ्यक्रम और बालिकाओं की अदृश्यता

हमारे पाठ्यक्रम में बालिकाओं और महिलाओं की अदृश्यता एक गंभीर मुद्दा है। स्कूल की किताबों में प्रायः पुरुष नेताओं, वैज्ञानिकों, योद्धाओं और लेखकों के बारे में विस्तार से पढ़ाया जाता है, जबकि महिलाओं के योगदान को या तो बहुत संक्षेप में बताया जाता है या पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, इतिहास की पुस्तकों में रानी लक्ष्मीबाई, अन्ना भाऊ साठे या सावित्रीबाई फुले जैसे नाम उल्लेखित तो हैं, पर उनका विश्लेषण और योगदान सीमित पंक्तियों में समेट दिया जाता है। विज्ञान और गणित की किताबों में मैडम क्यूरी, कल्पना चावला, टेसी थॉमस जैसी महिला वैज्ञानिकों का नाम बहुत कम आता है। इससे बालिकाओं को यह संदेश जाता है कि समाज के निर्माण और ज्ञान के विकास में उनका स्थान गौण है, जबकि पुरुषों को 'मानक' और 'आदर्श' के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

4. कक्षा का वातावरण और शिक्षक दृष्टिकोण

विद्यालयों और कक्षाओं में भी बालिकाओं को कई प्रकार के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भेदभाव का सामना करना पड़ता है। शिक्षक कई बार लड़कों को अधिक बुद्धिमान, तार्किक और आत्मविश्वासी मानते हैं, जबकि लड़कियों को अनुशासित, विनम्र और मेहनती लेकिन कम तार्किक समझ वाला समझा जाता है। कक्षा में प्रश्न पूछने या उत्तर देने के अवसर प्रायः लड़कों को दिए जाते हैं। जब कोई लड़की उत्तर नहीं दे पाती तो यह कहकर टाल दिया जाता है कि ‘लड़कियों से इतना ही होगा’। इसके अलावा, विषय चयन में भी भेदभाव होता है। गणित, विज्ञान, तकनीकी, कंप्यूटर साइंस जैसे विषयों को लड़कों के लिए उपयुक्त माना जाता है जबकि लड़कियों को कला, गृहविज्ञान, भाषा, सामाजिक विज्ञान जैसे पारंपरिक विषयों की ओर प्रवृत्त किया जाता है। इस प्रकार, शिक्षक का दृष्टिकोण भी बालिकाओं की शैक्षिक आकांक्षाओं और आत्मविश्वास को सीमित करता है।

5. पाठ्यपुस्तकों में चित्रण और उदाहरण

पाठ्यपुस्तकों में चित्रण और उदाहरणों का बालिकाओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अधिकतर किताबों में लड़कों को डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, पायलट, नेता, पुलिस अधिकारी आदि के रूप में दिखाया जाता है, जबकि लड़कियों को घरेलू कार्य, रसोई, बच्चों की देखभाल या अध्यापिका की भूमिका में प्रस्तुत किया जाता है। ये चित्रण उनकी सोच को सीमित कर देते हैं और उन्हें यह मानने पर विवश कर देते हैं कि कुछ भूमिकाएँ केवल पुरुषों के लिए ही उचित हैं। जब वे स्वयं को किसी वैज्ञानिक प्रयोग, तकनीकी कार्य, या नेतृत्व की स्थिति में नहीं देखतीं तो उनका आत्मविश्वास और कैरियर आकांक्षाएँ प्रभावित होती हैं।

6. विद्यालयी व्यवस्थाएँ और नीतियाँ

विद्यालयों में बालिकाओं के लिए बुनियादी सुविधाओं की कमी उनकी शिक्षा को प्रभावित करती है। कई ग्रामीण या अर्ध-शहरी विद्यालयों में अलग शौचालय नहीं होने के कारण किशोरावस्था में लड़कियों का स्कूल छोड़ने का प्रतिशत बढ़ जाता है। मासिक धर्म स्वच्छता के प्रति जागरूकता और सुविधाओं का अभाव भी बड़ी चुनौती है। इसके अलावा, स्कूल आने-जाने के दौरान सुरक्षा की चिंता, छेड़छाड़ की घटनाएँ, और सामाजिक मान्यताएँ बालिकाओं की उपस्थिति और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। बाल विवाह और घरेलू जिम्मेदारियाँ भी उनके ड्रॉपआउट रेट को बढ़ाते हैं। विद्यालयों की नीतियों में इन मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता और ठोस समाधान का अभाव उनकी शिक्षा यात्रा को बाधित करता है।

7. समाधान और मार्ग

1. जेंडर समावेशी पाठ्यक्रम निर्माण:

पाठ्यक्रम में महिलाओं के विविध क्षेत्रों में योगदान को उचित स्थान देना चाहिए। महिला वैज्ञानिकों, लेखिकाओं, खिलाड़ियों, किसानों, श्रमिकों, आंदोलनकारियों के उदाहरणों को शामिल किया जाए ताकि बालिकाएँ स्वयं को इन भूमिकाओं में देख सकें।

2. शिक्षकों का जेंडर सेंसिटाइजेशन:

शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वे कक्षा में लड़कियों को भी समान अवसर दें, उनके उत्तरों को गंभीरता से सुनें और उनकी क्षमता पर भरोसा जताएँ। उनका प्रोत्साहन बालिकाओं के आत्मविश्वास को कई गुना बढ़ा सकता है।

3. कक्षा की भागीदारी आधारित शिक्षण पद्धति:

ऐसी गतिविधियाँ कराई जाएँ जिनमें सभी विद्यार्थी – विशेषकर लड़कियाँ – अपने विचार, तर्क और अनुभव व्यक्त कर सकें। समूह चर्चा, प्रोजेक्ट वर्क और रोल प्ले जैसे तरीकों से उनकी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है।

4. विद्यालयी नीतियाँ और सुविधाएँ:

बालिकाओं के लिए स्वच्छ और अलग शौचालय, मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन, सुरक्षित परिवहन व्यवस्था, छेड़छाड़ विरोधी नीति और काउंसलिंग सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए ताकि वे बिना भय के शिक्षा प्राप्त कर सकें।

8. निष्कर्ष

बालिकाओं को शिक्षार्थी के रूप में केवल छात्रों के रूप में नहीं बल्कि समाज के परिवर्तनकारी एजेंट के रूप में देखना होगा। यदि हम चाहते हैं कि समाज में वास्तविक समानता स्थापित हो तो पाठ्यक्रम, शिक्षण पद्धतियों और विद्यालय की नीतियों में जेंडर सेंसिटिव बदलाव लाने होंगे। शिक्षा का उद्देश्य तभी पूरा होगा जब प्रत्येक बालिका स्वयं को सक्षम, सुरक्षित और सम्मानित महसूस करेगी और अपनी क्षमताओं का संपूर्ण विकास कर सकेगी। शिक्षा का वास्तविक अर्थ ही तब सिद्ध होगा जब बालिकाएँ भी आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और सशक्त बनेंगी।

Read more....
Topics related to Political Science
Topics related to B. Ed.

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

B.Ed. Detailed Notes in Hindi बी. एड. पाठ्यक्रम के हिन्दी में विस्तृत नोट्स

B.Ed. Curriculum Papers: Childhood, Growing up and Learning Contemporary India and Education Yoga for Holistic Health Understanding Discipline and Subjects Teaching and Learning Knowledge and Curriculum Part I Assessment for Learning Gender, School and Society Knowledge and Curriculum Part II Creating an Inclusive School Guidance and Counseling Health and Physical Education Environmental Studies Pedagogy of School Subjects Pedagogy of Civics Pedagogy of Art Pedagogy of Social Science Pedagogy of Financial Accounting Topics related to B.Ed. Topics related to Political Science

Assessment for Learning

List of Contents: Meaning & Concept of Assessment, Measurement & Evaluation and their Interrelationship मूल्यांकन, मापन और मूल्यनिर्धारण का अर्थ एवं अवधारणा तथा इनकी पारस्परिक सम्बद्धता Purpose of Evaluation शिक्षा में मूल्यांकन का उद्देश्य Principles of Assessment आकलन के सिद्धांत Functions of Measurement and Evaluation in Education शिक्षा में मापन और मूल्यांकन की कार्यप्रणालियाँ Steps of Evaluation Process | मूल्यांकन प्रक्रिया के चरण Types of Measurement मापन के प्रकार Tools of Measurement and Evaluation मापन और मूल्यांकन के उपकरण Techniques of Evaluation मूल्यांकन की तकनीकें Guidelines for Selection, Construction, Assembling, and Administration of Test Items परीक्षण कथनों के चयन, निर्माण, संयोजन और प्रशासन के दिशानिर्देश Characteristics of a Good Evaluation System – Reliability, Validity, Objectivity, Comparability, Practicability एक अच्छी मूल्यांकन प्रणाली की विशेषताएँ – विश्वसनीयता, वैधता, वस्तुनिष्ठता, तुलनात्मकता, व्यावहारिकता Analysis and Interpretation of ...

Understanding discipline and subjects

Click the Topic Name given below: Knowledge - Definition, its genesis and general growth from the remote past to 21st Century  ज्ञान - परिभाषा, उत्पत्ति और प्राचीन काल से लेकर 21वीं सदी तक इसका सामान्य विकास Nature and Role of Disciplinary Knowledge in the School Curriculum  अनुशासनात्मक ज्ञान की प्रकृति और स्कूल पाठ्यक्रम में इसकी भूमिका Paradigm Shifts in the Nature of Discipline  अनुशासन की प्रकृति में रूपांतरकारी परिवर्तन Redefinition and Reformulation of Disciplines and School Subjects Over the Last Two Centuries  पिछली दो शताब्दियों में विषयों और शैक्षणिक अनुशासनों का पुनर्परिभाषीकरण और पुनरूपण John Dewey's Vision: The Role of Core Disciplines in School Curriculum  जॉन डी.वी. की दृष्टि: स्कूल पाठ्यक्रम में मुख्य विषयों की भूमिका Sea Change in Disciplinary Areas: A Perspective on Social Science, Natural Science, and Linguistics  विषय क्षेत्रों में व्यापक परिवर्तन: सामाजिक विज्ञान, प्राकृतिक विज्ञान और भाषाविज्ञान पर एक दृष्टिकोण Selection Criteria of C...