Life Introduction and Political Ideology of Dr. Keshav Baliram Hedgewar डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जीवन परिचय और राजनैतिक विचारधारा
🔷 परिचय
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन महान व्यक्तित्वों में से एक थे, जिन्होंने केवल राजनीतिक स्वतंत्रता को ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण को भी अपना लक्ष्य बनाया। वे न केवल एक प्रखर राष्ट्रभक्त थे, बल्कि एक कुशल संगठनकर्ता और प्रेरक नेतृत्वकर्ता भी थे। उन्होंने एक ऐसे संगठन की नींव रखी, जिसने स्वतंत्र भारत के सामाजिक ढांचे को गहराई से प्रभावित किया और जनमानस को एक वैचारिक और सांस्कृतिक दिशा प्रदान की। उनका जीवन सेवा, समर्पण और देशभक्ति का प्रतीक रहा है।
🔷 प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को महाराष्ट्र के नागपुर जिले में स्थित एक मध्यमवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता बलिराम पंत हेडगेवार और माता रेवंतीबाई धार्मिक प्रवृत्ति के थे, जिनका परिवार धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में रमा हुआ था। बचपन से ही केशव में अन्याय के प्रति विरोध और आत्मसम्मान की भावना प्रबल थी। वे अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों से बाल्यकाल में ही असंतुष्ट हो गए थे। स्कूली शिक्षा के दौरान उन्होंने ब्रिटिश सम्राट की जयकार लगाने से इंकार कर दिया था, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि उनमें स्वतंत्र चिंतन और राष्ट्रप्रेम गहराई से रचा-बसा है।
उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए कोलकाता का रुख किया, जो उस समय भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का प्रमुख केंद्र था। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान वे क्रांतिकारी संगठनों से जुड़े और राष्ट्रवादी विचारधारा को आत्मसात किया। कोलकाता में रहते हुए उन्होंने अनुशीलन समिति जैसे क्रांतिकारी संगठनों से संपर्क किया और बंगाल की क्रांतिकारी चेतना ने उनके व्यक्तित्व को राष्ट्रसेवा की ओर उन्मुख कर दिया।
🔷 स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ाव और क्रांतिकारी दृष्टिकोण
डॉ. हेडगेवार केवल विचारों के क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए सक्रिय रूप से भाग लिया। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से भी जुड़े और 1920 के असहयोग आंदोलन में भाग लिया। अंग्रेजी शासन के खिलाफ उनके तेवर इतने तीव्र थे कि वे दो बार जेल गए। हालांकि, उन्होंने जल्दी ही यह अनुभव किया कि केवल राजनीतिक आंदोलन पर्याप्त नहीं हैं, जब तक समाज की मानसिकता, संगठनात्मक शक्ति और सांस्कृतिक चेतना नहीं जाग्रत होती। इसी सोच के आधार पर उन्होंने सामाजिक संगठन की आवश्यकता को महसूस किया, जो देशवासियों में राष्ट्रीय भावना को मजबूत कर सके।
🔷 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना
डॉ. हेडगेवार का सबसे महत्वपूर्ण योगदान 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना रहा। उन्होंने विजयादशमी के पावन अवसर पर इस संगठन की नींव रखी। उनका उद्देश्य एक अनुशासित, संगठित और राष्ट्रभक्ति से प्रेरित समाज का निर्माण करना था। वे मानते थे कि भारत की सबसे बड़ी कमजोरी असंगठित समाज है, जिसे संगठित कर ही हम राष्ट्र के वास्तविक स्वरूप को पुनर्स्थापित कर सकते हैं।
संघ की शाखाएं सामाजिक अनुशासन, राष्ट्रप्रेम, सेवा, और नेतृत्व निर्माण का माध्यम बनीं। वे चाहते थे कि भारतवासी जाति, भाषा, क्षेत्र आदि के विभाजन से ऊपर उठकर एक सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में जागृत हों। उन्होंने संघ को राजनीतिक मंच नहीं बनाया, बल्कि वैचारिक और सांस्कृतिक चेतना के रूप में विकसित किया। उनका यह विचार आज भी संघ के कार्य में प्रतिबिंबित होता है।
🔷 राजनैतिक विचारधारा
डॉ. हेडगेवार की राजनैतिक विचारधारा भारत की सांस्कृतिक एकता, स्वदेशी चेतना, और आत्मनिर्भरता पर आधारित थी। उनका विश्वास था कि भारत केवल एक भूगोलिक इकाई नहीं है, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक राष्ट्र है जिसकी आत्मा उसकी हजारों वर्षों पुरानी परंपराओं में बसती है।
▪️ 1. सांस्कृतिक राष्ट्रवाद:
उनकी सोच में राष्ट्र की पहचान उसकी संस्कृति, सभ्यता और परंपरा से होती है। वे भारत को "राष्ट्र देवता" मानते थे, जिसकी सेवा करना ही जीवन का सर्वोच्च धर्म है। उनके लिए राष्ट्रभक्ति केवल नारा नहीं, बल्कि कर्म और जीवनचर्या थी।
▪️ 2. स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत:
डॉ. हेडगेवार स्वदेशी वस्तुओं और विचारों के पक्षधर थे। वे विदेशी उत्पादों और मानसिकता के विरोधी थे और भारतीयों को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देते थे। उनका मानना था कि जब तक हम अपनी संस्कृति, भाषा और वस्त्रों पर गर्व नहीं करेंगे, तब तक सच्ची स्वतंत्रता संभव नहीं है।
▪️ 3. सामाजिक समरसता:
उन्होंने जातिगत भेदभाव, अस्पृश्यता और सामाजिक विघटन के विरुद्ध काम किया। संघ में सभी वर्गों, जातियों और समुदायों का समान रूप से स्वागत किया गया। वे सामाजिक एकता को राष्ट्र निर्माण की रीढ़ मानते थे।
▪️ 4. अनुशासन और संगठन:
डॉ. हेडगेवार के नेतृत्व में संघ का ढांचा अत्यंत अनुशासित और व्यवस्थित बना। उन्होंने जीवन भर संगठन निर्माण और नेतृत्व विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। वे मानते थे कि संगठित समाज ही सशक्त राष्ट्र की नींव होता है।
🔷 उनकी विचारधारा की आज की प्रासंगिकता
डॉ. हेडगेवार की विचारधारा आज भी भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में प्रासंगिक बनी हुई है। उनकी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना ने भारत को एक वैचारिक दिशा दी है, जो केवल सीमाओं तक सीमित नहीं, बल्कि भारतीय मानस की गहराई तक जाती है। उनके द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन चुका है, जो सामाजिक सेवा, आपदा प्रबंधन, शिक्षा और देशभक्ति के प्रचार-प्रसार में निरंतर सक्रिय है। उनके विचार आज भी युवाओं में प्रेरणा का संचार करते हैं।
🔷 निधन
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का निधन 21 जून 1940 को हुआ। यद्यपि उनका शारीरिक जीवन समाप्त हुआ, लेकिन उनके विचार, संगठन और कार्य आज भी जीवंत हैं। वे भारत माता के ऐसे सपूत थे जिन्होंने जीवनभर राष्ट्रसेवा की और अपने कार्यों से देश के भविष्य की नींव रखी।
🔷 निष्कर्ष
डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जीवन और विचारधारा भारतीय समाज के पुनरुत्थान की प्रेरणास्रोत है। उन्होंने यह दिखाया कि केवल राजनीतिक क्रांति नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जागरण ही भारत को विश्वगुरु बना सकता है। उनके द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज देश के करोड़ों युवाओं को राष्ट्रसेवा के लिए प्रेरित कर रहा है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि आत्मविश्वास, अनुशासन और संगठन की शक्ति से हम किसी भी राष्ट्र को सशक्त बना सकते हैं।
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