Factors affecting Development (especially in the context of family and school) and their relationship with learning विकास को प्रभावित करने वाले कारक (विशेष रूप से परिवार और स्कूल के संदर्भ में) और उनके अधिगम से संबंध
प्रस्तावना
विकास एक सतत, क्रमबद्ध और बहुआयामी प्रक्रिया है, जिसमें शारीरिक, संज्ञानात्मक, संवेगात्मक, सामाजिक और नैतिक सभी पक्ष शामिल होते हैं। हर बच्चा अपने जीवन में जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक विभिन्न विकासात्मक चरणों से गुजरता है। इन चरणों में उसकी वृद्धि और अधिगम को प्रभावित करने वाले अनेक कारक सक्रिय रहते हैं। विशेष रूप से, परिवार और विद्यालय ऐसे महत्त्वपूर्ण कारक हैं जो उसके जीवन में गहरी छाप छोड़ते हैं। परिवार उसके व्यक्तित्व का आधार बनाता है, वहीं विद्यालय उसके ज्ञान, सोच और सामाजिक कौशलों को विस्तार देता है। इन दोनों के प्रभाव से ही बालक का संपूर्ण विकास और अधिगम निर्धारित होता है। अतः इन कारकों की समझ प्रत्येक शिक्षक, अभिभावक और शोधार्थी के लिए अनिवार्य है।
1. परिवार का प्रभाव
(a) आर्थिक स्थिति का प्रभाव
परिवार की आर्थिक स्थिति बालक के विकास और अधिगम को सीधे प्रभावित करती है। यदि परिवार आर्थिक रूप से संपन्न है तो बालक को पौष्टिक भोजन, सुरक्षित आवास, अच्छे कपड़े, स्वास्थ्य सेवाएँ और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साधन उपलब्ध होते हैं। यह सब मिलकर उसके शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास को प्रोत्साहित करते हैं। उदाहरण के लिए, अच्छा पोषण मस्तिष्क के विकास को सुदृढ़ करता है जिससे उसकी सीखने की क्षमता बढ़ती है। दूसरी ओर, गरीबी और आर्थिक अभाव के कारण बच्चे में कुपोषण, बीमारियाँ, असुरक्षा और पढ़ाई से विमुखता देखी जाती है। ऐसे बच्चे विद्यालय में कम आत्मविश्वास के साथ आते हैं, उनकी एकाग्रता कमजोर होती है और उनके अधिगम के अवसर सीमित हो जाते हैं।
(b) शैक्षिक वातावरण का प्रभाव
घर का शैक्षिक वातावरण बच्चे के अधिगम का आधार बनता है। यदि माता-पिता स्वयं शिक्षित हैं, पुस्तकें पढ़ते हैं, बच्चे के प्रश्नों का उत्तर देते हैं और उसकी पढ़ाई में रुचि लेते हैं, तो बालक में स्वाभाविक रूप से सीखने की प्रेरणा उत्पन्न होती है। वह नए-नए विषयों को जानने का प्रयास करता है, जिज्ञासु बनता है और उसकी तर्कशक्ति विकसित होती है। इसके विपरीत, यदि परिवार में पढ़ाई को महत्व नहीं दिया जाता, शैक्षिक चर्चा नहीं होती, तो बच्चे में सीखने की प्रेरणा का अभाव देखा जाता है, जिससे उसका अधिगम स्तर सीमित रह जाता है।
(c) पारिवारिक संबंध और संवेगात्मक वातावरण
परिवार में प्रेम, अपनापन, सुरक्षा और सहयोग का वातावरण बच्चे के संवेगात्मक विकास के लिए आवश्यक है। यदि माता-पिता और अन्य सदस्य एक-दूसरे का सम्मान करते हैं, संवाद करते हैं और बच्चे की भावनाओं का सम्मान करते हैं तो उसमें आत्मविश्वास, साहस और सामाजिकता का विकास होता है। ऐसे बच्चे विद्यालय में भी अच्छे से सीखते हैं। परंतु यदि परिवार में कलह, मारपीट, उपेक्षा या अत्यधिक नियंत्रण का वातावरण है तो बच्चा मानसिक रूप से असुरक्षित महसूस करता है। उसमें डर, चिड़चिड़ापन और एकाकीपन पनपता है, जिससे उसकी पढ़ाई में रुचि घट जाती है और उसका अधिगम प्रभावित होता है।
(d) पालन-पोषण की शैली
पालन-पोषण की शैली का सीधा प्रभाव बच्चे के व्यवहार, व्यक्तित्व और अधिगम पर पड़ता है। लोकतांत्रिक और प्रोत्साहनात्मक पालन-पोषण से बच्चा आत्मनिर्भर, रचनात्मक और जिम्मेदार बनता है। ऐसे माता-पिता बच्चों की राय सुनते हैं, उनके निर्णय लेने के कौशल को प्रोत्साहित करते हैं। वहीं अत्यधिक कठोर, नियंत्रक या उपेक्षात्मक पालन-पोषण बच्चों में हीनभावना, डर, विद्रोह और अधिगम से दूरी पैदा कर सकता है। उदाहरण के लिए, यदि माता-पिता पढ़ाई के प्रति उत्साह बढ़ाएँ, बच्चों की समस्याओं को सुनें और मार्गदर्शन दें तो बच्चा पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन करता है।
2. विद्यालय का प्रभाव
(a) शैक्षिक वातावरण और संसाधनों का प्रभाव
विद्यालय का वातावरण बच्चे के संपूर्ण विकास और अधिगम को प्रभावित करता है। सुव्यवस्थित कक्षा, पर्याप्त प्रकाश, हवादार कमरे, पुस्तकालय, कंप्यूटर लैब, खेल का मैदान, साफ-सफाई आदि से बालक को सीखने में सुखद अनुभव होता है। संसाधनयुक्त विद्यालय बच्चों की जिज्ञासा, रचनात्मकता और तर्कशक्ति को विकसित करते हैं। वहीं संसाधनों के अभाव में बच्चों को पाठों की समझ में कठिनाई होती है, जिससे अधिगम स्तर प्रभावित होता है।
(b) शिक्षक का दृष्टिकोण और व्यवहार
शिक्षक बच्चे के विकास में माता-पिता के बाद सबसे बड़ा योगदान देते हैं। शिक्षक का प्रेमपूर्ण, सहयोगात्मक, प्रेरक और निष्पक्ष व्यवहार बच्चों में आत्मविश्वास पैदा करता है। जब शिक्षक बच्चों को प्रश्न पूछने, तर्क करने और अपनी राय व्यक्त करने का अवसर देते हैं तो बच्चों की सोचने और समझने की क्षमता बढ़ती है। इसके विपरीत यदि शिक्षक कठोर, उपेक्षात्मक या तिरस्कारपूर्ण व्यवहार करें तो बच्चे में भय, असुरक्षा और अधिगम के प्रति अरुचि उत्पन्न हो सकती है।
(c) सहपाठियों का प्रभाव
विद्यालय में सहपाठियों का समूह बच्चे के सामाजिक विकास को आकार देता है। सामूहिक गतिविधियाँ, खेल, समूह कार्य और परियोजना कार्यों के माध्यम से बच्चों में नेतृत्व, सहयोग, प्रतिस्पर्धा और मित्रता जैसे गुण विकसित होते हैं। यदि सहपाठी प्रोत्साहन देने वाले और सहयोगी हों तो बच्चा आत्मविश्वासी बनता है और उसका अधिगम भी बेहतर होता है। लेकिन उपेक्षा, तिरस्कार, ईर्ष्या या बुलीइंग (bullying) जैसे व्यवहार बच्चे के आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचा सकते हैं और उसका विकास अवरुद्ध कर सकते हैं।
(d) विद्यालय की संस्कृति और प्रबंधन
विद्यालय की संस्कृति – जैसे अनुशासन, मूल्य आधारित शिक्षा, लोकतांत्रिक व्यवहार, प्रोत्साहन की संस्कृति – बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में योगदान देती है। अच्छा प्रबंधन संसाधनों का उचित वितरण, शिक्षक-छात्र सहयोग, गतिविधि आधारित शिक्षण और मूल्यनिष्ठ वातावरण सुनिश्चित करता है। इससे बच्चे के अधिगम में गहराई और निरंतरता आती है।
3. परिवार, विद्यालय और अधिगम का पारस्परिक संबंध
परिवार और विद्यालय दोनों ही बच्चे के विकास और अधिगम के आवश्यक स्तंभ हैं। परिवार से बच्चे को प्रेम, सुरक्षा, भाषा, मूल्य और आदतें मिलती हैं। विद्यालय उसे औपचारिक ज्ञान, सामाजिक व्यवहार, अनुशासन, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और नैतिकता सिखाता है। यदि परिवार और विद्यालय में अच्छा तालमेल हो, नियमित संवाद हो और दोनों बच्चे की प्रगति में रुचि लें तो उसका अधिगम सर्वश्रेष्ठ स्तर पर पहुँच सकता है।
उदाहरण के लिए, यदि माता-पिता शिक्षक से नियमित संपर्क रखते हैं, घर पर अभ्यास कराते हैं और विद्यालय भी अभिभावकों को बच्चों की प्रगति से अवगत कराता है, तो बच्चे का आत्मविश्वास कई गुना बढ़ जाता है। वहीं यदि परिवार और विद्यालय के बीच संवादहीनता हो तो बच्चे में पढ़ाई के प्रति भ्रम, निराशा और अरुचि देखी जाती है।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः, विकास को प्रभावित करने वाले कारकों में परिवार और विद्यालय की भूमिका सर्वोपरि है। परिवार बच्चे के जीवन की नींव रखता है जबकि विद्यालय उसकी प्रतिभाओं को निखारता है। दोनों का स्वस्थ, सहयोगात्मक और प्रेरक वातावरण ही बच्चे के शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक और नैतिक विकास को संपूर्णता प्रदान कर सकता है। यदि हम शिक्षकों और अभिभावकों के रूप में इस जिम्मेदारी को समझें और मिलकर प्रयास करें तो हम बच्चों को सफल, संतुलित और जिम्मेदार नागरिक बना सकते हैं।
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