Motivation: meaning, concept and its Implications for Learning अभिप्रेरणा - अर्थ, अवधारणा और अधिगम में इसके निहितार्थ
अभिप्रेरणा : अर्थ
अभिप्रेरणा शब्द संस्कृत के ‘प्रेरणा’ से बना है जिसका अर्थ है – किसी व्यक्ति के भीतर ऐसी मानसिक शक्ति या ऊर्जा का संचार करना जो उसे किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करे। मनोविज्ञान में अभिप्रेरणा (Motivation) को व्यक्ति के व्यवहार का गतिशील बल कहा जाता है। यह वह आंतरिक स्थिति है जो किसी कार्य को आरम्भ कराने, उसे दिशा देने और लक्ष्य तक पहुँचाने में सहायक होती है। दूसरे शब्दों में, अभिप्रेरणा व्यक्ति की आवश्यकताओं, इच्छाओं, अभिलाषाओं और लक्ष्यों से उत्पन्न होती है और उसके व्यवहार को सक्रिय तथा नियंत्रित करने का कार्य करती है।
उदाहरण के लिए, जब कोई विद्यार्थी यह सोचता है कि उसे भविष्य में एक सफल डॉक्टर बनना है, तो उसकी यह आकांक्षा उसे कठिन परिश्रम करने, नियमित अध्ययन करने और आत्म-नियंत्रण बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है। इसी प्रकार, यदि कोई व्यक्ति भूखा है तो भोजन प्राप्त करना उसकी सबसे बड़ी प्रेरणा बन जाती है और तब तक उसका व्यवहार उसी दिशा में रहता है जब तक उसकी भूख शांत न हो जाए। इस प्रकार, अभिप्रेरणा मानव व्यवहार की दिशा और तीव्रता दोनों को नियंत्रित करती है।
अभिप्रेरणा : अवधारणा
अभिप्रेरणा एक जटिल और बहुआयामी अवधारणा है। यह केवल एक भावना नहीं बल्कि एक व्यापक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें कई घटक शामिल होते हैं। सबसे पहले ‘आवश्यकता (Need)’ उत्पन्न होती है, जैसे – भोजन, सुरक्षा, प्रेम, मान-सम्मान या आत्म-सिद्धि की आवश्यकता। जब कोई आवश्यकता प्रबल हो जाती है तो व्यक्ति के भीतर ‘चेतना (Drive)’ उत्पन्न होती है जो उसे सक्रिय करती है। इसके बाद व्यक्ति एक ‘लक्ष्य (Goal)’ निर्धारित करता है जो उसकी आवश्यकता को पूरा कर सके और उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वह ‘व्यवहार (Behaviour)’ करता है।
मुख्य विशेषताएँ –
ऊर्जा का संचार: अभिप्रेरणा व्यक्ति के व्यवहार में ऊर्जा का संचार करती है जिससे वह सक्रिय बनता है।
दिशा प्रदान करना: यह व्यक्ति को बताती है कि उसे किस दिशा में प्रयास करना है।
लक्ष्य की प्राप्ति तक बनाए रखना: यह व्यक्ति को तब तक प्रेरित रखती है जब तक वह अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर ले।
व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों आवश्यकताओं से जुड़ी: जैसे – भूख एक जैविक आवश्यकता है, जबकि मान-सम्मान एक सामाजिक आवश्यकता है और दोनों के लिए व्यक्ति प्रेरित होता है।
अभिप्रेरणा के प्रकार –
1. आंतरिक अभिप्रेरणा (Intrinsic Motivation): जब व्यक्ति किसी कार्य को करने में स्वयं आनंद महसूस करता है और बाहरी पुरस्कार की अपेक्षा नहीं करता। जैसे – कोई विद्यार्थी संगीत सीखता है क्योंकि उसे संगीत अच्छा लगता है।
2. बाह्य अभिप्रेरणा (Extrinsic Motivation): जब व्यक्ति किसी कार्य को बाहरी पुरस्कार, प्रशंसा या लाभ के लिए करता है। जैसे – विद्यार्थी केवल अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए पढ़ाई करता है।
3. सकारात्मक अभिप्रेरणा (Positive Motivation): जब व्यक्ति को पुरस्कार, प्रशंसा, सफलता आदि की इच्छा प्रेरित करती है।
4. नकारात्मक अभिप्रेरणा (Negative Motivation): जब व्यक्ति भय, दंड या असफलता के डर से प्रेरित होता है। जैसे – परीक्षा में फेल होने के डर से पढ़ाई करना।
अतः अभिप्रेरणा व्यक्ति के व्यवहार का मूल कारण है और यह उसे निरंतर सक्रिय बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
अधिगम में अभिप्रेरणा के निहितार्थ
अधिगम (Learning) की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। अधिगम केवल शिक्षक के पढ़ाने पर निर्भर नहीं करता, बल्कि विद्यार्थी की मानसिक तैयारी, रुचि, लक्ष्य और उसके प्रयास पर भी निर्भर करता है। यदि विद्यार्थी में सीखने की तीव्र इच्छा और प्रेरणा होगी तो वह जटिल से जटिल विषयवस्तु को भी सरलता से समझ लेगा। इसके निहितार्थ निम्न प्रकार से स्पष्ट होते हैं –
1. अधिगम का उद्दीपन
अभिप्रेरणा अधिगम की मूलभूत आवश्यकता है। यह अधिगम प्रक्रिया को आरंभ करने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई विद्यार्थी डॉक्टर बनने के लिए दृढ़ संकल्पित है तो वह कठिन विषयों को भी रुचि और ध्यान से पढ़ेगा। वहीं यदि उसमें प्रेरणा का अभाव होगा तो सबसे सरल विषय भी उसे उबाऊ लगेंगे। अतः शिक्षक को विद्यार्थियों की अभिप्रेरणा को जागृत करने के लिए प्रेरक कहानियाँ, उदाहरण, प्रश्नोत्तरी और जीवनोपयोगी गतिविधियों का प्रयोग करना चाहिए ताकि उनकी जिज्ञासा और सीखने की इच्छा प्रबल बनी रहे।
2. लक्ष्य निर्धारण और उपलब्धि
अभिप्रेरणा व्यक्ति को स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करने के लिए प्रेरित करती है। लक्ष्यहीन अध्ययन निरर्थक होता है जबकि लक्ष्य आधारित अध्ययन प्रभावकारी और परिणामदायक होता है। जब विद्यार्थी जानता है कि उसे किस परीक्षा की तैयारी करनी है, किस विषय में विशेषज्ञता प्राप्त करनी है, तो वह उसी के अनुसार योजना बनाकर पढ़ाई करता है। यह लक्ष्य उसे दिशा, अनुशासन और निरंतरता प्रदान करता है और उसकी उपलब्धियों को सुनिश्चित करता है।
3. निरंतरता और स्थायित्व
अभिप्रेरणा अधिगम में निरंतरता बनाए रखती है। कई बार विद्यार्थी अधिगम प्रक्रिया में आरंभ में तो रुचि दिखाते हैं लेकिन कुछ समय बाद उनका मन उचट जाता है। ऐसे में यदि उनकी अभिप्रेरणा प्रबल होगी तो वह हर कठिनाई का सामना कर पढ़ाई जारी रखेंगे। उदाहरण के लिए, प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में महीनों तक अध्ययन की आवश्यकता होती है। यहाँ केवल बाहरी प्रेरणा नहीं बल्कि आंतरिक अभिप्रेरणा ही उन्हें निरंतर प्रयासरत बनाए रखती है, जिससे अधिगम स्थायी और उपयोगी बनता है।
4. व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन
अभिप्रेरणा व्यक्ति के व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन लाती है। प्रेरित विद्यार्थी कक्षा में समय पर पहुँचते हैं, अध्यापकों के प्रति सम्मान रखते हैं, समय प्रबंधन, अनुशासन, आत्म-नियंत्रण जैसे गुणों का विकास करते हैं। ये सभी परिवर्तन उनके व्यक्तित्व विकास को भी सशक्त बनाते हैं। उदाहरण के लिए, खेलों में चयनित होने की प्रेरणा खिलाड़ी को नियमित अभ्यास, संतुलित आहार और अनुशासित जीवन शैली के लिए प्रेरित करती है।
5. शिक्षण विधियों का प्रभाव
अभिप्रेरणा का स्तर शिक्षण विधियों पर भी निर्भर करता है। यदि शिक्षक केवल पाठ्यपुस्तक पढ़कर समझाते हैं तो विद्यार्थी जल्दी ऊब सकते हैं। लेकिन यदि शिक्षण में गतिविधि आधारित विधियाँ, प्रयोग, मॉडल, समूह चर्चा, शैक्षिक खेल, प्रश्नोत्तर पद्धति, ऑडियो-विजुअल सामग्री आदि का उपयोग किया जाए तो विद्यार्थी अधिक प्रेरित और सक्रिय रहते हैं। इससे उनका अधिगम गहरा, स्थायी और व्यवहारिक बनता है।
6. व्यक्तिगत भिन्नताओं की समझ
हर विद्यार्थी की अभिप्रेरणा भिन्न होती है। कोई पुरस्कार से प्रेरित होता है, कोई शिक्षक की प्रशंसा से, कोई स्वयं की सफलता से और कोई भय या प्रतिस्पर्धा से। शिक्षक को प्रत्येक विद्यार्थी की अभिप्रेरणा के स्रोत की पहचान करनी चाहिए ताकि वह उसे उचित रूप से प्रोत्साहित कर सके। इससे न केवल विद्यार्थी का अधिगम सुधरता है बल्कि कक्षा का वातावरण भी सकारात्मक बनता है।
निष्कर्ष
अभिप्रेरणा व्यक्ति के जीवन और अधिगम का मूल स्रोत है। यह उसे अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सक्रिय बनाती है, उसके व्यवहार को दिशा देती है और उसे संघर्षों के बावजूद निरंतर प्रयास करने की शक्ति प्रदान करती है। यदि शिक्षा व्यवस्था में विद्यार्थियों की आंतरिक और बाह्य दोनों प्रकार की अभिप्रेरणा को ध्यान में रखकर शिक्षण किया जाए तो अधिगम एक आनंददायक, प्रभावकारी और व्यवहारोपयोगी प्रक्रिया बन जाएगी। शिक्षक का यह कर्तव्य है कि वह विद्यार्थियों की आवश्यकताओं, इच्छाओं और क्षमताओं को समझकर उन्हें प्रेरित करे ताकि वे अपने जीवन में सफलता, संतोष और समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकें। अभिप्रेरित विद्यार्थी ही आत्मनिर्भर, नैतिक और सक्षम नागरिक बनते हैं और यही किसी भी राष्ट्र की प्रगति का वास्तविक आधार है।
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