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Gender Culture and Hidden Curriculum जेंडर संस्कृति और छिपा हुआ पाठ्यक्रम

Gender culture and hidden curriculum: gender roles, discrimination in education, and ways to achieve equality


1. प्रस्तावना

शिक्षा केवल औपचारिक ज्ञान प्राप्ति का माध्यम नहीं है, बल्कि यह विद्यार्थियों के व्यक्तित्व, सोच, दृष्टिकोण और जीवन मूल्यों के निर्माण की प्रक्रिया भी है। जब कोई बच्चा विद्यालय में प्रवेश करता है, तो वह न केवल गणित, विज्ञान, भाषा जैसे विषय पढ़ता है बल्कि वह विद्यालय की संस्कृति, शिक्षकों के व्यवहार, सहपाठियों के साथ बातचीत और संस्थागत नियमों से भी कई प्रकार के सामाजिक संदेश ग्रहण करता है। इनमें से कई संदेश स्पष्ट रूप से पढ़ाए नहीं जाते, बल्कि व्यवहार, उदाहरण और वातावरण के माध्यम से धीरे-धीरे बच्चे के अवचेतन में उतरते जाते हैं। यही शिक्षा का छिपा हुआ पाठ्यक्रम (Hidden Curriculum) कहलाता है। इस छिपे पाठ्यक्रम में जेंडर संस्कृति की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि यह यह तय करती है कि लड़कियों और लड़कों को समाज में किस दृष्टि से देखा जाएगा और उनकी भूमिका कैसी होगी।

2. जेंडर संस्कृति का अर्थ

जेंडर संस्कृति का तात्पर्य उन सामाजिक मान्यताओं, परंपराओं, विचारों, प्रतीकों और व्यवहारों से है जो यह निर्धारित करते हैं कि किसी समाज में महिला और पुरुष के लिए क्या उचित माना जाता है। यह संस्कृति जन्म से ही व्यक्ति पर थोपी जाती है और पूरे जीवन भर उसके आचरण और सोच को नियंत्रित करती है। उदाहरण स्वरूप, छोटे बच्चों के खिलौनों में भेद देखा जाता है – लड़कियों के लिए गुड़िया, किचन सेट, और सजावट की वस्तुएँ, जबकि लड़कों के लिए कार, बंदूक, रोबोट जैसे खिलौने। यही भेद विद्यालय में भी दृष्टिगोचर होता है जहाँ लड़कियों से शिष्ट, आज्ञाकारी, सहनशील और भावनात्मक होने की अपेक्षा की जाती है, वहीं लड़कों से साहसी, तर्कसंगत, आत्मनिर्भर और निर्णायक होने की। यह सोच इतनी गहराई से समाज में समाई हुई है कि व्यक्ति स्वयं भी इसका विश्लेषण नहीं कर पाता और यही जेंडर संस्कृति का सबसे बड़ा प्रभाव है।

3. छिपा हुआ पाठ्यक्रम और जेंडर

छिपा हुआ पाठ्यक्रम विद्यालय की उन अनौपचारिक शिक्षाओं का हिस्सा है जो विद्यार्थियों को प्रत्यक्ष रूप से नहीं पढ़ाई जाती लेकिन उनके व्यवहार, दृष्टिकोण और आत्म-छवि को गहराई से प्रभावित करती है। जेंडर के संदर्भ में यह छिपा पाठ्यक्रम अनेक प्रकार से काम करता है।

उदाहरण के लिए:

भाषा और संबोधन: शिक्षकों का लड़कों को ‘बॉस’, ‘लीडर’, ‘शेर’ जैसे शब्दों से संबोधित करना और लड़कियों को ‘अच्छी बच्ची’, ‘शिष्ट लड़की’, ‘सहनशील’ कहना यह दर्शाता है कि शक्ति, नेतृत्व और निर्णय पुरुषों का अधिकार है जबकि शिष्टता और सहनशीलता महिलाओं का गुण है।

कार्य विभाजन: विद्यालयों में साफ-सफाई, कुर्सियाँ जमाने, भारी सामान उठाने जैसे कार्य प्रायः लड़कों से कराए जाते हैं, जबकि सजावट, नोटबुक संग्रह, पंजी लेखन जैसे कार्य लड़कियों से। इससे लड़कियों के मन में यह भावना विकसित होती है कि वे केवल सजावट और देखभाल तक सीमित हैं।

पाठ्यपुस्तक सामग्री: अधिकतर पाठों में वैज्ञानिक, लेखक, नेता, सैनिक, व्यापारी, खोजकर्ता, सभी पुरुष पात्र होते हैं। महिला पात्र प्रायः माँ, बहन, शिक्षिका या सेवा कार्य से जुड़ी दिखाई जाती हैं। इससे लड़कियों को यह संदेश जाता है कि समाज में सक्रिय और बड़ी भूमिकाएँ पुरुषों के लिए आरक्षित हैं।

शारीरिक शिक्षा और खेल: खेलों में लड़कियों को नृत्य, योग, एरोबिक्स जैसे लचीले खेलों तक सीमित रखा जाता है जबकि लड़कों को फुटबॉल, क्रिकेट, कबड्डी जैसे शक्ति और स्पर्धा के खेलों में प्रोत्साहित किया जाता है। इससे लड़कियों के आत्मविश्वास और शारीरिक निर्भीकता का विकास अवरुद्ध होता है।

यह छिपा हुआ पाठ्यक्रम बच्चों के मन में यह भावना दृढ़ कर देता है कि उनकी सामाजिक और व्यावसायिक भूमिकाएँ पहले से निर्धारित हैं और उन्हें उसी के अनुसार स्वयं को ढालना होगा।

4. संस्कृति, जेंडर और शिक्षा का संबंध

विद्यालय समाज का लघु रूप होता है। समाज में प्रचलित जेंडर आधारित सोच, मान्यताएँ और व्यवहार विद्यालयों में भी अनायास प्रवेश कर जाते हैं। जब कोई शिक्षिका कक्षा में लड़कियों से कहती है – ‘तुम लोग शांति से बैठो’ और लड़कों से कहती है – ‘तुम लोग बहादुरी से काम लो’, तो यह संदेश जाता है कि लड़कियों का कर्तव्य शांति और सहनशीलता है और लड़कों का कर्तव्य साहस और नेतृत्व। इसी प्रकार, अगर किसी कहानी में राजा को वीर, बुद्धिमान, न्यायप्रिय और रानी को सुंदर, कोमल, भावुक दिखाया जाता है तो यह भी जेंडर भूमिका को मजबूत करता है। यह संस्कृति लड़कियों को सिखाती है कि उन्हें दूसरों की सहायता और देखभाल करने वाली भूमिकाओं तक ही सीमित रहना है, जबकि लड़कों को निर्णय लेने, नेतृत्व करने और समाज में आगे बढ़ने का अधिकार प्राप्त है। शिक्षा का यह पक्ष विद्यार्थियों के आत्मविश्वास, करियर चयन, सामाजिक व्यवहार और जीवन की दिशा को प्रभावित करता है।

5. छिपा हुआ पाठ्यक्रम कैसे बदलें?

यदि हमें वास्तव में जेंडर समानता को शिक्षा के माध्यम से स्थापित करना है तो छिपे हुए पाठ्यक्रम को बदलना अनिवार्य होगा। इसके लिए निम्न उपाय प्रभावी हो सकते हैं:

शिक्षकों का जेंडर संवेदनशीलता प्रशिक्षण: शिक्षकों को यह सिखाना आवश्यक है कि उनके शब्द, व्यवहार, उदाहरण और कार्य विभाजन में कोई जेंडर पूर्वाग्रह न हो।

पाठ्यपुस्तकों का पुनर्लेखन: पाठ्यपुस्तकों में महिला और पुरुष दोनों को समान रूप से सभी भूमिकाओं में दिखाना चाहिए – जैसे महिला वैज्ञानिक, महिला नेता, महिला सैनिक और पुरुष शिक्षक, पुरुष नर्स, पुरुष नृत्यकार आदि।

कार्य और जिम्मेदारी का समान वितरण: विद्यालय में सभी कार्यों का विभाजन जेंडर के आधार पर नहीं बल्कि योग्यता और सामूहिक सहभागिता के आधार पर होना चाहिए।

जेंडर संवेदनशील शिक्षण पद्धतियाँ: शिक्षण में ऐसे प्रश्न, चर्चाएँ और गतिविधियाँ शामिल हों जो विद्यार्थियों को समाज में प्रचलित जेंडर भेदभाव को समझने और उसके विरुद्ध सोचने की प्रेरणा दें।

विद्यालयी वातावरण में बदलाव: विद्यालय में खेल, नेतृत्व, सांस्कृतिक गतिविधियाँ, तकनीकी प्रशिक्षण, विज्ञान प्रयोगशाला जैसे सभी क्षेत्रों में लड़कियों को भी समान अवसर दिए जाएँ ताकि वे अपने आत्मविश्वास और कौशल का संपूर्ण विकास कर सकें।

6. निष्कर्ष

छिपा हुआ पाठ्यक्रम शिक्षा का वह अदृश्य पक्ष है जो विद्यार्थियों के व्यक्तित्व और सोच को गहराई से प्रभावित करता है। यदि इसमें जेंडर आधारित भेदभाव समाहित है तो यह समाज में असमानता, भेदभाव और स्त्री-पुरुष के बीच दूरी को और बढ़ाता है। अतः यह अनिवार्य है कि शिक्षक, पाठ्यक्रम निर्माता और नीति निर्धारक इस छिपे पाठ्यक्रम को पहचानें और उसमें सकारात्मक बदलाव लाएँ। ऐसा कर पाने पर ही हम एक ऐसे समाज की नींव रख सकेंगे जहाँ स्त्री और पुरुष दोनों को समान अवसर, सम्मान और स्वतंत्रता प्राप्त हो सकेगी और शिक्षा वास्तव में समानता, न्याय और मानवता के मूल्यों को पुष्ट कर पाएगी।

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