Header Ads

Citizenship in Political Science: Theories and Applications राजनीति विज्ञान में नागरिकता: सिद्धांत और अनुप्रयोग

Citizenship in Political Science: Theories and Applications | राजनीति विज्ञान में नागरिकता: सिद्धांत और अनुप्रयोग - Concepts, Rights, Duties & Global Perspectives

Introduction परिचय

नागरिकता राजनीति विज्ञान का एक मौलिक सिद्धांत है, जो किसी व्यक्ति और राज्य के बीच कानूनी, सामाजिक और राजनीतिक संबंधों को परिभाषित करता है। यह न केवल यह निर्धारित करता है कि कौन किसी राष्ट्र का नागरिक होगा, बल्कि नागरिकता प्राप्त करने, उसके अधिकारों और कर्तव्यों, और नागरिक पहचान के स्वरूप को भी स्पष्ट करता है। नागरिकता की यह अवधारणा समय के साथ विकसित हुई है, और इसे ऐतिहासिक, सामाजिक तथा राजनीतिक संदर्भों ने प्रभावित किया है। विभिन्न सभ्यताओं और शासन प्रणालियों में नागरिकता को परिभाषित करने के अलग-अलग तरीके अपनाए गए हैं, जिनमें जन्म आधारित नागरिकता (jus soli), वंशानुगत नागरिकता (jus sanguinis), और प्राकृतिककरण जैसी प्रक्रियाएँ शामिल हैं।

नागरिकता केवल कानूनी स्थिति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान से भी जुड़ी होती है। यह व्यक्तियों को उनके समाज में भागीदारी के अवसर प्रदान करती है, जिससे वे राजनीतिक प्रक्रियाओं में शामिल होकर नीतिगत निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं। आधुनिक काल में नागरिकता के सिद्धांतों ने विभिन्न कारकों—जैसे लोकतंत्र, वैश्वीकरण, प्रवासन, मानवाधिकार, और सामाजिक आंदोलनों—से प्रभावित होकर नए रूप ग्रहण किए हैं। पारंपरिक नागरिकता मॉडल, जो राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित था, अब वैश्विक नागरिकता (global citizenship) और बहुस्तरीय नागरिकता (multiple citizenship) की अवधारणाओं के साथ विकसित हो रहा है।

इसके अतिरिक्त, नागरिकता के सिद्धांत सामाजिक न्याय, समानता और समावेश के आदर्शों से भी जुड़े हुए हैं। नागरिकता की प्रक्रिया में हाशिए पर खड़े समुदायों की भागीदारी, लैंगिक समानता, और विविध सांस्कृतिक समूहों का समावेश महत्वपूर्ण पहलू हैं। समकालीन समाज में नागरिकता केवल एक कानूनी दर्जा नहीं, बल्कि एक सक्रिय भूमिका भी है, जिसमें नागरिक न केवल अपने अधिकारों का उपयोग करते हैं, बल्कि समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भी निर्वहन करते हैं। इस लेख में, हम नागरिकता के प्रमुख सिद्धांतों, उनके दार्शनिक आधारों, और आधुनिक समाज में उनके प्रभावों की विस्तृत समीक्षा करेंगे।

Meaning of Citizenship in Political Science
राजनीति विज्ञान में नागरिकता का अर्थ 

राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में नागरिकता किसी व्यक्ति की राज्य के साथ कानूनी और राजनीतिक संबद्धता को परिभाषित करती है, जो उसे विशेष अधिकार, विशेषाधिकार और कर्तव्य प्रदान करती है। इस स्थिति के तहत नागरिकों को चुनावों में मतदान करने, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानूनी संरक्षण जैसे मौलिक अधिकार प्राप्त होते हैं, जबकि इसके साथ ही उन्हें कानूनों का पालन करने, कर भुगतान करने और नागरिक कर्तव्यों का निर्वहन करने जैसी जिम्मेदारियां भी निभानी होती हैं। नागरिकता लोकतांत्रिक शासन की आधारशिला के रूप में कार्य करती है, क्योंकि यह नीति-निर्माण प्रक्रियाओं में सार्वजनिक भागीदारी सुनिश्चित करती है और राजनीतिक प्रणाली में जवाबदेही को बढ़ावा देती है।
इसके कानूनी पहलुओं के अलावा, नागरिकता का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी होता है, जो राष्ट्रीय पहचान और समुदाय के भीतर जुड़ाव की भावना को आकार देता है। यह निर्धारित करता है कि व्यक्ति राज्य और अपने सह-नागरिकों के साथ कैसे बातचीत करते हैं, और सामूहिक मूल्यों, परंपराओं और जिम्मेदारियों को मजबूत करता है। समय के साथ, नागरिकता की अवधारणा विकसित हुई है, जिसे ऐतिहासिक आंदोलनों, वैश्वीकरण और बदलते राजनीतिक विचारों ने प्रभावित किया है। आज यह पारंपरिक राष्ट्रीय सीमाओं से आगे बढ़कर वैश्विक नागरिकता और बहुस्तरीय नागरिकता जैसी अवधारणाओं को शामिल करती है, जो आधुनिक दुनिया की परस्पर जुड़ी हुई प्रकृति को दर्शाती है।
आधुनिक लोकतांत्रिक समाजों में, नागरिकता केवल एक कानूनी दर्जा नहीं है, बल्कि यह एक सक्रिय भूमिका भी है, जो व्यक्तियों को समाज के विकास में योगदान करने के लिए प्रेरित करती है। सक्रिय नागरिकता में राजनीतिक विमर्श में भागीदारी, सामाजिक न्याय की वकालत और सामुदायिक सेवा में संलग्नता शामिल होती है। जैसे-जैसे समाज विकसित हो रहा है, नागरिकता की परिभाषा भी प्रवासन, डिजिटल शासन और अंतरराष्ट्रीय पहचान जैसी चुनौतियों के अनुरूप बदल रही है। इस सतत विकास से यह स्पष्ट होता है कि नागरिकता लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने, समावेशिता सुनिश्चित करने और एक न्यायसंगत एवं समानतापूर्ण समाज को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

Theories of Citizenship
नागरिकता के सिद्धांत

1. Liberal Citizenship (उदार नागरिकता)

यह दृष्टिकोण जॉन लॉक और जे.एस. मिल के विचारों से प्रेरित है, जिसमें नागरिकता का आधार व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रताओं को माना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से सोचने, निर्णय लेने और अपनी इच्छाओं के अनुसार जीवन जीने का अधिकार होता है। राज्य का प्रमुख दायित्व नागरिकों की नागरिक स्वतंत्रताओं की रक्षा करना और उन्हें उनके अधिकारों के प्रयोग के लिए एक सुरक्षित वातावरण प्रदान करना है। इसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता, संपत्ति का अधिकार और समान अवसर जैसे मौलिक अधिकार शामिल होते हैं।
उदार लोकतंत्रों में, जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा, नागरिकता केवल कानूनी पहचान तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह व्यक्तिगत स्वायत्तता और सामाजिक न्याय के मूल्यों को भी सुनिश्चित करती है। नागरिकों को अपने विचार व्यक्त करने, राजनीतिक भागीदारी करने और अपनी आस्था के अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता प्राप्त होती है। इसके साथ ही, सरकार का कर्तव्य होता है कि वह किसी भी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करे और सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान करे। इस व्यवस्था का उद्देश्य स्वतंत्रता, समानता और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखते हुए एक समावेशी समाज की स्थापना करना है।

2. Republican Citizenship (गणराज्यवादी नागरिकता)

यह राजनीतिक सिद्धांत नागरिकों को केवल अधिकार प्राप्त करने तक सीमित नहीं रखता, बल्कि उन्हें अपने समाज और सरकार के प्रति उत्तरदायी बनाता है। यह दृष्टिकोण मानता है कि एक न्यायसंगत और सशक्त राष्ट्र की नींव तभी रखी जा सकती है जब प्रत्येक नागरिक अपनी भूमिका को सक्रिय रूप से निभाए और नीतिगत निर्णयों में भाग ले। यह विचार न केवल लोकतंत्र की बुनियादी आवश्यकताओं को मजबूत करता है, बल्कि नागरिकों में सामाजिक चेतना, नैतिक जिम्मेदारी और सार्वजनिक जीवन में सहभागिता की भावना को भी प्रोत्साहित करता है।
ऐसी प्रणाली में नागरिकों की भूमिका केवल मताधिकार तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वे नीति-निर्माण, प्रशासनिक कार्यों और सामाजिक कल्याण से जुड़े निर्णयों में भी सहभागी होते हैं। उदाहरण के लिए, स्विट्ज़रलैंड में प्रत्यक्ष लोकतंत्र के तहत नागरिक नियमित जनमत संग्रह और सामुदायिक चर्चाओं के माध्यम से अपने विचार व्यक्त करते हैं और सरकारी नीतियों को प्रभावित करते हैं।
इस विचारधारा का व्यापक प्रभाव यह है कि यह नागरिकों और सरकार के बीच एक पारस्परिक संबंध को प्रोत्साहित करती है, जहाँ सरकार जनता की वास्तविक आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के प्रति अधिक उत्तरदायी बनती है। जब नागरिक केवल शासन के उपभोक्ता बनने के बजाय इसके सक्रिय भागीदार बनते हैं, तो लोकतंत्र केवल एक प्रणाली भर नहीं रहता, बल्कि यह एक जीवंत और समावेशी संरचना में बदल जाता है, जो समाज के हर वर्ग के कल्याण की दिशा में कार्य करता है।

3. Marxist Theory of Citizenship (नागरिकता का मार्क्सवादी सिद्धांत)
कार्ल मार्क्स की पूंजीवाद पर की गई आलोचना यह दर्शाती है कि पूंजीवादी समाजों में नागरिकता केवल कानूनी मान्यता तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक संरचनाओं से गहराई से जुड़ी होती है। पूंजीवाद में नागरिकता का स्वरूप ऐसा होता है जो वर्ग विभाजन को बनाए रखता है और शासक वर्ग को विशेषाधिकार प्रदान करता है। इस व्यवस्था में संसाधनों और अवसरों तक पहुंच आर्थिक शक्ति पर निर्भर होती है, जिससे समाज में असमानता बढ़ती है। पूंजीवादी समाजों में संपन्न वर्ग को उच्च स्तरीय शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, रोजगार के बेहतर अवसर और राजनीतिक प्रभाव प्राप्त होते हैं, जबकि श्रमिक वर्ग और गरीब तबका इन्हीं अधिकारों के लिए संघर्ष करता रहता है।
इसके विपरीत, एक वास्तविक रूप से समान समाज में नागरिकता केवल एक औपचारिक दर्जा नहीं होती, बल्कि यह समान अधिकारों, अवसरों और संसाधनों तक निष्पक्ष पहुंच को सुनिश्चित करने का माध्यम बनती है। समाजवादी व्यवस्थाएं इस सिद्धांत पर आधारित होती हैं कि नागरिकता का अर्थ केवल राज्य के प्रति निष्ठा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सभी व्यक्तियों को गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए आवश्यक बुनियादी सुविधाएं प्रदान करना भी शामिल है। उदाहरण के लिए, क्यूबा जैसी समाजवादी व्यवस्थाओं में नागरिकता केवल एक कानूनी पहचान नहीं होती, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने का साधन बनती है। वहां स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा जैसी आवश्यक सुविधाएं मुफ्त या न्यूनतम लागत पर उपलब्ध कराई जाती हैं, जिससे आर्थिक असमानता को कम किया जा सके और प्रत्येक नागरिक को समान अवसर प्राप्त हो।

4. Multicultural Citizenship (बहु-सांस्कृतिक नागरिकता)
इस सिद्धांत के अनुसार, एक आदर्श लोकतांत्रिक समाज में नागरिकता की परिभाषा ऐसी होनी चाहिए जो बहुलतावाद को स्वीकार करे और सभी समूहों को समान सम्मान और अवसर प्रदान करे। यह मॉडल इस बात पर जोर देता है कि केवल कानूनी समानता ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि अलग-अलग सांस्कृतिक और सामाजिक समूहों को अपनी परंपराओं, भाषा और जीवनशैली को बनाए रखने की स्वतंत्रता भी मिलनी चाहिए। इस संदर्भ में सामूहिक अधिकार, जैसे कि स्वायत्तता, भाषा संरक्षण, शिक्षा व्यवस्था और धार्मिक मान्यताओं की सुरक्षा, नागरिकता के दायरे में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
भारत इस दृष्टिकोण का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करता है, जहां संविधान विविधता को स्वीकार करते हुए विभिन्न भाषाई, धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों को विशेष अधिकार प्रदान करता है। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में विभिन्न भाषाओं को मान्यता दी गई है, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं और उनकी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षण मिलता है। इसके अलावा, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रत्येक नागरिक को यह सुनिश्चित करता है कि वे अपनी आस्था का पालन कर सकें और धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन कर सकें। इस तरह, भारत में नागरिकता की अवधारणा इस सिद्धांत पर आधारित है कि विविधता को बनाए रखते हुए भी राष्ट्रीय एकता सुनिश्चित की जाए।
इस दृष्टिकोण का व्यापक प्रभाव यह है कि यह बहुलतावादी समाजों में शांति, समावेशिता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देता है। यदि नागरिकता की परिभाषा केवल व्यक्तिगत अधिकारों तक सीमित रहती, तो इससे कई सांस्कृतिक और भाषाई समुदायों को हाशिए पर धकेलने का खतरा उत्पन्न हो सकता था। इसलिए, इस मॉडल के तहत नागरिकता की परिकल्पना ऐसी होनी चाहिए जो व्यक्तिगत और सामूहिक अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करे, जिससे समाज में सभी समुदायों को सम्मान और समान अवसर मिल सकें।

5. Global Citizenship (वैश्विक नागरिकता)
नागरिकता की यह अवधारणा राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं रहती, बल्कि इसे एक वैश्विक परिप्रेक्ष्य में विस्तारित किया जाता है। यह विचार इस सिद्धांत पर आधारित है कि नागरिकता केवल किसी एक राष्ट्र की पहचान या कर्तव्यों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसमें सार्वभौमिक मानवाधिकारों, पर्यावरणीय उत्तरदायित्व और अंतरराष्ट्रीय सहयोग जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को भी शामिल किया जाना चाहिए। वैश्विक नागरिकता का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक व्यक्ति न केवल अपने देश के प्रति, बल्कि संपूर्ण मानवता और पृथ्वी के प्रति भी अपनी जिम्मेदारियों को समझे और निभाए।

इस अवधारणा के तहत, नागरिकता की परिभाषा केवल कानूनी पहचान और राजनीतिक अधिकारों तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह एक नैतिक जिम्मेदारी भी बन जाती है, जिसमें हर नागरिक को वैश्विक चुनौतियों जैसे कि जलवायु परिवर्तन, शांति स्थापना, गरीबी उन्मूलन और सामाजिक न्याय की दिशा में योगदान देने के लिए प्रेरित किया जाता है। वैश्विक नागरिकता यह मानती है कि आधुनिक विश्व परस्पर जुड़ा हुआ है, और किसी एक देश में होने वाली घटनाएं पूरे विश्व को प्रभावित कर सकती हैं। इसलिए, यह जरूरी है कि नागरिकता की परिभाषा को इस व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग और समन्वय को बढ़ावा मिल सके।
इस विचारधारा का सबसे स्पष्ट उदाहरण संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों की गतिविधियों में देखा जा सकता है, जो मानवाधिकार, सतत विकास और विश्व शांति को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठन वैश्विक नागरिकता के आदर्शों को स्थापित करने का प्रयास करते हैं, जहां सभी देशों और नागरिकों को समान रूप से मानवाधिकारों की रक्षा, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय के लिए कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाता है।

Types of Citizenship in Political Science
राजनीति विज्ञान में नागरिकता के प्रकार 
1. Active vs. Passive Citizenship (सक्रिय बनाम निष्क्रिय नागरिकता)
सक्रिय नागरिकता (Active Citizenship) वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपने समाज और देश के कल्याण के लिए न केवल अपने अधिकारों का उपयोग करता है, बल्कि अपनी जिम्मेदारियों को भी निभाने के लिए तत्पर रहता है। इसमें मतदान करना, सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाना, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना, स्वच्छता अभियानों में भाग लेना, पर्यावरण संरक्षण के प्रयास करना, सरकारी नीतियों पर प्रतिक्रिया देना और जरूरतमंदों की सहायता करना शामिल होता है। सक्रिय नागरिक सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने में मदद करते हैं और लोकतंत्र को अधिक प्रभावी और उत्तरदायी बनाते हैं। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर सतर्क रहते हैं और अपने स्तर पर सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रयासरत रहते हैं।

इसके विपरीत, निष्क्रिय नागरिकता (Passive Citizenship) वह अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति केवल अपने अधिकारों का उपभोग करता है, लेकिन समाज और राष्ट्र निर्माण की जिम्मेदारियों से स्वयं को अलग रखता है। निष्क्रिय नागरिक अक्सर मतदान करने में रुचि नहीं रखते, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करने से बचते हैं और किसी भी बदलाव की प्रक्रिया में शामिल नहीं होते। वे अपनी व्यक्तिगत जिंदगी में इतने सीमित रहते हैं कि समाज में हो रहे सकारात्मक या नकारात्मक बदलावों की ओर ध्यान नहीं देते। इस प्रकार की निष्क्रियता लोकतंत्र को कमजोर कर सकती है और सामाजिक विकास की गति को धीमा कर सकती है। एक स्वस्थ, प्रगतिशील और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण के लिए नागरिकों का सक्रिय योगदान आवश्यक है, क्योंकि जब लोग अपने कर्तव्यों को समझते हैं और सामूहिक रूप से कार्य करते हैं, तो समाज अधिक न्यायसंगत, सुरक्षित और विकसित बनता है।

2. Democratic vs. Authoritarian Citizenship (लोकतांत्रिक बनाम अधिनायकवादी नागरिकता)
लोकतांत्रिक नागरिकता उन स्वतंत्र समाजों में पाई जाती है जहाँ नागरिकों को राजनीतिक अधिकार और ज़िम्मेदारियाँ प्राप्त होती हैं, जिससे वे शासन व्यवस्था में सक्रिय रूप से भाग ले सकते हैं। इसमें मतदान का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीतिक चर्चाओं व विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने की स्वतंत्रता शामिल होती है। लोकतांत्रिक नागरिक सरकार की नीतियों को प्रभावित कर सकते हैं, नेताओं को जवाबदेह बना सकते हैं और अपने राष्ट्र के विकास में योगदान दे सकते हैं। ऐसे समाजों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है, और लोग बिना किसी डर के अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं।

इसके विपरीत, अधिनायकवादी नागरिकता राज्य द्वारा नियंत्रित होती है, जहाँ स्वतंत्रता और राजनीतिक भागीदारी पर गंभीर रूप से प्रतिबंध लगाए जाते हैं। सरकार भाषण, सभा और राजनीतिक गतिविधियों पर कड़े नियम लागू करती है और अक्सर विरोधी विचारों को दबा देती है। अधिनायकवादी व्यवस्थाओं में नागरिकों का नीति-निर्माण प्रक्रियाओं पर बहुत कम प्रभाव होता है क्योंकि सत्तारूढ़ सरकार पूरी शक्ति अपने हाथ में रखती है। उदाहरण के लिए, उत्तर कोरिया में सरकार राजनीतिक विरोध को बर्दाश्त नहीं करती और नागरिकों से राज्य के प्रति पूर्ण निष्ठा की अपेक्षा करती है। असहमति को कठोर दंड दिया जाता है और व्यक्तिगत स्वतंत्रताएँ सीमित कर दी जाती हैं, जो लोकतांत्रिक और अधिनायकवादी नागरिकता के बीच स्पष्ट अंतर को दर्शाता है।

3. National vs. Global Citizenship (राष्ट्रीय बनाम वैश्विक नागरिकता)
राष्ट्रीय नागरिकता (National Citizenship) व्यक्तियों को एक विशिष्ट देश से जोड़ती है, जिससे उन्हें कानूनी अधिकार, ज़िम्मेदारियाँ और उस राष्ट्र के भीतर एक पहचान मिलती है। इसमें मतदान का अधिकार, सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच और राष्ट्रीय कानूनों के तहत सुरक्षा जैसी सुविधाएँ शामिल होती हैं। राष्ट्रीय नागरिकों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने देश के विकास में योगदान दें, उसके नियमों का पालन करें और उसकी मूल्यों को बनाए रखें। यह नागरिकता राष्ट्रीय पहचान, सांस्कृतिक विरासत और देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देती है, जिससे लोगों में साझा इतिहास और सामूहिक लक्ष्यों की भावना विकसित होती है।

इसके विपरीत, वैश्विक नागरिकता (Global Citizenship) व्यक्तियों को उनकी राष्ट्रीय पहचान से परे सोचने और पूरे विश्व के प्रति व्यापक ज़िम्मेदारी अपनाने के लिए प्रेरित करती है। यह जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकारों और आर्थिक असमानता जैसी वैश्विक समस्याओं के प्रति जागरूकता बढ़ाती है और देशों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करती है। वैश्विक नागरिक शांति, सतत विकास और सामाजिक न्याय का समर्थन करते हैं, यह समझते हुए कि किसी एक देश की समस्याएँ पूरे विश्व को प्रभावित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ (EU) नागरिकों को उनकी राष्ट्रीय पहचान बनाए रखने की अनुमति देता है, जबकि यूरोपीय एकता को बढ़ावा देता है, जिससे स्वतंत्र आवाजाही, सीमाओं के पार सहयोग और क्षेत्रीय एवं वैश्विक प्रगति की प्रतिबद्धता को बल मिलता है।

Applications of Citizenship in Modern Politics
आधुनिक राजनीति में नागरिकता के अनुप्रयोग

1. Citizenship and Democracy (नागरिकता और लोकतन्त्र)
लोकतांत्रिक प्रणालियाँ अपनी वैधता (legitimacy) के लिए सक्रिय नागरिकता (active citizenship) पर निर्भर करती हैं, क्योंकि नागरिकों की भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि सरकारें प्रतिनिधि और जवाबदेह हों। लोकतंत्र में, नागरिकों को राजनीतिक प्रक्रियाओं में भाग लेने का अधिकार और जिम्मेदारी होती है, जैसे मतदान करना, सार्वजनिक चर्चाओं में शामिल होना और नीतियों पर अपनी राय व्यक्त करना। सक्रिय नागरिकता लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करती है, पारदर्शिता को बढ़ावा देती है और सामाजिक समस्याओं के प्रभावी समाधान में मदद करती है। यदि नागरिकों की भागीदारी कम हो, तो लोकतांत्रिक प्रणालियाँ कमजोर हो सकती हैं, जिससे सार्वजनिक विश्वास में कमी और अप्रभावी शासन का खतरा बढ़ जाता है।

उदाहरण के लिए, अमेरिका में, मतदाता सहभागिता (voter participation) नेतृत्व और नीतियों को निर्धारित करती है, जिससे देश की दिशा तय होती है। नागरिक अपने प्रतिनिधियों को चुनकर नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करते हैं, जो उनके मूल्यों और प्राथमिकताओं को दर्शाते हैं। स्थानीय, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव मतदाता भागीदारी पर निर्भर करते हैं ताकि उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके। जब मतदान दर अधिक होती है, तो निर्वाचित अधिकारियों की वैधता (legitimacy) बढ़ती है, जबकि कम मतदान जनता के हितों को पूरी तरह से प्रतिबिंबित न करने वाले शासन का कारण बन सकता है। यह दर्शाता है कि एक मजबूत लोकतंत्र बनाए रखने में सक्रिय नागरिकता की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

2. Citizenship and Nation-Building (नागरिकता और राष्ट्र निर्माण)
मजबूत नागरिकता (Strong Citizenship) राष्ट्रीय एकता और विकास को बढ़ावा देती है, क्योंकि यह नागरिक जिम्मेदारी, सामाजिक समरसता और सामूहिक प्रगति को प्रोत्साहित करती है। जब नागरिक शासन में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, कानून का सम्मान करते हैं और सामाजिक एवं आर्थिक पहलों में योगदान देते हैं, तो राष्ट्र अधिक सशक्त और सुदृढ़ बनता है। साझा पहचान और राष्ट्रीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता सामाजिक और सांस्कृतिक विभाजनों को कम करने में मदद करती है, जिससे संघर्षों में कमी आती है और समावेशिता को बढ़ावा मिलता है। जिम्मेदार नागरिक अपने समुदायों के उत्थान के लिए कार्य करते हैं, राष्ट्र-निर्माण गतिविधियों में शामिल होते हैं और शांति, समानता और सतत विकास को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों का समर्थन करते हैं।

उदाहरण के लिए, स्वतंत्रता के बाद भारत (Post-Independence India) ने नागरिकता कानूनों (Citizenship Laws) का उपयोग विविध समुदायों को एकीकृत करने और व्यापक राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करने के लिए किया। भारतीय संविधान (Indian Constitution) ने सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी और एकता की भावना विकसित हुई। सामाजिक न्याय, सकारात्मक भेदभाव (affirmative action) और मौलिक अधिकारों को बढ़ावा देने वाली नीतियों ने विभिन्न समुदायों के बीच आपसी संबंधों को मजबूत किया। वर्षों से, मजबूत नागरिकता ने भारत की लोकतांत्रिक सफलता, आर्थिक विकास और सामाजिक सद्भाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे समावेशी और सहभागी शासन की शक्ति का स्पष्ट उदाहरण प्रस्तुत होता है।

3. Citizenship and Migration (नागरिकता और प्रवासन)
आप्रवासन नीतियाँ (Immigration Policies) यह निर्धारित करती हैं कि कौन नागरिक बन सकता है, इसके लिए वे विशिष्ट कानूनी मानदंड तय करती हैं, जैसे कि निवास की अवधि, भाषा की दक्षता, और राष्ट्रीय इतिहास व संस्कृति का ज्ञान। ये नीतियाँ नागरिकता प्रदान करने की प्रक्रिया को विनियमित करने में मदद करती हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि आप्रवासी समाज में समाहित हों और देश के विकास में योगदान दें। सरकारें इन नीतियों का उपयोग सामाजिक समरसता बनाए रखने, राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करने और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए करती हैं। नागरिकता प्राप्त करने के मार्गों में स्थायी निवास, परिवार पुनर्मिलन, रोजगार-आधारित प्रवास, या शरणार्थियों के लिए शरण की सुविधा शामिल हो सकती है। यह प्रक्रिया कठोर हो सकती है, जिसमें पृष्ठभूमि की जाँच, वित्तीय स्थिरता, और राष्ट्र के कानूनों और मूल्यों का पालन शामिल होता है।

उदाहरण के लिए, यूनाइटेड किंगडम (UK) की नागरिकता परीक्षा (Citizenship Test) यह आकलन करती है कि किसी आप्रवासी को ब्रिटिश समाज, इतिहास, कानूनों और परंपराओं का कितना ज्ञान है। "Life in the UK" नामक इस परीक्षा में ब्रिटिश शासन प्रणाली, ऐतिहासिक घटनाओं और सांस्कृतिक मानकों से जुड़े प्रश्न होते हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नए नागरिक देश के मूल्यों को समझते और सम्मान करते हैं। इसके अलावा, आवेदकों को अंग्रेजी भाषा की दक्षता प्रदर्शित करनी होती है और निवास की आवश्यकताओं को पूरा करना होता है, तभी वे नागरिकता के योग्य हो सकते हैं। इस तरह की नीतियाँ सुनिश्चित करती हैं कि जो आप्रवासी नागरिक बनते हैं, वे जागरूक, सामाजिक रूप से उत्तरदायी और अपने नए राष्ट्र में सकारात्मक योगदान देने के लिए तैयार हों।

4. Digital Citizenship (डिजिटल नागरिकता)

प्रौद्योगिकी (Technology) ने नागरिकता (Citizenship) की अवधारणा को ऑनलाइन स्थानों (Online Spaces) तक विस्तारित कर दिया है, जिससे डिजिटल भागीदारी और वैश्विक संपर्क के नए अवसर पैदा हुए हैं। इंटरनेट के बढ़ते उपयोग के साथ, व्यक्ति नागरिक गतिविधियों में भाग ले सकते हैं, सरकारी सेवाओं तक पहुंच सकते हैं और अपनी भौगोलिक स्थिति की परवाह किए बिना ऑनलाइन समुदायों में योगदान कर सकते हैं। डिजिटल नागरिकता (Digital Citizenship) में नैतिक ऑनलाइन व्यवहार, डेटा गोपनीयता जागरूकता और आभासी शासन (Virtual Governance) पहलों में भागीदारी जैसी जिम्मेदारियाँ शामिल होती हैं। कई देश अब प्रौद्योगिकी का उपयोग करके डिजिटल निवास (Digital Residency) कार्यक्रम पेश कर रहे हैं, जिससे लोग राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं से जुड़ सकते हैं, वित्तीय सेवाओं तक पहुंच प्राप्त कर सकते हैं और बिना भौतिक रूप से देश में उपस्थित हुए व्यवसाय स्थापित कर सकते हैं।

उदाहरण के लिए, एस्टोनिया (Estonia) का ई-रेजिडेंसी (E-Residency) कार्यक्रम वैश्विक उद्यमियों (Global Entrepreneurs) को डिजिटल सेवाओं तक पहुंचने की अनुमति देता है, जिसमें कंपनी पंजीकरण, बैंकिंग और कराधान (Taxation) शामिल हैं, जबकि उन्हें एस्टोनिया में रहने की आवश्यकता नहीं होती। यह पहल वैश्विक व्यापार के अवसरों को बढ़ावा देती है, अंतरराष्ट्रीय सहयोग को सशक्त बनाती है और एक सीमाहीन डिजिटल अर्थव्यवस्था (Borderless Digital Economy) को प्रोत्साहित करती है। ई-निवासी (E-Residents) यूरोपीय संघ (EU) के भीतर कानूनी रूप से व्यवसाय संचालित कर सकते हैं और एस्टोनिया के उन्नत डिजिटल बुनियादी ढांचे से लाभ उठा सकते हैं। इस प्रकार के नवाचार दिखाते हैं कि कैसे प्रौद्योगिकी पारंपरिक नागरिकता की परिभाषा को बदल रही है, जिससे व्यक्ति अपनी राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना आर्थिक और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में दूरस्थ रूप से भाग ले सकते हैं।

Challenges to Citizenship in the 21st Century
21वीं सदी में नागरिकता की चुनौतियाँ

1. Globalization vs. Nationalism (वैश्वीकरण बनाम राष्ट्रवाद)
वैश्विक पहचान (Global Identity) और राष्ट्रीय निष्ठा (National Loyalty) के बीच तब संघर्ष उत्पन्न होता है जब व्यक्ति अपने देश के प्रति जिम्मेदारियों और वैश्विक मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के बीच संतुलन बनाने में कठिनाई महसूस करते हैं। एक अत्यधिक जुड़े हुए विश्व में, लोग अक्सर मानवाधिकार, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक सहयोग जैसे सार्वभौमिक मुद्दों का समर्थन करते हैं, जो कभी-कभी उनके राष्ट्र की नीतियों या हितों से टकरा सकते हैं। उदाहरण के लिए, कोई नागरिक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण समझौतों की वकालत कर सकता है, जबकि उसकी सरकार औद्योगिक विकास को स्थिरता (Sustainability) से अधिक प्राथमिकता दे सकती है। इसी तरह, वैश्विक प्रवासन (Global Migration) और बहुसांस्कृतिकता (Multiculturalism) से यह बहस जन्म लेती है कि कोई व्यक्ति राष्ट्रीय एकीकरण और निष्ठा को कैसे परिभाषित करता है। कई बार सरकारें मजबूत वैश्विक जुड़ाव को राष्ट्रीय संप्रभुता (National Sovereignty) के लिए खतरा मान सकती हैं और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव को सीमित करने वाली नीतियाँ लागू कर सकती हैं। आधुनिक समाज में राष्ट्रीय निष्ठा और वैश्विक जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाए रखना एक चुनौती बनी हुई है, जिसके लिए कूटनीतिक और नैतिक विचार-विमर्श की आवश्यकता होती है।

2. Statelessness (राज्यहीनता)
लाखों लोग विस्थापन (Displacement), कानूनी जटिलताओं (Legal Complications) या सरकारी नीतियों के कारण नागरिकता (Citizenship) से वंचित हैं, जिससे वे बिना किसी आधिकारिक पहचान के रह जाते हैं। युद्ध, राजनीतिक संघर्ष और प्राकृतिक आपदाएँ लोगों को अपने देश से भागने के लिए मजबूर कर देती हैं, और अक्सर उनके पास उचित दस्तावेज नहीं होते, जिससे उन्हें किसी अन्य देश में कानूनी नागरिकता प्राप्त करना कठिन हो जाता है। कुछ सरकारें भी ऐसे सख्त राष्ट्रीयता कानून लागू करती हैं जो विशेष जातीय या धार्मिक समूहों को बाहर कर देती हैं, जिससे वे पीढ़ियों तक बिना नागरिकता के रह जाते हैं। इसके अलावा, जन्म पंजीकरण की कमी (Lack of Birth Registration) या कानूनी दस्तावेजों के अभाव जैसी प्रशासनिक समस्याएँ भी व्यक्तियों को उनके ही जन्मस्थान में नागरिकता प्राप्त करने से रोक सकती हैं। बिना नागरिकता वाले लोगों को स्वास्थ्य सेवाएँ, शिक्षा, रोजगार और मतदान के अधिकार जैसी सुविधाओं तक सीमित पहुँच का सामना करना पड़ता है। आधिकारिक पहचान के बिना, वे शोषण, भेदभाव और कानूनी अनिश्चितताओं के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। राज्यहीनता (Statelessness) की समस्या को हल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग, कानूनी सुधार और मानवीय प्रयासों की आवश्यकता है ताकि हर व्यक्ति को राष्ट्रीयता और बुनियादी मानवाधिकार प्राप्त हो सकें।


3. Climate Change and Citizenship (जलवायु परिवर्तन और नागरिकता)
बढ़ते समुद्र स्तर (Rising Sea Levels), जो जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण उत्पन्न हो रहे हैं, निम्न-स्तरीय तटीय क्षेत्रों (Low-Lying Coastal Areas) और द्वीपीय राष्ट्रों (Island Nations) के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा बन रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप, लाखों लोगों को अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जिससे वे जलवायु शरणार्थी (Climate Refugees) बन जाएंगे। ये विस्थापित लोग न केवल अपने घरों से बेघर हो जाते हैं, बल्कि यदि उनका मूल देश रहने योग्य नहीं रहता या पूरी तरह डूब जाता है, तो वे अपनी कानूनी पहचान और नागरिकता अधिकार (Citizenship Rights) भी खो सकते हैं। कई प्रभावित समुदाय, जैसे कि तुवालु (Tuvalu) और मालदीव (Maldives) जैसे प्रशांत द्वीपीय राष्ट्रों के लोग, अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं क्योंकि उनकी सरकारें विदेशी भूमि में अपने नागरिकों के पुनर्वास और कानूनी मान्यता की योजनाएँ बनाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। यदि इनके कानूनी अधिकारों को मान्यता देने वाली औपचारिक नीतियाँ नहीं बनतीं, तो जलवायु शरणार्थियों को राज्यहीनता (Statelessness) का सामना करना पड़ सकता है, जिससे वे स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और रोजगार जैसी आवश्यक सुविधाओं से वंचित हो सकते हैं। इस संकट का समाधान करने के लिए सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को मिलकर ऐसे कानूनी ढांचे तैयार करने होंगे, जो विस्थापित आबादी को नई नागरिकता या वैकल्पिक निवास (Alternative Residency) के अवसर प्रदान करें। इस समस्या का समाधान करने के लिए वैश्विक सहयोग, मानवीय प्रयास और दीर्घकालिक स्थिरता रणनीतियाँ (Long-Term Sustainability Strategies) आवश्यक हैं ताकि जलवायु-प्रभावित समुदायों की रक्षा की जा सके।

4. Digital Divide (डिजिटल विभाजन)
प्रौद्योगिकी तक असमान पहुंच (Unequal Access to Technology) एक डिजिटल विभाजन (Digital Divide) पैदा करती है, जो डिजिटल नागरिकता (Digital Citizenship) और भागीदारी (Participation) को गहराई से प्रभावित करती है। इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफॉर्म नागरिक सहभागिता (Civic Engagement), शिक्षा और आर्थिक विकास के अवसर प्रदान करते हैं, लेकिन कई व्यक्ति, विशेष रूप से विकासशील क्षेत्रों (Developing Regions) में, विश्वसनीय इंटरनेट, डिजिटल उपकरणों (Digital Devices) और आवश्यक डिजिटल साक्षरता (Digital Literacy) कौशल की कमी के कारण इससे वंचित रह जाते हैं। यह तकनीकी अंतराल (Technological Gap) उन्हें ऑनलाइन चर्चाओं में भाग लेने, सरकारी सेवाओं (Government Services) तक पहुंचने और वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था (Global Digital Economy) से लाभ उठाने की क्षमता को सीमित करता है। इसके अलावा, हाशिए पर मौजूद समुदायों (Marginalized Communities), ग्रामीण आबादी (Rural Populations) और आर्थिक रूप से कमजोर समूहों को तकनीकी प्रगति के साथ बने रहने में कठिनाई होती है, जिससे सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ और बढ़ जाती हैं। यदि सभी को समान डिजिटल पहुंच नहीं मिलती, तो डिजिटल नागरिकता अधूरी रहती है, क्योंकि केवल समाज का एक विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग ही ऑनलाइन शासन (Online Governance), शिक्षा और रोजगार में पूरी तरह भाग ले सकता है। इस अंतर को कम करने और सभी के लिए समावेशी डिजिटल भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए सरकारों और संगठनों को डिजिटल बुनियादी ढांचे (Digital Infrastructure) में सुधार करने, सुलभ और किफायती इंटरनेट सेवाएँ प्रदान करने तथा डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य करना चाहिए।

Conclusion 
निष्कर्ष

राजनीति विज्ञान में नागरिकता एक जटिल और सतत विकसित होने वाली अवधारणा है, जो शासन प्रणाली, लोकतंत्र और पहचान को आकार देती है। यह केवल एक कानूनी स्थिति नहीं, बल्कि समाज में व्यक्तियों की भूमिका और उनके अधिकारों एवं कर्तव्यों की परिभाषा को भी निर्धारित करती है। नागरिकता के विभिन्न सिद्धांत हमें यह समझने में मदद करते हैं कि व्यक्ति समाज और राज्य के साथ किस प्रकार से संबंध स्थापित करते हैं, जबकि व्यावहारिक स्तर पर इसकी अवधारणा यह दर्शाती है कि नागरिकता किस प्रकार राजनीति, शासन और सामाजिक संरचना को प्रभावित करती है।

समय के साथ नागरिकता की परिभाषा में व्यापक परिवर्तन आए हैं। पारंपरिक दृष्टिकोण जहां नागरिकता को राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित रखता था, वहीं आधुनिक परिप्रेक्ष्य इसे बहुस्तरीय और वैश्विक बना रहा है। वैश्वीकरण, प्रौद्योगिकी, और प्रवासन जैसी आधुनिक प्रवृत्तियां नागरिकता के अर्थ और उसकी प्रकृति को लगातार प्रभावित कर रही हैं। डिजिटल नागरिकता, पर्यावरणीय उत्तरदायित्व, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग जैसे नए आयाम अब नागरिकता के दायरे में शामिल हो रहे हैं।

इसके अतिरिक्त, नागरिकता की धारणा केवल अधिकारों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक उत्तरदायित्व भी निहित होता है। एक सशक्त लोकतांत्रिक समाज में नागरिकों की भागीदारी न केवल चुनावों तक सीमित होनी चाहिए, बल्कि इसमें सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारियों को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए।

भविष्य में, जैसे-जैसे दुनिया और अधिक आपस में जुड़ती जाएगी, नागरिकता की परिभाषा और उसके स्वरूप में भी बदलाव आता रहेगा। तकनीकी नवाचार, प्रवास के बदलते पैटर्न, और वैश्विक समस्याओं के समाधान में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता इस बात को इंगित करती है कि नागरिकता केवल किसी राष्ट्र-राज्य की संकल्पना तक सीमित नहीं रह सकती। यह एक गतिशील अवधारणा बनी रहेगी, जो बदलते सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों के अनुसार स्वयं को नया रूप देती रहेगी।

Read more....
Blogger द्वारा संचालित.