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Relevance of Guidance: The Current Indian Perspective निर्देशन की प्रासंगिकता: वर्तमान भारतीय परिप्रेक्ष्य


प्रस्तावना (Introduction):

निर्देशन (Guidance) का मूल उद्देश्य व्यक्ति को सही दिशा में प्रेरित करना और उसे जीवन के महत्वपूर्ण निर्णयों को समझदारी के साथ लेने में सहायता प्रदान करना है। यह केवल अकादमिक या व्यावसायिक मार्गदर्शन तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह व्यक्ति के समग्र विकास में सहायक होता है। एक सुव्यवस्थित मार्गदर्शन प्रणाली व्यक्ति की क्षमताओं, रुचियों और अवसरों को समझने में सहायता करती है, जिससे वह अपने जीवन में संतुलित और प्रभावी निर्णय ले सके। भारत जैसे विशाल और सांस्कृतिक रूप से विविध देश में, जहां शिक्षा, रोजगार, मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक समरसता और व्यक्तिगत विकास से संबंधित कई जटिलताएँ मौजूद हैं, निर्देशन की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यह न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि सामूहिक और राष्ट्रीय स्तर पर भी सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक होता है। शिक्षा और करियर के संदर्भ में यह छात्रों को उनकी क्षमताओं के अनुसार सही मार्ग चुनने में मदद करता है, जिससे वे अपने पेशेवर जीवन में अधिक संतोषजनक और प्रभावशाली योगदान दे सकते हैं। सामाजिक परिवर्तनों और तकनीकी प्रगति के इस युग में, जहाँ रोजगार के नए अवसर और चुनौतियाँ सामने आ रही हैं, वहीं मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे भी बढ़ रहे हैं। ऐसे में निर्देशन केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता बन चुका है। यह व्यक्ति को न केवल पेशेवर सफलता के लिए तैयार करता है, बल्कि उसे मानसिक और भावनात्मक रूप से भी सशक्त बनाता है। इसके अलावा, नैतिक मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारियों को समझने में भी निर्देशन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वर्तमान समय में, जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), डिजिटल शिक्षा और स्वचालन (Automation) जैसी तकनीकों का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है, तो जीवन और करियर से जुड़े निर्णय और भी जटिल हो गए हैं। इस परिप्रेक्ष्य में, कुशल निर्देशन व्यक्ति को समुचित जानकारी देकर उसके निर्णय लेने की क्षमता को सुदृढ़ करता है और उसे बदलते परिवेश के अनुरूप ढलने में सहायता करता है। इस प्रकार, निर्देशन न केवल व्यक्तियों की प्रगति में सहायक है, बल्कि यह समाज और राष्ट्र के सतत विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

शिक्षा और करियर में निर्देशन की भूमिका (Role of Guidance in Education and Career):

भारतीय शिक्षा प्रणाली अत्यधिक प्रतिस्पर्धात्मक और जटिल संरचना वाली है, जिसमें छात्रों को सही दिशा देने की आवश्यकता महसूस होती है। प्रारंभिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक, विद्यार्थी विभिन्न विषयों और करियर विकल्पों के बीच चयन करने में कठिनाई महसूस करते हैं। अक्सर, पारिवारिक दबाव, सामाजिक अपेक्षाएँ और सीमित जानकारी के कारण छात्र ऐसे पाठ्यक्रम या करियर विकल्प चुन लेते हैं जो उनकी वास्तविक रुचि या क्षमताओं के अनुकूल नहीं होते। यह न केवल उनके शैक्षणिक प्रदर्शन को प्रभावित करता है, बल्कि उनके भविष्य के पेशेवर जीवन में भी असंतोष और अस्थिरता उत्पन्न कर सकता है। विद्यालय और उच्च शिक्षा संस्थानों में कई छात्र करियर को लेकर भ्रमित रहते हैं और गलत दिशा में जाने का जोखिम बढ़ जाता है। तकनीकी विकास, वैश्विकरण और रोजगार बाजार में निरंतर बदलाव के कारण पारंपरिक करियर मार्गों के अलावा नए-नए अवसर उभर रहे हैं। इन अवसरों की सही जानकारी के अभाव में कई छात्र अपनी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाते और ऐसे क्षेत्रों में चले जाते हैं जहाँ वे न तो आत्मसंतुष्ट रहते हैं और न ही प्रभावी प्रदर्शन कर पाते हैं। इस स्थिति में उचित निर्देशन एक मार्गदर्शक की तरह कार्य करता है, जो छात्रों को उनकी रुचियों, क्षमताओं और भविष्य की संभावनाओं के अनुरूप सही करियर विकल्प चुनने में मदद कर सकता है। यह मार्गदर्शन केवल अकादमिक विषयों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि इसमें व्यावसायिक प्रशिक्षण, कौशल विकास, उद्योग की आवश्यकताओं और व्यक्तित्व विकास को भी शामिल किया जाता है। उचित करियर काउंसलिंग से छात्र अपने करियर लक्ष्यों को स्पष्ट कर सकते हैं, अपनी कमजोरियों पर काम कर सकते हैं और उन क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं जो उनके लिए सबसे उपयुक्त हैं। शिक्षा प्रणाली में मार्गदर्शन सेवाओं को औपचारिक रूप से शामिल करना आवश्यक है, ताकि प्रत्येक छात्र को अपनी क्षमताओं के अनुरूप सर्वोत्तम अवसरों तक पहुँच मिल सके। यदि स्कूल और कॉलेज स्तर पर नियमित करियर परामर्श सत्र आयोजित किए जाएँ, तो छात्र अपनी रुचियों और कौशल के आधार पर सही निर्णय लेने में सक्षम होंगे। इस प्रकार, एक प्रभावी निर्देशन प्रणाली न केवल छात्रों के शैक्षणिक और व्यावसायिक विकास को बढ़ावा देती है, बल्कि समाज और राष्ट्र के समग्र प्रगति में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है।

करियर काउंसलिंग (Career Counseling):

करियर काउंसलिंग का उद्देश्य विद्यार्थियों को उनकी रुचियों, क्षमताओं और व्यक्तित्व के अनुरूप सर्वश्रेष्ठ करियर विकल्प चुनने में सहायता करना है। वर्तमान प्रतिस्पर्धी युग में, छात्रों को शिक्षा और रोजगार से संबंधित अनगिनत विकल्प मिलते हैं, जिससे वे भ्रमित हो सकते हैं। उचित मार्गदर्शन के अभाव में कई छात्र ऐसे करियर का चुनाव कर लेते हैं जो उनकी योग्यता और रुचि से मेल नहीं खाता, जिससे वे आगे चलकर असंतोष और तनाव का सामना कर सकते हैं। इससे न केवल उनका पेशेवर जीवन प्रभावित होता है, बल्कि उनका मानसिक स्वास्थ्य भी खतरे में पड़ सकता है। करियर काउंसलिंग से विद्यार्थी अपने भविष्य के लिए स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित कर पाते हैं और अपनी शिक्षा को उसी दिशा में केंद्रित कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, यह उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध अवसरों, आवश्यक कौशल और संभावित करियर ग्रोथ की जानकारी भी प्रदान करता है। छात्रों को यह समझने में सहायता मिलती है कि कौन-से उद्योग और पेशे भविष्य में अधिक संभावनाएँ रखते हैं, जिससे वे अपने अध्ययन और प्रशिक्षण को प्रभावी रूप से आगे बढ़ा सकें।

नई शिक्षा नीति (NEP 2020) और निर्देशन (NEP 2020 and Guidance):

भारत की नई शिक्षा नीति (NEP 2020) ने निर्देशन को शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न अंग मानते हुए इसे विशेष महत्व दिया है। इस नीति के तहत बहु-विषयक शिक्षा प्रणाली को बढ़ावा दिया गया है, जिससे छात्रों को विभिन्न विषयों में ज्ञान प्राप्त करने और अपनी रुचियों के अनुरूप करियर चुनने की स्वतंत्रता मिलती है। पारंपरिक शिक्षा प्रणाली में, छात्रों को सीमित विषयों के आधार पर करियर चुनने की बाध्यता होती थी, लेकिन NEP 2020 ने इस धारणा को बदला है। अब छात्र अपनी रुचि के अनुसार विभिन्न विषयों का चयन कर सकते हैं और उन्हें सीखने के लिए अधिक अवसर दिए जा रहे हैं। व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास पर भी बल दिया गया है, जिससे छात्र केवल सैद्धांतिक शिक्षा तक सीमित न रहकर व्यावहारिक ज्ञान भी प्राप्त कर सकें। इसके तहत, स्कूलों और कॉलेजों में करियर काउंसलिंग को अनिवार्य बनाया जा रहा है, ताकि छात्रों को उनकी क्षमताओं और रुचियों के अनुसार सर्वोत्तम अवसर प्रदान किए जा सकें। इसके अतिरिक्त, डिजिटल शिक्षा और ऑनलाइन मार्गदर्शन प्लेटफॉर्म को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों को भी समान अवसर मिल सकें।

मानसिक स्वास्थ्य और निर्देशन (Mental Health and Guidance):

भारत में मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। आधुनिक जीवनशैली, कार्यस्थल पर बढ़ता तनाव, सामाजिक दबाव और व्यक्तिगत समस्याएँ मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही हैं। मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को समय रहते पहचानना और उनका समाधान करना अत्यंत आवश्यक हो गया है। इस संदर्भ में निर्देशन और परामर्श सेवाएँ अत्यधिक प्रभावी भूमिका निभा सकती हैं। मानसिक स्वास्थ्य परामर्श से व्यक्ति को अपनी भावनाओं को समझने और उन्हें सकारात्मक रूप से प्रबंधित करने में सहायता मिलती है। कई बार, मानसिक समस्याओं को हल्के में लिया जाता है, लेकिन उचित मार्गदर्शन और सही समय पर सहायता मिलने से व्यक्ति को अवसाद, चिंता और अन्य मानसिक विकारों से बचाया जा सकता है। इसीलिए, शैक्षणिक संस्थानों, कार्यस्थलों और सामुदायिक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ और उनके समाधान (Mental Health Issues and Their Solutions):

बढ़ती प्रतिस्पर्धा और बदलते सामाजिक परिवेश के कारण युवा पीढ़ी मानसिक तनाव, अवसाद और चिंता जैसी समस्याओं का सामना कर रही है। इन समस्याओं का मुख्य कारण भविष्य को लेकर अनिश्चितता, सामाजिक दबाव, रोजगार की अस्थिरता और पारिवारिक अपेक्षाएँ हैं। यदि इन समस्याओं को समय पर नहीं पहचाना गया और उनका समाधान नहीं किया गया, तो यह गंभीर मानसिक विकारों का रूप ले सकती हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए मानसिक स्वास्थ्य परामर्श आवश्यक है। स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थलों पर मानसिक स्वास्थ्य काउंसलिंग सेवाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए, ताकि लोग अपनी समस्याओं को साझा कर सकें और उचित समाधान पा सकें। इसके अतिरिक्त, जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में व्याप्त भ्रांतियों को दूर करना आवश्यक है। सामाजिक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने से लोग अधिक आत्मनिर्भर और मानसिक रूप से सशक्त बन सकते हैं।

कार्यस्थल पर निर्देशन की भूमिका (Role of Guidance at workplace):

कार्यस्थलों पर कर्मचारियों को अत्यधिक दबाव और तनाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी उत्पादकता और मानसिक शांति प्रभावित हो सकती है। कॉर्पोरेट क्षेत्रों में कर्मचारियों को तनाव प्रबंधन और संतुलन बनाए रखने के लिए निर्देशन दिया जाना चाहिए। इसके अलावा, जीवन कौशल और भावनात्मक बुद्धिमत्ता (Emotional Intelligence) को विकसित करने के लिए विभिन्न कार्यशालाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए, ताकि कर्मचारी मानसिक रूप से संतुलित रह सकें और कार्यस्थल पर अपनी पूरी क्षमता के साथ योगदान दे सकें। अधिकांश संगठनों में, कर्मचारियों की कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए प्रोफेशनल कोचिंग और मेंटरशिप प्रोग्राम शुरू किए जा रहे हैं, जिससे वे अपने करियर को प्रभावी रूप से आगे बढ़ा सकें। मानसिक स्वास्थ्य और करियर ग्रोथ के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए कंपनियों को एक समग्र मार्गदर्शन प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है।

सामाजिक और नैतिक परिप्रेक्ष्य में निर्देशन (Guidance in Social and Ethical Perspective):

भारत एक विविधताओं से भरा बहुसांस्कृतिक समाज है, जहाँ विभिन्न समुदायों, परंपराओं और भाषाओं का समावेश देखने को मिलता है। ऐसे समाज में सामाजिक समरसता और नैतिक मूल्यों को बनाए रखना अनिवार्य हो जाता है, क्योंकि इससे न केवल समाज की स्थिरता सुनिश्चित होती है, बल्कि लोगों के बीच परस्पर सहयोग और सद्भाव भी विकसित होता है। निर्देशन का मूल उद्देश्य लोगों को सही मार्ग दिखाना और उन्हें नैतिकता, सहिष्णुता तथा समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करना होता है। यह एक सतत प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से व्यक्तियों को उनकी सोच, व्यवहार और निर्णयों को बेहतर बनाने में सहायता प्रदान की जाती है। एक सशक्त समाज के निर्माण में निर्देशन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि यह सामाजिक मूल्यों को मजबूत करने के साथ-साथ व्यक्तियों को सही दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।

परिवारिक और सामुदायिक निर्देशन (Family and Community Guidance):

परिवार किसी भी समाज की बुनियादी इकाई होती है, और यह बच्चों में मूलभूत नैतिकता, अनुशासन और सामाजिक व्यवहार की नींव रखता है। एक स्वस्थ और संतुलित समाज के लिए आवश्यक है कि परिवारों में उचित मार्गदर्शन दिया जाए, जिससे सदस्यों के बीच परस्पर समझ और सहयोग बना रहे। परिवारिक निर्देशन के अंतर्गत माता-पिता और बड़ों का दायित्व बनता है कि वे बच्चों को सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें। इससे न केवल उनके नैतिक विकास में सहारा मिलता है, बल्कि वे समाज में अपने उत्तरदायित्वों को भी भली-भांति समझते हैं। सामुदायिक निर्देशन भी समाज में अत्यंत आवश्यक है। यह उन स्थितियों में विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध होता है जब व्यक्तियों को सामाजिक समस्याओं, पारिवारिक विवादों या व्यक्तिगत दुविधाओं से निपटने के लिए मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। सामुदायिक स्तर पर संगठित रूप से दिशा-निर्देश देने से समाज के कमजोर वर्गों, युवाओं और बुजुर्गों को आवश्यक सहायता प्राप्त होती है।

नागरिक निर्देशन (Citizens Guidance):

एक मजबूत और सशक्त राष्ट्र के निर्माण के लिए नागरिकों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करना आवश्यक होता है। नागरिक निर्देशन का प्रमुख उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लोग न केवल अपने संवैधानिक अधिकारों को समझें, बल्कि अपने कर्तव्यों का भी ईमानदारी से पालन करें। सरकार की विभिन्न योजनाओं और कल्याणकारी कार्यक्रमों के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ाने के लिए व्यापक स्तर पर नागरिक निर्देशन आवश्यक है। कई बार, लोगों को उनकी पात्रता और सुविधाओं की जानकारी न होने के कारण वे अपने अधिकारों का लाभ नहीं उठा पाते। यदि समाज में व्यापक स्तर पर नागरिक निर्देशन को बढ़ावा दिया जाए, तो लोग सरकारी योजनाओं, सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों और सार्वजनिक सेवाओं का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकते हैं। नैतिक नागरिक निर्देशन के अंतर्गत भ्रष्टाचार, असमानता, भेदभाव और अन्य सामाजिक बुराइयों से लड़ने के लिए भी लोगों को प्रेरित किया जाता है। जब नागरिक अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग होते हैं, तो वे समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में योगदान कर सकते हैं।

प्रौद्योगिकी और निर्देशन (Technology and Guidance):

आज का युग डिजिटल प्रौद्योगिकी का युग है, जिसमें सूचना का आदान-प्रदान और संचार अत्यंत सरल और तीव्र गति से हो रहा है। प्रौद्योगिकी ने निर्देशन के तरीकों को भी अत्याधुनिक और प्रभावी बना दिया है। वर्तमान समय में ऑनलाइन शिक्षा, वेबिनार, डिजिटल करियर काउंसलिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित परामर्श सेवाएँ तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं। इन माध्यमों के द्वारा लोग कहीं भी और कभी भी आवश्यक मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। विशेष रूप से ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में डिजिटल निर्देशन सेवाएँ अत्यंत लाभदायक सिद्ध हो रही हैं, क्योंकि इन क्षेत्रों में पारंपरिक मार्गदर्शन सेवाएँ सीमित मात्रा में उपलब्ध होती हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, ऑनलाइन फोरम और विशेषज्ञों से सीधे संपर्क की सुविधा ने युवाओं, छात्रों और पेशेवरों को अपने करियर, मानसिक स्वास्थ्य और व्यक्तिगत विकास के बारे में जानकारी प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया है।

डिजिटल शिक्षा और टेली-परामर्श (Digital Education and Tele-Counseling):

शिक्षा के क्षेत्र में डिजिटल तकनीकों का बढ़ता प्रभाव अब परामर्श सेवाओं में भी देखने को मिल रहा है। ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली ने छात्रों को घर बैठे ही विशेषज्ञ मार्गदर्शन प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया है। टेली-परामर्श सेवाएँ उन छात्रों और व्यक्तियों के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो रही हैं, जो भौगोलिक या आर्थिक कारणों से गुणवत्तापूर्ण परामर्श सेवाएँ प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं। इस माध्यम से वे करियर विकल्पों, मानसिक स्वास्थ्य, व्यक्तित्व विकास और अन्य जीवनोपयोगी विषयों पर विशेषज्ञों से उचित सलाह प्राप्त कर सकते हैं।

सिफारिशें (Recommendations):

1. सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं को मिलकर निर्देशात्मक सेवाओं का विस्तार करना चाहिए, ताकि समाज के सभी वर्गों को समान रूप से लाभ मिल सके।

2. स्कूलों, कॉलेजों और कार्यस्थलों में अनिवार्य रूप से परामर्श सेवाओं को लागू किया जाना चाहिए, जिससे युवाओं और पेशेवरों को सही मार्गदर्शन मिल सके।

3. डिजिटल युग को देखते हुए ऑनलाइन मार्गदर्शन सेवाओं को अधिक सुलभ और व्यापक बनाया जाना चाहिए, ताकि दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी इसका लाभ उठा सकें।

निष्कर्ष (Conclusion):

निर्देशन केवल व्यक्तिगत स्तर पर सीमित नहीं रहता, बल्कि यह पूरे समाज और राष्ट्र के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक संगठित, नैतिक और सशक्त समाज के निर्माण में निर्देशन की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह लोगों को सही दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। शिक्षा, करियर, मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक समरसता को सशक्त बनाने के लिए निर्देशन को एक संस्थागत प्रक्रिया के रूप में अपनाया जाना चाहिए। यदि इसे सुव्यवस्थित रूप से लागू किया जाए, तो यह भारत को एक विकसित, आत्मनिर्भर और सशक्त राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

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