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Post-modernity: Meaning and Concept of knowledge उत्तर-आधुनिकता: ज्ञान का अर्थ और अवधारणा

परिचय (Introduction):

उत्तर-आधुनिकता (Post-modernity) एक बौद्धिक और सांस्कृतिक आंदोलन है, जिसने 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में गति पकड़ी और पारंपरिक आधुनिकता (Modernity) की विचारधारा को चुनौती दी। यह दृष्टिकोण इस धारणा को खारिज करता है कि ज्ञान पूर्ण रूप से निष्पक्ष, सार्वभौमिक और स्थायी हो सकता है। इसके बजाय, उत्तर-आधुनिकता का मानना है कि ज्ञान हमेशा सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भों के अनुसार निर्मित और व्याख्यायित किया जाता है। यह विचारधारा स्थापित सत्य, तर्क और प्रगति की एकरेखीय (Linear) अवधारणा पर प्रश्न उठाती है और विविध दृष्टिकोणों तथा बहुलतावाद (Pluralism) को प्राथमिकता देती है। उत्तर-आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार, पारंपरिक ज्ञान प्रणालियाँ अक्सर सत्ता संरचनाओं (Power Structures) से प्रभावित होती हैं, जिससे कुछ विशेष समूहों को अधिक अधिकार और नियंत्रण मिलता है, जबकि अन्य को हाशिए पर रखा जाता है। इसने विज्ञान, साहित्य, राजनीति, समाजशास्त्र और कला जैसे क्षेत्रों में व्यापक बहसों को जन्म दिया, जहाँ सत्य की अवधारणा को अब एकल और सार्वभौमिक नहीं, बल्कि बहुआयामी और संदर्भ-आधारित माना जाता है।

1. उत्तर-आधुनिकता का अर्थ और विशेषताएँ (Meaning and Characteristics of Post-modernity):

उत्तर-आधुनिकता आधुनिकता के आदर्शों, जैसे कि तर्क, प्रगति, विज्ञान और वस्तुनिष्ठ सत्य (Objective Truth) पर सवाल उठाती है। यह विचारधारा ज्ञान की विविधता, सापेक्षता (Relativism), और बहुलवाद (Pluralism) पर बल देती है। उत्तर-आधुनिकतावादी दार्शनिक जैसे जीन-फ्रांकोइस लियोतार (Jean-François Lyotard), मिशेल फूको (Michel Foucault) और जाक देरिदा (Jacques Derrida) ने इस विचारधारा को आगे बढ़ाया।

उत्तर-आधुनिकता की प्रमुख विशेषताएँ: एक विस्तृत विश्लेषण

1. ज्ञान की सापेक्षता (Relativity of Knowledge):

उत्तर-आधुनिकता में ज्ञान को एक निश्चित और सार्वभौमिक सत्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता, बल्कि इसे संदर्भ-आधारित (context-based) माना जाता है। इस दृष्टिकोण के अनुसार, ज्ञान सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है। उत्तर-आधुनिकतावादी विचारक यह तर्क देते हैं कि कोई भी ज्ञान निरपेक्ष नहीं होता, बल्कि वह व्यक्ति विशेष, समाज और परिस्थितियों के अनुसार भिन्न-भिन्न रूप में प्रकट होता है। इसका प्रभाव शिक्षा, दर्शन और सामाजिक संरचना पर गहराई से पड़ता है, जिससे विभिन्न दृष्टिकोणों को मान्यता मिलती है।

2. बृहत् आख्यानों (Meta-narratives) का विरोध:

उत्तर-आधुनिकता का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह पारंपरिक बृहद आख्यानों (जैसे कि विज्ञान, धर्म, राष्ट्रवाद, मार्क्सवाद) को संदेह की दृष्टि से देखती है। उत्तर-आधुनिक विचारधारा का मानना है कि ये बृहद आख्यान अक्सर सत्ता और प्रभुत्व स्थापित करने के साधन होते हैं, जो समाज पर एक विशेष दृष्टिकोण थोपते हैं। उत्तर-आधुनिकतावादी विचारक, जैसे जीन फ्रांस्वा ल्योतार (Jean-François Lyotard), मानते हैं कि इन आख्यानों को चुनौती देकर समाज में नए और बहुलतावादी दृष्टिकोणों को स्थान देना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप समाज में अधिक लोकतांत्रिक और स्वतंत्र सोच को बढ़ावा मिलता है।

3. बहुलवाद और विविधता (Pluralism and Diversity):

उत्तर-आधुनिकता बहुलवाद (Pluralism) और विविधता (Diversity) को बढ़ावा देती है। यह विचारधारा मानती है कि समाज में केवल एक ही सत्य या विचारधारा को सर्वोच्च नहीं माना जा सकता, बल्कि विभिन्न विचार, संस्कृतियाँ, जीवनशैली और पहचानें समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। यह सिद्धांत जाति, धर्म, लिंग, भाषा और सांस्कृतिक भिन्नताओं को स्वीकार करता है और उनकी समृद्धि को प्रोत्साहित करता है। उत्तर-आधुनिक दृष्टिकोण साहित्य, कला, मीडिया और राजनीति में बहुलतावादी दृष्टिकोण अपनाने की वकालत करता है, जिससे समाज में अधिक समावेशी (inclusive) वातावरण बनता है।

4. भाषा और संरचनावाद (Language and Structuralism):

उत्तर-आधुनिकतावादी विचारक भाषा को केवल संचार का माध्यम नहीं मानते, बल्कि इसे शक्ति संरचनाओं (Power Structures) का एक महत्वपूर्ण घटक मानते हैं। भाषा केवल शब्दों का समूह नहीं है, बल्कि यह समाज में विचारों, धारणाओं और सत्ता के संतुलन को भी निर्धारित करती है। संरचनावाद (Structuralism) और उत्तर-संरचनावाद (Post-structuralism) के विचारकों, जैसे कि मिशेल फूको (Michel Foucault) और जैक्स डेरीदा (Jacques Derrida), ने तर्क दिया कि भाषा को हमेशा संदर्भ और व्याख्या की दृष्टि से देखा जाना चाहिए। उत्तर-आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार, भाषा के माध्यम से समाज में विचारों को नियंत्रित किया जाता है, और इसलिए इसे चुनौती देकर नए अर्थों और विमर्शों को विकसित करना आवश्यक है।

2. उत्तर-आधुनिकता में ज्ञान की अवधारणा:

उत्तर-आधुनिकता में ज्ञान को पारंपरिक वैज्ञानिक या तर्कसंगत दृष्टिकोण से परे देखा जाता है। इस संदर्भ में, ज्ञान की अवधारणा को निम्नलिखित दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है:

(a) ज्ञान का विखंडन (Deconstruction of Knowledge)

उत्तर-आधुनिकतावादी दार्शनिक जैक्स देरिदा (Jacques Derrida) ने "विखंडन" (Deconstruction) की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसके अनुसार किसी भी विचार, सिद्धांत या ग्रंथ का कोई निश्चित और स्थायी अर्थ नहीं होता। उन्होंने कहा कि किसी भी पाठ (text) या विचार की व्याख्या एक निश्चित रूप में नहीं की जा सकती, बल्कि यह संदर्भ (context) और पाठक के दृष्टिकोण के अनुसार बदलती रहती है। विखंडन का सिद्धांत भाषा और अर्थ की पारंपरिक अवधारणाओं को चुनौती देता है। उदाहरण के लिए, किसी भी ऐतिहासिक दस्तावेज़, साहित्यिक कृति या दार्शनिक सिद्धांत को केवल उसके लेखक के दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि पाठक अपने अनुभव और सामाजिक संदर्भ के अनुसार उसे नए अर्थ दे सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कोई भी ज्ञान स्थिर नहीं होता, बल्कि यह सतत परिवर्तनशील और बहु-अर्थी (multi-dimensional) होता है।

(b) सत्ता और ज्ञान (Power and Knowledge)

उत्तर-आधुनिकतावादी विचारक मिशेल फूको (Michel Foucault) ने ज्ञान और सत्ता (Power) के गहरे संबंध को उजागर किया। उनके अनुसार, जो लोग समाज में सत्ता रखते हैं, वे यह तय करते हैं कि क्या सत्य है और क्या असत्य। यह विचार हमें यह समझने में मदद करता है कि कैसे सामाजिक संस्थाएँ—जैसे शिक्षा प्रणाली, न्याय प्रणाली, चिकित्सा और मीडिया—ज्ञान को नियंत्रित करती हैं और इसे अपनी जरूरतों के अनुसार परिभाषित करती हैं।

उदाहरण के लिए, चिकित्सा विज्ञान (Medical Science) यह तय करता है कि कौन सी बीमारियाँ हैं और उनका क्या इलाज होना चाहिए। इसी तरह, कानूनी प्रणाली (Legal System) यह निर्धारित करती है कि क्या सही है और क्या गलत। फूको के अनुसार, यह सत्ता संरचनाएँ (Power Structures) समाज पर अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए "सत्य" को नियंत्रित करती हैं। इस प्रकार, ज्ञान एक तटस्थ (neutral) तत्व नहीं है, बल्कि यह सत्ता और सामाजिक नियंत्रण का एक उपकरण है।

(c) बहुलतावादी और सांस्कृतिक दृष्टिकोण (Pluralistic and Cultural Perspective)

उत्तर-आधुनिकता की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह ज्ञान को केवल पश्चिमी विज्ञान और तर्कवाद (Rationalism) तक सीमित नहीं रखती, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं के दृष्टिकोण से भी देखती है। यह विचारधारा इस बात पर ज़ोर देती है कि ज्ञान केवल अकादमिक संस्थानों या आधुनिक विज्ञान से ही उत्पन्न नहीं होता, बल्कि यह विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं में भी पाया जाता है।

उदाहरण के लिए, लोक ज्ञान (Folk Knowledge) और स्वदेशी ज्ञान प्रणालियाँ (Indigenous Knowledge Systems) कई पीढ़ियों के अनुभव और पर्यावरणीय परिस्थितियों पर आधारित होती हैं। परंपरागत चिकित्सा पद्धतियाँ, जैसे आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा, आधुनिक विज्ञान से अलग होते हुए भी प्रभावी मानी जाती हैं। इसी प्रकार, मौखिक साहित्य (Oral Literature) और लोककथाएँ भी सांस्कृतिक ज्ञान का महत्वपूर्ण स्रोत होती हैं।

उत्तर-आधुनिक दृष्टिकोण यह स्वीकार करता है कि विभिन्न संस्कृतियाँ अपने अनूठे दृष्टिकोण और अनुभवों के माध्यम से ज्ञान का निर्माण करती हैं। इससे वैश्विक समाज में अधिक समावेशिता (Inclusivity) और बहुलवाद (Pluralism) को बढ़ावा मिलता है।

(d) मीडिया और डिजिटल ज्ञान (Media and Digital Knowledge)

उत्तर-आधुनिक युग में ज्ञान का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। पहले, ज्ञान का प्राथमिक स्रोत पुस्तकें, शैक्षिक संस्थान और पारंपरिक मीडिया (Traditional Media) हुआ करते थे। लेकिन अब, डिजिटल मीडिया (Digital Media) और सोशल मीडिया (Social Media) ने ज्ञान के उत्पादन और उपभोग (Knowledge Production and Consumption) की धारणाओं को पूरी तरह बदल दिया है।

आजकल, ब्लॉग्स, यूट्यूब, पॉडकास्ट, ऑनलाइन कोर्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स (जैसे कि फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम) के माध्यम से आम लोग भी ज्ञान साझा कर सकते हैं। यह परिवर्तन उत्तर-आधुनिकता की उस धारणा को मजबूत करता है कि ज्ञान केवल शैक्षणिक संस्थानों (Educational Institutions) या सरकारी एजेंसियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विकेंद्रीकृत (Decentralized) हो चुका है।

हालांकि, इस बदलाव के साथ एक चुनौती भी आती है—फेक न्यूज़ (Fake News) और सूचना का हेरफेर (Manipulation of Information)। चूंकि डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कोई भी जानकारी साझा कर सकता है, इसलिए सत्य और असत्य के बीच की रेखा धुंधली हो गई है। उत्तर-आधुनिकता के संदर्भ में यह तर्क दिया जाता है कि मीडिया अब केवल सूचना देने का माध्यम नहीं रहा, बल्कि यह विचारधाराओं को प्रभावित करने और सत्ता संतुलन को बदलने का एक उपकरण बन गया है।

3. उत्तर-आधुनिकता और विज्ञान

उत्तर-आधुनिकतावादी विचारक वैज्ञानिक वस्तुनिष्ठता (Scientific Objectivity) और सार्वभौमिक सत्य की धारणा पर सवाल उठाते हैं। वे यह मानते हैं कि विज्ञान भी सामाजिक और राजनीतिक कारकों से प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए, 19वीं और 20वीं शताब्दी में पश्चिमी वैज्ञानिकों ने कई बार अपने अनुसंधानों में पूर्वाग्रह दिखाए, जिससे कुछ समुदायों को हाशिए पर धकेला गया। इसका यह अर्थ नहीं कि उत्तर-आधुनिकता विज्ञान को पूरी तरह नकारती है। बल्कि, यह विज्ञान को एकमात्र सत्य स्रोत मानने की धारणा को चुनौती देती है और अन्य ज्ञान प्रणालियों को भी मान्यता देने की वकालत करती है।

4. उत्तर-आधुनिक समाज में ज्ञान का प्रभाव

उत्तर-आधुनिकता का ज्ञान पर प्रभाव कई क्षेत्रों में देखा जा सकता है:

1. शिक्षा में उत्तर-आधुनिकता का प्रभाव (Postmodernism in Education)

उत्तर-आधुनिकता ने शिक्षा प्रणाली में क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं। पारंपरिक शिक्षा प्रणाली (Traditional Education System) में निश्चित पाठ्यक्रम, स्थिर ज्ञान और शिक्षक-केंद्रित (Teacher-Centered) शिक्षण पद्धति को प्राथमिकता दी जाती थी। लेकिन उत्तर-आधुनिक शिक्षा प्रणाली इन परंपराओं को तोड़कर एक अधिक संवादात्मक (Interactive), आलोचनात्मक (Critical Thinking) और समावेशी (Inclusive) दृष्टिकोण को अपनाती है।

बहुलतावाद (Pluralism) और विविधता (Diversity): उत्तर-आधुनिक शिक्षा प्रणाली में विभिन्न संस्कृतियों, परंपराओं और विचारधाराओं को समान रूप से महत्व दिया जाता है।

आलोचनात्मक सोच (Critical Thinking): यह छात्रों को एक ही सत्य को स्वीकारने के बजाय विभिन्न दृष्टिकोणों से विचार करने के लिए प्रेरित करता है।

डिजिटल लर्निंग (Digital Learning): उत्तर-आधुनिक समाज में शिक्षा केवल कक्षा तक सीमित नहीं है; ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफॉर्म, ई-लर्निंग और डिजिटल पाठ्यक्रम शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं।

विकेंद्रीकृत शिक्षा (Decentralized Learning): उत्तर-आधुनिक शिक्षा संस्थानों के अलावा व्यक्तिगत और सामुदायिक शिक्षा को भी मान्यता देती है।

2. राजनीति में उत्तर-आधुनिकता का प्रभाव (Postmodernism in Politics)

उत्तर-आधुनिक राजनीति (Postmodern Politics) पारंपरिक विचारों को चुनौती देती है और बहुलतावाद (Pluralism) को अधिक महत्व देती है। यह विचारधारा इस बात पर ज़ोर देती है कि राजनीति में किसी एकमात्र सत्य (Single Truth) को थोपने के बजाय विभिन्न विचारधाराओं और दृष्टिकोणों को स्थान मिलना चाहिए।

बहुलतावाद और लोकतंत्र (Pluralism and Democracy): उत्तर-आधुनिक राजनीति में विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक समूहों को समान अधिकार और अवसर देने पर बल दिया जाता है।

सत्ता और विमर्श (Power and Discourse): मिशेल फूको (Michel Foucault) के अनुसार, सत्ता केवल सरकार तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह मीडिया, भाषा और विचारधाराओं के माध्यम से भी संचालित होती है।

नागरिक भागीदारी (Citizen Participation): उत्तर-आधुनिक समाज में सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने राजनीतिक संवाद को नया रूप दिया है, जिससे नागरिक अधिक सक्रिय रूप से राजनीति में भाग ले सकते हैं।

परंपरागत राजनीति की चुनौती (Challenge to Traditional Politics): उत्तर-आधुनिक दृष्टिकोण में राष्ट्रवाद (Nationalism), जातिवाद (Casteism) और पितृसत्ता (Patriarchy) जैसी पारंपरिक राजनीतिक संरचनाओं को आलोचनात्मक दृष्टि से देखा जाता है।

3. मीडिया में उत्तर-आधुनिकता का प्रभाव (Postmodernism in Media)

उत्तर-आधुनिक समाज में मीडिया और डिजिटल तकनीक ज्ञान के प्रमुख स्रोत बन गए हैं। सूचना का प्रसार पहले केवल अखबारों, रेडियो और टेलीविजन के माध्यम से होता था, लेकिन अब सोशल मीडिया (Social Media), ब्लॉग्स (Blogs) और डिजिटल न्यूज़ प्लेटफॉर्म ने सूचनाओं के प्रवाह को पूरी तरह बदल दिया है।

ज्ञान का विकेंद्रीकरण (Decentralization of Knowledge): उत्तर-आधुनिक मीडिया के दौर में कोई भी व्यक्ति सोशल मीडिया और ब्लॉग्स के माध्यम से जानकारी साझा कर सकता है।

फेक न्यूज़ और सूचना का हेरफेर (Fake News and Information Manipulation): डिजिटल युग में सूचना का सत्यापन कठिन हो गया है। उत्तर-आधुनिकतावादी दृष्टिकोण से देखा जाए तो मीडिया अब केवल सूचनाओं का माध्यम नहीं, बल्कि विचारधाराओं को प्रभावित करने का एक शक्तिशाली उपकरण बन गया है।

वैकल्पिक मीडिया (Alternative Media): उत्तर-आधुनिकता मुख्यधारा मीडिया (Mainstream Media) के प्रभुत्व को चुनौती देती है और वैकल्पिक मीडिया प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देती है, जहां पारंपरिक मीडिया से अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत किए जाते हैं।

इंटरनेट और सामाजिक परिवर्तन (Internet and Social Change): इंटरनेट और सोशल मीडिया ने लोगों को राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर खुलकर चर्चा करने का अवसर दिया है।

4. सामाजिक संरचना में उत्तर-आधुनिकता का प्रभाव (Postmodernism in Social Structure)

उत्तर-आधुनिकता ने पारंपरिक सामाजिक संरचनाओं (Traditional Social Structures) को चुनौती दी है और समाज को अधिक समावेशी (Inclusive) और विविधतापूर्ण (Diverse) बनाने में मदद की है। यह विचारधारा जाति, लिंग, वर्ग और पहचान से जुड़े पुराने विचारों को अस्वीकार करती है और नए सामाजिक सिद्धांतों को बढ़ावा देती है।

जातिवाद और वर्गवाद की आलोचना (Critique of Casteism and Classism): उत्तर-आधुनिक समाज में जातिगत और वर्ग-आधारित भेदभाव को अस्वीकार किया जाता है, और समानता के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया जाता है।

लैंगिक पहचान और नारीवाद (Gender Identity and Feminism): उत्तर-आधुनिकतावादी विचारक मानते हैं कि लिंग (Gender) केवल जैविक (Biological) नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से निर्मित होता है। इसलिए, लैंगिक समानता (Gender Equality) को बढ़ावा दिया जाता है।

संस्कृति और पहचान (Culture and Identity): उत्तर-आधुनिक समाज में सांस्कृतिक विविधता को स्वीकार किया जाता है और हर समुदाय को अपनी पहचान बनाए रखने की स्वतंत्रता दी जाती है।

ग्लोबलाइज़ेशन और उत्तर-आधुनिक समाज (Globalization and Postmodern Society): वैश्वीकरण (Globalization) ने उत्तर-आधुनिक समाज को प्रभावित किया है, जिससे दुनिया भर की संस्कृतियाँ आपस में घुलमिल गई हैं और नई सामाजिक संरचनाएँ विकसित हुई हैं।

निष्कर्ष (Conclusion):

उत्तर-आधुनिकता में ज्ञान की अवधारणा पारंपरिक वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोणों से अलग है। यह विचारधारा ज्ञान की सापेक्षता, बहुलवाद और संदर्भ-आधारित व्याख्या पर बल देती है। उत्तर-आधुनिक समाज में ज्ञान के उत्पादन, वितरण और उपभोग के नए तरीके विकसित हो रहे हैं, जो इसे अधिक लोकतांत्रिक और समावेशी बना रहे हैं। हालाँकि, इसके साथ-साथ गलत जानकारी (Misinformation) और सापेक्षवाद (Relativism) की चुनौतियाँ भी उभर रही हैं। आधुनिक समाज में, ज्ञान की उत्तर-आधुनिक अवधारणा हमें यह समझने में मदद करती है कि सत्य केवल एक नहीं हो सकता, बल्कि यह विभिन्न दृष्टिकोणों और संदर्भों पर निर्भर करता है। ऐसे में, ज्ञान को खुले विचारों, आलोचनात्मक सोच और विविध दृष्टिकोणों के साथ समझना आवश्यक है।

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