Gender identity and socialization practices in family, school, and other formal and informal organizations I परिवार, स्कूल और अन्य औपचारिक एवं अनौपचारिक संगठनों में जेंडर पहचान और समाजीकरण प्रथाएँ
Introduction I भूमिका
जेंडर पहचान एक जटिल और विकसित होती सामाजिक एवं सांस्कृतिक संरचना है, जो परिवार, शैक्षणिक संस्थानों, कार्यस्थलों, धार्मिक व्यवस्थाओं और मीडिया प्रभावों के माध्यम से आकार लेती है। जैविक लिंग, जो भौतिक विशेषताओं द्वारा निर्धारित होता है, के विपरीत, जेंडर पहचान सीखे गए व्यवहारों, सामाजिक अपेक्षाओं और सांस्कृतिक मानदंडों के माध्यम से निर्मित होती है। समाजीकरण इस प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह विशेष दृष्टिकोणों, भूमिकाओं और अपेक्षाओं को मजबूत करता है जो स्त्रीत्व और पुरुषत्व से जुड़े होते हैं। शुरुआती बचपन से ही व्यक्ति परिवार के सदस्यों, शिक्षकों, साथियों और सामाजिक संस्थाओं के साथ बातचीत के माध्यम से जेंडर भूमिकाओं को आत्मसात करता है। परिवार, जो समाजीकरण का प्राथमिक कारक होता है, अक्सर पालन-पोषण की शैली, सौंपे गए दायित्वों और व्यवहार को प्रोत्साहित या हतोत्साहित करने के माध्यम से बच्चों को जेंडर मानदंडों से परिचित कराता है। स्कूल भी पाठ्यक्रम, शिक्षकों की अपेक्षाओं और सहपाठियों के साथ बातचीत के जरिए जेंडर धारणा को आकार देने में योगदान करते हैं। इसी तरह, कार्यस्थल, धार्मिक संस्थाएँ और मीडिया नैरेटिव भी जेंडर भूमिकाओं को मजबूत करने और समाज में उनकी स्वीकृति को प्रभावित करने का कार्य करते हैं। समाज में मौजूद विभिन्न संस्थाएँ और सांस्कृतिक प्रतीक भी जेंडर पहचान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पारंपरिक लोककथाएँ, साहित्य, सिनेमा और टेलीविजन कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों के मन में स्त्री और पुरुष के लिए विशिष्ट गुण और व्यवहार स्थापित किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, फिल्मों और विज्ञापनों में पुरुषों को अक्सर शक्ति, नेतृत्व और आत्मनिर्भरता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जबकि महिलाओं को सौम्यता, त्याग और देखभाल के गुणों से जोड़ा जाता है। इस प्रकार, मीडिया के लगातार संदेश व्यक्ति के जेंडर अभिव्यक्ति और समाज में उनकी भूमिका को निर्धारित करने में सहायक होते हैं।
Gender identity and socialization in the family I परिवार में जेंडर पहचान और समाजीकरण
परिवार प्रारंभिक समाजीकरण का आधार है, जो बच्चों की जेंडर पहचान को आकार देने और उनके व्यवहार, भूमिकाओं और अपेक्षाओं को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बचपन से ही बच्चे अपने परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत के माध्यम से यह सीखते हैं कि समाज में उनके लिंग के आधार पर उनसे क्या अपेक्षित है। परिवार की पारंपरिक मान्यताएँ, पालन-पोषण की शैली और घरेलू परिवेश बच्चों की सोच और व्यक्तित्व को गहराई से प्रभावित करते हैं। माता-पिता और अभिभावक अनजाने में या जानबूझकर जेंडर आधारित संदेशों को संप्रेषित करते हैं, जिससे यह तय होता है कि लड़के और लड़कियाँ अपने लिंग के अनुरूप कैसे व्यवहार करेंगे और किन भूमिकाओं को अपनाएँगे।
Gender Roles I जेंडर भूमिकाएँ
परिवारों में बच्चों के लिंग के आधार पर उन्हें विभिन्न प्रकार के खिलौने, खेल और गतिविधियाँ प्रदान की जाती हैं, जो उनके जेंडर आधारित अभिव्यक्तियों को मजबूत करते हैं। लड़कों को अक्सर गाड़ियाँ, एक्शन फिगर, निर्माण और यांत्रिकी से जुड़े खिलौने दिए जाते हैं, जिससे वे शारीरिक गतिविधियों में संलग्न होते हैं और समस्या-समाधान कौशल विकसित करते हैं। इसके विपरीत, लड़कियों को गुड़िया, रसोई सेट, सौंदर्य उत्पाद और कला-कौशल से जुड़े खिलौने दिए जाते हैं, जिससे देखभाल, सौंदर्यबोध और रचनात्मकता को बढ़ावा मिलता है। इसके अलावा, लड़कों को बाहरी खेलों और साहसिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जबकि लड़कियों को घरेलू और सांस्कृतिक गतिविधियों में अधिक भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाता है। यह भेदभाव धीरे-धीरे उनके मन में यह धारणा विकसित करता है कि कुछ गुण और कार्य विशेष रूप से एक लिंग के लिए उपयुक्त होते हैं।
Expectations and Responsibilities I अपेक्षाएँ और जिम्मेदारियाँ
पारिवारिक वातावरण में जेंडर आधारित मान्यताओं के कारण बच्चों से अलग-अलग अपेक्षाएँ रखी जाती हैं। लड़कों को आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और निर्णय लेने में सक्षम बनने की दिशा में प्रेरित किया जाता है। उन्हें वित्तीय जिम्मेदारियों और करियर विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। वहीं, लड़कियों को पारिवारिक देखभाल, सहयोग और भावनात्मक समर्थन प्रदान करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। पारंपरिक परिवारों में यह देखा जाता है कि लड़कों को घर के बाहर अधिक स्वतंत्रता दी जाती है, जबकि लड़कियों को घरेलू कार्यों में अधिक संलग्न किया जाता है। इसके अलावा, परिवार के भीतर निर्णय लेने की प्रक्रिया में भी जेंडर आधारित अंतर दिखाई देता है—जहाँ लड़कों को अधिक स्वायत्तता दी जाती है, वहीं लड़कियों की राय को अक्सर कम महत्व दिया जाता है। यह प्रक्रिया बच्चों की आत्म-धारणा और भविष्य की आकांक्षाओं को गहराई से प्रभावित करती है, जिससे वे समाज में अपने लिंग के अनुरूप भूमिकाएँ निभाने के लिए तैयार होते हैं।
Family Conversations and Behavior I पारिवारिक वार्तालाप और व्यवहार
परिवार में प्रयुक्त भाषा, संवाद शैली और व्यवहार भी जेंडर पहचान के निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं। माता-पिता और अभिभावक अनजाने में लड़कों और लड़कियों से अलग-अलग तरीके से संवाद करते हैं। उदाहरण के लिए, लड़कों को अक्सर "मजबूत," "साहसी," और "निर्णयकर्ता" बनने की सीख दी जाती है, जबकि लड़कियों को "नम्र," "शालीन," और "संवेदनशील" बनने की शिक्षा दी जाती है। यदि परिवार में कार्य विभाजन पारंपरिक जेंडर भूमिकाओं के अनुसार होता है—जैसे कि पुरुषों को परिवार का पालन-पोषण करने वाला और महिलाओं को घरेलू कार्यों का प्रबंधक माना जाता है—तो बच्चे इन भूमिकाओं को स्वाभाविक रूप से स्वीकार कर लेते हैं। यदि घर में लड़के और लड़कियाँ समान जिम्मेदारियाँ साझा नहीं करते, तो यह उनके मन में जेंडर असमानता की भावना को मजबूत कर सकता है।
इस प्रकार, परिवार बच्चों के जेंडर पहचान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पारिवारिक वातावरण, संवाद शैली और पालन-पोषण के तरीके यह निर्धारित करते हैं कि बच्चे अपनी पहचान को कैसे विकसित करेंगे और समाज में अपनी भूमिका को कैसे देखेंगे। हालाँकि, बदलते समय के साथ कुछ परिवार पारंपरिक जेंडर मान्यताओं को चुनौती दे रहे हैं और अपने बच्चों को समान अवसर और स्वतंत्रता प्रदान कर रहे हैं, जिससे एक अधिक समावेशी और संतुलित समाज की दिशा में कदम बढ़ाया जा सके।
Gender identity and socialization in school I स्कूल में जेंडर पहचान और समाजीकरण
शिक्षा संस्थान समाजीकरण के शक्तिशाली एजेंट होते हैं, जो जेंडर धारणाओं को आकार देने और रूढ़ियों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्कूलों में पाठ्यक्रम, शिक्षकों के दृष्टिकोण, सहपाठियों के प्रभाव और पाठ्येतर गतिविधियों के माध्यम से जेंडर अपेक्षाएँ सीखाई जाती हैं:
Teaching Methods I शिक्षण पद्धतियाँ
शैक्षिक संस्थानों में प्रयुक्त पाठ्यपुस्तकों और शैक्षिक सामग्री में अक्सर जेंडर पूर्वाग्रह देखा जाता है, जो विद्यार्थियों की सोच और आत्म-धारणा को गहराई से प्रभावित करता है। अधिकांश इतिहास, विज्ञान और साहित्य की पाठ्यपुस्तकों में पुरुषों को प्रमुख पात्रों, खोजकर्ताओं, वैज्ञानिकों और नेताओं के रूप में चित्रित किया जाता है, जबकि महिलाओं को सहायक भूमिकाओं में सीमित कर दिया जाता है। यदि महिलाएँ शामिल भी होती हैं, तो अक्सर वे देखभालकर्ता, गृहिणी या केवल ऐतिहासिक घटनाओं की निष्क्रिय दर्शक के रूप में प्रस्तुत की जाती हैं। इस असंतुलन के कारण छात्र यह मान सकते हैं कि कुछ पेशे या उपलब्धियाँ केवल पुरुषों के लिए ही उपयुक्त हैं। कई पाठ्यक्रमों में महिलाओं के योगदान को कम करके दिखाया जाता है या पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया जाता है, जिससे यह धारणा बनती है कि महिलाओं ने इतिहास, विज्ञान और समाज के विकास में सीमित भूमिका निभाई है। यह प्रतिनिधित्व की कमी विशेष रूप से लड़कियों को पारंपरिक करियर विकल्पों से बाहर जाने से हतोत्साहित कर सकती है, जिससे वे विज्ञान, तकनीक और नेतृत्व से जुड़े क्षेत्रों में अवसरों को अपनाने में संकोच कर सकती हैं। यदि शैक्षिक सामग्री में अधिक संतुलित और समावेशी दृष्टिकोण अपनाया जाए, तो यह विद्यार्थियों को अपने लिंग की परवाह किए बिना किसी भी क्षेत्र में आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकता है।
Teachers' Perspective I शिक्षकों का दृष्टिकोण
शिक्षक अनजाने में जेंडर आधारित रूढ़ियों को बढ़ावा दे सकते हैं, जिससे विद्यार्थियों की रुचि, आत्म-विश्वास और करियर की आकांक्षाओं पर प्रभाव पड़ता है। कई बार, शिक्षक लड़कों को गणित, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे तकनीकी विषयों में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं, जबकि लड़कियों को कला, मानविकी और सामाजिक विज्ञान की ओर अधिक प्रोत्साहित किया जाता है। यह भेदभाव न केवल छात्रों के सीखने की संभावनाओं को सीमित करता है, बल्कि उन्हें यह महसूस कराता है कि कुछ विषय और करियर पथ उनके लिए स्वाभाविक रूप से उपयुक्त नहीं हैं। शिक्षक कक्षा में बातचीत और गतिविधियों के दौरान भी अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाते हैं। उदाहरण के लिए, गणित या विज्ञान की समस्याओं पर चर्चा करते समय अक्सर लड़कों से अधिक प्रश्न पूछे जाते हैं, जबकि साहित्य और भाषा से संबंधित चर्चाओं में लड़कियों को अधिक भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इसी प्रकार, यदि लड़कियाँ गणित या विज्ञान में उत्कृष्टता प्राप्त करती हैं, तो कभी-कभी इसे असामान्य माना जाता है, जबकि लड़कों के लिए इसे स्वाभाविक समझा जाता है। ऐसे दृष्टिकोण छात्रों की आत्म-धारणा को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे वे अपने लिंग के अनुसार सीमित करियर विकल्पों को चुनने के लिए बाध्य महसूस कर सकते हैं। शिक्षकों के लिए यह संभव है कि वे अपने शिक्षण दृष्टिकोण को समावेशी और संतुलित बनाएँ। यदि शिक्षक सभी छात्रों को समान अवसर प्रदान करते हैं, उनकी क्षमताओं को बिना किसी पूर्वाग्रह के मान्यता देते हैं, और पारंपरिक जेंडर रूढ़ियों को चुनौती देने वाले उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, तो यह विद्यार्थियों को अधिक स्वतंत्र रूप से अपनी रुचियों और प्रतिभाओं को विकसित करने की अनुमति देगा।
School Activities स्कूली गतिविधियाँ
विद्यालयों में आयोजित पाठ्येतर कार्यक्रम, खेलकूद, नेतृत्व भूमिकाएँ और कलात्मक गतिविधियाँ भी जेंडर भेदभाव को बढ़ावा दे सकती हैं, यदि उन्हें पारंपरिक जेंडर अपेक्षाओं के अनुरूप संरचित किया जाता है। आमतौर पर, लड़कों को प्रतिस्पर्धात्मक खेलों जैसे फुटबॉल, बास्केटबॉल और एथलेटिक्स में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जबकि लड़कियों को नृत्य, ड्राइंग, नाटक और संगीत जैसी गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया जाता है। यह भेदभाव छात्रों की रुचियों और कौशल विकास को सीमित कर सकता है, जिससे वे अपनी वास्तविक क्षमताओं को पूरी तरह से पहचानने में असमर्थ रह सकते हैं। स्कूलों में नेतृत्व भूमिकाओं का वितरण भी जेंडर आधारित पूर्वाग्रह को दर्शा सकता है। छात्र परिषद, वाद-विवाद प्रतियोगिताएँ और अन्य नेतृत्वकारी अवसरों में अक्सर लड़कों को अधिक भागीदारी करने के लिए प्रेरित किया जाता है, जबकि लड़कियों को संगठात्मक कार्यों, समर्थन भूमिकाओं या सौंदर्य और सांस्कृतिक आयोजनों में संलग्न किया जाता है। इस प्रकार की प्रवृत्ति लड़कियों में नेतृत्व कौशल के विकास को सीमित कर सकती है और उनके आत्म-विश्वास पर प्रभाव डाल सकती है। कई आधुनिक स्कूल अब जेंडर-न्यूट्रल गतिविधियों को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहे हैं, जहाँ सभी छात्रों को समान अवसर प्रदान किए जाते हैं। जब स्कूल सभी विद्यार्थियों को बिना किसी जेंडर भेदभाव के विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति देते हैं, तो यह उन्हें अपनी रुचियों और प्रतिभाओं को स्वतंत्र रूप से तलाशने और विकसित करने के लिए सशक्त बनाता है। इस प्रकार, स्कूल यदि एक समावेशी वातावरण तैयार करें, तो वे छात्रों को रूढ़ियों से मुक्त होकर अपने करियर और व्यक्तित्व को स्वतंत्र रूप से विकसित करने का अवसर दे सकते हैं।
Gender socialization in formal and informal organizations I औपचारिक और अनौपचारिक संगठनों में जेंडर समाजीकरण
परिवार और स्कूल के अलावा, विभिन्न औपचारिक और अनौपचारिक संस्थाएँ भी जेंडर पहचान और सामाजिक अपेक्षाओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये संस्थाएँ पारंपरिक जेंडर भूमिकाओं को बनाए रख सकती हैं या, इसके विपरीत, अधिक समावेशी और समानतापूर्ण समाज बनाने में मदद कर सकती हैं। औपचारिक संगठन, जैसे कार्यस्थल और धार्मिक संस्थाएँ, अक्सर संस्थागत नीतियों और सामाजिक मानदंडों के माध्यम से जेंडर समाजीकरण को प्रभावित करते हैं। वहीं, अनौपचारिक संगठन, जैसे मीडिया, मनोरंजन उद्योग और सामाजिक नेटवर्क, सांस्कृतिक प्रभावों और व्यक्तिगत अनुभवों के माध्यम से लैंगिक धारणाओं को गहराई से प्रभावित कर सकते हैं।
Formal Organizations I औपचारिक संगठन
Workplace I कार्यस्थल
कार्यस्थलों में जेंडर समाजीकरण विभिन्न तरीकों से देखा जा सकता है, जैसे कि वेतन असमानता, पदोन्नति के अवसरों में भेदभाव, और नेतृत्व पदों में महिलाओं की कम भागीदारी। ऐतिहासिक रूप से, कई उद्योग पुरुष-प्रधान रहे हैं, विशेष रूप से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और वित्त जैसे क्षेत्र। महिलाओं को अक्सर करियर में आगे बढ़ने के लिए अधिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें मातृत्व अवकाश के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण और नेतृत्व क्षमताओं पर संदेह जैसी चुनौतियाँ शामिल हैं। कार्यस्थल की संस्कृति भी जेंडर समाजीकरण को प्रभावित करती है। कुछ संगठन पुरुषों के नेतृत्व को अधिक स्वीकार्य मानते हैं, जबकि महिलाओं को अधिक सहायक भूमिकाओं में देखना पसंद करते हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में कई कंपनियाँ लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए नीतियाँ लागू कर रही हैं, जैसे समान वेतन संरचना, कार्यस्थल पर विविधता और समावेशन कार्यक्रम, और महिलाओं को नेतृत्व की भूमिकाओं में आगे बढ़ाने के लिए विशेष प्रशिक्षण।
Religious Institutions I धार्मिक संस्थाएँ
धार्मिक संस्थाएँ भी जेंडर समाजीकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, क्योंकि वे समाज में नैतिकता, कर्तव्यों और सामाजिक संरचनाओं को परिभाषित करने का कार्य करती हैं। कई पारंपरिक धार्मिक विचारधाराएँ पुरुषों और महिलाओं के लिए विशिष्ट भूमिकाएँ निर्धारित करती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ धर्मों में महिलाओं को घर की देखभाल और पालन-पोषण की प्राथमिक भूमिका दी जाती है, जबकि निर्णय लेने और आध्यात्मिक नेतृत्व की जिम्मेदारी पुरुषों को दी जाती है। आधुनिक धार्मिक आंदोलन और समाज में बढ़ते जागरूकता अभियानों ने इन पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देना शुरू कर दिया है। कई धार्मिक संगठनों ने महिलाओं को नेतृत्व भूमिकाओं में भाग लेने की अनुमति देना शुरू कर दिया है और समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए हैं। इस प्रकार, धर्म जेंडर समाजीकरण को सीमित करने के बजाय लैंगिक समानता को सशक्त बनाने का भी साधन बन सकता है, यदि इसे आधुनिक संदर्भ में पुनर्परिभाषित किया जाए।
Informal Organizations I अनौपचारिक संगठन
Media and Entertainment Industry I मीडिया और मनोरंजन उद्योग
मीडिया और मनोरंजन उद्योग सामाजिक दृष्टिकोणों को आकार देने में एक प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे जेंडर की छवि को परिभाषित करने वाले प्रमुख स्रोतों में से एक हैं। फिल्मों, टेलीविजन शो, विज्ञापनों और सोशल मीडिया में जेंडर भूमिकाओं का चित्रण समाज में गहराई से जड़ें जमा सकता है। अक्सर, पुरुषों को मजबूत, साहसी और निर्णय लेने वाले के रूप में चित्रित किया जाता है, जबकि महिलाओं को भावनात्मक, देखभाल करने वाली और सहायक भूमिकाओं तक सीमित कर दिया जाता है। हाल के वर्षों में, मीडिया में जेंडर प्रतिनिधित्व में सुधार हुआ है। अब महिलाओं को केवल गृहिणी या सहायक किरदार के रूप में नहीं, बल्कि वैज्ञानिक, नेता, योद्धा और उद्यमी के रूप में भी दिखाया जा रहा है। साथ ही, एलजीबीटीक्यू+ समुदाय की दृश्यता भी बढ़ी है, जिससे जेंडर पहचान और समाजीकरण की अधिक विविध समझ विकसित हो रही है। यह प्रगतिशील बदलाव समाज में जेंडर समानता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
Social Networks and Friend Circles I सामाजिक नेटवर्क और मित्र मंडली
सामाजिक नेटवर्क और मित्र समूह किसी व्यक्ति के जेंडर समाजीकरण में अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं। लोग अपने आस-पास के लोगों के दृष्टिकोण, विश्वासों और अपेक्षाओं से प्रभावित होते हैं। पारंपरिक रूप से, लड़कों को अधिक प्रतिस्पर्धी और नेतृत्वकारी बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जबकि लड़कियों को सहयोगी, विनम्र और देखभाल करने वाली भूमिकाओं की ओर प्रेरित किया जाता है। यदि मित्र मंडली और सामाजिक नेटवर्क अधिक समावेशी होते हैं, तो वे व्यक्तियों को पारंपरिक जेंडर रूढ़ियों से बाहर निकलने और अपनी पहचान को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति देते हैं। समान विचारधारा वाले सहयोगी समूह, जो लैंगिक समानता और समावेशिता को बढ़ावा देते हैं, व्यक्तियों को अपने करियर, रुचियों और जीवनशैली के चुनावों में अधिक स्वतंत्रता प्रदान कर सकते हैं।
Conclusion I निष्कर्ष
जेंडर पहचान एक स्थिर या जैविक विशेषता नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक रूप से निर्मित और लगातार विकसित होने वाली प्रक्रिया है, जिसे परिवार, शिक्षा प्रणाली, कार्यस्थल, धार्मिक संस्थाएँ, मीडिया और सामाजिक नेटवर्क के माध्यम से आकार दिया जाता है। जेंडर समाजीकरण पारंपरिक रूढ़ियों को मजबूत कर सकता है या समावेशिता और समानता को बढ़ावा देकर उन्हें चुनौती दे सकता है। एक अधिक संतुलित और समावेशी समाज बनाने के लिए यह आवश्यक है कि हम जेंडर रूढ़ियों को चुनौती दें और ऐसे वातावरण को प्रोत्साहित करें जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को उनकी प्रतिभा, रुचि और क्षमताओं के आधार पर आगे बढ़ने का अवसर मिले, न कि केवल उनके लिंग के आधार पर। जब औपचारिक और अनौपचारिक संस्थाएँ लैंगिक समानता को प्रोत्साहित करेंगी, तभी समाज में एक सकारात्मक और व्यापक बदलाव संभव होगा।
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