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Selection Criteria of Content in the Syllabus पाठ्यक्रम में सामग्री के चयन के मानदंड


पाठ्यक्रम में सामग्री का चयन पाठ्यक्रम विकास की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो शिक्षा की गुणवत्ता और सीखने के परिणामों को सीधे प्रभावित करता है। यह केवल विषयों की सूची तैयार करने तक सीमित नहीं है, बल्कि एक सुव्यवस्थित ढांचा तैयार करने की प्रक्रिया है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि छात्र ज्ञान और कौशल को तार्किक और प्रगतिशील तरीके से अर्जित करें। एक अच्छी तरह से संरचित पाठ्यक्रम शिक्षकों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है, जिससे वे शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी ढंग से संचालित कर सकें और सीखने के उद्देश्यों को स्पष्ट रख सकें। सामग्री चयन विभिन्न कारकों पर आधारित होता है, जिनमें शैक्षिक लक्ष्य, संज्ञानात्मक विकास स्तर और ज्ञान की वास्तविक जीवन में उपयोगिता शामिल है। यह न केवल छात्रों की शैक्षणिक और व्यावसायिक आकांक्षाओं को पूरा करना चाहिए, बल्कि उनमें आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और समस्या-समाधान कौशल को भी विकसित करना चाहिए। इसके अलावा, सामग्री चयन को गतिशील बनाए रखना आवश्यक है ताकि यह अनुसंधान, प्रौद्योगिकी और सामाजिक परिवर्तनों के अनुरूप रहे, जिससे शिक्षा अधिक प्रासंगिक और प्रभावशाली बनी रहे। इसके अतिरिक्त, पाठ्यक्रम की सामग्री में समावेशिता और विविधता को भी महत्व दिया जाना चाहिए, ताकि यह विभिन्न दृष्टिकोणों को प्रस्तुत कर सके और सभी शिक्षार्थियों के लिए सुलभ हो, चाहे उनका पृष्ठभूमि कुछ भी हो। सैद्धांतिक ज्ञान और व्यावहारिक अनुप्रयोग के बीच संतुलन बनाए रखना भी आवश्यक है, जिससे छात्र कक्षा में प्राप्त ज्ञान को वास्तविक जीवन की चुनौतियों से जोड़ सकें। इन सभी तत्वों को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम सामग्री को व्यापक, रोचक और समग्र छात्र विकास के लिए लाभकारी बनाया जा सकता है।
नीचे दिए गए प्रमुख मानदंड पाठ्यक्रम में सामग्री के चयन का मार्गदर्शन करते हैं:

1. शैक्षिक उद्देश्य और अधिगम परिणाम (Educational Objectives and Learning Outcomes):

पाठ्यक्रम में सामग्री के चयन का सबसे महत्वपूर्ण मानदंड इसका निर्धारित शैक्षिक उद्देश्यों और अधिगम परिणामों के साथ संरेखण (alignment) होना है। सामग्री का चयन इस तरह से किया जाना चाहिए कि यह पाठ्यक्रम या विषय के समग्र उद्देश्यों का समर्थन करे और छात्रों को आवश्यक ज्ञान एवं कौशल प्राप्त करने का स्पष्ट मार्ग प्रदान करे। एक सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम छात्रों के समग्र विकास में योगदान देता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के अधिगम पहलू शामिल होते हैं, जैसे – संज्ञानात्मक (बौद्धिक वृद्धि), भावात्मक (भावनात्मक और नैतिक विकास), और मनो-गतिक (व्यावहारिक एवं कौशल आधारित अधिगम)। यह आलोचनात्मक सोच, समस्या-समाधान क्षमता और विश्लेषणात्मक तर्क को प्रोत्साहित करता है, साथ ही रचनात्मकता और नवाचार को भी बढ़ावा देता है। इसके अतिरिक्त, पाठ्यक्रम में सैद्धांतिक समझ और व्यावहारिक अनुप्रयोग के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। जहां सैद्धांतिक ज्ञान एक मजबूत वैचारिक आधार प्रदान करता है, वहीं व्यावहारिक शिक्षण छात्रों को इन अवधारणाओं को वास्तविक जीवन की परिस्थितियों में लागू करने में सक्षम बनाता है। इस एकीकरण से छात्रों को न केवल शैक्षणिक अवधारणाओं को समझने में सहायता मिलती है, बल्कि वे अपने करियर और सामाजिक भूमिकाओं के लिए भी बेहतर रूप से तैयार हो पाते हैं।

2. छात्रों की आवश्यकताओं और भविष्य की संभावनाओं से प्रासंगिकता (Relevance to Students' Needs and Future Prospects):

पाठ्यक्रम की सामग्री का चयन छात्रों के शैक्षणिक, व्यावसायिक और व्यक्तिगत विकास से निकटता से जुड़ा होना चाहिए। यह आवश्यक है कि अध्ययन सामग्री केवल सूचनात्मक न हो, बल्कि सार्थक भी हो, जिससे शिक्षार्थी अपने अध्ययन को वास्तविक जीवन की स्थितियों से जोड़ सकें। सामग्री को इस तरह से डिजाइन किया जाना चाहिए कि यह उनकी आलोचनात्मक सोच, समस्या-समाधान कौशल और विभिन्न जीवन परिस्थितियों में सही निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करे। एक सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम छात्रों को उच्च शिक्षा और भविष्य के करियर के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करता है। यह विषय-विशेषज्ञता का एक मजबूत आधार तैयार करता है, साथ ही संचार कौशल, विश्लेषणात्मक सोच और अनुकूलन क्षमता जैसे महत्वपूर्ण कौशलों को भी विकसित करता है। यह छात्रों को न केवल बदलते हुए नौकरी बाजार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तैयार करता है, बल्कि उच्च शिक्षा में आगे बढ़ने के लिए भी सशक्त बनाता है। इसके अतिरिक्त, सामग्री को समसामयिक मुद्दों और उभरती चुनौतियों को संबोधित करना चाहिए ताकि छात्र वैश्विक और सामाजिक परिवर्तनों से अवगत रहें और उनके अनुरूप खुद को तैयार कर सकें। आधुनिक प्रगति, नैतिक विचारों और तकनीकी विकास पर चर्चा को पाठ्यक्रम में शामिल करके, यह शिक्षार्थियों को एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है और उन्हें एक जिम्मेदार, संतुलित और समाज में सार्थक योगदान देने वाले नागरिक बनने के लिए प्रेरित करता है।

3. आयु उपयुक्तता और संज्ञानात्मक स्तर (Age Appropriateness and Cognitive Level):

पाठ्यक्रम में सामग्री का चयन करते समय यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि उसकी जटिलता और गहराई छात्रों की आयु, शैक्षणिक स्तर और संज्ञानात्मक क्षमताओं के अनुरूप हो। पाठ्यक्रम को इस तरह से डिज़ाइन किया जाना चाहिए कि यह उनके बौद्धिक विकास का समर्थन करे, बिना उन्हें अत्यधिक बोझिल बनाए। सीखने की प्रक्रिया को एक क्रमिक यात्रा की तरह होना चाहिए, जहां छात्र बुनियादी अवधारणाओं से शुरुआत करें और धीरे-धीरे जटिल विषयों की ओर बढ़ें। एक सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम में मूलभूत अवधारणाओं को सरल और सुगम तरीके से प्रस्तुत किया जाना चाहिए, और फिर शिक्षा के स्तर के अनुसार उसकी गहराई और जटिलता को बढ़ाना चाहिए। छात्रों को अत्यधिक जानकारी से बोझिल करना उनके लिए उलझन और अरुचि का कारण बन सकता है, इसलिए सामग्री को संतुलित और प्रबंधनीय रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। अध्ययन सामग्री जिज्ञासा, स्वतंत्र सोच और सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करे, न कि केवल रटकर याद करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे। इसके अतिरिक्त, पाठ्यक्रम को इस तरह तैयार किया जाना चाहिए कि यह आलोचनात्मक सोच और समस्या-समाधान कौशल के विकास को प्रोत्साहित करे। छात्रों को जानकारी का विश्लेषण करने, विभिन्न अवधारणाओं के बीच संबंध स्थापित करने और अपने ज्ञान को वास्तविक जीवन की परिस्थितियों में लागू करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। यदि शिक्षण सामग्री को छात्रों के संज्ञानात्मक विकास स्तर को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाए, तो यह सीखने की प्रक्रिया को रोचक और प्रेरणादायक बनाएगा, जिससे वे आत्मविश्वास और उत्साह के साथ अपने शैक्षणिक सफर को जारी रख सकें।

4. व्यापकता और गहराई के बीच संतुलन (Balance Between Breadth and Depth):

एक अच्छी तरह से संरचित पाठ्यक्रम व्यापक विषयों को कवर करने और प्रमुख अवधारणाओं की गहन समझ सुनिश्चित करने के बीच संतुलन बनाए रखता है। यदि पाठ्यक्रम बहुत अधिक विषयों को शामिल करने की कोशिश करता है, तो यह सतही अधिगम (superficial learning) को बढ़ावा दे सकता है, जहां छात्र विभिन्न विचारों से परिचित तो हो जाते हैं, लेकिन उन्हें गहराई से समझने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता। इसलिए, सीखने को प्रभावी बनाने के लिए, पाठ्यक्रम को आवश्यक विषयों और मूलभूत अवधारणाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिससे छात्र विषयों का विस्तार से अध्ययन कर सकें, न कि केवल सतही जानकारी तक सीमित रहें। इसके अलावा, एक प्रभावी पाठ्यक्रम छात्रों को मूलभूत विषयों में एक मजबूत आधार प्रदान करता है, साथ ही उन्हें विशिष्ट विषयों में विशेषज्ञता हासिल करने के अवसर भी देता है। यह छात्रों को उनके रुचि क्षेत्र और करियर की आकांक्षाओं के अनुरूप विषयों का चयन करने की सुविधा प्रदान करता है, जिससे उनकी बौद्धिक जिज्ञासा और गहन विषय महारत को बढ़ावा मिलता है। व्यापकता और गहराई के बीच सही संतुलन बनाए रखना यह सुनिश्चित करता है कि छात्र केवल सामान्य ज्ञान प्राप्त न करें, बल्कि विश्लेषणात्मक, अनुसंधान और आलोचनात्मक सोच कौशल भी विकसित करें, जो उनके शैक्षणिक और व्यावसायिक जीवन में सहायक सिद्ध होंगे।

5. सांस्कृतिक और सामाजिक प्रासंगिकता (Cultural and Social Relevance):

एक सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम को छात्रों के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भों को प्रतिबिंबित करना चाहिए। शिक्षा किसी व्यक्ति की पहचान, मूल्यों और विश्वदृष्टि को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, इसलिए पाठ्यक्रम को विभिन्न दृष्टिकोणों को शामिल करना चाहिए और समावेशिता (inclusivity) को बढ़ावा देना चाहिए। विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोणों को जोड़कर, पाठ्यक्रम एक समावेशी शिक्षण वातावरण बना सकता है, जो विभिन्न परंपराओं, विश्वासों और अनुभवों का सम्मान और स्वीकार करता है। इसके अतिरिक्त, पाठ्यक्रम को लोकतंत्र, समानता और मानवाधिकार जैसे मूलभूत मूल्यों को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे छात्र एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में अपनी भूमिका को समझ सकें। इसे सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर चर्चाओं को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि छात्र अपने समाज की जटिलताओं को समझ सकें और सकारात्मक बदलाव लाने में योगदान कर सकें। जब पाठ्यक्रम वास्तविक जीवन की चुनौतियों और नैतिक विचारों को संबोधित करता है, तो यह छात्रों को जागरूकता और आलोचनात्मक सोच से लैस करता है, जिससे वे एक जिम्मेदार वैश्विक नागरिक बन सकें।

6. वैज्ञानिक और तार्किक वैधता (Scientific and Logical Validity):

एक प्रभावी और विश्वसनीय पाठ्यक्रम का आधार वैज्ञानिक रूप से सटीक और तार्किक रूप से प्रमाणित ज्ञान होना चाहिए। पाठ्यक्रम की सामग्री को नियमित रूप से नवीनतम खोजों, अनुसंधान निष्कर्षों और तकनीकी प्रगति के अनुसार अपडेट किया जाना चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो कि छात्रों को तथ्य-आधारित शिक्षा प्राप्त हो, न कि पुरानी या भ्रामक जानकारी। यह महत्वपूर्ण है कि पाठ्यक्रम किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह (biases) और गलत सूचनाओं से मुक्त हो, क्योंकि यह सत्यता और बौद्धिक अखंडता (intellectual integrity) पर आधारित एक सकारात्मक शिक्षण वातावरण को बढ़ावा देता है। इसके अलावा, एक आदर्श पाठ्यक्रम वैज्ञानिक अनुसंधान और तार्किक तर्क को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे छात्र केवल जानकारी को ग्रहण करने के बजाय, उसे विश्लेषण करने, प्रश्न पूछने और प्रमाणों के आधार पर सत्यापन करने की मानसिकता विकसित कर सकें। आलोचनात्मक सोच, समस्या-समाधान और डेटा विश्लेषण को पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा बनाया जाना चाहिए, ताकि छात्र तेजी से बदलती और सूचना-प्रधान दुनिया में आत्मविश्वास से आगे बढ़ सकें। जब पाठ्यक्रम आधुनिक वैज्ञानिक विकास के अनुरूप होता है और साक्ष्य-आधारित शिक्षण को बढ़ावा देता है, तो यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि छात्र आवश्यक ज्ञान और कौशल प्राप्त करें, जो उन्हें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करेगा।

7. अंतर्विषयक दृष्टिकोण (Interdisciplinary Approach):

आधुनिक शिक्षा प्रणाली में अंतर्विषयक शिक्षण (Interdisciplinary Learning) को अत्यधिक महत्व दिया जाता है, क्योंकि यह विभिन्न विषयों को आपस में जोड़कर समग्र ज्ञान और समझ विकसित करता है। एक प्रभावी पाठ्यक्रम को इस प्रकार तैयार किया जाना चाहिए कि वह विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, मानविकी, प्रौद्योगिकी और अन्य विषयों के बीच संबंध स्थापित कर सके, जिससे छात्रों को विभिन्न दृष्टिकोणों से सोचने और समस्याओं को हल करने की क्षमता विकसित हो। इस दृष्टिकोण से छात्र केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं रहते, बल्कि उन्हें वास्तविक जीवन में विभिन्न विषयों को एकीकृत करने का अवसर मिलता है। परियोजना-आधारित शिक्षण (Project-Based Learning) और सहयोगात्मक कार्य (Collaborative Learning) को बढ़ावा देने से विद्यार्थियों में अनुसंधान, विश्लेषण, और रचनात्मकता विकसित होती है। इससे वे जटिल समस्याओं को अधिक प्रभावी तरीके से हल कर सकते हैं और उनके संपूर्ण बौद्धिक विकास को बल मिलता है।

8. शिक्षण-संसाधनों की उपलब्धता (Availability of Teaching-Learning Resources):

किसी भी पाठ्यक्रम की प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसे पढ़ाने और सीखने के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध हैं या नहीं। एक अच्छे पाठ्यक्रम (Well-Designed Curriculum) को इस तरह तैयार किया जाना चाहिए कि वह पारंपरिक और आधुनिक दोनों प्रकार के शिक्षण संसाधनों का उपयोग करके शिक्षकों और छात्रों के लिए सुलभ और उपयोगी हो। इसमें पाठ्यपुस्तकों, डिजिटल सामग्री, ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म, ऑडियो-विज़ुअल टूल्स, प्रयोगशाला उपकरण और अन्य आधुनिक संसाधनों का समुचित समावेश किया जाना चाहिए। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) उपकरणों का उपयोग शिक्षण को अधिक प्रभावी और आकर्षक बना सकता है। स्मार्ट क्लासरूम, मल्टीमीडिया सामग्री, और वर्चुअल लैब्स के माध्यम से छात्रों को व्यावहारिक अनुभव प्रदान किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि ये संसाधन सभी छात्रों और शिक्षकों के लिए समान रूप से सुलभ हों, जिससे सीखने की प्रक्रिया अधिक समावेशी और प्रभावी बने।

9. लचीलापन और अनुकूलन की संभावना (Flexibility and Scope for Adaptation):

एक उत्तम पाठ्यक्रम (Well-Structured Syllabus) को इस प्रकार तैयार किया जाना चाहिए कि वह बदलते सामाजिक, तकनीकी और औद्योगिक परिवर्तनों के अनुरूप समय-समय पर संशोधित किया जा सके। शिक्षा प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने के लिए लचीलापन (Flexibility) और नवाचार (Innovation) आवश्यक हैं। पाठ्यक्रम को इस प्रकार डिज़ाइन किया जाना चाहिए कि वह नई तकनीकों, बदलती व्यावसायिक आवश्यकताओं, और वैश्विक शिक्षा मानकों के अनुसार अद्यतन किया जा सके। इसके अतिरिक्त, पाठ्यक्रम में छात्रों की रुचियों और क्षमताओं के अनुरूप वैकल्पिक पाठ्यक्रम (Elective Courses) और कौशल-आधारित शिक्षा (Skill-Based Learning) का समावेश किया जाना चाहिए। आधुनिक शिक्षण विधियों जैसे—समस्या-आधारित शिक्षण (Problem-Based Learning), प्रायोगिक शिक्षण (Experiential Learning), और केस स्टडीज़ को शामिल करके छात्रों को अधिक रचनात्मक और तर्कसंगत सोच विकसित करने का अवसर दिया जा सकता है।

एक प्रभावी पाठ्यक्रम की संरचना इस प्रकार होनी चाहिए कि उसे निर्धारित शैक्षणिक समय-सीमा (Academic Timeline) के भीतर सुचारू रूप से पूरा किया जा सके। यदि पाठ्यक्रम अत्यधिक जटिल या विस्तृत होगा, तो इससे छात्रों पर अतिरिक्त मानसिक दबाव बढ़ सकता है, जिससे उनकी सीखने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। इसलिए, यह आवश्यक है कि शिक्षण सामग्री को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाए कि यह अकादमिक सत्र की समय-सारिणी के अनुरूप हो और छात्रों को पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए पर्याप्त समय मिल सके। मूल्यांकन प्रणाली (Assessment System) को भी पाठ्यक्रम के अनुरूप बनाया जाना चाहिए, ताकि परीक्षा, प्रायोगिक कार्य, प्रोजेक्ट रिपोर्ट, केस स्टडी, और शोध-आधारित मूल्यांकन के माध्यम से छात्रों की वास्तविक समझ और योग्यता को मापा जा सके। ग्रेडिंग प्रणाली (Grading System) को पारदर्शी और स्पष्ट बनाया जाना चाहिए, जिससे छात्रों को अपने प्रदर्शन को समझने और उसमें सुधार करने का अवसर मिले। इस प्रकार, समय और मूल्यांकन की व्यवहारिकता से जुड़ा एक संतुलित पाठ्यक्रम न केवल छात्रों के लिए प्रबंधनीय होता है, बल्कि शिक्षकों के लिए भी इसे प्रभावी रूप से पढ़ाना आसान बनाता है। इससे शिक्षा अधिक संगठित, उद्देश्यपूर्ण, और परिणामपरक बनती है।

निष्कर्ष (Conclusion):

पाठ्यक्रम सामग्री का चयन एक सुविचारित और रणनीतिक प्रक्रिया है, जिसमें विभिन्न पहलुओं का गहन विश्लेषण आवश्यक होता है। इसमें शैक्षिक उद्देश्यों, छात्रों की विविध आवश्यकताओं, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रासंगिकता, तथा इसके व्यावहारिक उपयोगिता को ध्यान में रखा जाता है। एक सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम प्रभावी शिक्षण अनुभव की नींव रखता है, जिससे छात्रों को न केवल सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त होता है, बल्कि उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक विकास के लिए आवश्यक कौशल भी विकसित होते हैं।

सावधानीपूर्वक तैयार किया गया पाठ्यक्रम उद्योग की बदलती आवश्यकताओं के अनुरूप होता है, अंतःविषयक (interdisciplinary) दृष्टिकोण को अपनाता है और शिक्षण में नवीन विधियों को शामिल करता है, जिससे छात्रों में आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और समस्या-समाधान क्षमताओं का विकास होता है। यह समावेशी, लचीला और विभिन्न सीखने की शैलियों के अनुरूप होना चाहिए, ताकि शिक्षा को सभी के लिए सुलभ और रोचक बनाया जा सके।

इसके अलावा, एक आदर्श पाठ्यक्रम केवल अकादमिक ज्ञान तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह समग्र विकास (holistic development) को भी बढ़ावा देता है। इसमें पाठ्येतर गतिविधियों और कौशल-आधारित शिक्षा को शामिल किया जाता है, जिससे छात्र व्यावहारिक अनुभव प्राप्त कर सकें और सैद्धांतिक अवधारणाओं को वास्तविक जीवन से जोड़ सकें।

एक संतुलित, लचीला और प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाने वाला पाठ्यक्रम छात्रों को भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करता है। यह उन्हें नई तकनीकों, वैश्विक रुझानों और सामाजिक परिवर्तनों के प्रति अनुकूलनशील बनने में सहायता करता है, साथ ही उनमें सीखने की आजीवन रुचि विकसित करता है। अंततः, एक प्रभावी पाठ्यक्रम शिक्षा को सार्थक, प्रभावशाली और परिवर्तनकारी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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