Role of G-7 in International Relations अंतराष्ट्रीय संबंधों में G-7 की भूमिका
ग्रुप ऑफ़ सेवन (G-7) विश्व की सबसे उन्नत औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं का एक प्रमुख अंतरसरकारी संगठन है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान शामिल हैं। हालांकि यूरोपीय संघ (EU) इसका पूर्ण सदस्य नहीं है, फिर भी यह नियमित रूप से बैठकों में भाग लेता है और वैश्विक आर्थिक व राजनीतिक मुद्दों पर निर्णय लेने में योगदान देता है। प्रारंभ में आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए गठित यह समूह समय के साथ एक महत्वपूर्ण मंच बन गया है, जो अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए समन्वय स्थापित करता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रखने वाले इस समूह की भूमिका वित्तीय स्थिरता बनाए रखने, व्यापार को प्रोत्साहित करने और वैश्विक आर्थिक नीतियों को दिशा देने में अहम मानी जाती है। आर्थिक मामलों से परे, G-7 सुरक्षा सहयोग, तकनीकी विकास और अंतरराष्ट्रीय शांति व स्थिरता बनाए रखने के लिए कूटनीतिक प्रयासों में भी सक्रिय भूमिका निभाता है। इसके अलावा, यह जलवायु परिवर्तन से निपटने, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने और मानवीय संकटों के समाधान में भी योगदान देता है। वर्षों से, G-7 ने वित्तीय विनियमन, आर्थिक प्रतिबंधों और संकट प्रबंधन रणनीतियों जैसे प्रमुख वैश्विक विकासों को प्रभावित किया है। यह दुनिया के प्रमुख लोकतांत्रिक देशों को संवाद और सहयोग का एक मंच प्रदान करता है, जहां वे साइबर हमलों, ऊर्जा सुरक्षा, और मानवाधिकारों के उल्लंघन जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए एकजुट होकर कार्य करते हैं। हालांकि, इस समूह को इसकी विशिष्ट सदस्यता के कारण आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ता है, लेकिन यह एक अधिक जुड़े हुए और जटिल वैश्विक परिदृश्य में प्रासंगिक बने रहने के लिए अपनी रणनीतियों को लगातार विकसित कर रहा है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background):
ग्रुप ऑफ़ सेवन (G-7) की स्थापना 1975 में हुई थी, जब फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका ने मिलकर G-6 का गठन किया। यह बैठक वैश्विक आर्थिक अस्थिरता के समाधान के लिए बुलाई गई थी, जो 1973 के तेल संकट के कारण उत्पन्न हुई थी। इस संकट के चलते विश्वभर में मुद्रास्फीति (महंगाई) और वित्तीय उथल-पुथल बढ़ गई थी। इन देशों ने महसूस किया कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और आर्थिक नीतियों को समन्वित करने के लिए एक मंच की आवश्यकता है। 1976 में कनाडा को इस समूह में शामिल किया गया, जिससे यह G-7 बन गया और इसकी आर्थिक तथा राजनीतिक प्रभावशीलता और अधिक बढ़ गई। इसके बाद, 1998 में रूस को भी इसमें शामिल किया गया, जिससे यह G-8 बन गया। रूस की भागीदारी को शीत युद्ध के बाद उसे वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक प्रणाली में एकीकृत करने की रणनीति के रूप में देखा गया। हालाँकि, 2014 में क्राइमिया के अधिग्रहण के बाद, अन्य सदस्य देशों ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन मानते हुए रूस को निलंबित कर दिया। इसके बाद से यह समूह पुनः G-7 बन गया और अब तक उसी रूप में कार्य कर रहा है। वर्षों से, G-7 ने व्यापार, आर्थिक विकास, सुरक्षा, और वैश्विक संकटों से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह मंच दुनिया की प्रमुख लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाओं को एक साथ लाकर जलवायु परिवर्तन, तकनीकी प्रगति, और भू-राजनीतिक स्थिरता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने में सहायता करता है।
G-7 के उद्देश्य (Objectives of G-7):
G-7 मुख्य रूप से एक नीतिगत समन्वय मंच है, न कि कोई औपचारिक संस्था। इसके मुख्य उद्देश्य शामिल हैं:
1. आर्थिक स्थिरता और विकास (Economic Stability and Growth):
G-7 का एक प्रमुख उद्देश्य वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखना और सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। यह समूह मुद्रास्फीति पर नियंत्रण, बेरोजगारी दर में कमी, और आर्थिक असंतुलन को दूर करने के लिए समन्वित नीतियाँ तैयार करता है। साथ ही, यह संभावित वित्तीय संकटों को रोकने और मंदी से उबरने के लिए विभिन्न उपायों पर चर्चा करता है, जिससे वैश्विक बाजारों में स्थिरता बनी रहे। इसके अतिरिक्त, G-7 आर्थिक नीतियों के माध्यम से समावेशी विकास को बढ़ावा देने, नवाचार को प्रोत्साहित करने, और वित्तीय नियमन को मजबूत करने के लिए भी कार्य करता है, ताकि वैश्विक अर्थव्यवस्था दीर्घकालिक रूप से स्थिर बनी रहे।
2. व्यापार और वाणिज्य (Trade and Commerce):
G-7 मुक्त और निष्पक्ष व्यापार को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है। यह समूह व्यापारिक बाधाओं को कम करने, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को सुचारु बनाने और आर्थिक प्रतिबंधों के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए विभिन्न नीतियों पर विचार-विमर्श करता है। इसके अलावा, यह सदस्य देशों और अन्य वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापारिक विवादों को हल करने में भी भूमिका निभाता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक संबंध मजबूत हो सकें। इसके साथ ही, G-7 डिजिटल व्यापार, ई-कॉमर्स, और नवीनतम तकनीकी नवाचारों को अपनाने की दिशा में भी सहयोग बढ़ाता है, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को नए अवसर प्राप्त हो सकें।
3. अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा (International Security):
वैश्विक सुरक्षा सुनिश्चित करना G-7 के महत्वपूर्ण उद्देश्यों में से एक है। यह समूह आतंकवाद, साइबर हमलों, परमाणु प्रसार, और अन्य सुरक्षा खतरों पर चर्चा करता है। इसके तहत, सदस्य देश साइबर सुरक्षा को मजबूत करने, आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने और वैश्विक शांति बनाए रखने के लिए सहयोग करते हैं। साथ ही, यह मंच विभिन्न भू-राजनीतिक तनावों और अंतरराष्ट्रीय संघर्षों को कम करने के लिए कूटनीतिक प्रयासों को भी बढ़ावा देता है। इसके अतिरिक्त, G-7 अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करने के लिए रक्षा साझेदारियों, सैन्य अभ्यास, और खुफिया जानकारी साझा करने जैसी पहलों पर भी कार्य करता है।
4. जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण (Climate Change and Environmental Protection):
G-7 सदस्य देश पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर समन्वय बढ़ाने का प्रयास करते हैं। यह मंच कार्बन उत्सर्जन को कम करने, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने, और जैव विविधता की रक्षा करने के लिए नीतियाँ तैयार करता है। इसके अलावा, सदस्य देश जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त प्रयासों पर चर्चा करते हैं। साथ ही, यह समूह ग्रीन टेक्नोलॉजी, सस्टेनेबल फाइनेंस, और पर्यावरणीय कानूनों को लागू करने के लिए भी सहयोग करता है, जिससे भविष्य में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकें।
5. स्वास्थ्य और महामारी प्रतिक्रिया (Health and Pandemic Response):
G-7 ने COVID-19 महामारी और अन्य वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह समूह स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती, वैक्सीन विकास और वितरण, तथा स्वास्थ्य संकटों के दौरान अंतरराष्ट्रीय सहयोग को सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत रहता है। इसके तहत, यह महामारी की रोकथाम, अनुसंधान एवं विकास, और स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए नीतियों को बढ़ावा देता है। इसके अलावा, G-7 सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बनाने, नए स्वास्थ्य संकटों से निपटने के लिए तैयारियों को मजबूत करने, और चिकित्सा तकनीकों में नवाचार को बढ़ावा देने पर भी ध्यान केंद्रित करता है।
6. विकास सहायता और वित्तीय सहयोग (Development Assistance and Financial Cooperation):
G-7 आर्थिक रूप से कमजोर और विकासशील देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिससे वे सतत विकास के लक्ष्य प्राप्त कर सकें। यह समूह गरीबी उन्मूलन, बुनियादी ढांचे के विकास, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए धनराशि और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराता है। इसके अलावा, यह आर्थिक नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने में सहायता करता है, जिससे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हो सके और वे आत्मनिर्भर बन सकें। साथ ही, G-7 वैश्विक वित्तीय संस्थानों जैसे कि विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ मिलकर ऋण राहत, सामाजिक कल्याण परियोजनाओं, और डिजिटल अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने के लिए भी प्रयास करता है।
अंतराष्ट्रीय संबंधों में G-7 की भूमिका (G-7's Role in International Relations):
1. वैश्विक आर्थिक प्रशासन (Global Economic Governance):
G-7 वैश्विक आर्थिक नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह समूह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक (World Bank), और विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे संस्थानों के माध्यम से आर्थिक नीतियों पर प्रभाव डालता है। यह विशेष रूप से विकासशील और ऋणग्रस्त देशों के लिए ऋण राहत, अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक नीतियों, और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए नियामक ढांचे पर चर्चा करता है। इसके अतिरिक्त, G-7 वैश्विक वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने, डिजिटल मुद्राओं के नियमन, और अंतरराष्ट्रीय व्यापार बाधाओं को कम करने के लिए भी प्रयास करता है।
2. कूटनीति और संघर्ष समाधान (Diplomacy and Conflict Resolution):
G-7 एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक मंच के रूप में कार्य करता है, जो अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीतिक तनावों को हल करने के लिए प्रयासरत रहता है। यह समूह उन देशों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने और दबाव बनाने का कार्य करता है, जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हैं। उदाहरण के लिए, 2014 में रूस द्वारा क्राइमिया पर कब्जा करने के बाद, G-7 ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए और अब भी इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों से अलग-थलग करने की नीति अपना रहा है। इसके अलावा, यह मंच वैश्विक शांति प्रयासों को बढ़ावा देने, सैन्य संघर्षों को रोकने, और मध्यस्थता के माध्यम से विवादों के शांतिपूर्ण समाधान पर जोर देता है।
3. जलवायु परिवर्तन में नेतृत्व (Climate Change Leadership):
G-7 सदस्य देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अग्रणी भूमिका निभाते हैं। 2015 में पेरिस समझौते (Paris Agreement) को लागू करने में इस समूह ने महत्वपूर्ण योगदान दिया और सभी सदस्य देशों ने 2050 तक नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन हासिल करने का संकल्प लिया है। इसके अलावा, G-7 जलवायु अनुकूलन परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करता है, विकासशील देशों में हरित ऊर्जा परियोजनाओं के लिए धनराशि उपलब्ध कराता है, और वैश्विक स्तर पर टिकाऊ ऊर्जा संसाधनों को अपनाने के लिए विभिन्न पहल करता है। इस मंच के माध्यम से, जलवायु नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने, ग्रीन टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने, और पर्यावरणीय क्षति को कम करने पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है।
4. वैश्विक स्वास्थ्य और महामारी प्रतिक्रिया (Global Health and Pandemic Response):
G-7 वैश्विक स्वास्थ्य नीतियों को मजबूत करने और महामारी से निपटने के लिए समन्वित प्रयास करता है। COVID-19 महामारी के दौरान, इस समूह ने COVAX जैसी पहल का समर्थन किया, जिससे गरीब और विकासशील देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराई जा सके। इसके अलावा, इस मंच ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सुधार और वैश्विक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के लिए बेहतर तैयारियों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। G-7 भविष्य में महामारी की रोकथाम, जैव-चिकित्सा अनुसंधान, और स्वास्थ्य प्रणालियों की मजबूती के लिए दीर्घकालिक योजनाओं पर भी कार्य कर रहा है।
5. प्रौद्योगिकी और साइबर सुरक्षा (Technology and Cybersecurity):
G-7 डिजिटल नीतियों, साइबर खतरों के समाधान, और बड़ी टेक कंपनियों के नियमन पर सहयोग करता है। यह मंच डेटा गोपनीयता, गलत सूचना के प्रसार, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के नैतिक उपयोग जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करता है। इसके अलावा, यह साइबर अपराधों, डिजिटल धोखाधड़ी, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साइबर सुरक्षा मानकों को मजबूत करने के लिए भी प्रयास करता है। G-7 तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करने के लिए काम करता है कि डिजिटल क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहे।
6. लोकतंत्र और मानवाधिकारों को मजबूत करना (Strengthening Democracy and Human Rights):
G-7 लोकतांत्रिक शासन प्रणालियों को समर्थन देने और अधिनायकवादी (authoritarian) व्यवस्थाओं का विरोध करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह समूह उन देशों के खिलाफ कड़े कदम उठाता है, जहां मानवाधिकारों का हनन किया जाता है। उदाहरण के लिए, चीन में उइगर मुस्लिम समुदाय के उत्पीड़न और म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के खिलाफ G-7 ने सार्वजनिक रूप से विरोध दर्ज किया और प्रतिबंधों की नीति अपनाई। इसके अलावा, यह मंच स्वतंत्र प्रेस, चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता, और नागरिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए भी कार्य करता है, जिससे वैश्विक स्तर पर लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा हो सके।
G-7 के समक्ष चुनौतियां (Challenges Faced by G-7):
1. सीमित प्रतिनिधित्व (Limited Representation):
G-7 सात विकसित अर्थव्यवस्थाओं—कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका—का एक समूह है। हालांकि, इसमें चीन, भारत और ब्राज़ील जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएँ शामिल नहीं हैं। इस बहिष्करण के कारण G-7 की वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक निर्णय लेने की वैधता पर सवाल उठते हैं। आज के प्रमुख मुद्दों, जैसे व्यापार नीति, जलवायु परिवर्तन और तकनीकी विकास, पर व्यापक देशों के दृष्टिकोण की आवश्यकता है। उभरती अर्थव्यवस्थाओं की भागीदारी के बिना, G-7 के निर्णय वैश्विक समुदाय की विविध आवश्यकताओं को पूरी तरह प्रतिबिंबित नहीं कर पाते हैं।
2. आंतरिक मतभेद (Internal Differences):
हालाँकि G-7 समान विचारधारा वाले विकसित देशों का समूह है, फिर भी यह प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर आंतरिक मतभेदों का सामना करता है। व्यापार नीति, रक्षा रणनीति और भू-राजनीतिक संकटों के प्रति दृष्टिकोण में अंतर के कारण समूह की एकता प्रभावित होती है। उदाहरण के लिए, अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच व्यापार विवाद या सैन्य हस्तक्षेपों पर अलग-अलग दृष्टिकोण अक्सर सदस्य देशों के बीच तनाव उत्पन्न करते हैं। ये मतभेद वैश्विक चुनौतियों के समाधान में G-7 की प्रभावशीलता को कम कर देते हैं, क्योंकि यह एक समन्वित और ठोस नीति अपनाने में संघर्ष करता है।
3. G-20 का बढ़ता प्रभाव (Rising Influence of the G-20):
G-20, जिसमें विकसित और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ दोनों शामिल हैं, वैश्विक आर्थिक प्रशासन के लिए एक अधिक प्रतिनिधि मंच बन गया है। इसके विपरीत, G-7 की तुलना में G-20 चीन, भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसे प्रमुख खिलाड़ियों को साथ लाकर आर्थिक नीतियों और वित्तीय स्थिरता पर अधिक संतुलित और समावेशी संवाद की सुविधा प्रदान करता है। G-20 के बढ़ते प्रभाव ने कई मायनों में G-7 की प्रासंगिकता को कम कर दिया है, क्योंकि यह वैश्विक आर्थिक मुद्दों को अधिक व्यापक दृष्टिकोण से हल करने का मंच प्रदान करता है। यह परिवर्तन एक ऐसे युग में G-7 की निरंतरता पर सवाल उठाता है जहाँ बहुपक्षीय सहयोग जटिल वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक है।
4. भू-राजनीतिक बदलाव और उभरती शक्तियाँ (Geopolitical Shifts and Emerging Powers):
वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है, जिसमें चीन और भारत जैसी उभरती शक्तियाँ अंतरराष्ट्रीय संबंधों को नया स्वरूप दे रही हैं। चीन के एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उदय और रूस के बढ़ते रणनीतिक प्रभाव ने पारंपरिक रूप से प्रभावशाली G-7 देशों की स्थिति को चुनौती दी है। इसके अलावा, BRICS (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) जैसे क्षेत्रीय गठबंधनों और वैकल्पिक आर्थिक साझेदारियों ने आर्थिक सहयोग और कूटनीतिक वार्ताओं के लिए नए मंच तैयार किए हैं। इन बदलावों के कारण G-7 की वैश्विक नीतियों को एकतरफा ढंग से निर्धारित करने की क्षमता घट रही है, क्योंकि उभरती अर्थव्यवस्थाएँ निर्णय लेने की प्रक्रिया में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
निष्कर्ष (Conclusion):
अपनी सीमाओं के बावजूद, G-7 वैश्विक मामलों में एक महत्वपूर्ण शक्ति बना हुआ है, जो आर्थिक और भू-राजनीतिक चर्चाओं को प्रभावित करता है। भले ही इसके पास किसी नीति को सीधे लागू करने की शक्ति न हो, लेकिन इसकी सामूहिक आर्थिक ताकत, तकनीकी प्रगति और कूटनीतिक प्रभाव इसे अंतरराष्ट्रीय नीतियों, वित्तीय विनियमों और सुरक्षा ढाँचों को आकार देने की क्षमता प्रदान करते हैं। जलवायु परिवर्तन, व्यापार नीति और लोकतांत्रिक मूल्यों जैसे वैश्विक मुद्दों पर एजेंडा तय करने की इसकी क्षमता इसे अंतरराष्ट्रीय निर्णय लेने की प्रक्रिया में एक प्रमुख भूमिका निभाने वाला समूह बनाए रखती है। हालाँकि, ऐसे समय में जब चीन, भारत और ब्राजील जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाएँ अधिक प्रभावशाली होती जा रही हैं, G-7 को प्रासंगिक बने रहने के लिए खुद को विकसित करना होगा। इन बढ़ती शक्तियों के साथ सार्थक संवाद स्थापित करना और सहयोगी ढाँचे को मजबूत करना वैश्विक चुनौतियों का समाधान खोजने के लिए आवश्यक होगा। अधिक समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देकर, सतत विकास पहलों का समर्थन करके और विकासशील देशों के साथ साझेदारी को मजबूत करके, G-7 खुद को एक अधिक अनुकूलनीय और उत्तरदायी संस्था के रूप में स्थापित कर सकता है। इसके अलावा, समूह को अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए आंतरिक नीति मतभेदों को दूर करना होगा और जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा और भू-राजनीतिक तनाव जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक मजबूत और एकीकृत रुख अपनाना होगा। संयुक्त राष्ट्र और G-20 जैसे बहुपक्षीय संगठनों के साथ सहयोग को मजबूत करना भी इसके प्रभाव को और अधिक बढ़ा सकता है। अंततः, G-7 की वैश्विक प्रभावशीलता इस पर निर्भर करेगी कि वह बदलाव को अपनाने, व्यापक गठबंधनों का निर्माण करने और एक अधिक न्यायसंगत और सतत वैश्विक व्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए कितनी तत्परता दिखाता है।
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