Indian Parliament: Structure, Functions, and Significance भारतीय संसद: संरचना, कार्य और महत्व
भारतीय संसद की संरचना (Structure of Indian Parliament):
भारतीय संसद तीन प्रमुख घटकों से मिलकर बनी होती है:
1. भारत के राष्ट्रपति (The President of India):
2. राज्यसभा (उच्च सदन) Rajya Sabha (Council of States):
3. लोकसभा (निम्न सदन) Lok Sabha (House of the People):
A. भारत के राष्ट्रपति (The President of India):
राष्ट्रपति भारतीय संसद का एक अभिन्न अंग होते हैं, लेकिन वे इसकी नियमित कार्यवाही में सीधे भाग नहीं लेते। हालांकि, उनकी भूमिका संसद की विधायी प्रक्रियाओं को सुचारू रूप से संचालित करने में अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। राष्ट्रपति का मुख्य कार्य संसद द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति प्रदान करना, लोकसभा को बुलाना या भंग करना, और संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों को संबोधित करना है। वे राष्ट्र के संवैधानिक प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं और विभिन्न विधायी एवं प्रशासनिक मामलों में औपचारिक स्वीकृति प्रदान करते हैं। राष्ट्रपति अपनी विधायी शक्तियों का प्रयोग मुख्य रूप से प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर करते हैं, जो संसदीय प्रणाली का एक अनिवार्य तत्व है। किसी भी विधेयक को कानून बनने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक होती है, और उनके पास इसे पुनर्विचार के लिए संसद को वापस भेजने का भी अधिकार होता है (सिवाय धन विधेयकों के)। इसके अतिरिक्त, यदि संसद सत्र में नहीं है, तो राष्ट्रपति अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश जारी कर सकते हैं, जो अस्थायी रूप से कानून का प्रभाव रखते हैं। राष्ट्रपति की भूमिका केवल विधायी प्रक्रियाओं तक सीमित नहीं है; वे संसद के औपचारिक प्रमुख होने के नाते विभिन्न संवैधानिक कार्यों का निर्वहन भी करते हैं। वे वार्षिक बजट सत्र की शुरुआत में दोनों सदनों को संबोधित करते हैं, जिसमें सरकार की नीतियों और योजनाओं की रूपरेखा प्रस्तुत की जाती है। इसके अलावा, राष्ट्रपति को विशेष परिस्थितियों में संसद का संयुक्त सत्र बुलाने और राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352), राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356), और वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360) लागू करने की भी शक्ति प्राप्त है। इस प्रकार, राष्ट्रपति भारतीय संसद का एक महत्वपूर्ण स्तंभ होते हैं, जो संवैधानिक प्रावधानों के तहत विधायी, कार्यकारी और आपातकालीन शक्तियों का उपयोग करते हैं। हालांकि वे प्रत्यक्ष रूप से संसद की कार्यवाही में भाग नहीं लेते, लेकिन उनकी स्वीकृति और हस्तक्षेप संसद के सुचारू संचालन और संवैधानिक संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक होते हैं।
B. राज्यसभा (उच्च सदन) Rajya Sabha (Council of States):
राज्यसभा भारतीय संसद का उच्च सदन है, जो राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करता है। यह भारत की संघीय संरचना को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की आवाज राष्ट्रीय नीतियों और कानून निर्माण प्रक्रियाओं में सुनी जाए। राज्यसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 250 है, जिसमें से 238 सदस्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा निर्वाचित होते हैं, जबकि 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा नामांकित किया जाता है। इन नामांकित सदस्यों का चयन साहित्य, विज्ञान, कला या समाज सेवा जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में उनके असाधारण योगदान के आधार पर किया जाता है। राज्यसभा के सदस्य छह वर्ष के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं, लेकिन यह एक स्थायी सदन है, क्योंकि इसका संपूर्ण पुनर्गठन एक साथ नहीं होता। प्रत्येक दो वर्षों में इसके एक-तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त हो जाते हैं और नए सदस्यों का निर्वाचन किया जाता है, जिससे यह सदन निरंतर सक्रिय बना रहता है। यह प्रक्रिया संसदीय प्रणाली में अनुभव और स्थिरता बनाए रखने में मदद करती है। राज्यसभा की अध्यक्षता भारत के उपराष्ट्रपति द्वारा की जाती है, जो इसके पदेन (ex-officio) अध्यक्ष होते हैं। हालांकि, जब उपराष्ट्रपति अनुपस्थित रहते हैं या अन्य कारणों से कार्यभार नहीं संभाल सकते, तब राज्यसभा के उपसभापति सदन की कार्यवाही का संचालन करते हैं। राज्यसभा को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं, जैसे अनुच्छेद 249 के तहत, यह राष्ट्रीय हित में राज्य सूची के विषयों पर संसद को कानून बनाने की अनुमति प्रदान कर सकता है। राज्यसभा विधायी प्रक्रिया में लोकसभा के साथ सहयोग करता है, हालांकि कुछ मामलों में इसकी शक्तियां सीमित होती हैं, जैसे वित्तीय विधेयकों (Money Bills) पर इसका अधिकार सीमित होता है। लेकिन यह विभिन्न नीतिगत मामलों पर विस्तृत चर्चा, कानूनों की समीक्षा और सरकार को सुझाव देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रकार, राज्यसभा भारतीय संसद की कार्यप्रणाली में संतुलन और परिपक्वता बनाए रखने में सहायक होती है।
C. लोकसभा (निम्न सदन) Lok Sabha (House of the People):
लोकसभा भारतीय संसद का निम्न सदन है और यह देश की जनता का प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व करता है। यह सदन लोकतंत्र की मूल भावना को दर्शाता है, क्योंकि इसके सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से चुने जाते हैं। लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 552 है, जिसमें से 530 सदस्य राज्यों से, 20 सदस्य केंद्रशासित प्रदेशों से चुने जाते हैं। इसके अलावा, पहले राष्ट्रपति को एंग्लो-इंडियन समुदाय के 2 सदस्यों को नामांकित करने का अधिकार था, लेकिन 2019 में संविधान (126वां संशोधन) अधिनियम के तहत यह प्रावधान हटा दिया गया। लोकसभा के सदस्य सामान्य वयस्क मताधिकार (Universal Adult Suffrage) के आधार पर चुने जाते हैं, जिसमें 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी नागरिक बिना किसी भेदभाव के मतदान कर सकते हैं। लोकसभा का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है, लेकिन यदि आवश्यक हो तो इसे राष्ट्रपति द्वारा भंग किया जा सकता है या आपातकालीन परिस्थितियों में इसका कार्यकाल संवैधानिक प्रावधानों के तहत बढ़ाया जा सकता है। लोकसभा की कार्यवाही का संचालन लोकसभा अध्यक्ष (Speaker) करते हैं, जिन्हें सदन के सदस्यों द्वारा चुना जाता है। स्पीकर की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वे सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने, चर्चाओं को नियंत्रित करने और संसदीय नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। आवश्यकता पड़ने पर वे निर्णायक मत (Casting Vote) भी देते हैं, जिससे विवादास्पद मामलों में निर्णय लेने में मदद मिलती है। लोकसभा न केवल कानून बनाने की प्रमुख संस्था है, बल्कि यह सरकार की नीतियों पर चर्चा और समीक्षा करने, कार्यपालिका पर नियंत्रण रखने और जनता के मुद्दों को संसद में उठाने का भी मंच प्रदान करती है। इसके विशेषाधिकारों में से एक यह है कि सभी धन विधेयक (Money Bills) केवल लोकसभा में पेश किए जा सकते हैं और इसके पास बजट व वित्तीय मामलों पर अंतिम निर्णय लेने की शक्ति होती है। इस प्रकार, लोकसभा भारत की संसदीय प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, जो जनता की आकांक्षाओं को सरकार तक पहुँचाने और लोकतंत्र को मजबूत करने में केंद्रीय भूमिका निभाती है।
2. भारतीय संसद की शक्तियाँ और कार्य (Powers and Functions of the Indian Parliament):
भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली में संसद कई महत्वपूर्ण कार्यों का निर्वहन करती है:
A. विधायी कार्य (Legislative Functions):
1. कानून निर्माण (Law-making):
भारतीय संसद देश की विधायी प्रक्रिया की सर्वोच्च संस्था है, जो विभिन्न विषयों पर कानून बनाती है। इसे संविधान की सातवीं अनुसूची में उल्लिखित संघ सूची (Union List) के विषयों पर कानून बनाने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है। सामान्य परिस्थितियों में, राज्य सूची (State List) के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य विधानसभाओं के पास होता है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में (अनुच्छेद 249), यदि राज्यसभा यह घोषित करती है कि किसी राज्य सूची के विषय पर कानून बनाना राष्ट्रीय हित में आवश्यक है, तो संसद को उस विषय पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इसके अलावा, अनुच्छेद 252 के तहत, यदि दो या अधिक राज्य अपनी सहमति देते हैं, तो संसद को उनके लिए कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो सकता है।
2. संविधान में संशोधन (Amendment of the Constitution):
संविधान में समय-समय पर आवश्यक परिवर्तनों के लिए संसद को संविधान संशोधन (अनुच्छेद 368) का अधिकार प्राप्त है। यह संशोधन तीन प्रक्रियाओं के माध्यम से किया जा सकता है:
1. सरल बहुमत से संशोधन (जैसे अनुसूची में परिवर्तन)
2. विशेष बहुमत से संशोधन (संविधान के अधिकांश अनुच्छेदों में परिवर्तन)
3. विशेष बहुमत और राज्यों की सहमति से संशोधन (संघीय ढांचे से संबंधित प्रावधानों में परिवर्तन)
संविधान संशोधन की यह प्रक्रिया संसद को लचीला और लोकतांत्रिक बनाए रखने में सहायक होती है, जिससे समय के साथ आवश्यक सुधार किए जा सकें।
B. कार्यपालिका पर नियंत्रण (Executive Control):
भारतीय संसद न केवल कानून बनाने का कार्य करती है, बल्कि यह सरकार की कार्यपालिका शाखा पर भी नियंत्रण रखती है। मंत्रिपरिषद (Council of Ministers), जिसमें प्रधानमंत्री और अन्य मंत्री शामिल होते हैं, लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं। संसद सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न संसदीय उपकरणों का उपयोग करती है, जिनमें शामिल हैं:
1. प्रश्नकाल (Question Hour): प्रतिदिन संसद की कार्यवाही के पहले घंटे में, सांसद सरकार से विभिन्न नीतिगत मामलों पर प्रश्न पूछते हैं, जिससे पारदर्शिता बनी रहती है।
2. अल्पसूचित प्रश्न (Short Notice Questions): जो तुरंत उत्तर देने योग्य होते हैं और जिनका जवाब संबंधित मंत्री को देना आवश्यक होता है।
3. ध्यानाकर्षण प्रस्ताव (Calling Attention Motion): किसी महत्वपूर्ण सार्वजनिक मुद्दे पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए यह प्रस्ताव लाया जाता है।
4. अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion): यदि लोकसभा को लगता है कि सरकार ने जनता का विश्वास खो दिया है, तो अविश्वास प्रस्ताव लाकर सरकार को हटाया जा सकता है।
इन संसदीय प्रक्रियाओं के माध्यम से संसद सुनिश्चित करती है कि सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी बनी रहे और उसके कार्य पारदर्शी हों।
C. वित्तीय शक्तियाँ (Financial Powers):
1. बजट अनुमोदन (Budget Approval):
किसी भी सरकार के लिए वित्तीय प्रबंधन अत्यंत आवश्यक होता है, और संसद को यह अधिकार प्राप्त है कि वह संघ बजट (Union Budget) को अनुमोदित करे। बजट में वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual Financial Statement) प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें सरकार की संभावित आय और व्यय का ब्यौरा दिया जाता है। संसद के अनुमोदन के बिना सरकार किसी भी सार्वजनिक धन का उपयोग नहीं कर सकती।
2. धन विधेयक (Money Bills):
अनुच्छेद 110 के अनुसार, धन विधेयक केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है और इसे राज्यसभा की केवल सिफारिश प्राप्त होती है, जिसे लोकसभा मानने के लिए बाध्य नहीं होती। यह सुनिश्चित करता है कि सरकार की वित्तीय योजनाओं पर जनता द्वारा सीधे चुने गए प्रतिनिधियों का अधिक नियंत्रण हो।
3. कराधान और सार्वजनिक व्यय (Taxation and Public Expenditure):
कोई भी नया कर लगाने, हटाने, या किसी मौजूदा कर में संशोधन करने के लिए संसद की मंजूरी आवश्यक होती है। इसी प्रकार, किसी भी सार्वजनिक व्यय के लिए संसद की स्वीकृति अनिवार्य होती है। संसद इस प्रक्रिया के माध्यम से सरकारी नीतियों की समीक्षा करती है और यह सुनिश्चित करती है कि धन का उचित उपयोग हो रहा है।
भारतीय संसद केवल कानून बनाने वाली संस्था नहीं है, बल्कि यह सरकार के प्रत्येक कार्य की समीक्षा और नियंत्रण करने वाली सर्वोच्च संस्था भी है। इसकी विधायी, कार्यपालिका निगरानी और वित्तीय शक्तियाँ इसे एक प्रभावशाली लोकतांत्रिक संस्था बनाती हैं, जो जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने और सुशासन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
D. न्यायिक कार्य (Judicial Functions):
भारतीय संसद को न्यायिक शक्तियाँ भी प्राप्त हैं, जिनके माध्यम से यह संवैधानिक संस्थाओं और उच्च पदाधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करती है। इसके अंतर्गत संसद को कुछ प्रमुख अधिकार प्राप्त हैं:
1. राष्ट्रपति का महाभियोग (Impeachment of the President) – अनुच्छेद 61:
यदि राष्ट्रपति अपने संवैधानिक कर्तव्यों का उल्लंघन करते हैं, तो संसद के पास महाभियोग चलाने का अधिकार है। यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित किया जाता है। यदि प्रस्ताव संसद द्वारा पारित हो जाता है, तो राष्ट्रपति को पद से हटाया जा सकता है।
2. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने की शक्ति:
संसद को संविधान के अनुच्छेद 124(4) और अनुच्छेद 217 के तहत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को पद से हटाने का अधिकार है। यदि कोई न्यायाधीश दुर्व्यवहार (Misconduct) या अक्षमता (Incapacity) के आरोपों में दोषी पाया जाता है, तो संसद द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार उन्हें हटाया जा सकता है। इसके लिए संसद में विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित किया जाता है।
3. अन्य संवैधानिक पदाधिकारियों को हटाने की शक्ति:
संसद को अन्य संवैधानिक पदों, जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner), नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG), और अन्य उच्च पदों पर नियुक्त अधिकारियों को हटाने की प्रक्रिया आरंभ करने का भी अधिकार है। यह प्रक्रिया न्यायपालिका और संवैधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में मदद करती है।
E. निर्वाचन संबंधी कार्य (Electoral Functions):
भारतीय संसद देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदों के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अंतर्गत:
1. राष्ट्रपति का चुनाव:
संविधान के अनुच्छेद 54 और 55 के अनुसार, भारत के राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचन मंडल (Electoral College) द्वारा किया जाता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) तथा राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं। संसद इसमें प्रमुख भूमिका निभाती है, क्योंकि राष्ट्रपति की शक्ति और कार्यपालिका की कार्यप्रणाली संसद के अधीन होती है।
2. उपराष्ट्रपति का चुनाव:
अनुच्छेद 66 के अनुसार, भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव केवल संसद के सदस्य करते हैं। उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन अध्यक्ष (Ex-Officio Chairman) होते हैं, इसलिए संसद का इस चुनाव में सीधा हस्तक्षेप होता है।
3. प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद का चयन:
लोकसभा में बहुमत प्राप्त करने वाली पार्टी या गठबंधन का नेता प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है, और प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों को नियुक्त करते हैं। इस प्रकार, संसद सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
F. अन्य कार्य (Other Functions):
संसद का कार्य केवल कानून बनाना और सरकार पर नियंत्रण रखना ही नहीं है, बल्कि यह कई अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में भी संलग्न रहती है, जिनमें शामिल हैं:
1. राष्ट्रीय नीतियों और सुरक्षा से संबंधित चर्चाएँ:
संसद में राष्ट्रीय विकास, आर्थिक सुधार, रक्षा, आंतरिक सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति जैसे विषयों पर विस्तृत चर्चाएँ की जाती हैं। यह सरकार को विभिन्न नीतिगत निर्णय लेने में मार्गदर्शन प्रदान करती है।
2. अंतरराष्ट्रीय संधियों की समीक्षा और अनुमोदन:
भारत सरकार विभिन्न देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ संधियाँ और समझौते करती है। संसद को इन संधियों की समीक्षा करने और उनकी वैधता पर चर्चा करने का अधिकार होता है, जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि वे राष्ट्रीय हित के अनुरूप हों।
3. केंद्रशासित प्रदेशों (Union Territories) के शासन में भूमिका:
अनुच्छेद 239-241 के तहत, केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन में संसद की सीधी भूमिका होती है। दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर जैसे केंद्रशासित प्रदेशों में विधानसभा होने के बावजूद, संसद को विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि इन क्षेत्रों का शासन सुचारू रूप से चले।
4. राष्ट्रीय आपातकालीन प्रावधानों को लागू करना:
संसद को अनुच्छेद 352, 356 और 360 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल, राष्ट्रपति शासन और वित्तीय आपातकाल लागू करने की शक्ति प्राप्त है। इन परिस्थितियों में संसद को देश के शासन की जिम्मेदारी अपने हाथ में लेने का अधिकार होता है।
भारतीय संसद केवल विधायी संस्था नहीं है, बल्कि यह एक बहुआयामी निकाय है, जो न्यायिक, निर्वाचन, वित्तीय, कार्यपालिका नियंत्रण और राष्ट्रीय नीति निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके पास देश की लोकतांत्रिक प्रणाली को सुचारू रूप से चलाने, सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने, और संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता बनाए रखने की व्यापक शक्तियाँ हैं। इस प्रकार, संसद भारतीय लोकतंत्र का मजबूत आधार है, जो नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने और देश की प्रगति को सुनिश्चित करने में सहायक होती है।
3. संसद के सत्र (Sessions of Parliament):
भारतीय संसद प्रत्येक वर्ष तीन नियमित सत्रों में बैठक करती है, जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि विधायी कार्य सुचारू रूप से चले और सरकार के कार्यों की प्रभावी निगरानी हो। संसद के विभिन्न सत्रों का आयोजन संविधान के अनुच्छेद 85 के तहत किया जाता है, जिसके अनुसार राष्ट्रपति संसद के सत्रों को बुलाने और लोकसभा को भंग करने का अधिकार रखते हैं। प्रत्येक सत्र की अपनी विशेषता होती है और ये विभिन्न विधायी व नीतिगत कार्यों को आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं।
1. बजट सत्र (Budget Session) – फरवरी से मई:
सबसे लंबा और महत्वपूर्ण सत्र माना जाने वाला बजट सत्र प्रत्येक वर्ष फरवरी से मई के बीच आयोजित किया जाता है। यह दो चरणों में संपन्न होता है, जिसमें सरकार अपने वार्षिक वित्तीय योजनाओं को प्रस्तुत करती है। इस सत्र की प्रमुख विशेषताएँ हैं:
केंद्रीय बजट और आर्थिक नीतियों की प्रस्तुति:
वित्त मंत्री वार्षिक वित्तीय विवरण (Annual Financial Statement) संसद में प्रस्तुत करते हैं, जिसमें देश की आगामी वित्तीय नीतियों और सरकारी खर्चों का विस्तृत खाका होता है।
आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey):
बजट पेश होने से एक दिन पहले आर्थिक सर्वेक्षण जारी किया जाता है, जिसमें देश की आर्थिक स्थिति का विश्लेषण और सरकार की भावी रणनीति का उल्लेख होता है।
मांगों पर चर्चा और अनुदान की मंजूरी:
संसद विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के वित्तीय आवंटन (Grants) पर चर्चा करती है और आवश्यक अनुमोदन प्रदान करती है।
वित्त विधेयक (Finance Bill) पर निर्णय:
संसद में वित्त विधेयक (Finance Bill) और विनियोग विधेयक (Appropriation Bill) पर चर्चा होती है, जिनके बिना सरकार कोई भी खर्च नहीं कर सकती।
बजट सत्र का विशेष महत्व इस कारण से भी है कि यह सरकार की आर्थिक योजनाओं और नीतियों की दिशा तय करता है और विपक्ष को वित्तीय मामलों पर सरकार से सवाल करने का अवसर देता है।
2. मानसून सत्र (Monsoon Session) – जुलाई से सितंबर:
यह सत्र मुख्य रूप से विधायी कार्यों पर केंद्रित होता है और सरकार विभिन्न नए कानूनों और संशोधनों को पेश करती है। मानसून सत्र आमतौर पर जुलाई से सितंबर के बीच आयोजित किया जाता है और इसके प्रमुख उद्देश्य होते हैं:
लंबित विधेयकों पर चर्चा और पारित करना:
इस सत्र के दौरान सरकार कई महत्वपूर्ण विधेयक प्रस्तुत करती है, जिनमें कुछ बजट सत्र से लंबित रहते हैं।
विभिन्न नीतिगत और सामाजिक मुद्दों पर चर्चा:
संसद में राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, सामाजिक कल्याण योजनाएँ और अंतरराष्ट्रीय समझौते जैसे विषयों पर विस्तृत बहस होती है।
संसदीय समितियों की रिपोर्टों पर विचार:
विभिन्न संसदीय समितियों द्वारा तैयार की गई रिपोर्टों पर चर्चा और उनके सुझावों को लागू करने पर निर्णय लिया जाता है।
इस सत्र का उद्देश्य कानून निर्माण प्रक्रिया को आगे बढ़ाना और सरकारी नीतियों की समीक्षा करना होता है।
3. शीतकालीन सत्र (Winter Session) – नवंबर से दिसंबर:
यह सत्र अपेक्षाकृत छोटा होता है, लेकिन इसमें महत्वपूर्ण विधायी और नीतिगत निर्णय लिए जाते हैं। आमतौर पर यह नवंबर से दिसंबर के बीच आयोजित किया जाता है और इसमें निम्नलिखित कार्य होते हैं:
जरूरी विधेयकों पर चर्चा और पारित करना:
इस सत्र के दौरान सरकार उन विधेयकों को पारित कराने का प्रयास करती है, जिन्हें बजट और मानसून सत्र के दौरान मंजूरी नहीं मिल पाई थी।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय घटनाओं पर बहस:
संसद में हाल के राष्ट्रीय और वैश्विक मुद्दों, सुरक्षा चिंताओं, आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर चर्चा की जाती है।
सरकारी नीतियों पर प्रश्नोत्तर और स्पष्टीकरण:
विपक्ष को सरकार की नीतियों पर सवाल पूछने और उनकी जवाबदेही तय करने का अवसर मिलता है।
यह सत्र वर्ष के अंत में सरकार के प्रदर्शन की समीक्षा करने और अगले वर्ष की योजनाओं के लिए आवश्यक नीतिगत निर्णय लेने में मदद करता है।
संसद सत्र बुलाने और भंग करने की प्रक्रिया:
संसद के सत्रों को बुलाने का अधिकार राष्ट्रपति के पास होता है, लेकिन यह कार्य प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर किया जाता है। दो सत्रों के बीच अधिकतम 6 महीने का अंतर हो सकता है, यानी संसद को वर्ष में कम से कम एक बार जरूर बुलाना आवश्यक होता है। केवल लोकसभा को राष्ट्रपति द्वारा भंग किया जा सकता है, जबकि राज्यसभा एक स्थायी सदन है, जिसे भंग नहीं किया जाता।
भारतीय संसद का कार्य कुशलता से संचालन सुनिश्चित करने के लिए तीन सत्रों में बैठकों का आयोजन किया जाता है। प्रत्येक सत्र की अपनी विशेष भूमिका होती है—बजट सत्र आर्थिक नीतियों पर केंद्रित रहता है, मानसून सत्र विधायी कार्यों को गति देता है, और शीतकालीन सत्र लंबित विधेयकों को अंतिम रूप देने में सहायक होता है। इन सत्रों के माध्यम से संसद शासन प्रक्रिया की निगरानी करती है, लोकतंत्र को मजबूत बनाती है और सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाए रखती है।
4. भारतीय संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया (Law-Making Process in Parliament):
भारतीय लोकतंत्र में कानून निर्माण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो संसद के माध्यम से पूरी की जाती है। संसद में किसी विधेयक (Bill) को पारित करने और उसे कानून (Act) का रूप देने के लिए कई चरणों से गुजरना पड़ता है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि कानून पर्याप्त चर्चा और विचार-विमर्श के बाद लागू किए जाएँ, जिससे वे प्रभावी और न्यायसंगत बन सकें।
1. विधेयक की प्रस्तुति (Introduction of the Bill):
किसी भी विधेयक को संसद में प्रस्तुत करने का अधिकार मंत्रियों (Minister) और निजी सदस्यों (Private Members) दोनों को होता है। यदि कोई मंत्री विधेयक प्रस्तुत करता है, तो उसे सरकारी विधेयक (Government Bill) कहा जाता है। यदि कोई सांसद, जो मंत्री नहीं है, विधेयक प्रस्तुत करता है, तो उसे निजी सदस्य विधेयक (Private Member’s Bill) कहा जाता है। विधेयक को प्रस्तुत करने के बाद सदन की अनुमति प्राप्त करनी होती है, और इसे संसद के रिकॉर्ड में शामिल किया जाता है।
2. प्रथम वाचन (First Reading):
विधेयक को पेश करने के बाद संसद के सदस्य उसकी विषय-वस्तु पर चर्चा करते हैं। इस दौरान, विधेयक के उद्देश्य, संभावित प्रभाव और उसकी उपयोगिता पर प्रारंभिक बहस होती है। पहले वाचन में कोई संशोधन (Amendment) नहीं किया जाता, बल्कि यह तय किया जाता है कि विधेयक को आगे बढ़ाया जाए या नहीं।
3. द्वितीय वाचन (Second Reading) – प्रमुख चरण:
द्वितीय वाचन विधेयक के सबसे महत्वपूर्ण चरणों में से एक है, क्योंकि इसमें विधेयक की विस्तृत जांच और संशोधन किए जाते हैं। यह तीन उप-चरणों में होता है:
(i) सामान्य चर्चा (General Discussion): विधेयक के मूल सिद्धांतों और उद्देश्यों पर विस्तृत चर्चा की जाती है।
(ii) समिति चरण (Committee Stage): विधेयक को अक्सर एक संसदीय समिति (Parliamentary Committee) के पास भेजा जाता है, जो इसकी बारीकी से समीक्षा करती है और आवश्यक बदलावों की सिफारिश करती है।
(iii) धारा-वार विचार (Clause-by-Clause Consideration): संसद विधेयक के प्रत्येक प्रावधान की समीक्षा करती है, संशोधन प्रस्तावित किए जाते हैं, और इन संशोधनों पर मतदान होता है।
4. तृतीय वाचन (Third Reading) – अंतिम स्वीकृति:
इस चरण में विधेयक को अंतिम रूप दिया जाता है और उस पर मतदान कराया जाता है। विधेयक में अब कोई संशोधन नहीं किया जाता; केवल इसे स्वीकार या अस्वीकार करने पर मतदान होता है। यदि विधेयक पारित हो जाता है, तो इसे संसद के दूसरे सदन (राज्यसभा या लोकसभा) में भेजा जाता है।
5. दूसरे सदन में स्वीकृति (Approval by the Second House):
विधेयक को दूसरे सदन में भी पहले, दूसरे और तीसरे वाचन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। यदि दूसरा सदन कोई संशोधन करता है, तो विधेयक पहले सदन को पुनः विचार के लिए भेजा जाता है। यदि दोनों सदनों में सहमति नहीं बनती, तो अनुच्छेद 108 के तहत राष्ट्रपति संयुक्त बैठक (Joint Sitting) बुला सकते हैं।
6. राष्ट्रपति की स्वीकृति (Presidential Assent):
विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित किए जाने के बाद, इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं:
1. विधेयक को मंजूरी देकर उसे क़ानून बना सकते हैं।
2. पुनर्विचार (Reconsideration) के लिए इसे संसद को वापस भेज सकते हैं।
3. कुछ विशेष मामलों में इसे रोक सकते हैं (Pocket Veto)।
यदि राष्ट्रपति मंजूरी दे देते हैं, तो यह विधेयक कानून (Act) का रूप ले लेता है और पूरे देश में लागू हो जाता है।
5. भारतीय संसद की विशेष व्यवस्थाएँ (Special Provisions of Indian Parliament):
1. संयुक्त सत्र (Joint Sitting) – अनुच्छेद 108:
जब किसी विधेयक को लेकर लोकसभा और राज्यसभा में मतभेद (Deadlock) उत्पन्न हो जाता है, तो अनुच्छेद 108 के तहत राष्ट्रपति संसद का संयुक्त सत्र बुलाने का अधिकार रखते हैं। इस संयुक्त सत्र की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष (Speaker of Lok Sabha) करते हैं। इस प्रक्रिया का उपयोग मुख्य रूप से उन विधेयकों को पारित करने के लिए किया जाता है, जिन पर दोनों सदनों में सहमति नहीं बन पाती। भारतीय संसद में अब तक तीन बार संयुक्त सत्र बुलाया गया है—1978 (बैंकिंग सेवा आयोग विधेयक), 2002 (आतंकवाद विरोधी विधेयक), और 2015 (बीमा विधेयक)।
2. राष्ट्रपति की अध्यादेश शक्ति (Ordinance Power of the President) – अनुच्छेद 123:
यदि संसद का सत्र नहीं चल रहा हो, और कोई तत्काल विधायी आवश्यकता हो, तो राष्ट्रपति अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश (Ordinance) जारी कर सकते हैं। यह अध्यादेश कानून के समान प्रभावी होता है, लेकिन इसे संसद की अगली बैठक में मंजूरी मिलनी आवश्यक होती है। यदि संसद अध्यादेश को मंजूरी नहीं देती, तो यह स्वतः समाप्त हो जाता है। यह शक्ति सरकार को आपातकालीन परिस्थितियों में त्वरित निर्णय लेने की सुविधा प्रदान करती है।
भारतीय संसद में कानून निर्माण एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया के माध्यम से होता है, जिसमें गहन विचार-विमर्श, संशोधन और बहस शामिल होते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी विधेयक पारदर्शी और प्रभावी कानून के रूप में लागू हो। इसके अतिरिक्त, संविधान ने कुछ विशेष प्रावधानों के तहत संसद को अतिरिक्त शक्तियाँ प्रदान की हैं, जैसे संयुक्त सत्र बुलाने और राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति। इन प्रावधानों के माध्यम से भारतीय लोकतंत्र की प्रभावशीलता और स्थिरता सुनिश्चित की जाती है।
6. भारतीय संसद का महत्व (Significance of Indian Parliament):
भारतीय संसद देश की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की आधारशिला है। यह न केवल कानून निर्माण की प्रक्रिया को संचालित करती है, बल्कि जन प्रतिनिधित्व, सरकार की जवाबदेही, मौलिक अधिकारों की सुरक्षा और राष्ट्रीय नीति निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संसद लोकतंत्र की आत्मा है, जो शासन को पारदर्शी, उत्तरदायी और जनहितैषी बनाती है।
1. जनता का प्रतिनिधित्व (Representation of the People):
भारतीय संसद का प्राथमिक उद्देश्य देश की विविध जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करना है। लोकसभा के सदस्य प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से जनता द्वारा चुने जाते हैं, जिससे नागरिकों की इच्छाओं और आवश्यकताओं को सरकार तक पहुँचाया जाता है। राज्यसभा राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करती है, जिससे संघीय ढांचे को मजबूती मिलती है और विभिन्न राज्यों के हितों की रक्षा होती है। संसद यह सुनिश्चित करती है कि समाज के सभी वर्गों को नीति-निर्माण प्रक्रिया में भागीदारी मिले, जिससे सामाजिक समरसता और समावेशी विकास संभव हो।
2. सरकार पर नियंत्रण और संतुलन (Checks and Balances on the Government):
लोकतंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि सत्ता के विभिन्न अंगों के बीच संतुलन बना रहे। भारतीय संसद इस भूमिका को प्रभावी ढंग से निभाती है। संसद के सदस्य सरकार के कार्यों की समीक्षा करते हैं और प्रश्नकाल (Question Hour), ध्यानाकर्षण प्रस्ताव (Calling Attention Motion) और अविश्वास प्रस्ताव (No-Confidence Motion) जैसे संसदीय उपकरणों के माध्यम से सरकार को जवाबदेह बनाते हैं। संसद की विभिन्न स्थायी और अस्थायी समितियाँ (Parliamentary Committees) कार्यपालिका (Executive) की निगरानी करती हैं और सुनिश्चित करती हैं कि सरकारी योजनाएँ सही दिशा में क्रियान्वित हो रही हैं। सरकार को अपनी नीतियों और फैसलों के लिए संसद के समक्ष जवाब देना होता है, जिससे लोकतंत्र की पारदर्शिता और प्रभावशीलता बनी रहती है।
3. मौलिक अधिकारों की सुरक्षा (Protection of Fundamental Rights):
भारतीय संविधान में नागरिकों को मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) प्रदान किए गए हैं, और संसद इन अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है। यदि सरकार कोई ऐसा कानून बनाती है जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो संसद में उस पर बहस होती है और उसे निरस्त किया जा सकता है। संसद के सदस्य नीतियों और कानूनों का आकलन करते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी विधेयक संविधान के मूल सिद्धांतों के विपरीत न हो। संसद विशेष कानूनों और सुधारों को लागू करके समाज में समानता और न्याय को बढ़ावा देती है, जैसे—अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम, सूचना का अधिकार अधिनियम, और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम।
4. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा (Debates on National and International Issues):
भारतीय संसद राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक कल्याण और विदेश नीति से जुड़े विषयों पर गहन चर्चा करती है। संसद में बजट, आर्थिक नीतियाँ, सामाजिक सुधार और रक्षा रणनीतियों पर व्यापक विचार-विमर्श किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय संधियों और समझौतों पर भी संसद की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि वे राष्ट्रीय हितों के अनुरूप हों। जब देश में कोई आपदा, युद्ध, आंतरिक संकट या सामाजिक आंदोलन होता है, तब संसद इन मुद्दों पर बहस करके लोकतांत्रिक समाधान निकालने का प्रयास करती है।
5. कानून के शासन को मजबूत करना (Strengthening the Rule of Law):
भारतीय संसद कानून के शासन (Rule of Law) को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संसद उन कानूनों को लागू करती है जो नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को स्पष्ट करते हैं। न्यायपालिका और कार्यपालिका की गतिविधियों पर नजर रखकर यह सुनिश्चित किया जाता है कि कोई भी सरकारी संस्था कानून से ऊपर न हो। संविधान में संशोधन (Amendments) के माध्यम से बदलते समय के अनुरूप कानूनों को अपडेट किया जाता है, जिससे न्याय और समानता की भावना बनी रहे।
भारतीय संसद न केवल कानून निर्माण और नीतिगत निर्णयों की प्रमुख संस्था है, बल्कि यह देश में लोकतंत्र, जवाबदेही और पारदर्शिता का भी प्रतीक है। यह सरकार को नियंत्रित करने, जनता की आवाज़ को बुलंद करने, मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय नीतियों पर विमर्श करने का एक प्रभावी मंच प्रदान करती है। इस प्रकार, संसद देश के संवैधानिक मूल्यों को संरक्षित करते हुए लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करती है और सुशासन (Good Governance) सुनिश्चित करती है।
निष्कर्ष (Conclusion):
भारतीय संसद देश की लोकतांत्रिक प्रणाली का आधार स्तंभ है, जो कानून निर्माण, नीतिगत निर्णयों और प्रशासनिक जवाबदेही को सुनिश्चित करती है। यह न केवल विधायी कार्यों का संचालन करती है, बल्कि सरकार की गतिविधियों की निगरानी, वित्तीय संसाधनों का प्रबंधन और सत्ता के विभिन्न अंगों के बीच संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संसद के माध्यम से नागरिकों की आवाज़ को नीतिगत फैसलों तक पहुँचाया जाता है, जिससे शासन प्रक्रिया अधिक जनहितैषी और पारदर्शी बनती है। इसके अलावा, संसद राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा करने, सामाजिक और आर्थिक सुधारों को लागू करने तथा संविधान की मूल भावना की रक्षा करने का कार्य करती है। यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी सरकार कानून के दायरे से बाहर न जाए और लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान बना रहे। लोकतंत्र की मजबूती के लिए यह आवश्यक है कि संसद प्रभावी, निष्पक्ष और पारदर्शी ढंग से कार्य करे। इसके लिए संसदीय प्रक्रियाओं को और अधिक सुलभ और उत्तरदायी बनाने की आवश्यकता है, ताकि लोकतांत्रिक संस्थाएँ जनता के प्रति अधिक जवाबदेह बनें। इस प्रकार, भारतीय संसद न केवल विधायी निकाय है, बल्कि यह देश की लोकतांत्रिक संरचना की रीढ़ भी है। इसकी कार्यक्षमता और पारदर्शिता को निरंतर सुदृढ़ करना आवश्यक है, ताकि भारत अपने लोकतांत्रिक लक्ष्यों को प्राप्त कर सके और सतत विकास की ओर बढ़ सके।
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