Thomas Hill Green (T.H. Green): Theory and Functions of the State थॉमस हिल ग्रीन (टी.एच. ग्रीन): राज्य का सिद्धांत और कार्यात्मक भूमिका
थॉमस हिल ग्रीन (1836-1882) एक प्रमुख ब्रिटिश दार्शनिक थे, जो आदर्शवादी परंपरा से जुड़े हुए थे। उनके बौद्धिक योगदान ने आधुनिक उदारवादी विचारधारा को विशेष रूप से राजनीतिक दर्शन के क्षेत्र में गहराई से प्रभावित किया। ग्रीन ने पारंपरिक उदारवादी स्वतंत्रता की अवधारणा, जो केवल बाहरी हस्तक्षेप की अनुपस्थिति पर केंद्रित थी, को चुनौती दी। इसके बजाय, उन्होंने स्वतंत्रता की एक व्यापक समझ का समर्थन किया, जिसमें राज्य की भूमिका को महत्वपूर्ण माना गया, ताकि व्यक्तियों को आत्म-विकास और पूर्णता प्राप्त करने में सहायता मिल सके। उनकी विचारधारा ने निरंकुश पूंजीवाद से एक अधिक हस्तक्षेपवादी दृष्टिकोण की ओर परिवर्तन की नींव रखी, जिसने आगे चलकर कल्याणकारी राज्य (वेलफेयर स्टेट) की अवधारणा को जन्म दिया। एल.टी. हॉबहाउस और जॉन रॉल्स जैसे विचारकों ने ग्रीन के सिद्धांतों को आगे बढ़ाया और सामाजिक न्याय, सामूहिक कल्याण और सरकार की नैतिक जिम्मेदारियों पर उनके विचारों को अपने चिंतन में समाहित किया। ग्रीन ने राज्य के हस्तक्षेप के नैतिक औचित्य की वकालत करते हुए कहा कि सच्ची स्वतंत्रता केवल बाहरी प्रतिबंधों की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि उन अवसरों तक पहुंच भी है जो व्यक्तियों को एक सार्थक और पूर्ण जीवन जीने में सक्षम बनाते हैं।
1. ग्रीन का राजनीतिक दर्शन (Green's Political Philosophy):
थॉमस हिल ग्रीन ने पारंपरिक उदारवाद की नकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा को अस्वीकार करते हुए सकारात्मक स्वतंत्रता का समर्थन किया। उनके अनुसार, स्वतंत्रता केवल प्रतिबंधों की अनुपस्थिति नहीं, बल्कि आत्मविकास और सामाजिक योगदान की क्षमता है। उन्होंने राज्य की भूमिका को केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा तक सीमित न रखते हुए, शिक्षा, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं तक समान पहुंच सुनिश्चित करने पर बल दिया। ग्रीन का मानना था कि वास्तविक स्वतंत्रता के लिए सामाजिक और आर्थिक बाधाओं को दूर करना आवश्यक है, जिससे सभी को अपनी क्षमताओं के विकास के समान अवसर मिल सकें।
थॉमस हिल ग्रीन एक प्रमुख आदर्शवादी राजनीतिक विचारक थे, जिन्होंने राज्य और स्वतंत्रता की नई व्याख्या प्रस्तुत की। उनके राजनीतिक विचार तीन महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर आधारित थे:
1. सामूहिक हित (The Common Good):
ग्रीन का मानना था कि राज्य का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करना नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे समाज के सामूहिक हित को बढ़ावा देना चाहिए। उनका दृष्टिकोण यह था कि प्रत्येक व्यक्ति की वास्तविक स्वतंत्रता तभी संभव है जब समाज के सभी सदस्यों को समान अवसर उपलब्ध हों। यदि कुछ लोग अत्यधिक संपत्ति और शक्ति के कारण विशेषाधिकार प्राप्त कर लें और बाकी वंचित रह जाएं, तो यह वास्तविक स्वतंत्रता नहीं होगी। इसलिए, राज्य को नीतियों और कानूनों के माध्यम से ऐसा वातावरण तैयार करना चाहिए, जिससे संपूर्ण समाज का कल्याण हो और प्रत्येक नागरिक को समान रूप से आगे बढ़ने का अवसर मिले।
2. नैतिक विकास और स्वतंत्रता की अवधारणा (Moral Development and Freedom):
ग्रीन की दृष्टि में स्वतंत्रता केवल कानूनी या बाहरी बाधाओं से मुक्ति नहीं है, बल्कि यह आत्मविकास और नैतिक उन्नति की क्षमता है। उन्होंने स्वतंत्रता को सकारात्मक रूप में परिभाषित किया, जहां व्यक्ति को अपनी बौद्धिक और नैतिक क्षमताओं का पूर्ण विकास करने का अवसर मिलना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति गरीबी, अशिक्षा, या अन्य सामाजिक अवरोधों के कारण अपनी क्षमताओं का विकास नहीं कर पा रहा है, तो वह वास्तविक रूप से स्वतंत्र नहीं है। इसलिए, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राज्य को ऐसे सामाजिक और आर्थिक कारकों को समाप्त करने में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए, जो लोगों के नैतिक और बौद्धिक विकास में बाधा डालते हैं।
3. राज्य की भूमिका (The Role of the State):
ग्रीन का मानना था कि राज्य की भूमिका केवल निजी संपत्ति और अनुबंधों की रक्षा करने तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसे समाज में समावेशी विकास के लिए सक्रिय प्रयास करने चाहिए। उन्होंने लaissez-faire (स्वतंत्र बाजार व्यवस्था) की सीमाओं को इंगित करते हुए कहा कि यदि राज्य निष्क्रिय रहेगा, तो शक्तिशाली वर्ग कमजोर वर्ग का शोषण करेगा, जिससे सामाजिक असमानता बढ़ेगी। इसलिए, उन्होंने एक ऐसे राज्य की वकालत की जो शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और सामाजिक सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में हस्तक्षेप करके नागरिकों को समान अवसर प्रदान करे। उनके विचारों ने कल्याणकारी राज्य (Welfare State) की अवधारणा को बल दिया, जहां सरकार न केवल न्यूनतम शासन तक सीमित रहती है, बल्कि समाज में न्याय और समानता सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय भूमिका निभाती है।
ग्रीन के ये विचार आधुनिक उदारवाद (Modern Liberalism) की नींव बने और उन्होंने राज्य और स्वतंत्रता की पारंपरिक अवधारणा को नए सिरे से परिभाषित किया। उनका दर्शन इस विचार पर आधारित था कि एक सशक्त समाज की स्थापना के लिए व्यक्ति का विकास आवश्यक है और यह केवल तभी संभव होगा जब राज्य, व्यक्ति और समाज के बीच संतुलन स्थापित किया जाए।
2. राज्य का सिद्धांत (Theory of the State):
थॉमस हिल ग्रीन के अनुसार, राज्य केवल एक दमनकारी संस्था नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक संगठन के रूप में कार्य करता है, जिसका उद्देश्य व्यक्तियों और समाज के समग्र कल्याण को बढ़ावा देना है। उन्होंने राज्य की भूमिका को केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे न्यायपूर्ण समाज के निर्माण में एक सक्रिय साधन के रूप में देखा।
(a) राज्य एक नैतिक संस्था के रूप में (The State as a Moral Institution):
ग्रीन ने राज्य को एक नैतिक संस्था के रूप में परिभाषित किया, जिसका कार्य समाज में ऐसी परिस्थितियाँ बनाना है, जो व्यक्तियों को उनके सर्वोत्तम आत्मविकास की ओर ले जाएं। उन्होंने पारंपरिक उदारवादियों की उस धारणा को अस्वीकार कर दिया, जिसमें राज्य को मात्र एक आवश्यक बुराई (Necessary Evil) माना जाता था। ग्रीन के अनुसार, राज्य का अस्तित्व केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए नहीं है, बल्कि यह समाज में समानता और न्याय सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण साधन भी है। उनका मानना था कि यदि राज्य निष्क्रिय रहेगा, तो शक्तिशाली वर्ग कमजोरों का शोषण करेगा और समाज में असमानता बढ़ेगी। इसलिए, राज्य को व्यक्तियों के जीवन को बेहतर बनाने और एक न्यायसंगत सामाजिक व्यवस्था स्थापित करने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
(b) राज्य और स्वतंत्रता (State and Freedom):
ग्रीन ने स्वतंत्रता की दो प्रमुख अवधारणाओं को परिभाषित किया:
1. नकारात्मक स्वतंत्रता (Negative Freedom):
यह स्वतंत्रता का वह रूप है, जिसमें बाहरी हस्तक्षेप की अनुपस्थिति को ही स्वतंत्रता माना जाता है। इसे पारंपरिक उदारवादियों जैसे कि जॉन लॉक द्वारा समर्थन मिला था, जिन्होंने स्वतंत्रता को राज्य और अन्य संस्थाओं द्वारा न्यूनतम हस्तक्षेप के रूप में देखा। उनके अनुसार, व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से कार्य करने दिया जाना चाहिए, जब तक कि वह दूसरों के अधिकारों का उल्लंघन न करे।
2. सकारात्मक स्वतंत्रता (Positive Freedom):
ग्रीन ने नकारात्मक स्वतंत्रता की सीमाओं को उजागर करते हुए सकारात्मक स्वतंत्रता का समर्थन किया। उनके अनुसार, केवल बाहरी बाधाओं की अनुपस्थिति से कोई व्यक्ति वास्तव में स्वतंत्र नहीं बनता, बल्कि उसे आत्मविकास और जीवन में उन्नति के लिए आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता भी होनी चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराए बिना, स्वतंत्रता का कोई वास्तविक मूल्य नहीं है। इसलिए, राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक नागरिक को आत्मविकास के लिए समान अवसर मिले और वह अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग कर सके।
(c) राज्य और व्यक्तिगत अधिकार (The State and Individual Rights):
ग्रीन का मानना था कि अधिकार कोई पूर्णतः स्वायत्त या समाज से पूर्व निर्मित संकल्पनाएँ नहीं हैं, बल्कि ये समाज से ही उत्पन्न होते हैं और इन्हें समाज के भीतर ही परिभाषित किया जाता है। उन्होंने यह तर्क दिया कि अधिकारों का वास्तविक अर्थ तभी समझा जा सकता है जब उन्हें सामाजिक संदर्भ में देखा जाए।
1. उन्होंने इस विचार को खारिज कर दिया कि व्यक्तिगत अधिकार राज्य से स्वतंत्र होते हैं और उनकी रक्षा केवल राज्य के हस्तक्षेप को सीमित करके की जा सकती है।
2. उनके अनुसार, राज्य का कार्य केवल अधिकारों की रक्षा करना नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि प्रत्येक व्यक्ति को इन अधिकारों का प्रयोग करने के लिए समान अवसर प्राप्त हों।
3. यदि समाज में सामाजिक या आर्थिक असमानताएँ इतनी गहरी हों कि कुछ व्यक्तियों को अपने अधिकारों का प्रयोग करने का अवसर ही न मिले, तो राज्य को हस्तक्षेप करना चाहिए और उन्हें आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराने चाहिए।
ग्रीन का यह दृष्टिकोण आधुनिक उदारवाद (Modern Liberalism) के मूलभूत सिद्धांतों में से एक बन गया, जिसमें राज्य की भूमिका केवल निष्क्रिय रक्षक की नहीं, बल्कि नागरिकों के कल्याण को सुनिश्चित करने वाली एक सक्रिय संस्था के रूप में देखी जाती है।
(d) राज्य और आर्थिक नियमन (State and Economic Regulation):
ग्रीन ने अनियंत्रित पूंजीवाद (Laissez-faire Capitalism) की आलोचना करते हुए तर्क दिया कि यदि बाजार को पूरी तरह स्वतंत्र छोड़ दिया जाए, तो इससे सामाजिक असमानता और आर्थिक शोषण की स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। उनका मानना था कि अर्थव्यवस्था में पूरी तरह मुक्त प्रतिस्पर्धा की अवधारणा व्यवहारिक रूप से न्यायसंगत नहीं है, क्योंकि समाज में पहले से ही कुछ लोग संसाधनों और शक्ति के मामले में अधिक सशक्त होते हैं, जबकि अन्य आर्थिक रूप से पिछड़े होते हैं।
इस समस्या को हल करने के लिए उन्होंने सीमित राज्य हस्तक्षेप (Limited State Intervention) का समर्थन किया। उनका मानना था कि राज्य को निम्नलिखित क्षेत्रों में हस्तक्षेप करना चाहिए:
1. एकाधिकार और आर्थिक शोषण को रोकना (Preventing Monopolies and Economic Exploitation):
यदि कुछ बड़े उद्यम या व्यापारी वर्ग बाजार पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लेते हैं, तो वे अन्य प्रतिस्पर्धियों को समाप्त कर सकते हैं और उपभोक्ताओं का शोषण कर सकते हैं। इसलिए, राज्य को ऐसे कानून बनाने चाहिए जो प्रतिस्पर्धा को संतुलित बनाए रखें और किसी भी वर्ग को अत्यधिक आर्थिक शक्ति प्राप्त करने से रोकें।
2. न्यायसंगत मजदूरी और कार्य परिस्थितियाँ सुनिश्चित करना (Ensuring Fair Wages and Working Conditions):
ग्रीन ने श्रमिकों के अधिकारों पर जोर देते हुए कहा कि राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उन्हें उचित वेतन और सुरक्षित कार्यस्थल मिलें। उन्होंने बाल श्रम, अत्यधिक कार्य घंटे, और असुरक्षित कार्यस्थलों के खिलाफ कड़े नियम बनाने की आवश्यकता बताई।
3. शिक्षा और सामाजिक कल्याण की व्यवस्था (Providing Education and Welfare Support):
ग्रीन ने शिक्षा को स्वतंत्रता और आत्मविकास की कुंजी माना। उनका मानना था कि यदि किसी व्यक्ति को बुनियादी शिक्षा और कौशल प्राप्त करने का अवसर नहीं मिलता, तो वह अपनी वास्तविक स्वतंत्रता का उपयोग नहीं कर सकता। इसलिए, उन्होंने राज्य द्वारा संचालित शिक्षा प्रणाली और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का समर्थन किया, ताकि प्रत्येक नागरिक को उन्नति के लिए समान अवसर मिल सकें।
राज्य के कार्य: टी.एच. ग्रीन के विचार (Functions of the State: T.H. Green's Views):
1. कल्याण और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना (Promoting welfare and social justice):
राज्य का सबसे महत्वपूर्ण कार्य समाज में ऐसे अनुकूल वातावरण का निर्माण करना है, जहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपनी नैतिक और बौद्धिक क्षमताओं का पूर्ण विकास कर सके। यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार को कई पहल करनी चाहिए, जैसे:
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना, जिससे नागरिकों में ज्ञान, जागरूकता और स्वतंत्र सोच विकसित हो सके।
- स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना, ताकि लोग स्वस्थ रहकर समाज में योगदान दे सकें।
- रोज़गार और आर्थिक अवसरों को बढ़ावा देना, जिससे सभी को आत्मनिर्भर बनने का मौका मिले।
- सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ लागू करना, जिससे समाज के कमजोर और वंचित वर्गों को समान अवसर मिल सकें।
- ग्रीन का मानना था कि केवल आर्थिक और भौतिक प्रगति ही समाज को समृद्ध नहीं बना सकती, बल्कि सामाजिक समानता और सामूहिक भलाई के सिद्धांतों को भी अपनाना आवश्यक है।
2. अधिकारों और न्याय की रक्षा (Protection of rights and justice):
ग्रीन के अनुसार, अधिकारों को केवल व्यक्तिगत लाभ के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि उन्हें समाज के व्यापक हित में समझना चाहिए। राज्य को नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करनी चाहिए, लेकिन जब अधिकारों का दुरुपयोग समाज के किसी अन्य वर्ग के लिए नुकसानदायक हो, तो उन्हें नियंत्रित किया जाना चाहिए।
- संपत्ति के अधिकारों को न्यायसंगत बनाना, ताकि कोई व्यक्ति या समूह अत्यधिक संपत्ति एकत्र करके दूसरों का शोषण न कर सके।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संतुलित करना, ताकि यह किसी अन्य व्यक्ति या समुदाय के लिए हानिकारक न बने।
- सभी नागरिकों को समान न्याय दिलाना, ताकि जाति, धर्म, लिंग या आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव न हो।
- राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून केवल शक्तिशाली वर्ग के हितों की रक्षा न करें, बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से न्याय मिले।
3. आर्थिक गतिविधियों का नियमन (Regulation of economic activities):
ग्रीन ने पूरी तरह से मुक्त बाजार की नीति का समर्थन नहीं किया, क्योंकि इससे समाज में आर्थिक असमानता और शोषण की संभावना बढ़ जाती है। उनका मानना था कि राज्य को अर्थव्यवस्था में कुछ हद तक हस्तक्षेप करना चाहिए ताकि सभी नागरिकों को न्यायसंगत अवसर मिलें और कोई भी व्यक्ति अपने आर्थिक प्रभाव का दुरुपयोग न कर सके।
- मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करना, जिससे उनके शोषण को रोका जा सके और उन्हें सुरक्षित कार्य वातावरण मिले।
- उचित वेतन और कार्य परिस्थितियाँ सुनिश्चित करना, ताकि हर व्यक्ति को सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर मिल सके।
- एकाधिकार और अनुचित व्यावसायिक प्रथाओं को नियंत्रित करना, ताकि आर्थिक संसाधनों का समान वितरण हो सके।
- गरीबी उन्मूलन और आय असमानता को कम करने के लिए योजनाएँ लागू करना, जिससे सभी नागरिकों को समान अवसर मिलें।
- ग्रीन का मानना था कि आर्थिक संसाधनों का वितरण केवल बाजार की ताकतों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आर्थिक विकास सभी के लिए लाभकारी हो।
4. नैतिक और आध्यात्मिक विकास (Ethical and spiritual development):
ग्रीन ने राज्य को केवल एक प्रशासनिक संस्था नहीं माना, बल्कि उन्होंने इसे एक नैतिक शक्ति के रूप में देखा, जिसका उद्देश्य समाज में नैतिक मूल्यों और सद्गुणों को बढ़ावा देना है। उनके अनुसार, केवल कानूनी प्रतिबंधों से समाज में शांति और समृद्धि नहीं लाई जा सकती; इसके लिए नैतिकता और सदाचार का विकास भी आवश्यक है।
- शिक्षा के माध्यम से नैतिकता को बढ़ावा देना, ताकि लोग अच्छे नागरिक बन सकें और अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहें।
- सामाजिक नैतिकता को प्रोत्साहित करना, जिससे लोग स्वार्थ से ऊपर उठकर समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझें।
- सहिष्णुता, करुणा और परोपकार जैसी नैतिक भावनाओं को विकसित करना, जिससे समाज में शांति और सद्भाव बना रहे।
- राज्य को ऐसा वातावरण बनाना चाहिए, जिसमें नागरिक केवल अपने अधिकारों के बारे में ही न सोचें, बल्कि अपने कर्तव्यों और सामाजिक ज़िम्मेदारियों को भी समझें।
5. लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था (Democratic governance system):
ग्रीन का मानना था कि लोकतंत्र सबसे श्रेष्ठ शासन प्रणाली है, क्योंकि यह प्रत्येक नागरिक को राजनीतिक जीवन में भाग लेने का अवसर प्रदान करता है और सामूहिक भलाई को बढ़ावा देता है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि लोकतंत्र तभी प्रभावी हो सकता है जब इसे शिक्षा और नैतिक विकास के साथ जोड़ा जाए।
- राजनीतिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना, ताकि हर नागरिक अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो।
- लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देना, जैसे स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व।
- शिक्षा के माध्यम से नागरिकों को जागरूक बनाना, जिससे वे राजनीतिक प्रक्रियाओं को समझ सकें और सही निर्णय ले सकें।
- भ्रष्टाचार और राजनीतिक दुरुपयोग को रोकना, जिससे शासन प्रणाली पारदर्शी और जवाबदेह बनी रहे।
ग्रीन का आधुनिक उदारवाद पर प्रभाव (Green's Influence on Modern Liberalism):
1. कल्याणकारी राज्य की नीतियों पर प्रभाव (Influence on the policies of the Welfare State):
ग्रीन की सोच ने 20वीं सदी में कई देशों में कल्याणकारी राज्य की नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इस विचार को प्रोत्साहित किया कि केवल नकारात्मक स्वतंत्रता (Negative Liberty)—यानी सरकार का हस्तक्षेप न करना—पर्याप्त नहीं है; बल्कि, सरकार को नागरिकों के कल्याण के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
- सरकारी हस्तक्षेप की आवश्यकता: ग्रीन का मानना था कि केवल कानून बनाकर लोगों की स्वतंत्रता सुनिश्चित नहीं की जा सकती; बल्कि, सरकार को स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए नीतियां बनानी चाहिए।
- सामाजिक सुरक्षा की अवधारणा: उनके विचारों से प्रेरित होकर कई देशों में पेंशन, बेरोजगारी भत्ता, न्यूनतम मजदूरी, और सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवाओं जैसी योजनाएँ लागू की गईं।
- श्रम सुधार नीतियों का विकास: उन्होंने इस विचार को समर्थन दिया कि श्रमिकों को न्यूनतम वेतन, सुरक्षित कार्यस्थल और उचित कार्य समय मिलना चाहिए, ताकि वे सम्मानजनक जीवन जी सकें।
ग्रीन की इस सोच ने आधुनिक लोकतांत्रिक देशों में कल्याणकारी राज्य (Welfare State) की स्थापना को प्रेरित किया, जिससे सरकारें केवल नियामक संस्थान न रहकर नागरिकों के विकास में सहायक बन सकें।
2. समान अवसरों की गारंटी का सिद्धांत (Principle of Equal Opportunity):
ग्रीन का एक महत्वपूर्ण योगदान यह विचार था कि समान अवसरों (Equal Opportunity) की गारंटी देना सरकार की जिम्मेदारी है। उन्होंने इस विचार को खारिज किया कि समाज में केवल वही लोग सफल होते हैं जो मेहनती हैं। इसके विपरीत, उन्होंने माना कि हर व्यक्ति को अपनी क्षमता विकसित करने के लिए समान अवसर मिलने चाहिए।
- शिक्षा तक पहुंच: ग्रीन का मानना था कि बिना शिक्षा के समान अवसर संभव नहीं हैं। इस विचार ने कई देशों में निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की नीतियों को प्रेरित किया।
- आर्थिक असमानता को कम करने की दिशा में प्रयास: उनके सिद्धांत ने यह विचार स्थापित किया कि सरकार को आर्थिक असमानता को कम करने के लिए कर सुधार और सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ लागू करनी चाहिए।
- लैंगिक और सामाजिक न्याय: ग्रीन के विचारों का प्रभाव यह भी था कि महिलाओं और समाज के वंचित वर्गों को शिक्षा और रोजगार में समान अवसर दिए जाएं।
उनके विचारों से प्रेरित होकर आगे चलकर सरकारों ने शिक्षा, रोजगार और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में आरक्षण, छात्रवृत्ति और वित्तीय सहायता जैसी योजनाएँ लागू कीं, जिससे समानता की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकें।
3. आधुनिक विचारकों पर प्रभाव: जॉन रॉल्स और सामाजिक न्याय का सिद्धांत (Influence on Modern Thinkers: John Rawls and the Theory of Social Justice):
ग्रीन की विचारधारा ने जॉन रॉल्स (John Rawls) जैसे आधुनिक राजनीतिक दार्शनिकों को भी प्रभावित किया, जिन्होंने न्याय और निष्पक्षता (Justice and Fairness) पर विस्तृत अध्ययन किया।
- रॉल्स का 'न्याय का सिद्धांत' (Theory of Justice): रॉल्स ने यह तर्क दिया कि एक न्यायसंगत समाज में न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता होनी चाहिए, बल्कि समाज के सभी सदस्यों को समान अवसर भी मिलने चाहिए। यह विचार सीधे तौर पर ग्रीन के सकारात्मक स्वतंत्रता के सिद्धांत से प्रभावित था।
- कल्याणकारी नीतियों की वैचारिक नींव: रॉल्स की सोच के आधार पर सरकारों ने न्यायसंगत कर प्रणाली, स्वास्थ्य सेवा सुधार और न्यूनतम आय गारंटी जैसी नीतियों को लागू किया।
इस प्रकार, ग्रीन के सिद्धांतों ने आधुनिक राजनीतिक दर्शन के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और सामाजिक न्याय की अवधारणा को मजबूती प्रदान की।
4. शिक्षा, स्वास्थ्य और श्रम कानूनों में राज्य के हस्तक्षेप को नैतिक औचित्य प्रदान करना (Providing moral justification for state intervention in education, health, and labor laws):
ग्रीन के विचारों ने इस बात को नैतिक आधार दिया कि सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य और श्रम कानूनों में हस्तक्षेप करना चाहिए, ताकि नागरिकों को बेहतर जीवन जीने का अवसर मिल सके।
- शिक्षा का अधिकार: ग्रीन के विचारों से प्रेरित होकर कई देशों ने निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की नीतियाँ लागू कीं, ताकि प्रत्येक नागरिक अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक हो सके।
- स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता: उन्होंने इस विचार को बल दिया कि स्वास्थ्य केवल एक व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह सरकार की भी जिम्मेदारी है। इस सोच ने सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा (Universal Healthcare) की नीतियों को प्रेरित किया।
- श्रम कानूनों का विकास: ग्रीन ने इस तर्क को स्थापित किया कि श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के बिना समाज में वास्तविक स्वतंत्रता संभव नहीं है। उनके विचारों से प्रेरित होकर सरकारों ने श्रमिक सुरक्षा कानून, न्यूनतम वेतन, और कार्यस्थल सुरक्षा से जुड़े नियम लागू किए।
ग्रीन के सिद्धांतों ने यह सुनिश्चित किया कि सरकारें केवल न्यूनतम शासन (Minimal State) की भूमिका तक सीमित न रहें, बल्कि सामाजिक उत्थान और नागरिकों के नैतिक विकास में भी योगदान दें।
निष्कर्ष (Conclusion):
टी.एच. ग्रीन के विचारों ने आधुनिक उदारवाद (Modern Liberalism) के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी सकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा ने इस विचार को मजबूत किया कि सरकार को केवल कानून और व्यवस्था बनाए रखने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य, और समान अवसर प्रदान करने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। उनकी सोच ने कल्याणकारी राज्य की नीतियों, सामाजिक सुरक्षा योजनाओं, श्रम सुधारों और न्याय के आधुनिक सिद्धांतों को गहराई से प्रभावित किया। जॉन रॉल्स जैसे दार्शनिकों ने उनके सिद्धांतों को आगे बढ़ाया और उन्हें आधुनिक सामाजिक न्याय की नीतियों में परिवर्तित किया। इस प्रकार, ग्रीन की विचारधारा ने लोकतांत्रिक शासन, कल्याणकारी नीतियों और सामाजिक न्याय के विचारों को एक नई दिशा दी, जो आज भी सरकारों और नीति-निर्माताओं के लिए प्रेरणादायक बनी हुई है। ग्रीन का मानना था कि लोकतंत्र केवल एक शासन प्रणाली नहीं है, बल्कि यह एक जीवन शैली है, जिसमें नागरिक अपने अधिकारों और कर्तव्यों को संतुलित रूप से निभाते हैं। यदि लोकतंत्र को केवल चुनावों तक सीमित कर दिया जाए और नागरिकों को नैतिक शिक्षा न मिले, तो यह केवल एक औपचारिक प्रणाली बनकर रह जाएगा।
राजनीति विज्ञान के अन्य महत्वपूर्ण टॉपिक्स पढ़ने के लिए नीचे दिए गए link पर click करें:
Post a Comment