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Union Executive: President, Prime Minister, and Council of Ministers संघीय कार्यपालिका: राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्री परिषद


भारत की शासन व्यवस्था संविधान द्वारा निर्धारित प्रावधानों पर आधारित है, जो कार्यपालिका (Executive), विधायिका (Legislature), और न्यायपालिका (Judiciary)—इन तीन प्रमुख स्तंभों के माध्यम से संचालित होती है। इनका मुख्य उद्देश्य सुशासन सुनिश्चित करना, कानूनी ढांचे को मजबूत करना, और न्याय व्यवस्था को प्रभावी बनाना है। कार्यपालिका प्रशासनिक नीतियों को लागू करने और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी निभाती है।

कार्यपालिका के प्रमुख अंगों में संघीय कार्यपालिका (Union Executive) सबसे महत्वपूर्ण है, जिसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्री परिषद और अटॉर्नी जनरल शामिल होते हैं। राष्ट्रपति को राष्ट्र का संवैधानिक प्रमुख माना जाता है, जबकि प्रधानमंत्री सरकार के वास्तविक प्रमुख के रूप में कार्य करता है और मंत्रिपरिषद के सहयोग से प्रशासन का संचालन करता है। अटॉर्नी जनरल सरकार का सर्वोच्च विधि अधिकारी होता है, जो कानूनी मामलों में सरकार को सलाह देता है।

संघीय कार्यपालिका की यह संरचना संविधान द्वारा निर्धारित संतुलन और उत्तरदायित्व को बनाए रखने में सहायक होती है। यह व्यवस्था इस तरह से तैयार की गई है कि शासन में पारदर्शिता बनी रहे, लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा हो, और जनता के हितों को सर्वोपरि रखा जाए। कार्यपालिका की प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि यह विधायिका और न्यायपालिका के साथ मिलकर कितनी सुचारू रूप से कार्य करती है, जिससे शासन प्रणाली अधिक उत्तरदायी और जनकल्याणकारी बन सके।

संघीय कार्यपालिका की संरचना (Composition of Union Executive):

भारतीय संविधान के भाग V (अनुच्छेद 52-78) के तहत संघीय कार्यपालिका निम्नलिखित प्रमुख घटकों से मिलकर बनी होती है:

1. राष्ट्रपति (The President) – कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख

2. उपराष्ट्रपति (The Vice President) – राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यभार संभालने वाला अधिकारी

3. प्रधानमंत्री (The Prime Minister) – सरकार का वास्तविक मुखिया

4. मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) – प्रधानमंत्री की सहायता करने वाले मंत्रीगण

5. अटॉर्नी जनरल (Attorney General of India) – भारत सरकार का सर्वोच्च विधि अधिकारी

भारत के राष्ट्रपति (The President of India):
भारत में राष्ट्रपति राष्ट्र के संवैधानिक प्रमुख होते हैं और देश की सर्वोच्च कार्यकारी शक्ति उनके पद में निहित होती है। हालांकि, भारत की संसदीय प्रणाली के तहत, कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद के पास होती है, जो राष्ट्रपति को उनकी सलाह देते हैं। राष्ट्रपति को संविधान द्वारा अनेक महत्वपूर्ण अधिकार और कर्तव्य सौंपे गए हैं, जो सरकार के सुचारु संचालन और संवैधानिक व्यवस्था की स्थिरता सुनिश्चित करते हैं। राष्ट्रपति संसद के अभिन्न अंग होते हैं और विधायी प्रक्रियाओं में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वे संसद के सत्र को बुलाने, स्थगित करने और लोकसभा को भंग करने का अधिकार रखते हैं। इसके अलावा, राष्ट्रपति विभिन्न उच्च पदों पर नियुक्तियाँ करते हैं, जिनमें राज्यपाल, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, सशस्त्र बलों के प्रमुख, मुख्य चुनाव आयुक्त और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक शामिल हैं। राष्ट्रपति को न्यायिक शक्तियाँ भी प्राप्त होती हैं, जिसके अंतर्गत वे अनुच्छेद 72 के तहत अपराधियों की सजा को क्षमा करने, निलंबित करने, कम करने या परिवर्तित करने का अधिकार रखते हैं। इसके अतिरिक्त, वित्तीय मामलों में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि संसद में कोई भी धन विधेयक उनकी अनुमति के बिना प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। राष्ट्रपति को आपातकालीन परिस्थितियों में विशेष शक्तियाँ दी गई हैं, जिनमें राष्ट्रीय आपातकाल, राज्य आपातकाल और वित्तीय आपातकाल लागू करने का अधिकार शामिल है। इन परिस्थितियों में, राष्ट्रपति के पास शासन को नियंत्रित करने के व्यापक अधिकार होते हैं। यद्यपि राष्ट्रपति एक संवैधानिक प्रमुख होते हैं, लेकिन उनकी भूमिका मात्र औपचारिक नहीं होती। वे देश की संवैधानिक संरचना की रक्षा करते हैं और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुचारु रूप से संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


राष्ट्रपति की नियुक्ति और कार्यकाल:
1. चुनाव प्रक्रिया:
राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचक मंडल (Electoral College) द्वारा किया जाता है। इस मंडल में निम्नलिखित सदस्य शामिल होते हैं:
संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के निर्वाचित सदस्य
सभी राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य
दिल्ली और पुडुचेरी जैसे केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य
चुनाव प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 54 और 55 के तहत निर्धारित होती है। यह प्रक्रिया आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation System) और एकल संक्रमणीय मत (Single Transferable Vote) प्रणाली के माध्यम से संपन्न होती है। प्रत्येक निर्वाचक का मत मूल्य समान नहीं होता, बल्कि उसकी गणना एक निश्चित सूत्र के आधार पर की जाती है।

2. कार्यकाल और पुनर्निर्वाचन:
राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है, लेकिन वह पद पर तब तक बने रह सकते हैं जब तक कि नए राष्ट्रपति का चुनाव न हो जाए। उन्हें अनिश्चितकालीन बार पुनः चुने जाने का अधिकार है, अर्थात वे चाहे जितनी बार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ सकते हैं।

3. राष्ट्रपति पद के लिए आवश्यक योग्यताएँ:
भारत का राष्ट्रपति बनने के लिए व्यक्ति को निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना आवश्यक होता है:
1. भारतीय नागरिकता –
उम्मीदवार भारतीय नागरिक होना चाहिए।

2. न्यूनतम आयु –
उम्मीदवार की आयु 35 वर्ष या उससे अधिक होनी चाहिए।

3. लोकसभा सदस्य बनने की योग्यता –
व्यक्ति को लोकसभा का सदस्य बनने के लिए योग्य होना चाहिए।

4. लाभ का पद (Office of Profit) धारण नहीं करना –
राष्ट्रपति का उम्मीदवार केंद्र या राज्य सरकार के अधीन किसी भी लाभ के पद पर कार्यरत नहीं होना चाहिए। हालाँकि, यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल या किसी मंत्री के रूप में कार्यरत है, तो वह चुनाव लड़ सकता है।

4. शपथ ग्रहण (Oath or Affirmation):
संविधान के अनुच्छेद 60 के अनुसार, राष्ट्रपति पद ग्रहण करने से पहले उन्हें भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) द्वारा शपथ दिलाई जाती है। यदि मुख्य न्यायाधीश अनुपलब्ध हों, तो सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश यह कार्य संपन्न करते हैं।
शपथ के दौरान राष्ट्रपति इस बात का संकल्प लेते हैं कि वे –
भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा करेंगे।
संविधान की रक्षा, संरक्षण और बचाव करेंगे।
अपने कर्तव्यों का निष्पक्षता से निर्वहन करेंगे।

राष्ट्रपति की शक्तियाँ और अधिकार:
भारतीय राष्ट्रपति को संविधान में विभिन्न शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, जिन्हें मुख्य रूप से निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:
1. कार्यकारी शक्तियाँ (Executive Powers):
राष्ट्रपति देश के संवैधानिक प्रमुख (Constitutional Head) के रूप में कार्य करते हैं। सभी कार्यकारी निर्णय राष्ट्रपति के नाम से लिए जाते हैं, लेकिन वास्तविक प्रशासनिक कार्य मंत्रिपरिषद और प्रधानमंत्री के परामर्श पर किए जाते हैं। राज्यपालों, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, सशस्त्र बलों के प्रमुखों, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) जैसे उच्च पदों पर नियुक्तियाँ राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं। राष्ट्रपति के पास किसी मंत्री को पद से हटाने का अधिकार नहीं होता, लेकिन वे प्रधानमंत्री के परामर्श से मंत्रियों की नियुक्ति कर सकते हैं। केंद्र शासित प्रदेशों का प्रशासन राष्ट्रपति के अधीन होता है।

2. विधायी शक्तियाँ (Legislative Powers):
राष्ट्रपति संसद का एक अभिन्न अंग होते हैं और उन्हें संसद का सत्र बुलाने, स्थगित करने और लोकसभा को भंग करने का अधिकार होता है। वे प्रत्येक विधायी सत्र के आरंभ में संसद के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित करते हैं और सरकार की नीतियों की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं। कोई विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के बिना कानून नहीं बन सकता। मनी बिल (धन विधेयक) केवल राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति से ही संसद में पेश किया जा सकता है। राष्ट्रपति के पास विधेयकों पर हस्ताक्षर करने, उसे अस्वीकार करने या पुनर्विचार के लिए भेजने का अधिकार होता है।

3. न्यायिक शक्तियाँ (Judicial Powers):
राष्ट्रपति के पास विशेष न्यायिक शक्तियाँ होती हैं, जिनके अंतर्गत वे अनुच्छेद 72 के तहत निम्नलिखित अधिकार रखते हैं:
दया याचिकाओं (Mercy Petitions) पर निर्णय लेने का अधिकार। किसी अपराधी की सजा को माफ (Pardon), स्थगित (Reprieve), कम (Commutation) या परिवर्तित (Remission) करने का अधिकार। राष्ट्रपति को विशेष रूप से मृत्यु दंड को माफ करने का भी अधिकार है।

4. वित्तीय शक्तियाँ (Financial Powers):
बजट की प्रस्तुति से पहले राष्ट्रपति की स्वीकृति आवश्यक होती है। संसद में कोई भी मनी बिल (Money Bill) राष्ट्रपति की अनुमति के बिना प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। राष्ट्रपति के अधीन संविधान के अनुच्छेद 266 के तहत 'भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India)' का नियंत्रण होता है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

5. सैन्य शक्तियाँ (Military Powers):
राष्ट्रपति भारतीय सशस्त्र बलों (Armed Forces) के सर्वोच्च सेनानायक (Supreme Commander) होते हैं। वे युद्ध की घोषणा या शांति संधि पर हस्ताक्षर करने का अधिकार रखते हैं, लेकिन इस निर्णय को लेने से पहले संसद की मंजूरी आवश्यक होती है। सेना, नौसेना और वायुसेना के प्रमुखों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

6. आपातकालीन शक्तियाँ (Emergency Powers):
राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 352, 356 और 360 के तहत आपातकाल लगाने का अधिकार होता है। ये तीन प्रकार के आपातकाल होते हैं:

1. राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency) – अनुच्छेद 352:
जब देश की सुरक्षा पर बाहरी आक्रमण या आंतरिक विद्रोह का खतरा हो। इस दौरान केंद्र सरकार को राज्यों के कार्यों पर पूर्ण नियंत्रण मिल जाता है।

2. राज्य आपातकाल (President’s Rule) – अनुच्छेद 356:
यदि किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाए, तो राष्ट्रपति वहां राष्ट्रपति शासन लागू कर सकते हैं।

3. वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) – अनुच्छेद 360:
जब देश की आर्थिक स्थिरता खतरे में हो, तो राष्ट्रपति वित्तीय आपातकाल घोषित कर सकते हैं। इस दौरान केंद्र सरकार को राज्यों के वित्तीय मामलों पर नियंत्रण मिल जाता है।

राष्ट्रपति भारत के संवैधानिक प्रमुख होते हैं और देश की एकता, अखंडता और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि, अधिकांश कार्य प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद के परामर्श से होते हैं, फिर भी राष्ट्रपति को अनेक संवैधानिक शक्तियाँ प्राप्त होती हैं, जो देश के सुचारु संचालन में सहायक होती हैं।

2. प्रधानमंत्री (The Prime Minister of India):
प्रधानमंत्री भारत की कार्यपालिका का वास्तविक प्रमुख होते हैं और देश के शासन संचालन की पूरी जिम्मेदारी उनके कंधों पर होती है। वे केंद्र सरकार के प्रमुख नीति-निर्माता होते हैं और प्रशासनिक निर्णयों को लागू करने में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। प्रधानमंत्री राष्ट्रपति के प्रमुख सलाहकार होते हैं और मंत्रिपरिषद का नेतृत्व करते हैं। भारत में संसदीय प्रणाली के तहत, राष्ट्रपति के पास सभी कार्यकारी शक्तियाँ निहित होती हैं, लेकिन वे प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करते हैं। इसलिए, प्रधानमंत्री ही वास्तविक शक्ति का केंद्र होते हैं और देश की आंतरिक तथा बाह्य नीतियों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे कैबिनेट की बैठकों की अध्यक्षता करते हैं, विभिन्न मंत्रालयों के कार्यों का समन्वय करते हैं और सरकार की नीतियों के सफल कार्यान्वयन को सुनिश्चित करते हैं। इसके अतिरिक्त, प्रधानमंत्री संसद में सरकार के मुख्य प्रवक्ता के रूप में कार्य करते हैं और नीतियों का बचाव करते हैं। वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं, वैश्विक नेताओं के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित करते हैं और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समझौतों को अंतिम रूप देते हैं। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में ही सरकार की विभिन्न योजनाएँ और कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य देश के सामाजिक और आर्थिक विकास को गति देना होता है। इस प्रकार, प्रधानमंत्री न केवल सरकार के प्रमुख होते हैं, बल्कि देश की दिशा और भविष्य को निर्धारित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रधानमंत्री की नियुक्ति:
भारत के प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। इस पद पर वही व्यक्ति आसीन होता है, जिसके पास लोकसभा में बहुमत होता है। आमतौर पर, जिस राजनीतिक दल या गठबंधन को आम चुनावों में बहुमत प्राप्त होता है, उसका नेता प्रधानमंत्री पद के लिए चुना जाता है। यदि किसी दल को पूर्ण बहुमत न मिले, तो राष्ट्रपति ऐसे नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करते हैं, जो गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने के लिए पर्याप्त समर्थन जुटाने में सक्षम हो। प्रधानमंत्री बनने के बाद, वे राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों की नियुक्ति की सिफारिश करते हैं, जो सामूहिक रूप से सरकार का संचालन करते हैं।

प्रधानमंत्री की शक्तियाँ और कर्तव्य:
1. मंत्रिपरिषद का नेतृत्व और समन्वय:
प्रधानमंत्री न केवल मंत्रिपरिषद के प्रमुख होते हैं, बल्कि उनके कार्यों का समन्वय और मार्गदर्शन भी करते हैं। वे अपने मंत्रियों की नियुक्ति की सिफारिश करते हैं, उन्हें अलग-अलग विभाग आवंटित करते हैं और उनके प्रदर्शन की समीक्षा करते हैं। यदि कोई मंत्री ठीक से कार्य नहीं करता या सरकार की नीतियों के अनुरूप कार्य नहीं करता, तो प्रधानमंत्री उसे पद से हटाने की सिफारिश कर सकते हैं। इसके अलावा, वे मंत्रिपरिषद की बैठकों की अध्यक्षता करते हैं और नीतिगत निर्णयों को लागू कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

2. नीति निर्माण में नेतृत्व:
देश की आंतरिक और बाहरी नीतियों को निर्धारित करने में प्रधानमंत्री की भूमिका केंद्रीय होती है। वे राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक कल्याण और विदेश नीति से संबंधित निर्णय लेते हैं। उनकी अगुवाई में सरकार विभिन्न योजनाएँ बनाती है, जिन्हें क्रियान्वित करने की जिम्मेदारी संबंधित मंत्रालयों की होती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रधानमंत्री भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं और अन्य देशों के प्रमुखों के साथ द्विपक्षीय वार्ताएँ करते हैं।

3. संसद में सरकार का प्रतिनिधित्व:
प्रधानमंत्री संसद में सरकार के मुख्य प्रवक्ता होते हैं। वे संसद में नीतियों को स्पष्ट करते हैं, महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करते हैं और सरकार की उपलब्धियों को प्रस्तुत करते हैं। किसी भी महत्वपूर्ण नीति या विधेयक पर यदि बहस होती है, तो प्रधानमंत्री अपनी सरकार का पक्ष रखते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी नीतियाँ संसद के दोनों सदनों में पारित हो सकें। वे विपक्ष के सवालों के जवाब देते हैं और सरकार के दृष्टिकोण को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करते हैं।

4. राष्ट्रपति के साथ संबंध और कार्यकारी शक्तियाँ:
भारत के राष्ट्रपति सभी कार्यकारी निर्णयों को प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद की सलाह पर लेते हैं। संविधान के तहत, राष्ट्रपति को विभिन्न महत्वपूर्ण नियुक्तियाँ करने, संसद के सत्र बुलाने और विधेयकों को मंजूरी देने जैसे अधिकार प्राप्त हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश निर्णय प्रधानमंत्री की सिफारिश पर किए जाते हैं। प्रधानमंत्री नियमित रूप से राष्ट्रपति को सरकार के कार्यों और नीतियों की जानकारी देते हैं और आवश्यक सलाह प्रदान करते हैं।

5. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दायित्व:
प्रधानमंत्री संकट की घड़ी में राष्ट्र का मार्गदर्शन करते हैं। प्राकृतिक आपदाओं, आंतरिक अशांति या किसी अन्य राष्ट्रीय संकट के समय वे प्रशासन को संगठित करते हैं और समाधान के लिए ठोस कदम उठाते हैं। विदेश नीति के संदर्भ में, प्रधानमंत्री अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की स्थिति को प्रस्तुत करते हैं और अन्य देशों के साथ कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करते हैं। वैश्विक सम्मेलनों, संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों में वे भारत की ओर से भाग लेते हैं और राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देते हैं।

6. प्रशासनिक नियंत्रण और नीति कार्यान्वयन:
प्रधानमंत्री सभी मंत्रालयों और सरकारी विभागों की कार्यप्रणाली की निगरानी रखते हैं। वे यह सुनिश्चित करते हैं कि सरकार की योजनाएँ और कार्यक्रम प्रभावी रूप से लागू हों और जनता तक पहुँचें। वे सरकारी तंत्र की दक्षता बनाए रखने के लिए प्रशासनिक सुधारों की पहल कर सकते हैं और देश की शासन व्यवस्था को अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाने के लिए कदम उठा सकते हैं।

7. आपातकालीन परिस्थितियों में भूमिका:
जब देश में आपातकाल घोषित किया जाता है, तो प्रधानमंत्री की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। वे मंत्रिपरिषद के साथ मिलकर राष्ट्रीय संकट से निपटने की रणनीति बनाते हैं और आवश्यक कदम उठाते हैं। संविधान के अनुच्छेद 352 (राष्ट्रीय आपातकाल), अनुच्छेद 356 (राज्य आपातकाल) और अनुच्छेद 360 (वित्तीय आपातकाल) के तहत लिए जाने वाले निर्णयों में प्रधानमंत्री की सलाह अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।

प्रधानमंत्री केवल सरकार के प्रमुख नहीं होते, बल्कि वे देश के नीति-निर्माण, प्रशासन और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे न केवल मंत्रिपरिषद का नेतृत्व करते हैं, बल्कि संसद में सरकार की नीतियों का बचाव भी करते हैं। साथ ही, वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी कार्यकुशलता और नेतृत्व क्षमता देश की दिशा और भविष्य को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

3. मंत्री परिषद (Council of Ministers):
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 के तहत, राष्ट्रपति को अपनी कार्यकारी शक्तियों का उपयोग प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद की सलाह के आधार पर करना आवश्यक है। यह प्रावधान भारत में संसदीय प्रणाली को मजबूत करता है, जहाँ राष्ट्रपति नाममात्र के प्रमुख होते हैं, जबकि वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद के पास होती है। राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करने की बाध्यता होती है, लेकिन 42वें संविधान संशोधन (1976) के बाद इस प्रावधान को और अधिक स्पष्ट कर दिया गया। इसके बाद, 44वें संशोधन (1978) में यह व्यवस्था की गई कि राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की सलाह पर पुनर्विचार करने का एक बार अधिकार होगा, लेकिन यदि वही सलाह दोबारा दी जाती है, तो उन्हें उसे स्वीकार करना होगा। इस अनुच्छेद का उद्देश्य कार्यपालिका की स्थिरता बनाए रखना और संसदीय प्रणाली के सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित करना है। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि राष्ट्रपति सरकार की नीतियों और निर्णयों को लागू करने में केवल एक औपचारिक भूमिका निभाएँ, जबकि शासन से जुड़े वास्तविक निर्णय प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद द्वारा लिए जाएँ।

मंत्रिपरिषद के प्रकार:
मंत्रिपरिषद तीन स्तरों में विभाजित होती है:
1. कैबिनेट मंत्री (Cabinet Ministers):
ये वरिष्ठ मंत्री होते हैं जो महत्वपूर्ण मंत्रालयों (जैसे गृह, वित्त, रक्षा, विदेश) का नेतृत्व करते हैं।

2. राज्य मंत्री (Ministers of State):
ये कैबिनेट मंत्रियों के अधीन या स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं।

3. उप-मंत्री (Deputy Ministers):
ये कैबिनेट मंत्रियों की सहायता करते हैं लेकिन स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं करते।

मंत्रिपरिषद की सामूहिक उत्तरदायित्व (Collective Responsibility):
अनुच्छेद 75 के अनुसार, मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है। इसका अर्थ यह है कि यदि लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाए, तो पूरे मंत्रिमंडल को इस्तीफा देना होगा।

प्रधानमंत्री और मंत्री परिषद का राष्ट्रपति के साथ संबंध:
राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से कार्य करता है, लेकिन प्रधानमंत्री ही मंत्रियों को नियुक्त करने और हटाने की सिफारिश करता है। यदि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच किसी विषय पर असहमति होती है, तो राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की सलाह माननी होती है।

निष्कर्ष:
संघीय कार्यपालिका भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला है, जो शासन की स्थिरता और प्रभावी प्रशासन को सुनिश्चित करती है। भारत में राष्ट्रपति राष्ट्र के संवैधानिक प्रमुख होते हैं और उनका मुख्य कार्य संवैधानिक प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करना होता है। हालांकि, कार्यकारी शक्तियों का वास्तविक प्रयोग प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद द्वारा किया जाता है, जो सरकार के नीति-निर्माण और प्रशासन का नेतृत्व करते हैं। प्रधानमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं। वे संसद में सरकार की नीतियों का बचाव करते हैं, विभिन्न मंत्रालयों और विभागों का समन्वय करते हैं तथा देश की आंतरिक और बाहरी नीति को दिशा प्रदान करते हैं। दूसरी ओर, राष्ट्रपति सरकार के निर्णयों को संवैधानिक स्वीकृति प्रदान करते हैं और आवश्यकतानुसार मार्गदर्शन देते हैं, जिससे संवैधानिक व्यवस्था बनी रहती है। यह कार्यपालिका व्यवस्था भारत की संसदीय प्रणाली के सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करती है, जहाँ राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन होता है। यह संतुलन शासन में स्थायित्व बनाए रखने, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की रक्षा करने और नीति-निर्माण में जवाबदेही सुनिश्चित करने में सहायक होता है। भारतीय लोकतंत्र में यह प्रणाली सत्ता के कुशल वितरण को सुनिश्चित करती है, जिससे सरकार सुचारू रूप से कार्य कर सके और जनता के कल्याण के लिए प्रभावी निर्णय ले सके।

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