Classroom Transaction in relation to Gender कक्षा में लिंग-संवेदनशील शिक्षण प्रक्रिया
प्रस्तावना-
लिंग (Gender) एक महत्वपूर्ण कारक है जो कक्षा की संपूर्ण गतिविधियों, शिक्षण विधियों और छात्रों की सहभागिता को प्रभावित करता है। यह न केवल शिक्षकों के पढ़ाने के तरीके को प्रभावित करता है, बल्कि यह भी तय करता है कि छात्र कैसे प्रतिक्रिया करते हैं, कैसे सीखते हैं और कैसे भाग लेते हैं। एक ऐसा कक्षा वातावरण जो लिंग विविधता को समझता और सम्मान देता है, वहां समावेशिता और समान अवसरों की भावना विकसित होती है। इसका अर्थ केवल लड़कों और लड़कियों के साथ समान व्यवहार करना नहीं है, बल्कि यह समझना भी है कि प्रत्येक छात्र को किन-किन लिंग-आधारित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। एक लिंग-संवेदनशील कक्षा छात्रों को सम्मान, समानता और गरिमा की शिक्षा देती है।
1. शिक्षा में लिंग की समझ -
शैक्षणिक संदर्भ में, लिंग केवल जैविक भिन्नता नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक अवधारणा है जिसमें समाज द्वारा निर्धारित भूमिकाएँ, अपेक्षाएँ और व्यवहार शामिल होते हैं। ये सामाजिक मानक अक्सर विद्यार्थियों के लिए सीमाएं तय कर देते हैं — जैसे लड़कों को विज्ञान या तकनीकी क्षेत्रों की ओर प्रोत्साहित किया जाना और लड़कियों को मानवीकी या सेवा कार्यों की ओर। इससे विद्यार्थियों की आत्म-छवि, रुचियाँ और भविष्य की दिशा प्रभावित होती है। यह आवश्यक है कि शिक्षक इस व्यापक दृष्टिकोण को समझें और प्रत्येक विद्यार्थी को बिना किसी पूर्वग्रह के अपने रुचि क्षेत्रों को चुनने और विकसित करने की स्वतंत्रता दें।
2. कक्षा में लिंग आधारित पक्षपात -
अक्सर शिक्षक अनजाने में कक्षा में लिंग आधारित भेदभाव करते हैं। उदाहरण के लिए, गणित या विज्ञान जैसे विषयों में लड़कों से अधिक प्रश्न पूछना या समूह नेतृत्व की भूमिकाएं उन्हें सौंपना, जबकि लड़कियों को अनुशासन या सुंदर लेखन के लिए सराहना देना — ये व्यवहार लिंग आधारित अपेक्षाओं को मजबूत करते हैं। इससे यह संदेश जाता है कि लड़के नेतृत्व के लिए अधिक उपयुक्त हैं और लड़कियाँ केवल सजग और शांतिपूर्ण कार्यों के लिए। धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति छात्रों के आत्मविश्वास और विषय चयन पर प्रभाव डालती है। इसलिए, शिक्षकों को स्वयं की भूमिका पर विचार करना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि वे सभी छात्रों को समान अवसर और प्रोत्साहन दे रहे हैं।
3. लिंग-संवेदनशील शिक्षण विधियाँ -
लिंग-संवेदनशील शिक्षण पद्धति वह प्रक्रिया है जिसमें पढ़ाने के तरीके, गतिविधियाँ और संवाद इस तरह से तैयार किए जाते हैं कि वे सभी लिंगों को समान रूप से शामिल और सशक्त करें। इसका उद्देश्य सिर्फ समानता नहीं, बल्कि निष्पक्षता और भागीदारी भी होता है। शिक्षक को चाहिए कि वे पाठ्यक्रम में ऐसे उदाहरण शामिल करें जिनमें पुरुषों और महिलाओं दोनों की उपलब्धियाँ दर्शाई गई हों। चर्चा, समूह कार्य और संवाद के ज़रिए लिंग संबंधी रूढ़ियों को चुनौती देना भी जरूरी है। साथ ही, कार्यों के बंटवारे में भी यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वे किसी परंपरागत लिंग भूमिका को न दोहराएं।
4. समावेशी शिक्षण-सहायक सामग्री -
शिक्षण में उपयोग की जाने वाली सामग्री का छात्रों के सोचने के ढंग पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि पुस्तकों, चित्रों या वीडियो में केवल पुरुष वैज्ञानिक या महिला गृहिणी को दिखाया जाता है, तो यह एकतरफा दृष्टिकोण बनाता है। इसके विपरीत, ऐसी सामग्री का उपयोग करना जो पुरुषों और महिलाओं दोनों की विविध भूमिकाओं को दिखाए — जैसे महिला नेता, पुरुष शिक्षक, महिला खिलाड़ी, आदि — छात्रों की सोच को विस्तृत करता है। शिक्षकों को चाहिए कि वे कहानियाँ, पोस्टर, केस स्टडी और लघु फ़िल्मों जैसी विविध सामग्री का प्रयोग करें जो लिंग-समानता को प्रोत्साहित करती हों।
5. छात्रों की अभिव्यक्ति और सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देना -
कक्षा में यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि हर छात्र को अपनी बात कहने का अवसर मिले, और उसकी बात को गंभीरता से सुना जाए। जब छात्र अपनी सोच और अनुभव साझा करते हैं, तो वे लिंग आधारित पूर्वग्रहों को चुनौती देना सीखते हैं। वाद-विवाद, समूह चर्चा, भूमिका-निर्धारण और अभिव्यक्ति के कार्यक्रमों के माध्यम से छात्रों को यह अहसास होता है कि उनका दृष्टिकोण भी मायने रखता है। जब लड़के और लड़कियाँ समान रूप से अपनी आवाज़ उठा सकते हैं, तो वे आत्मविश्वासी और संवेदनशील नागरिक बनते हैं, जो समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
6. शिक्षक की भूमिका -
लिंग-संवेदनशीलता में शिक्षक न केवल ज्ञान का स्रोत होते हैं, बल्कि वे छात्रों के व्यवहार और दृष्टिकोण को भी आकार देते हैं। एक लिंग-संवेदनशील शिक्षक वह होता है जो स्वयं अपने पूर्वग्रहों को पहचानता है, उन्हें दूर करने का प्रयास करता है और समानता का व्यवहार करता है। यदि कक्षा में लिंग-आधारित मज़ाक, छेड़छाड़ या बहिष्करण होता है, तो शिक्षक को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए। शिक्षक को चाहिए कि वह अनुकरणीय बनें — अपने शब्दों, कार्यों और निर्णयों से समानता और सम्मान को दर्शाएं। इस प्रकार का व्यवहार छात्रों को भी सिखाता है कि सभी लिंगों का सम्मान करना एक नैतिक मूल्य है।
7. कक्षा का वातावरण और भौतिक संरचना -
एक लिंग-संवेदनशील कक्षा न केवल पाठ्यक्रम और पद्धतियों में, बल्कि उसकी संरचना और सजावट में भी परिलक्षित होनी चाहिए। बैठने की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिससे छात्र-छात्राओं में सहभागिता और सहयोग बढ़े, न कि वे अलग-अलग समूहों में बँटें। कक्षा में लगाई गई तस्वीरें, चार्ट और प्रेरणादायक उद्धरणों में सभी लिंगों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए। जहाँ संभव हो, विद्यालयों को जेंडर-न्यूट्रल टॉयलेट्स जैसी सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। यह सब मिलकर एक ऐसा भौतिक वातावरण तैयार करते हैं जहाँ हर छात्र को समान रूप से स्वागत महसूस हो।
8. नीति और संस्थागत समर्थन -
व्यक्तिगत प्रयासों के साथ-साथ संस्थागत और नीतिगत सहयोग भी अत्यंत आवश्यक है। विद्यालयों को स्पष्ट लिंग-संवेदनशील नीतियाँ बनानी चाहिए जो शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण को दिशा दें। शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में लिंग-संवेदनशीलता पर विशेष प्रशिक्षण आवश्यक है। समय-समय पर कार्यशालाएं, संगोष्ठियाँ और प्रतिक्रिया तंत्रों के माध्यम से कक्षा की स्थितियों का मूल्यांकन किया जा सकता है। यदि शिक्षा संस्थान लिंग-समानता को अपने संचालन का अभिन्न हिस्सा बना लें, तो कक्षा में स्थायी और सार्थक परिवर्तन संभव है।
उपसंहार -
कक्षा में लिंग-संवेदनशील शिक्षण न केवल एक नैतिक आवश्यकता है, बल्कि यह समाज को समावेशी और न्यायपूर्ण दिशा में ले जाने का एक सशक्त माध्यम भी है। जब शिक्षक, पाठ्यक्रम निर्माता और नीति-निर्धारक मिलकर लिंग आधारित पूर्वाग्रहों को समाप्त करने के लिए कार्य करते हैं, तब एक ऐसा शैक्षिक वातावरण बनता है जिसमें प्रत्येक छात्र आत्म-सम्मान, स्वतंत्रता और समानता के साथ आगे बढ़ सकता है। इस प्रकार की शिक्षा न केवल छात्रों की शैक्षणिक प्रगति को बढ़ावा देती है, बल्कि उन्हें एक जागरूक, समर्पित और उत्तरदायी नागरिक बनने के लिए भी प्रेरित करती है।
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