Meaning and Characteristics of Assessment मूल्यांकन का अर्थ और विशेषताएँ
परिचय (Introduction)
शिक्षा प्रक्रिया में मूल्यांकन एक अत्यंत महत्वपूर्ण और अनिवार्य घटक है। यह अध्यापन और अधिगम के बीच सेतु का कार्य करता है, जिसके माध्यम से शिक्षकों को यह जानकारी प्राप्त होती है कि छात्र कितनी प्रगति कर रहे हैं, उन्होंने कितना समझा है और उनकी प्रदर्शन क्षमता क्या है। वर्तमान समय में मूल्यांकन केवल अंकों या ग्रेड देने तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह एक समग्र प्रक्रिया बन गई है जो सीखने की गहराई, शिक्षण की प्रभावशीलता और व्यक्तिगत विकास को भी परखती है। एक सुव्यवस्थित मूल्यांकन प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि छात्रों को उचित सहायता मिले और उनके संपूर्ण विकास की दिशा में प्रगति हो। 21वीं सदी में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने हेतु मूल्यांकन अत्यधिक आवश्यक बन गया है।
मूल्यांकन का अर्थ (Meaning of Assessment)
मूल्यांकन एक सुनियोजित और व्यवस्थित प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत छात्रों के ज्ञान, कौशल, दृष्टिकोण, और मूल्यों से संबंधित साक्ष्य एकत्र किए जाते हैं। यह केवल परीक्षा या टेस्ट तक सीमित नहीं होता, बल्कि इसमें शैक्षिक प्रक्रिया के दौरान अपनाई जाने वाली औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार की विधियाँ शामिल होती हैं। मूल्यांकन का मुख्य उद्देश्य यह जानना होता है कि छात्र कितना सीख रहे हैं और किस स्तर पर हैं, ताकि शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी बनाया जा सके। मूल्यांकन के प्रमुख प्रकारों में निदानात्मक (diagnostic), निर्माणात्मक (formative), और संक्षेपणात्मक (summative) मूल्यांकन शामिल हैं। यह न केवल छात्र की शैक्षणिक स्थिति को दर्शाता है, बल्कि उसके सीखने के तरीकों और समस्याओं की पहचान कर सुधार के अवसर भी प्रदान करता है।
मूल्यांकन की विशेषताएँ (Characteristics of Assessment)
1. निरंतर और व्यापक (Continuous and Comprehensive)
मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है जो अध्यापन के प्रत्येक चरण में शामिल होती है। यह केवल सेमेस्टर या वर्ष के अंत में नहीं होती, बल्कि पढ़ाई के पहले, दौरान और बाद में भी होती है। इसकी निरंतरता शिक्षकों को यह जानने में सहायक होती है कि छात्र कहाँ तक पहुँचे हैं और कहाँ उन्हें सहायता की आवश्यकता है। यह व्यापक भी होता है, अर्थात यह केवल बौद्धिक विकास तक सीमित नहीं रहता, बल्कि छात्र के सामाजिक, भावनात्मक, रचनात्मक और शारीरिक पक्षों को भी ध्यान में रखता है। इस प्रकार यह एक समग्र दृष्टिकोण अपनाता है।
2. निदानात्मक और उपचारात्मक (Diagnostic and Remedial)
मूल्यांकन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य छात्रों की कठिनाइयों और क्षमताओं की पहचान करना होता है। जब कोई छात्र किसी विषय में पिछड़ता है या किसी अवधारणा को समझने में असमर्थ होता है, तो मूल्यांकन उसके व्यवहार और प्रदर्शन के आधार पर समस्या का मूल कारण जानने में मदद करता है। इसके आधार पर शिक्षकों को यह योजना बनाने में सहायता मिलती है कि किस प्रकार से उस छात्र के लिए विशेष सहायता, वैकल्पिक शिक्षण विधियाँ या अतिरिक्त अभ्यास दिया जाए। इस प्रकार मूल्यांकन समस्याओं की पहचान करने के साथ-साथ उनके समाधान का मार्ग भी प्रदान करता है।
3. वस्तुनिष्ठ और विश्वसनीय (Objective and Reliable)
मूल्यांकन में वस्तुनिष्ठता का अर्थ है कि छात्रों का मूल्यांकन बिना किसी पक्षपात, पूर्वाग्रह या व्यक्तिगत राय के किया जाए। सभी छात्रों को समान मानदंडों के आधार पर परखा जाना चाहिए। विश्वसनीयता का तात्पर्य है कि मूल्यांकन बार-बार करने पर भी समान और सुसंगत परिणाम दे। यह तब संभव है जब मूल्यांकन की प्रक्रिया स्पष्ट, मानकीकृत (standardized) और व्यवस्थित हो। स्कोरिंग गाइड और रूब्रिक का प्रयोग करके मूल्यांकन को समान और निष्पक्ष बनाया जा सकता है, विशेष रूप से जब उत्तर व्यक्तिपरक होते हैं जैसे निबंध या मौखिक प्रस्तुति।
4. मान्य और प्रासंगिक (Valid and Relevant)
मूल्यांकन की मान्यता (validity) यह दर्शाती है कि क्या वह वास्तव में उसी चीज को माप रहा है जिसे मापने का उद्देश्य है। उदाहरण के लिए, यदि गणित की परीक्षा है तो उसमें गणितीय समस्या-समाधान की क्षमता की जांच होनी चाहिए, न कि सामान्य ज्ञान या भाषा कौशल की। यदि मूल्यांकन अमान्य है, तो उसके निष्कर्ष छात्रों की वास्तविक योग्यता को प्रतिबिंबित नहीं कर पाएंगे। इसके साथ-साथ, प्रासंगिकता भी महत्वपूर्ण है। मूल्यांकन को पाठ्यक्रम, अधिगम उद्देश्यों और वास्तविक जीवन की परिस्थितियों से जुड़ा होना चाहिए। इससे छात्र उसमें अधिक रुचि लेते हैं और सीखने को सार्थक मानते हैं।
5. शिक्षार्थी-केंद्रित और पारदर्शी (Learner-Centered and Transparent)
एक प्रभावी मूल्यांकन प्रणाली हमेशा छात्र को केंद्र में रखती है। प्रत्येक छात्र की योग्यता, शैली और आवश्यकता को ध्यान में रखकर मूल्यांकन तैयार किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, पारदर्शिता यह सुनिश्चित करती है कि छात्रों को मूल्यांकन का उद्देश्य, स्वरूप, मूल्यांकन मानदंड और अपेक्षित उत्तर के बारे में पहले से जानकारी हो। इससे छात्रों की घबराहट कम होती है और वे आत्मविश्वास के साथ उत्तर देते हैं। पारदर्शिता का एक अन्य पहलू है समय पर और स्पष्ट प्रतिक्रिया देना, जिससे छात्र अपनी गलतियों को पहचानकर सुधार कर सकें।
6. बहुआयामी और विविधतापूर्ण (Multi-dimensional and Varied)
मूल्यांकन को केवल एक ही विधि तक सीमित नहीं रहना चाहिए। यह विभिन्न तकनीकों और उपकरणों जैसे कि लिखित परीक्षा, मौखिक प्रस्तुति, प्रोजेक्ट कार्य, सहपाठी मूल्यांकन, स्वयं मूल्यांकन, समूह चर्चा आदि के माध्यम से किया जाना चाहिए। इससे छात्रों की बहुआयामी क्षमताओं की जांच की जा सकती है और एक संपूर्ण चित्र सामने आता है। बहुआयामी मूल्यांकन छात्रों के संज्ञानात्मक, भावनात्मक और व्यवहारिक विकास को भी दर्शाता है, जो आज के युग में बहुत आवश्यक है।
7. अधिगम उद्देश्यों से संरेखित (Aligned with Learning Objectives)
प्रत्येक मूल्यांकन कार्य को उस पाठ्यक्रम के अधिगम उद्देश्यों से पूरी तरह मेल खाना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई उद्देश्य विश्लेषणात्मक सोच विकसित करना है, तो मूल्यांकन में ऐसे प्रश्न होने चाहिए जो विश्लेषण और समस्या समाधान की माँग करें। यदि मूल्यांकन का उद्देश्यों से मेल नहीं होगा, तो छात्र उन चीजों के लिए जांचे जाएँगे जो उन्हें सिखाई ही नहीं गईं। इससे निराशा और भ्रम उत्पन्न होता है। इसलिए, उद्देश्य के अनुरूप मूल्यांकन छात्रों की वास्तविक सीख को परखने में सहायक होता है।
8. प्रतिक्रिया-आधारित (Feedback-Oriented)
प्रतिक्रिया मूल्यांकन की आत्मा होती है। जब छात्रों को उनके प्रदर्शन के बारे में सटीक, स्पष्ट और समय पर प्रतिक्रिया मिलती है, तो वे अपने प्रदर्शन को समझ पाते हैं और उसमें सुधार कर सकते हैं। प्रतिक्रिया केवल अंक देने तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह यह बतानी चाहिए कि छात्र ने क्या अच्छा किया, कहाँ सुधार की आवश्यकता है और कैसे किया जा सकता है। यह प्रतिक्रिया शिक्षकों के लिए भी मूल्यवान होती है, क्योंकि इसके माध्यम से वे अपनी शिक्षण पद्धतियों की समीक्षा कर सकते हैं। इस प्रकार प्रतिक्रिया आधारित मूल्यांकन सीखने की प्रक्रिया को एक सतत सुधार की दिशा में अग्रसर करता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
अंततः, मूल्यांकन केवल छात्रों के ज्ञान की जांच करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह शिक्षण प्रक्रिया का एक अभिन्न, सक्रिय और परिवर्तनशील घटक है। यह छात्रों की शैक्षणिक, सामाजिक और भावनात्मक प्रगति को समझने और उन्हें सुधारने के अवसर प्रदान करता है। एक प्रभावी मूल्यांकन प्रणाली वह होती है जिसमें निरंतरता, व्यापकता, वस्तुनिष्ठता, मान्यता, पारदर्शिता, विविधता, अधिगम लक्ष्यों से मेल और प्रतिक्रिया की विशेषताएँ समाहित हों। जब इन सभी गुणों को ध्यान में रखकर मूल्यांकन किया जाता है, तब यह केवल परिणाम बताने का साधन नहीं रह जाता, बल्कि छात्रों के संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास की कुंजी बन जाता है। वर्तमान और भविष्य की शिक्षा प्रणाली में मूल्यांकन की यह व्यापक भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है।
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