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Institutions Redressing Sexual Harassment and Abuse यौन उत्पीड़न और शोषण की रोकथाम हेतु संस्थान


परिचय (Introduction)

यौन उत्पीड़न और शोषण केवल व्यक्तिगत गरिमा पर आघात नहीं करते, बल्कि यह समाज में लैंगिक असमानता और असुरक्षा की जड़ें भी मजबूत करते हैं। पीड़ित व्यक्ति न केवल मानसिक और शारीरिक पीड़ा से गुजरता है, बल्कि समाज की ओर से मिलने वाली उपेक्षा, दोषारोपण और सामाजिक कलंक का भी सामना करता है। इन स्थितियों में, न्याय प्राप्त करना एक कठिन यात्रा बन जाता है। लेकिन जैसे-जैसे जागरूकता बढ़ी है, सरकार और समाज ने मिलकर कई ऐसे संस्थानों और विधिक उपायों की स्थापना की है, जो पीड़ितों को न्याय दिलाने, समर्थन देने और उनके आत्मविश्वास की पुनर्स्थापना में सहायक हैं। इन संस्थानों का उद्देश्य एक ऐसा वातावरण निर्मित करना है जहां कोई भी व्यक्ति भय, उत्पीड़न और असमानता के बिना जीवन जी सके।

1. कानूनी एवं न्यायिक संस्थान (Legal and Judicial Institutions)

a. आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System):

भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली यौन उत्पीड़न के मामलों से निपटने के लिए विस्तृत कानूनी प्रावधानों से सुसज्जित है। भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (स्त्री की मर्यादा भंग करना), धारा 376 (बलात्कार), और धारा 509 (अपमानजनक शब्द या इशारे) जैसे प्रावधान पीड़ित को न्याय दिलाने का मार्ग प्रदान करते हैं। पुलिस में प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराने से लेकर अभियोजन और न्यायालय में सुनवाई तक की प्रक्रिया शामिल होती है। हालांकि, अक्सर इन प्रक्रियाओं में देरी, साक्ष्य एकत्र करने में ढिलाई और संवेदनशीलता की कमी न्याय की राह में बाधा बनती है। इसके समाधान के लिए आवश्यक है कि पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को लैंगिक मुद्दों पर विशेष प्रशिक्षण दिया जाए और पीड़ितों की गोपनीयता, सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित किया जाए।

b. फास्ट ट्रैक कोर्ट (Fast Track Courts):

यौन हिंसा से जुड़े मामलों के त्वरित समाधान हेतु देश में फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की गई है। इन विशेष अदालतों को एक सीमित अवधि में मामलों की सुनवाई पूरी करनी होती है, जिससे पीड़ितों को लंबा इंतजार न करना पड़े। इसका उद्देश्य है कि दोषियों को शीघ्र सजा मिले और न्याय में देरी से उत्पन्न होने वाली हताशा समाप्त हो। हालांकि कई बार न्यायालयों में न्यायाधीशों की कमी, सुनवाई की तारीखों में विलंब और तकनीकी संसाधनों की अनुपलब्धता इन अदालतों की गति को धीमा कर देती है। फिर भी, फास्ट ट्रैक कोर्ट यौन अपराधों के खिलाफ न्यायिक व्यवस्था में एक क्रांतिकारी पहल है।

c. मानवाधिकार आयोग (National and State Human Rights Commissions):

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और राज्य मानवाधिकार आयोग नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कार्यरत स्वतंत्र निकाय हैं। ये संस्थाएं पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा लापरवाही बरते जाने पर स्वतः संज्ञान ले सकती हैं। वे पीड़ितों को विधिक सहायता, परामर्श और संरक्षण उपलब्ध कराते हैं तथा सरकार को नीतिगत सुझाव देते हैं। इनकी भूमिका विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण हो जाती है जब संस्थागत व्यवस्थाएं पीड़ित की रक्षा करने में विफल रहती हैं। यद्यपि इनकी सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होतीं, फिर भी ये नैतिक प्रभाव उत्पन्न कर शासन को कार्यवाही करने हेतु विवश करती हैं।

2. कार्यस्थल पर संस्थागत तंत्र (Institutional Mechanisms in Workplaces)

a. आंतरिक शिकायत समिति Internal Complaints Committee (ICC):

2013 के यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत प्रत्येक संस्थान में, जहाँ 10 या अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, आंतरिक शिकायत समिति का गठन आवश्यक है। यह समिति कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच करती है और अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश करती है। इसमें एक वरिष्ठ महिला अध्यक्ष, दो कर्मचारी सदस्य और एक बाहरी सदस्य होना चाहिए जो लिंग न्याय से संबंधित कार्य में विशेषज्ञ हो। ICC की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितनी स्वतंत्र, निष्पक्ष और गोपनीय तरीके से शिकायतों को संभालती है। कई संस्थान ICC का गठन तो करते हैं लेकिन उसकी सक्रियता और पारदर्शिता सुनिश्चित नहीं करते, जिससे पीड़ित की सुरक्षा और न्याय पर प्रभाव पड़ता है।

b. स्थानीय शिकायत समिति Local Complaints Committee (LCC):

ऐसे क्षेत्र जहाँ आंतरिक समिति बनाना संभव नहीं, जैसे असंगठित क्षेत्र, घरेलू कामगारों का क्षेत्र, या ग्रामीण इलाकों में – वहां जिला प्रशासन द्वारा स्थानीय शिकायत समिति गठित की जाती है। यह समिति विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए न्याय का माध्यम बनती है जो सामाजिक या आर्थिक रूप से हाशिए पर हैं। हालांकि, स्थानीय शिकायत समितियों के बारे में जागरूकता की कमी, संसाधनों की कमी और धीमी प्रक्रिया के चलते यह तंत्र अपेक्षित प्रभाव नहीं छोड़ पाता। इसके सशक्तिकरण के लिए राज्य और स्थानीय निकायों को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है।

3. शैक्षणिक संस्थानों में व्यवस्था (Mechanisms in Educational Institutions)

a. UGC दिशानिर्देश (University Grants Commission Guidelines):

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने सभी उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश जारी किए हैं जिनमें ICC और GSCASH (Gender Sensitization Committee Against Sexual Harassment) जैसी समितियाँ बनाना अनिवार्य है। इन समितियों का उद्देश्य केवल शिकायतों को सुलझाना नहीं, बल्कि शिक्षण संस्थानों में संवेदनशील और सुरक्षित वातावरण बनाना भी है। ये संस्थाएं छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए कार्यशालाएं, जागरूकता कार्यक्रम और प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन करती हैं। इनके माध्यम से विद्यार्थियों में लिंग समानता, संवैधानिक अधिकारों और सम्मानजनक व्यवहार के प्रति समझ विकसित की जाती है। शैक्षणिक संस्थानों में यह व्यवस्था छात्रों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।

b. यौन उत्पीड़न विरोधी समिति Committee Against Sexual Harassment (CASH):

कई शैक्षिक संस्थानों ने यौन उत्पीड़न विरोधी समिति (CASH) या इसी प्रकार की अन्य समितियाँ गठित की हैं, ताकि उत्पीड़न के मामलों के निवारण की प्रक्रिया को मजबूत किया जा सके। ये समितियाँ राष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप कार्य करती हैं, लेकिन इसके साथ ही ये संस्थान अपने स्तर पर आचार संहिता और शिकायत निवारण की प्रक्रियाएँ भी विकसित कर सकते हैं। CASH का उद्देश्य एक सुरक्षित और समावेशी वातावरण का निर्माण करना होता है, जहाँ यौन उत्पीड़न के मामलों को शीघ्रता और निष्पक्षता के साथ सुलझाया जा सके। ये समितियाँ प्रायः लैंगिक संवेदनशीलता से जुड़ी कार्यशालाएँ आयोजित करती हैं, परामर्श सत्र उपलब्ध कराती हैं, और यह सुनिश्चित करती हैं कि छात्रों और कर्मचारियों को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों की जानकारी हो। CASH में परिसर समुदाय के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाता है, जिससे विश्वास की भावना को बढ़ावा मिलता है और संवाद की संस्कृति विकसित होती है। हालांकि, समिति की प्रभावशीलता बनाए रखने के लिए नियमित प्रशिक्षण, प्रशासनिक सहयोग और स्वतंत्र कार्यप्रणाली अत्यंत आवश्यक है, जिससे दुरुपयोग को रोका जा सके और न्याय सुनिश्चित किया जा सके।

4. राष्ट्रीय आयोग और स्वायत्त संस्थाएं (National Commissions and Autonomous Bodies)

a. राष्ट्रीय महिला आयोग National Commission for Women (NCW):

राष्ट्रीय महिला आयोग एक ऐसा स्वायत्त निकाय है जो महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर केंद्रित रहता है और उन्हें न्याय दिलाने के लिए प्रयास करता है। यह आयोग यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न जैसे मामलों में सीधे हस्तक्षेप कर सकता है, पीड़ितों को सहायता प्रदान कर सकता है और संबंधित एजेंसियों को कार्यवाही के निर्देश दे सकता है। इसके अलावा, आयोग जनजागरूकता कार्यक्रम, हेल्पलाइन, कानूनी सलाह और नीतिगत सिफारिशों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देता है। हालांकि आयोग की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होतीं, लेकिन इसका सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव काफी सशक्त होता है।

b. बाल अधिकार संरक्षण आयोग National Commission for Protection of Child Rights (NCPCR):

बाल यौन शोषण के मामलों में बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यह आयोग बच्चों की सुरक्षा के लिए स्थापित किया गया है और POCSO एक्ट के तहत कार्य करता है। यह न केवल शिकायतों की जांच करता है बल्कि स्कूली शिक्षा, बाल आश्रय गृहों, किशोर न्याय बोर्डों आदि की निगरानी करता है। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि किसी भी बालक को न्याय से वंचित न रहना पड़े। आयोग पीड़ितों को परामर्श, पुनर्वास और आवश्यक सहायता सेवाएं भी प्रदान करता है।

5. गैर-सरकारी संगठन और नागरिक समाज (NGOs and Civil Society Organizations)

गैर-सरकारी संगठन यौन शोषण के विरुद्ध संघर्ष की पहली पंक्ति में खड़े होते हैं, खासकर तब जब सरकारी संस्थाएं असफल होती हैं या पहुंच से दूर होती हैं। ये संगठन पीड़ितों को कानूनी परामर्श, चिकित्सकीय सहायता, मनोवैज्ञानिक परामर्श, आश्रय और पुनर्वास सेवाएं प्रदान करते हैं। साथ ही ये समाज में जागरूकता फैलाने, प्रशिक्षण सत्र आयोजित करने और नीति निर्माण में भागीदारी निभाने जैसे कार्य भी करते हैं। संगठन जैसे जागोरी, ब्रेकथ्रू, शक्ति वाहिनी आदि वर्षों से सक्रिय रूप से महिला अधिकारों के लिए कार्य कर रहे हैं। इनके कार्यों से हजारों महिलाएं और बच्चे सशक्त हुए हैं। फिर भी, उन्हें सामाजिक अवरोध, फंड की कमी और प्रशासनिक सहयोग के अभाव का सामना करना पड़ता है।

6. ऑनलाइन और डिजिटल शिकायत मंच (Online and Digital Redressal Platforms)

डिजिटल युग में, महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध साइबर उत्पीड़न की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे में Cyber Crime Portal और She-Box जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म महिलाओं को एक सुरक्षित, गोपनीय और त्वरित माध्यम प्रदान करते हैं जहाँ वे उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कर सकती हैं। ये मंच शिकायतों को संबंधित मंत्रालय या विभाग तक तुरंत पहुंचाते हैं और उनकी निगरानी भी करते हैं। She-Box प्लेटफॉर्म विशेष रूप से कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न की शिकायतों के लिए विकसित किया गया है। हालांकि, अभी भी बहुत से लोग इन प्लेटफॉर्म्स की जानकारी से वंचित हैं और डिजिटल साक्षरता की कमी एक बड़ी बाधा बनी हुई है। इस चुनौती से निपटने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम और व्यापक प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

यौन उत्पीड़न और शोषण से निपटने के लिए संस्थागत व्यवस्थाएं एक मजबूत आधार प्रदान करती हैं। वे न केवल पीड़ितों को न्याय और सुरक्षा प्रदान करती हैं, बल्कि समाज को संवेदनशील, उत्तरदायी और जागरूक बनाने में भी सहायक होती हैं। हालांकि इन संस्थानों की प्रभावशीलता केवल उनके अस्तित्व पर नहीं, बल्कि उनके सक्रिय, पारदर्शी और जवाबदेह क्रियान्वयन पर निर्भर करती है। इसके लिए आवश्यक है कि इन संस्थाओं को पर्याप्त संसाधन, प्रशिक्षण और स्वतंत्रता प्रदान की जाए। साथ ही, समाज में लिंग आधारित भेदभाव और पितृसत्तात्मक मानसिकता को जड़ से समाप्त करने के लिए शिक्षा, संवाद और संवेदना का विस्तार आवश्यक है। तभी हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकेंगे जहाँ हर व्यक्ति सम्मान, समानता और सुरक्षा के साथ जीवन व्यतीत कर सके।

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