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Meaning, Definition, Concept, Types, and Identification of Gender/Sexual Harassment लैंगिक / यौन उत्पीड़न का अर्थ, परिभाषा, अवधारणा, प्रकार और पहचान

परिचय (Introduction)

पिछले कुछ दशकों में, लैंगिक और यौन उत्पीड़न का विषय विद्वानों, विधिवेत्ताओं, शैक्षणिक संस्थानों, कार्यस्थलों और मीडिया के बीच व्यापक रूप से चर्चा में आया है। हालांकि यह समस्या नई नहीं है, लेकिन लैंगिक समानता और मानवाधिकारों की दिशा में बढ़ते वैश्विक प्रयासों ने इसे और अधिक उजागर किया है। लैंगिक और यौन उत्पीड़न सामाजिक शक्ति-संबंधों और उन सांस्कृतिक मान्यताओं में गहराई से निहित हैं जो असमानता और भेदभाव को बढ़ावा देती हैं। यह समस्या केवल पीड़ित व्यक्ति तक सीमित नहीं रहती, बल्कि समग्र रूप से सुरक्षित, समावेशी और उत्पादक वातावरण की स्थापना में भी बाधा उत्पन्न करती है। उत्पीड़न किसी भी स्थान पर हो सकता है—चाहे वह कार्यस्थल हो, शैक्षणिक संस्थान हो, सार्वजनिक स्थल हो या डिजिटल मंच—और यह सभी लिंग पहचानों के व्यक्तियों को प्रभावित करता है, हालांकि महिलाएं और लैंगिक अल्पसंख्यक इस समस्या से अधिक प्रभावित होते हैं। इसके अर्थ, परिभाषा, अवधारणा, प्रकार और पहचान की समझ हमें इससे प्रभावी ढंग से निपटने के लिए आवश्यक ज्ञान प्रदान करती है।

लैंगिक / यौन उत्पीड़न का अर्थ (Meaning of Gender/Sexual Harassment)

लैंगिक या यौन उत्पीड़न का तात्पर्य ऐसे किसी भी अवांछित कार्य, इशारे, टिप्पणी या व्यवहार से है जो यौन प्रकृति का हो या किसी व्यक्ति की लैंगिक पहचान के आधार पर किया गया हो। इस प्रकार के व्यवहार की मुख्य विशेषता इसकी अनचाही और असहज प्रकृति होती है। यह ऐसा व्यवहार होता है जो पीड़ित को मानसिक, सामाजिक या भावनात्मक रूप से असहज बना देता है। यह केवल शारीरिक संपर्क तक सीमित नहीं होता, बल्कि इसमें मौखिक अपमान, लैंगिक भेदभाव पूर्ण टिप्पणियाँ और यहां तक कि घूरने या आपत्तिजनक सामग्री साझा करने जैसे परोक्ष व्यवहार भी शामिल हैं। कई बार ऐसे कृत्य सामान्य मज़ाक या छेड़खानी समझ लिए जाते हैं, लेकिन वास्तव में ये एक विषाक्त संस्कृति को जन्म देते हैं। यह उत्पीड़न किसी के द्वारा भी अनुभव किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से वे लोग इससे अधिक प्रभावित होते हैं जो सामाजिक या संस्थागत रूप से कमजोर होते हैं।

लैंगिक / यौन उत्पीड़न की परिभाषा (Definition of Gender/Sexual Harassment)

कानूनी और संस्थागत स्तर पर लैंगिक और यौन उत्पीड़न को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है ताकि इसे रोका जा सके और शिकायतों का उचित निवारण हो सके। उदाहरण के लिए, भारत में "महिलाओं के कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013" के अनुसार यौन उत्पीड़न में अवांछित शारीरिक संपर्क, यौन कृपा की मांग, यौन रंग वाली टिप्पणियां, अश्लील सामग्री दिखाना, या यौन प्रकृति का कोई भी अवांछित आचरण शामिल है। विश्व स्तर पर भी कार्यस्थलों पर ऐसे ही कानूनी ढांचे अपनाए गए हैं। इन परिभाषाओं में मुख्य बिंदु हैं:
अनुमति की अनुपस्थिति, पीड़ित पर प्रभाव, और प्रभाव और शक्ति के संदर्भ में किया गया व्यवहार।

लैंगिक / यौन उत्पीड़न की अवधारणा (Concept of Gender/Sexual Harassment)

लैंगिक और यौन उत्पीड़न की अवधारणा सामाजिक संरचनाओं, विशेष रूप से पितृसत्ता और पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं से जुड़ी हुई है। यह केवल कुछ अनुचित कृत्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह उस प्रणालीगत असमानता को दर्शाता है जहां एक लिंग को दूसरे पर वरीयता दी जाती है। उत्पीड़न प्रायः नियंत्रण का एक साधन होता है, जो प्राधिकार में बैठे व्यक्ति द्वारा अपनी शक्ति जताने, डराने या नीचा दिखाने के लिए किया जाता है। अक्सर यह केवल यौन इच्छाओं से प्रेरित नहीं होता, बल्कि इसमें पूर्वाग्रह, असंतोष या वर्चस्व की भावना भी शामिल होती है। इस अवधारणा से स्पष्ट होता है कि इस समस्या को जड़ से मिटाने के लिए समाज के प्रत्येक स्तर पर शिक्षा, जागरूकता और सांस्कृतिक सुधार की आवश्यकता है।

लैंगिक / यौन उत्पीड़न के प्रकार (Types of Gender/Sexual Harassment)

यौन उत्पीड़न विभिन्न रूपों में प्रकट होता है, और इसे समझना आवश्यक है ताकि इसकी पहचान और रोकथाम की जा सके:

1. मौखिक उत्पीड़न (Verbal Harassment)

मौखिक उत्पीड़न एक ऐसा व्यवहार है जिसमें व्यक्ति को मानसिक रूप से आहत करने के लिए आपत्तिजनक भाषा का उपयोग किया जाता है। यह उत्पीड़न तब होता है जब कोई व्यक्ति किसी की लैंगिक पहचान, शारीरिक बनावट या व्यक्तिगत जीवन के विषय में अश्लील या अपमानजनक टिप्पणियां करता है। बार-बार किसी के पहनावे या शरीर को लेकर की गई भद्दी टिप्पणियां, अश्लील चुटकुले सुनाना, या अभद्र भाषा का प्रयोग करना इसके प्रमुख उदाहरण हैं। यह प्रकार विशेषकर तब गंभीर हो जाता है जब ऐसी भाषा का प्रयोग बारंबार किया जाए, जिससे सामने वाला असहज, अपमानित या भयभीत महसूस करे।

2. अमौखिक (गैर-मौखिक) उत्पीड़न (Non-Verbal Harassment)

गैर-मौखिक उत्पीड़न उन कार्यों को दर्शाता है जिनमें कोई व्यक्ति बिना कुछ बोले ऐसे संकेत या भावभंगिमाएं प्रदर्शित करता है जो किसी अन्य व्यक्ति को असहज, अपमानित या भयभीत कर सकती हैं। इसमें लगातार घूरना, आपत्तिजनक हाव-भाव या शारीरिक मुद्राएं दिखाना, किसी की निजी सीमा में घुसकर खड़ा होना, या अनुचित चित्र, इमोजी अथवा वीडियो भेजना शामिल है। ऐसे व्यवहारों का उद्देश्य अक्सर सामने वाले पर मानसिक दबाव बनाना या डर का वातावरण उत्पन्न करना होता है।

3. शारीरिक उत्पीड़न (Physical Harassment)

शारीरिक उत्पीड़न वह स्थिति होती है जिसमें किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उससे शारीरिक संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। इसमें बिना अनुमति के छूना, गले लगाना, कंधे पर हाथ रखना, पीठ थपथपाना, या बार-बार किसी से जानबूझकर टकराना शामिल हो सकता है। यह उत्पीड़न सबसे प्रत्यक्ष होता है और पीड़ित को मानसिक एवं शारीरिक रूप से गहरा आघात पहुँचा सकता है। किसी भी स्थान विशेषकर कार्यस्थल या शैक्षणिक संस्थानों में इस प्रकार का व्यवहार अत्यंत गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।

4. दृश्य उत्पीड़न (Visual Harassment)

दृश्य उत्पीड़न तब होता है जब किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई ऐसा दृश्य या सामग्री दिखाई जाती है जो अश्लील, आपत्तिजनक या लैंगिक रूप से अपमानजनक हो। इसमें अश्लील पोस्टर, चित्र, वीडियो, या ऑनलाइन माध्यमों द्वारा भेजी गई अनुचित सामग्री शामिल होती है। कार्यस्थल या शिक्षण संस्थानों में प्रेजेंटेशन के दौरान जानबूझकर अनुचित चित्रों या उदाहरणों का प्रयोग करना भी इस श्रेणी में आता है। यह उत्पीड़न पीड़ित की मानसिक स्थिति पर गहरा प्रभाव डालता है और एक असुरक्षित वातावरण उत्पन्न करता है।

5. प्रतिफल आधारित उत्पीड़न (Quid Pro Quo Harassment)

इस प्रकार का उत्पीड़न तब होता है जब कोई वरिष्ठ अधिकारी, शिक्षक या प्रभुत्वशाली व्यक्ति किसी लाभ की पेशकश के बदले यौन संबंधों की मांग करता है। उदाहरण के लिए, किसी को नौकरी पर बनाए रखने, प्रमोशन देने, अच्छे अंक देने या अन्य किसी व्यक्तिगत लाभ के बदले यौन अनुग्रह माँगना। यह स्पष्ट रूप से सत्ता के दुरुपयोग का मामला है और इससे पीड़ित व्यक्ति को न केवल मानसिक आघात पहुंचता है बल्कि उनके करियर और आत्म-सम्मान पर भी गहरा असर पड़ता है। इस प्रकार का उत्पीड़न कार्यस्थल और शिक्षा संस्थानों में सबसे गंभीर माना जाता है।

6. शत्रुतापूर्ण वातावरण उत्पीड़न (Hostile Environment Harassment)

जब किसी स्थान विशेषकर कार्यस्थल या शैक्षणिक संस्थान में ऐसा माहौल बना दिया जाता है जो किसी व्यक्ति को बार-बार डर, अपमान या असहजता का अनुभव कराए, तो उसे शत्रुतापूर्ण वातावरण उत्पीड़न कहा जाता है। इसमें बार-बार अश्लील चुटकुले सुनाना, महिलाओं को कामकाज से दूर रखना, भेदभावपूर्ण टिप्पणियां करना, या लैंगिक रूढ़ियों को बढ़ावा देना शामिल है। इस प्रकार का उत्पीड़न धीरे-धीरे एक विषाक्त वातावरण तैयार करता है, जहाँ पीड़ित स्वयं को असुरक्षित और अलग-थलग महसूस करने लगता है।

लैंगिक / यौन उत्पीड़न की पहचान (Identification of Gender/Sexual Harassment)

उत्पीड़न की पहचान करना उसका समाधान करने की दिशा में पहला कदम होता है। नीचे कुछ संकेत दिए गए हैं जिनसे उत्पीड़न को पहचाना जा सकता है:

1. व्यवहार का अवांछित होना (Unwelcome Nature of Behavior)

यदि कोई व्यक्ति ऐसा व्यवहार करता है जिससे सामने वाला व्यक्ति असहज, डराया हुआ या अपमानित महसूस करता है, तो यह स्पष्ट रूप से उत्पीड़न की श्रेणी में आता है, चाहे वह व्यवहार करने वाला व्यक्ति इसे मजाक, मित्रता, या सामान्य बातचीत के रूप में प्रस्तुत करे। उत्पीड़न की पहचान इस बात से नहीं होती कि उसे करने वाला उसे कैसे देखता है, बल्कि इससे होती है कि पीड़ित व्यक्ति पर उसका क्या प्रभाव पड़ा। यदि पीड़ित ने स्पष्ट या अप्रत्यक्ष रूप से यह संकेत दिया हो कि वह ऐसा व्यवहार पसंद नहीं करता, फिर भी वह जारी रहता है, तो वह अवांछित और आपत्तिजनक बन जाता है।

2. बार-बार या पैटर्न में किया गया व्यवहार (Repeated or Patterned Behavior)

कई बार किसी घटना को एक बार में ही उत्पीड़न के रूप में समझा जा सकता है, लेकिन जब कोई असंवेदनशील, अनुचित या यौन प्रकृति का व्यवहार बार-बार दोहराया जाता है, तो वह एक गंभीर और स्थायी समस्या बन जाता है। ऐसे पैटर्न में किया गया व्यवहार यह दर्शाता है कि उत्पीड़क व्यक्ति जानबूझकर पीड़ित को मानसिक रूप से क्षति पहुँचा रहा है। इस प्रकार का निरंतर व्यवहार कार्यस्थल या शैक्षणिक वातावरण को असुरक्षित और शत्रुतापूर्ण बना सकता है।

3. पीड़ित के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव (Impact on Victim's Well-being)

यौन या लैंगिक उत्पीड़न का सबसे बड़ा प्रभाव पीड़ित के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। यदि कोई व्यक्ति लगातार तनाव, डर, आत्मविश्वास की कमी, निराशा या सामाजिक अलगाव महसूस करने लगे, तो यह संकेत हो सकता है कि वह उत्पीड़न का सामना कर रहा है। मानसिक अस्थिरता, चिंता, नींद की कमी, या काम और पढ़ाई में प्रदर्शन में गिरावट जैसे लक्षण उत्पीड़न के प्रभाव को दर्शाते हैं। यह स्थिति यदि अनदेखी की जाए, तो दीर्घकालीन मानसिक रोगों का कारण भी बन सकती है।

4. शक्ति-संबंधों का दुरुपयोग (Power Dynamics in Relationships)

जब उत्पीड़न करने वाला व्यक्ति किसी ऊँचे पद पर होता है—जैसे कि कोई वरिष्ठ अधिकारी, शिक्षक, मैनेजर या प्रशासक—तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। इस प्रकार के शक्ति-संबंधों में पीड़ित के पास प्रतिरोध करने या आवाज उठाने के सीमित अवसर होते हैं, क्योंकि उसे बदले की कार्यवाही, नौकरी खोने, या अकादमिक नुकसान का डर हो सकता है। शक्ति का यह असंतुलन उत्पीड़क को मनमानी करने का अवसर देता है और पीड़ित को अत्यंत असहाय बना देता है।

5. नैतिक आचार संहिता का उल्लंघन (Breach of Conduct or Ethics Policies)

हर संस्था—चाहे वह शैक्षणिक हो या व्यावसायिक—एक आचार संहिता निर्धारित करती है, जो सभी कर्मचारियों, छात्रों या सदस्यों के लिए लागू होती है। यदि कोई व्यक्ति इस कोड का उल्लंघन करता है, विशेष रूप से ऐसे मामलों में जो लैंगिक सम्मान, व्यवहार की मर्यादा या यौन शुचिता से जुड़े हों, तो उसे उत्पीड़न माना जा सकता है। नीति का उल्लंघन न केवल पीड़ित के अधिकारों का हनन है, बल्कि पूरे संस्थागत वातावरण को दूषित कर देता है। ऐसे मामलों में संस्थान की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई करे।

निष्कर्ष (Conclusion)

लैंगिक और यौन उत्पीड़न केवल कुछ व्यक्तियों की समस्याएँ नहीं हैं, बल्कि ये व्यापक सामाजिक विकृति का प्रतीक हैं जो हमारे समाज के मूलभूत मूल्यों—जैसे समानता, स्वतंत्रता, गरिमा और न्याय—को चुनौती देते हैं। इस प्रकार का उत्पीड़न न केवल पीड़ित के आत्म-सम्मान, आत्म-विश्वास और मानसिक शांति को प्रभावित करता है, बल्कि उसकी सामाजिक, शैक्षणिक और व्यावसायिक प्रगति को भी बाधित कर सकता है। यह पीड़ित को अकेलापन, भय और असुरक्षा की स्थिति में धकेल देता है, जिससे उसका जीवन कई स्तरों पर प्रभावित होता है। इस गंभीर सामाजिक समस्या का समाधान केवल कानूनों और नीतियों के सहारे संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए सामाजिक चेतना, नैतिक शिक्षा और सक्रिय भागीदारी भी आवश्यक है। हमें एक ऐसा परिवेश तैयार करना होगा जहाँ हर व्यक्ति—चाहे वह किसी भी लिंग, वर्ग या उम्र का हो—सुरक्षित, सम्मानित और स्वतंत्र महसूस कर सके। संस्थाओं, कार्यस्थलों, और शैक्षणिक संस्थानों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे ऐसे मजबूत तंत्र विकसित करें जहाँ उत्पीड़न की शिकायतों को गंभीरता से सुना जाए, दोषियों को दंड मिले और पीड़ितों को संरक्षण और सहायता उपलब्ध कराई जाए। इसके साथ-साथ समाज के प्रत्येक सदस्य को जागरूक, संवेदनशील और जिम्मेदार बनने की आवश्यकता है, ताकि उत्पीड़न के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाई जा सके। जब हर व्यक्ति अपने और दूसरों के अधिकारों के प्रति सजग होगा, और जब संस्थाएं पारदर्शिता और न्याय की भावना के साथ कार्य करेंगी, तभी हम एक ऐसे समतामूलक, गरिमामय और सुरक्षित समाज की स्थापना कर पाएंगे, जहाँ हर कोई भयमुक्त होकर अपने जीवन और सपनों को साकार कर सके।

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