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Meaning and Concept of Curriculum पाठ्यचर्या का अर्थ और अवधारणा

परिचय (Introduction)

शिक्षा केवल सूचनाओं को ग्रहण करने या साक्षर होने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की एक निरंतर यात्रा है, जो उसे सामाजिक, नैतिक, बौद्धिक और व्यावसायिक रूप से परिपक्व बनाती है। यह प्रक्रिया न केवल ज्ञान और कौशल अर्जित करने तक सीमित है, बल्कि सोचने, समझने, विश्लेषण करने और समाज के प्रति उत्तरदायित्व निभाने की क्षमता भी विकसित करती है। इस व्यापक और बहुआयामी उद्देश्य की पूर्ति के लिए पाठ्यचर्या (Curriculum) एक मूलभूत भूमिका निभाती है। पाठ्यचर्या शिक्षा प्रणाली की रीढ़ होती है, जो यह निर्धारित करती है कि किस प्रकार का ज्ञान, किस अनुक्रम में और किन माध्यमों से विद्यार्थियों तक पहुँचाया जाएगा। पाठ्यचर्या केवल विषयों की सूची नहीं होती, बल्कि यह शिक्षण और अधिगम की समस्त प्रक्रियाओं की एक सुविचारित योजना होती है, जिसमें शिक्षण पद्धतियाँ, मूल्यांकन प्रणाली, शिक्षण-संसाधन, और सीखने का वातावरण सम्मिलित होते हैं। यह एक ऐसा ढांचा है जो शिक्षकों को स्पष्ट दिशा प्रदान करता है और विद्यार्थियों को उनके शैक्षिक सफर में मार्गदर्शन देता है। इसके निर्माण में सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों, राष्ट्रीय विकास की प्राथमिकताओं, बालकों की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं और शैक्षिक दार्शनिक दृष्टिकोणों का विशेष ध्यान रखा जाता है। एक प्रभावी पाठ्यचर्या न केवल ज्ञान के हस्तांतरण का माध्यम होती है, बल्कि यह सीखने को अर्थपूर्ण, आनंददायक और जीवनोपयोगी बनाती है। इसलिए, पाठ्यचर्या की संकल्पना को गहराई से समझना उन सभी के लिए आवश्यक है जो शिक्षा से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े हैं। यह न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करती है, बल्कि समाज की भावी दिशा और नागरिकों की चेतना के निर्माण में भी निर्णायक भूमिका निभाती है।

पाठ्यचर्या का अर्थ (Meaning of Curriculum)

Curriculum” शब्द लैटिन भाषा के शब्द ‘Currere’ से बना है, जिसका अर्थ होता है – दौड़ना या किसी मार्ग पर आगे बढ़ना। प्रतीकात्मक रूप से यह छात्र के सीखने की उस यात्रा को दर्शाता है जिसमें वह अनुभवों के माध्यम से बौद्धिक, सामाजिक और नैतिक विकास करता है। पारंपरिक दृष्टिकोण में पाठ्यचर्या को केवल कुछ विषयों की सूची या पाठ्यक्रम तक सीमित माना गया था, जिसमें पाठ्यपुस्तकों और पाठ योजनाओं का एक निश्चित ढांचा होता था। लेकिन आज की आधुनिक शैक्षिक सोच में पाठ्यचर्या को एक विस्तृत, समावेशी और सतत विकसित होने वाली संकल्पना माना जाता है। इसमें केवल पाठ्य विषय ही नहीं बल्कि शिक्षण विधियाँ, अधिगम क्रियाएं, मूल्यांकन विधियाँ, सह-पाठ्यक्रमीय गतिविधियाँ, और विद्यालय का सामाजिक वातावरण भी सम्मिलित होता है। साथ ही, यह स्पष्ट और छिपे दोनों प्रकार के शिक्षण अनुभवों को शामिल करता है जो छात्रों के व्यवहार और मूल्यों को आकार देते हैं। इस प्रकार, पाठ्यचर्या केवल अध्ययन की सामग्री नहीं बल्कि समाज की सामूहिक शैक्षिक दृष्टि का प्रतिबिंब होती है।

पाठ्यचर्या की अवधारणा (Concept of Curriculum)

पाठ्यचर्या की अवधारणा बहुआयामी है और इसे विभिन्न दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है। अलग-अलग शैक्षिक संदर्भों और उद्देश्यों के अनुसार इसकी व्याख्या भी भिन्न होती है। विभिन्न शिक्षाविदों और दार्शनिकों ने पाठ्यचर्या की व्याख्या अपने-अपने दृष्टिकोण से की है, जो इसके विभिन्न पक्षों को उजागर करती है।

1. पाठ्यचर्या एक विषयवस्तु के रूप में (Curriculum as Content)

इस दृष्टिकोण में पाठ्यचर्या को एक व्यवस्थित ज्ञान-संग्रह माना जाता है, जिसमें विभिन्न विषयों की तथ्यों, सिद्धांतों और अवधारणाओं को एक निश्चित क्रम में प्रस्तुत किया जाता है। इसका प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थियों को परंपरागत विषयों की बुनियादी और उन्नत जानकारी प्रदान करना होता है, जैसे—गणित में गणनात्मक क्षमता, विज्ञान में प्रयोगात्मक समझ, भाषा में व्याकरण एवं संप्रेषण कौशल, तथा इतिहास में घटनाओं की कालानुक्रमिक समझ। इस दृष्टिकोण में शिक्षक का कार्य केवल सूचना का संप्रेषण करना होता है और छात्र को एक ग्रहणशील माध्यम के रूप में देखा जाता है, जो तैयार सामग्री को आत्मसात करता है। हालांकि इस मॉडल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह अकादमिक अनुशासनों को सुसंगठित रूप में प्रस्तुत करता है और बौद्धिक अनुशासन को सशक्त बनाता है, लेकिन इसकी एक सीमा यह भी है कि यह छात्रों की कल्पनाशीलता, स्वतंत्र चिंतन और नवाचार की संभावनाओं को सीमित कर सकता है।

2. पाठ्यचर्या एक प्रक्रिया के रूप में (Curriculum as a Process)

इस परिप्रेक्ष्य में पाठ्यचर्या को केवल ज्ञान-वस्तु की सूची न मानकर, एक गतिशील और संवादात्मक प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है। इसमें यह महत्त्वपूर्ण होता है कि शिक्षण किस प्रकार किया जा रहा है, किस प्रकार के संवाद और गतिविधियाँ कक्षा में हो रही हैं, तथा शिक्षक और छात्र के बीच किस तरह का संबंध स्थापित हो रहा है। इस दृष्टिकोण में शिक्षक को एक मार्गदर्शक, प्रेरक और सहभागिता बढ़ाने वाले के रूप में देखा जाता है, जो छात्रों को प्रश्न पूछने, प्रयोग करने और अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह दृष्टिकोण अधिगम को अधिक जीवनोपयोगी और अनुभवजन्य बनाने का प्रयास करता है, जहाँ विद्यार्थी अपने सामाजिक, भावनात्मक और बौद्धिक पक्षों का संतुलित विकास कर सकें। इसमें सीखने की प्रक्रिया पर ज़ोर होता है, न कि केवल अंतिम परिणामों पर, जिससे यह अधिक लचीला, नवाचारी और समावेशी बन जाता है।

3. पाठ्यचर्या एक परिणाम के रूप में (Curriculum as a Product)

इस दृष्टिकोण के अनुसार पाठ्यचर्या को एक लक्ष्य-उन्मुख ढांचे के रूप में देखा जाता है, जिसमें यह पहले से तय किया जाता है कि विद्यार्थी को किसी पाठ्यक्रम के अंत तक किन विशेष योग्यताओं, ज्ञान और कौशलों को प्राप्त करना चाहिए। यह दृष्टिकोण अधिगम के पूर्व निर्धारित उद्देश्यों, प्रदर्शन मापदंडों और सीखने के परिणामों पर केंद्रित होता है। शिक्षण योजना इस प्रकार बनाई जाती है कि छात्र इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हो सकें। यह मॉडल विशेष रूप से उन परिक्षण-आधारित या प्रमाणन-आधारित शैक्षिक व्यवस्थाओं के लिए उपयुक्त है, जहाँ उत्तरदायित्व और मापन योग्य परिणामों की आवश्यकता होती है। यद्यपि यह दृष्टिकोण उपलब्धियों के आंकलन को सरल बनाता है और स्पष्टता प्रदान करता है, किन्तु यह कभी-कभी शिक्षा को केवल अंक-केन्द्रित बना सकता है और विद्यार्थियों के संपूर्ण विकास को सीमित कर सकता है।

4. पाठ्यचर्या एक अनुभव के रूप में (Curriculum as Experience)

यह दृष्टिकोण शैक्षिक विचारक जॉन ड्यूई जैसे प्रगतिशील दार्शनिकों द्वारा प्रतिपादित किया गया है, जिसके अनुसार पाठ्यचर्या केवल औपचारिक विषयवस्तु तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह विद्यालय में छात्र द्वारा प्राप्त समस्त अनुभवों का समेकन होती है। इसमें पाठ्यपुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ सह-पाठ्यक्रमीय गतिविधियाँ, सामाजिक सहभागिता, नैतिक शिक्षा, खेल-कूद, सांस्कृतिक क्रियाएँ, तथा भावनात्मक और व्यवहारिक विकास को भी महत्व दिया जाता है। यह दृष्टिकोण अधिगम को एक जीवंत, सजीव और छात्र-केंद्रित प्रक्रिया के रूप में देखता है, जिसमें सीखने का अनुभव ही पाठ्यचर्या का केंद्र बिंदु होता है। इसमें प्रत्येक छात्र के अनुभव, उसकी पृष्ठभूमि और सीखने की शैली का आदर किया जाता है, जिससे वह शिक्षा को जीवन से जोड़ सके और अपने परिवेश में सक्रिय भागीदारी निभा सके। यह दृष्टिकोण शिक्षण को मानवीय और समग्र बनाता है।

पाठ्यचर्या के प्रकार (Types of Curriculum)

पाठ्यचर्या केवल पाठ्यपुस्तकों या औपचारिक अध्यापन तक सीमित नहीं होती। यह विविध और बहुआयामी होती है। इसके प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:

1. औपचारिक पाठ्यचर्या (Formal Curriculum)

औपचारिक पाठ्यचर्या उस संरचित और योजनाबद्ध शैक्षिक योजना को कहा जाता है जिसे किसी मान्यता प्राप्त शैक्षिक संस्था या शासकीय निकाय द्वारा स्वीकृत किया जाता है। इसमें विशिष्ट विषयवस्तु, पाठ्यपुस्तकों की सूची, शिक्षण समय, पाठ योजनाएं और मूल्यांकन की विधियाँ स्पष्ट रूप से निर्धारित होती हैं। इस प्रकार की पाठ्यचर्या विद्यार्थियों के लिए एक समान अवसर और दिशा सुनिश्चित करती है जिससे सभी छात्रों को एक ही तरह की शिक्षा प्राप्त हो सके। यह पाठ्यचर्या शिक्षकों को एक निर्धारित ढांचा देती है जिसके आधार पर वे शिक्षण-अधिगम गतिविधियों का संचालन करते हैं। इसके माध्यम से शैक्षणिक प्रक्रिया में एकरूपता, अनुशासन और गुणवत्ता को बनाए रखना संभव होता है।

2. अनौपचारिक पाठ्यचर्या (Informal Curriculum)

अनौपचारिक पाठ्यचर्या वह होती है जो विद्यालयी वातावरण में छात्रों को औपचारिक रूप से न सिखाकर बल्कि उनके अनुभवों, सहपाठियों से संवाद, खेल-कूद, सांस्कृतिक गतिविधियों और दैनिक संपर्कों से स्वतः प्राप्त होती है। यह पाठ्यचर्या विद्यार्थियों के सामाजिक, भावनात्मक और नैतिक विकास में अहम भूमिका निभाती है क्योंकि इसके माध्यम से वे जीवन के व्यावहारिक पहलुओं को सीखते हैं। इसमें छात्रों के व्यक्तित्व, नेतृत्व क्षमता, संवाद शैली, और सहानुभूति जैसे गुणों का विकास होता है। यद्यपि यह शैक्षणिक पाठ्यक्रम का घोषित हिस्सा नहीं होता, लेकिन इसका प्रभाव छात्र के समग्र विकास पर गहरा और दीर्घकालिक होता है।

3. गुप्त पाठ्यचर्या (Hidden Curriculum)

गुप्त पाठ्यचर्या वे अनकहे और अनलिखित शिक्षण अनुभव होते हैं जो विद्यालय की संस्कृति, शिक्षकों के आचरण, संस्थागत मान्यताओं और सामाजिक वातावरण के माध्यम से छात्रों को प्रभावित करते हैं। यह पाठ्यचर्या छात्रों के मूल्यबोध, दृष्टिकोण, सामाजिक समझ और नैतिक निर्णयों को आकार देती है। उदाहरण के लिए, यदि शिक्षक छात्र की बात को सम्मानपूर्वक सुनता है, तो छात्र सम्मान और सहिष्णुता का पाठ सीखता है। इसी तरह, यदि विद्यालय में लड़कियों और लड़कों को समान अवसर दिए जाते हैं, तो यह लिंग समानता का संदेश देता है। गुप्त पाठ्यचर्या का प्रभाव इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह छात्र के अंतर्मन में छिपे विचारों और दृष्टिकोणों को आकार देती है, जो जीवनभर उनके साथ रहते हैं।

4. शून्य पाठ्यचर्या (Null Curriculum)

शून्य पाठ्यचर्या से तात्पर्य उन विषयों, विचारों या मुद्दों से है जिन्हें जानबूझकर या अनजाने में औपचारिक पाठ्यचर्या से हटा दिया गया होता है। इसका यह तात्पर्य नहीं कि वे विषय महत्वहीन हैं, बल्कि यह कि उन्हें शिक्षा प्रणाली में स्थान नहीं मिला है। जैसे – लैंगिक विविधता, मानसिक स्वास्थ्य, या आदिवासी संस्कृति जैसे मुद्दे अक्सर औपचारिक शिक्षा से अनुपस्थित रहते हैं। जब कोई विषय पाठ्यक्रम में सम्मिलित नहीं होता, तो छात्र उस विषय की महत्ता को नहीं समझ पाते और उस पर चर्चा का अवसर भी नहीं मिलता। यह पाठ्यचर्या उस मौन पक्ष को दर्शाती है, जो शिक्षा की सीमाओं और सामाजिक पक्षपात को उजागर करती है।

5. कोर पाठ्यचर्या (Core Curriculum)

कोर पाठ्यचर्या उन मूलभूत विषयों का समुच्चय होती है जो एक नागरिक को जिम्मेदार, जागरूक और योग्य बनाने के लिए आवश्यक होते हैं। इसमें सामान्यतः भाषा, गणित, विज्ञान और सामाजिक अध्ययन जैसे विषय शामिल होते हैं जिन्हें सभी छात्रों को पढ़ाना अनिवार्य होता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि प्रत्येक छात्र को बुनियादी ज्ञान, आवश्यक जीवन कौशल और सामाजिक समझ प्राप्त हो सके जिससे वे समाज में सक्रिय योगदान दे सकें। कोर पाठ्यचर्या शिक्षा की नींव होती है जो छात्रों में आलोचनात्मक चिंतन, तर्कशक्ति, संवाद कौशल और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करती है।

6. समन्वित पाठ्यचर्या (Integrated Curriculum)

समन्वित पाठ्यचर्या एक अभिनव और समग्र दृष्टिकोण है जिसमें विभिन्न विषयों को एक साझा संदर्भ या विषयवस्तु के अंतर्गत एकीकृत किया जाता है। इसका उद्देश्य छात्रों को विषयों के बीच अंतर्संबंधों की समझ प्रदान करना है ताकि वे ज्ञान को केवल टुकड़ों में न देखकर समग्र रूप में ग्रहण कर सकें। उदाहरण के लिए, यदि पर्यावरण संरक्षण पर एक पाठ तैयार किया जाए, तो उसमें विज्ञान के पर्यावरणीय पहलुओं, भूगोल के प्राकृतिक संसाधनों, अर्थशास्त्र के विकास और संसाधन प्रबंधन तथा नैतिक शिक्षा के उत्तरदायित्व जैसे आयामों को जोड़ा जा सकता है। यह पाठ्यचर्या रचनात्मक सोच, समस्या समाधान और अंतरविषयक समन्वय को बढ़ावा देती है।

पाठ्यचर्या का महत्त्व (Importance of Curriculum)

पाठ्यचर्या शैक्षिक प्रणाली की रीढ़ होता है और यह शिक्षार्थियों को प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता, समानता और प्रभावशीलता निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है:

1. शैक्षिक गतिविधियों को मार्गदर्शन प्रदान करती है (Guides Educational Activities)

एक सुविचारित और सुव्यवस्थित पाठ्यचर्या शिक्षण एवं अधिगम की सभी गतिविधियों को एक स्पष्ट दिशा प्रदान करती है। यह इस बात का निर्धारण करती है कि विभिन्न शैक्षिक स्तरों पर छात्रों को कौन-कौन से ज्ञान, अवधारणाएं और कौशल सिखाए जाने चाहिए। साथ ही, यह शिक्षकों को विषयवस्तु के अनुरूप प्रभावशाली पाठ योजनाएं तैयार करने, कक्षा में प्रभावशाली शिक्षण विधियाँ अपनाने और उपयुक्त मूल्यांकन उपकरण विकसित करने में सहायक होती है। पाठ्यचर्या इस प्रकार शिक्षण प्रक्रिया में एकरूपता, अनुशासन और सततता को सुनिश्चित करती है, जिससे छात्रों की शिक्षा एक योजनाबद्ध, उद्देश्यपरक और प्रभावशाली दिशा में आगे बढ़ती है। यह न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाती है, बल्कि छात्र-केंद्रित अधिगम वातावरण की रचना भी करती है।

2. शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति सुनिश्चित करती है (Achieves Educational Goals)

हर शिक्षा प्रणाली कुछ विशिष्ट उद्देश्यों और आदर्शों को ध्यान में रखकर कार्य करती है, जैसे कि लोकतांत्रिक चेतना का विकास, सामाजिक समरसता की भावना का विस्तार, रचनात्मकता और नवाचार की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना, तथा उत्तरदायी नागरिकता की भावना का निर्माण करना। पाठ्यचर्या इन व्यापक शैक्षिक लक्ष्यों को क्रियान्वित करने का एक प्रमुख साधन होती है। यह कक्षा की गतिविधियों, पाठ्यवस्तु और शिक्षण विधियों के माध्यम से इन उद्देश्यों को वास्तविकता में बदलती है। इस प्रकार पाठ्यचर्या शिक्षा को केवल अकादमिक दायरे तक सीमित नहीं रखती, बल्कि उसे समाज सुधार और राष्ट्र निर्माण के एक सशक्त उपकरण के रूप में परिवर्तित कर देती है।

3. निरंतरता और क्रमिक विकास को सुनिश्चित करती है (Ensures Continuity and Progression)

पाठ्यचर्या की संरचना इस प्रकार की जाती है कि छात्रों को ज्ञान के छोटे-छोटे स्तरों से शुरू कर धीरे-धीरे जटिल अवधारणाओं की ओर अग्रसर किया जा सके। यह संरचनात्मक अनुक्रम विषयवस्तु को तार्किक और प्रगतिशील ढंग से प्रस्तुत करता है, जिससे छात्र पहले सीखी गई बातों पर आधारित होकर नए ज्ञान का निर्माण कर सकें। इस प्रकार, पूर्वज्ञान और नए अधिगम के बीच एक सेतु बनता है जो शिक्षण प्रक्रिया को अधिक प्रभावी बनाता है। यह सतत अधिगम के सिद्धांत को साकार करता है और छात्रों की संज्ञानात्मक क्षमताओं, आलोचनात्मक सोच और वैचारिक स्पष्टता को विकसित करता है, जिससे वे प्रत्येक स्तर पर मजबूत आधार के साथ आगे बढ़ सकें।

4. समग्र विकास को बढ़ावा देती है (Promotes Holistic Development)

वर्तमान समय में शिक्षा का उद्देश्य केवल बौद्धिक विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि विद्यार्थियों के समग्र व्यक्तित्व को आकार देना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। एक संतुलित पाठ्यचर्या में शैक्षणिक ज्ञान के साथ-साथ भावनात्मक संवेदनशीलता, सामाजिक उत्तरदायित्व, नैतिक मूल्यों, शारीरिक स्वास्थ्य और सृजनात्मक क्षमताओं के विकास पर भी बल दिया जाता है। इससे विद्यार्थी केवल विषयों में दक्ष नहीं होते, बल्कि आत्मविश्वासी, संवेदनशील और नेतृत्व क्षमता से युक्त नागरिक भी बनते हैं। इस प्रकार की समग्र शिक्षा उन्हें जीवन की विविध परिस्थितियों का सामना आत्मबल, विवेक और करुणा के साथ करने में सक्षम बनाती है।

5. मूल्यांकन और आकलन को सहारा देती है (Supports Assessment and Evaluation)

एक सुस्पष्ट और उद्देश्यपरक पाठ्यचर्या में शिक्षण उद्देश्यों को इस तरह परिभाषित किया जाता है कि छात्र की प्रगति को मापना और उसका आकलन करना सरल और प्रभावी हो जाता है। यह शिक्षकों को उपयुक्त मूल्यांकन पद्धतियाँ अपनाने में सहायता करती है, जैसे कि प्रश्न-पत्र निर्माण, परियोजना कार्य, प्रस्तुति मूल्यांकन, सतत मूल्यांकन इत्यादि। पाठ्यचर्या मूल्यांकन की प्रक्रिया को उद्देश्य के अनुकूल और छात्र-केंद्रित बनाती है, जिससे यह केवल परीक्षा की औपचारिकता न रहकर एक प्रभावी शिक्षण उपकरण बन जाती है। उचित रूप से जुड़ी हुई पाठ्यचर्या और मूल्यांकन प्रणाली से छात्रों की शैक्षिक आवश्यकताओं की बेहतर पहचान होती है और सुधार के लिए उपयुक्त फीडबैक उपलब्ध कराया जा सकता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

पाठ्यचर्या केवल एक शैक्षणिक विषयों की सूची नहीं है, बल्कि यह सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था की आत्मा है। यह किसी समाज की उस दृष्टि को दर्शाती है जो वह अपने भावी नागरिकों के लिए संजोए हुए है और यह उस दृष्टि को साकार करने का मार्ग प्रदान करती है। ज्ञान, कौशल, मूल्य, शिक्षण विधियों और छात्र अनुभवों जैसे विभिन्न आयामों को समाहित करते हुए पाठ्यचर्या यह सुनिश्चित करती है कि शिक्षा केवल परीक्षा पास करने तक सीमित न होकर व्यक्तित्व निर्माण का सशक्त माध्यम बने। आज जब वैश्विक चुनौतियाँ, तकनीकी प्रगति और सामाजिक आवश्यकताएँ निरंतर बदल रही हैं, तो शैक्षिक संस्थानों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपनी पाठ्यचर्या का पुनर्मूल्यांकन और नवाचार करते रहें। एक प्रासंगिक और समावेशी पाठ्यचर्या परिवर्तन का सशक्त साधन बन सकती है – जो विचारों को आकार देती है, जीवन को बदलती है और एक बेहतर समाज के निर्माण में योगदान देती है।

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