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Guidelines for Selection, Construction, Assembling, and Administration of Test Items परीक्षण कथनों के चयन, निर्माण, संयोजन और प्रशासन के दिशानिर्देश

परिचय (Introduction)

शिक्षा केवल सूचनाओं के संचरण या तथ्यों की याददाश्त तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक समग्र प्रक्रिया है जिसमें ज्ञान, कौशल, मूल्यों और दृष्टिकोणों का विकास होता है। इस प्रक्रिया में मूल्यांकन की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है। मूल्यांकन न केवल यह निर्धारित करने का माध्यम है कि छात्र ने कितना सीखा है, बल्कि यह शिक्षण और अधिगम दोनों की गुणवत्ता को परखने का एक उपकरण भी है। यह शिक्षकों को यह जानने में सहायता करता है कि उनकी शिक्षण विधियाँ कितनी प्रभावशाली रही हैं, और छात्रों को यह समझने का अवसर देता है कि उन्हें किन क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है। एक प्रभावी मूल्यांकन प्रणाली केवल आकस्मिक रूप से प्रश्न तैयार कर देने से विकसित नहीं होती; बल्कि इसके लिए एक सुनियोजित, व्यवस्थित, और उद्देश्यपरक दृष्टिकोण आवश्यक होता है। इस दृष्टिकोण में सबसे पहले परीक्षण कथनों (test items/statements) का चयन करना होता है, जो शैक्षिक उद्देश्यों के अनुरूप हों। इसके बाद उन कथनों का निर्माण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि वे छात्रों की विविध क्षमताओं—जैसे स्मृति, विश्लेषण, अनुप्रयोग और सृजनात्मकता—का समुचित मूल्यांकन कर सकें। इसके पश्चात इन कथनों को एक संरचित रूप में संयोजित किया जाता है ताकि छात्रों को प्रश्नपत्र को समझने और हल करने में किसी प्रकार की असुविधा न हो। अंतिम और अत्यंत महत्त्वपूर्ण चरण है परीक्षण का प्रशासन—जहाँ इस पूरी प्रक्रिया को इस प्रकार निष्पादित किया जाता है कि सभी छात्रों को समान अवसर मिले, किसी प्रकार का पक्षपात न हो, और परीक्षा का वातावरण अनुशासित, निष्पक्ष और सुविधा-जनक हो। मूल्यांकन के इन सभी चरणों—चयन, निर्माण, संयोजन और प्रशासन—के अपने-अपने दिशा-निर्देश होते हैं, जिन्हें यदि गंभीरता और निष्ठा के साथ अपनाया जाए, तो मूल्यांकन न केवल अधिक सटीक और विश्वसनीय बनता है, बल्कि शिक्षण की गुणवत्ता में भी अभूतपूर्व सुधार आता है।

1. परीक्षण कथनों के चयन के दिशानिर्देश (Guidelines for the Selection of Test Items)

परीक्षण कथनों का चयन मूल्यांकन प्रक्रिया की नींव होता है। यह आवश्यक है कि चयनित कथन पाठ्यक्रम में वर्णित शैक्षिक उद्देश्यों और लक्ष्यों के अनुरूप हों। प्रत्येक कथन का उद्देश्य छात्रों की अधिगम उपलब्धियों का वास्तविक मूल्यांकन करना होना चाहिए। चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि कथन विद्यार्थियों की आयु, बौद्धिक स्तर और शैक्षणिक पृष्ठभूमि के अनुकूल हों। अत्यधिक सरल या अत्यधिक कठिन कथन परीक्षा के उद्देश्य को भ्रमित कर सकते हैं। एक अच्छा परीक्षण विभिन्न कठिनाई स्तरों के कथनों को सम्मिलित करता है, जिससे छात्रों की समझ का सही आकलन हो सके। इसके अतिरिक्त, कथनों में पाठ्यवस्तु का संतुलित प्रतिनिधित्व होना चाहिए, अर्थात पूरे पाठ्यक्रम को समाहित किया जाना चाहिए, न कि केवल कुछ इकाइयों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। कथनों को संवेदनशीलता और निष्पक्षता की दृष्टि से भी परखा जाना चाहिए ताकि कोई सांस्कृतिक, भाषिक या लैंगिक पक्षपात न हो। अंत में, कथनों की भेदकारी क्षमता (Discriminatory Power) का विश्लेषण आवश्यक है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कथन उच्च और निम्न प्रदर्शन करने वाले छात्रों के बीच अंतर स्पष्ट करें। एक सुसंगत और विवेकपूर्ण चयन ही निष्पक्ष और प्रभावी मूल्यांकन की गारंटी देता है।

2. परीक्षण कथनों के निर्माण के दिशानिर्देश (Guidelines for the Construction of Test Items)

परीक्षण कथनों का निर्माण एक रचनात्मक और तकनीकी प्रक्रिया है, जिसमें विषय-वस्तु, शैक्षणिक उद्देश्यों और मूल्यांकन विधियों की अच्छी समझ आवश्यक होती है। कथनों की भाषा सुस्पष्ट, संक्षिप्त और भ्रमरहित होनी चाहिए, ताकि छात्र कथन को बिना किसी संदेह के समझ सकें। हर कथन को एक ही संकल्पना या कौशल पर केंद्रित होना चाहिए ताकि मूल्यांकन विशिष्ट और स्पष्ट रहे। बहुविकल्पीय कथनों (MCQs) में विश्वसनीय विकल्प (plausible distractors) दिए जाने चाहिए जो छात्रों को सोचने पर मजबूर करें और उनकी वास्तविक समझ की जाँच कर सकें। निर्माण के समय संगति (consistency) का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है—कथनों का प्रारूप, भाषा, व्याकरण, और उत्तर विकल्पों का क्रम एक समान होना चाहिए। किसी भी कथन में अवांछित संकेत या संकेतक शब्द नहीं होने चाहिए जो उत्तर तक पहुँचने में सहायक बनें। इसके अलावा, सभी कथनों को समय सीमा को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाना चाहिए ताकि पूरा पेपर निर्धारित समय में हल किया जा सके।

3. परीक्षण कथनों के संयोजन के दिशानिर्देश (Guidelines for the assembling of Test Items)

जब सभी कथन तैयार हो जाएँ, तब उन्हें एक क्रमबद्ध और व्यवस्थित परीक्षण पत्र के रूप में संयोजित किया जाता है। यह चरण बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि एक अच्छी तरह से संयोजित परीक्षण छात्रों को सहज और स्पष्ट अनुभव देता है तथा मूल्यांकन को अधिक विश्वसनीय बनाता है। प्रश्नपत्र की शुरुआत में सरल कथनों को रखा जाना चाहिए ताकि छात्रों का आत्मविश्वास बढ़े और वे तनावमुक्त होकर पेपर हल कर सकें। इसके पश्चात धीरे-धीरे कठिन कथनों की ओर बढ़ना चाहिए। साथ ही, प्रश्नपत्र में विभिन्न प्रकार के कथनों का संतुलित समावेश होना चाहिए—जैसे वस्तुनिष्ठ, लघुउत्तरीय और निबंधात्मक प्रश्न, जिससे विभिन्न संज्ञानात्मक स्तरों का मूल्यांकन हो सके। यदि प्रश्नपत्र कई इकाइयों को समाहित करता है, तो उसे खंडों में विभाजित किया जाना चाहिए, प्रत्येक खंड के लिए स्पष्ट निर्देश और शीर्षक होने चाहिए। इससे छात्रों को उत्तर देने में सुविधा होती है। प्रत्येक कथन या खंड के अंक स्पष्ट रूप से दिए जाने चाहिए ताकि छात्र समझ सकें कि किस कथन का कितना महत्व है। प्रश्नपत्र का प्रारूप और सजावट भी सुव्यवस्थित होनी चाहिए जिससे छात्र बिना किसी उलझन के पेपर हल कर सकें।

4. परीक्षण के प्रशासन के दिशानिर्देश (Guidelines for the Administration of the Test)

परीक्षण प्रशासन मूल्यांकन प्रक्रिया का अंतिम और अत्यंत आवश्यक चरण होता है। यदि अच्छी तरह से तैयार किया गया परीक्षण सही ढंग से संचालित नहीं किया गया, तो उसका उद्देश्य विफल हो सकता है। इस चरण में छात्रों को समान, निष्पक्ष और व्यवस्थित वातावरण प्रदान करना अनिवार्य होता है। सबसे पहले, परीक्षा कक्ष शांत, स्वच्छ, और व्यवधानरहित होना चाहिए। बैठने की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिससे नकल की संभावना न हो, और छात्र आराम से बैठकर परीक्षा दे सकें। परीक्षा प्रारंभ होने से पूर्व सभी आवश्यक सामग्री—प्रश्नपत्र, उत्तर पुस्तिकाएँ, पेन आदि—सुनिश्चित कर लेनी चाहिए। परीक्षा आरंभ करने से पूर्व छात्रों को स्पष्ट निर्देश दिए जाने चाहिए—जैसे उत्तर कैसे लिखना है, कितनी समय सीमा है, और क्या सावधानियाँ रखनी हैं। परीक्षा के दौरान निरीक्षक (invigilator) सक्रिय रूप से निगरानी करें लेकिन वातावरण तनावपूर्ण न बनाएं। छात्रों की संदेह निवारण में केवल प्रक्रिया संबंधी सहायता दी जाए, विषयवस्तु की नहीं। परीक्षा के दौरान समय की सूचना नियमित रूप से दी जानी चाहिए ताकि छात्र समय का प्रबंधन कर सकें। परीक्षा समाप्त होने के बाद उत्तर पुस्तिकाओं को सावधानीपूर्वक संग्रहित और सुरक्षित किया जाना चाहिए। एक सुव्यवस्थित प्रशासन प्रणाली परीक्षा की निष्पक्षता और शिक्षण संस्था की विश्वसनीयता को दर्शाती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

अंततः, यह कहा जा सकता है कि एक प्रभावी मूल्यांकन प्रणाली केवल परीक्षण कथन तैयार करने तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें चयन, निर्माण, संयोजन और प्रशासन जैसे सभी चरणों की समान रूप से महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रत्येक चरण में यदि निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन किया जाए, तो मूल्यांकन न केवल निष्पक्ष और विश्वसनीय होता है, बल्कि वह शिक्षण प्रक्रिया को भी सशक्त करता है। एक अच्छी तरह से डिज़ाइन किया गया मूल्यांकन छात्रों की सीखने की वास्तविक स्थिति को उजागर करता है और शिक्षकों को उनके शिक्षण में सुधार के अवसर प्रदान करता है। मूल्यांकन, सही अर्थों में, शिक्षा का अनिवार्य अंग है।

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