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Learning Style: Concept, Types, and Importance in Teaching–Learning Process अधिगम शैली: अवधारणा, प्रकार और शिक्षण–अधिगम प्रक्रिया में महत्त्व

परिचय (Introduction)

शिक्षा केवल सूचनाओं का स्थानांतरण नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येक विद्यार्थी की व्यक्तिगत आवश्यकताओं, क्षमताओं और रुचियों को ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक होता है। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि दो विद्यार्थी कभी भी पूरी तरह समान नहीं होते—उनकी सोचने, समझने, अनुभव करने और प्रतिक्रिया देने की शैली में अंतर होता है। कोई विद्यार्थी तेज गति से समझता है, तो किसी को समय और दोहराव की आवश्यकता होती है। कोई छात्र भावनात्मक रूप से अधिक संवेदनशील होता है, तो कोई विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से विषयों को ग्रहण करता है। इन सभी अंतरों को ध्यान में रखते हुए जब हम अधिगम की प्रक्रिया को समझते हैं, तो “अधिगम शैली” की अवधारणा अत्यंत महत्वपूर्ण बन जाती है। पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था अक्सर एक जैसी पद्धतियों—जैसे व्याख्यान या पाठ्यपुस्तकों पर आधारित अध्यापन—का प्रयोग करती है, जो कि सभी विद्यार्थियों की विविध अधिगम आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाती। परिणामस्वरूप, कुछ छात्र अधिगम में पिछड़ जाते हैं। अधिगम शैलियों की पहचान और समझ शिक्षकों को इस दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करती है कि वे किस प्रकार से शिक्षण रणनीतियाँ अपनाएँ, जो विद्यार्थियों की व्यक्तिगत अधिगम क्षमताओं के अनुकूल हों। इससे न केवल अधिगम की प्रभावशीलता बढ़ती है, बल्कि विद्यार्थियों की भागीदारी, आत्मविश्वास और उपलब्धियाँ भी बेहतर होती हैं। इस प्रकार अधिगम शैली की समझ शिक्षा को अधिक सजीव, अर्थपूर्ण और समावेशी बना देती है।

अधिगम शैली की अवधारणा (Concept of Learning Style)

“अधिगम शैली” का तात्पर्य उस विशिष्ट एवं व्यक्तिगत पद्धति से है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति ज्ञान को ग्रहण करता है, उसे समझता है, उसकी व्याख्या करता है और दीर्घकाल तक स्मरण रखता है। यह एक मनोवैज्ञानिक और व्यवहारिक प्रक्रिया है, जो प्रत्येक व्यक्ति के अनुभव, मानसिक प्रवृत्ति, प्रेरणा स्तर, रुचि, संज्ञानात्मक क्षमता और वातावरण के अनुरूप भिन्न होती है। अधिगम शैली को प्रभावित करने वाले कारकों में व्यक्ति का व्यक्तित्व (Personality), बौद्धिक स्तर (Intelligence), मानसिक स्वास्थ्य, पारिवारिक पृष्ठभूमि, सामाजिक परिवेश, सांस्कृतिक प्रभाव और पूर्व अधिगम अनुभव शामिल हैं। उदाहरण के लिए, कुछ विद्यार्थी दृश्य (Visual) रूप में शीघ्र सीखते हैं—वे चित्रों, ग्राफिक्स, डायग्राम्स और रंगों के माध्यम से विषयों को समझते हैं। वहीं कुछ विद्यार्थी श्रवण (Auditory) विधियों से सीखना पसंद करते हैं, जैसे कि भाषण, वार्तालाप, ऑडियो क्लिप्स आदि। इसके अतिरिक्त कुछ विद्यार्थी स्पर्श और क्रियाशील (Kinesthetic) तरीकों से, यानी अनुभव आधारित और व्यावहारिक गतिविधियों के द्वारा बेहतर अधिगम करते हैं। अधिगम शैलियों की यह विविधता बताती है कि एक ही शिक्षण पद्धति सभी छात्रों के लिए प्रभावशाली नहीं हो सकती। यदि शिक्षक प्रत्येक विद्यार्थी की अधिगम शैली की पहचान कर लें और उसी के अनुरूप शिक्षण विधियों का प्रयोग करें, तो शिक्षण प्रक्रिया कहीं अधिक प्रभावी, सुलभ और प्रेरणादायक बन सकती है। इससे न केवल छात्र अधिक समझदारी और आत्मविश्वास के साथ सीखते हैं, बल्कि उनके प्रदर्शन और सीखने की इच्छा में भी उल्लेखनीय सुधार आता है।

अधिगम शैलियों के प्रकार (Types of Learning Styles)

शिक्षा के क्षेत्र में यह मान्यता प्राप्त है कि सभी विद्यार्थी एक समान तरीके से नहीं सीखते। विभिन्न शिक्षण दृष्टिकोणों की प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि वे विद्यार्थियों की अधिगम शैली से कितनी मेल खाती हैं। मनोवैज्ञानिकों और शिक्षाविदों ने समय-समय पर विभिन्न अधिगम शैली सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं, जिनमें से VARK मॉडल सर्वाधिक चर्चित और प्रभावी माना जाता है। इस मॉडल को नील फ्लेमिंग द्वारा विकसित किया गया था, जो चार प्रमुख अधिगम शैलियों को रेखांकित करता है – दृश्य (Visual), श्रवण (Auditory), पठन/लेखन (Reading/Writing), और गतिशील (Kinesthetic)। इन शैलियों की पहचान कर शिक्षक छात्रों के लिए अधिगम को अधिक उपयोगी, रुचिकर और प्रभावशाली बना सकते हैं।

1. दृश्य अधिगमकर्ता (Visual Learners)

दृश्य अधिगमकर्ता वे विद्यार्थी होते हैं जो सूचना को चित्रों, आरेखों, रंगों और दृश्य संकेतों के माध्यम से बेहतर समझते हैं। वे अमूर्त शब्दों के बजाय स्पष्ट दृश्यों और रूपरेखाओं से सीखने में अधिक सहज अनुभव करते हैं। ऐसे विद्यार्थी रंग-बिरंगे नोट्स, फ्लोचार्ट, माइंड मैप्स और स्लाइड्स के ज़रिये जानकारी को तेजी से ग्रहण कर पाते हैं। इनके लिए PowerPoint प्रस्तुतियाँ, ग्राफिक्स, इन्फोग्राफिक्स, और रंग कोडिंग जैसी विधियाँ अत्यंत प्रभावशाली सिद्ध होती हैं। यदि शिक्षक ऐसे विद्यार्थियों के लिए शिक्षण सामग्री को चित्रात्मक और दृश्य माध्यमों के अनुरूप प्रस्तुत करें, तो उनके अधिगम की गहराई और स्थायित्व में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा सकती है। इससे वे न केवल विषयवस्तु को बेहतर समझते हैं, बल्कि उसे लंबे समय तक स्मरण भी रख पाते हैं।

2. श्रवण अधिगमकर्ता (Auditory Learners)

श्रवण अधिगमकर्ताओं की प्रमुख विशेषता यह होती है कि वे सुनकर अधिक प्रभावी ढंग से सीखते हैं। उन्हें मौखिक जानकारी, वार्तालाप, चर्चाएँ, कहानी कथन और व्याख्यान जैसे माध्यमों से ज्ञान प्राप्त करना अधिक सहज लगता है। ऐसे विद्यार्थी ध्वनि पर केंद्रित होते हैं और विभिन्न आवाज़ों, लहजों और भाषायी अभिव्यक्तियों के माध्यम से जानकारी को समझते हैं। वे समूह चर्चाओं में भाग लेकर, ऑडियो रिकॉर्डिंग सुनकर या किसी विषय पर विचार-विमर्श करते हुए गहराई से सीख सकते हैं। शिक्षक यदि अपनी आवाज़ के उतार-चढ़ाव, संवादात्मक शिक्षण, और ऑडियो संसाधनों का प्रयोग करें, तो श्रवण अधिगमकर्ताओं के लिए शिक्षण अत्यंत प्रभावशाली बन सकता है। इसके अतिरिक्त, कहानी सुनाना और गाने जैसी रचनात्मक विधियाँ भी इन्हें आकर्षित करती हैं।

3. पठन/लेखन अधिगमकर्ता (Reading/Writing Learners)

पठन/लेखन अधिगमकर्ता वे विद्यार्थी होते हैं जो जानकारी को पढ़ने और लिखने की प्रक्रिया में सबसे अच्छी तरह से आत्मसात करते हैं। उन्हें पुस्तकें, लेख, निर्देश, अनुच्छेद, और नोट्स पढ़ना पसंद होता है और वे स्वयं नोट्स बनाकर, महत्वपूर्ण बिंदु लिखकर, तथा उत्तर लिखने का अभ्यास करके बेहतर तरीके से सीखते हैं। ये विद्यार्थी संरचित और क्रमबद्ध जानकारी से लाभान्वित होते हैं और स्वतंत्र अध्ययन में भी दक्ष होते हैं। ऐसे छात्रों के लिए शिक्षक यदि पुस्तकीय सामग्री, कार्यपत्रक, लेखन कार्य, तथा अभ्यास पुस्तिकाओं का प्रयोग करें, तो उन्हें सीखने में अत्यधिक सहायता मिलती है। प्रश्नोत्तर, लेखन आधारित असाइनमेंट और सूचना का सार लेखन जैसे अभ्यास इनके लिए अत्यंत लाभकारी होते हैं।

4. गतिशील अधिगमकर्ता (Kinesthetic Learners)

गतिशील या क्रियाशील अधिगमकर्ता वे विद्यार्थी होते हैं जो अनुभवों और शारीरिक गतिविधियों के माध्यम से बेहतर सीखते हैं। इन्हें बैठकर सुनना या पढ़ना कम आकर्षित करता है; इसके विपरीत, वे प्रयोग करने, मॉडल बनाना, रोल-प्ले करना, उपकरणों को छूना-समझना, और वास्तविक जीवन की स्थितियों में भाग लेकर अधिक प्रभावी ढंग से ज्ञान अर्जित करते हैं। ये विद्यार्थी क्रियात्मक गतिविधियों में भाग लेकर विषय को बेहतर समझ पाते हैं। उनके लिए प्रोजेक्ट आधारित शिक्षण, रोल-प्ले, कार्यशालाएँ, फील्ड विज़िट्स, तथा हैंड्स-ऑन अनुभवों पर आधारित शिक्षण अत्यंत उपयुक्त होता है। यदि पारंपरिक शिक्षण विधियों में ऐसे अनुभवात्मक अवसर जोड़े जाएँ, तो ये विद्यार्थी अधिक सक्रिय, संलग्न और प्रेरित हो सकते हैं।

अन्य अधिगम शैली सिद्धांत (Other Learning Style Theories)

1. कोलब का अनुभवात्मक अधिगम सिद्धांत (Kolb's Experiential Learning Theory)

डेविड कोलब ने अधिगम को एक सतत और चक्रीय प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जिसमें अनुभव के चार मुख्य चरण होते हैं:

ठोस अनुभव (Concrete Experience) – किसी कार्य या स्थिति में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेना,

चिंतनशील अवलोकन (Reflective Observation) – उस अनुभव पर विचार और मूल्यांकन करना,

अमूर्त वैचारिकता (Abstract Conceptualization) – सिद्धांतों और अवधारणाओं का निर्माण करना,

सक्रिय प्रयोग (Active Experimentation) – नवप्राप्त ज्ञान को प्रयोग में लाना।

इन चारों चरणों के आधार पर कोलब ने चार अधिगम शैलियों की पहचान की:

डायवर्जिंग (Diverging) – अनुभव और अवलोकन पर केंद्रित,

असिमिलेटिंग (Assimilating) – विचार और विश्लेषण पर केंद्रित,

कन्‍वर्जिंग (Converging) – व्यावहारिक समाधान और निर्णय लेने की प्रवृत्ति,

अकमोडेटिंग (Accommodating) – प्रयोग और अनुभव से सीखने की प्रवृत्ति।

कोलब का यह मॉडल शिक्षकों को यह समझने में मदद करता है कि विद्यार्थियों की अधिगम प्रक्रिया में अनुभव और चिंतन का कितना महत्त्व है, और वे किस तरह के अधिगम वातावरण में अधिक दक्षता से सीखते हैं।

2. गार्डनर का बहु-बौद्धिकता सिद्धांत (Gardner's Multiple Intelligences Theory)

हावर्ड गार्डनर ने पारंपरिक बौद्धिक मापदंडों को चुनौती देते हुए यह प्रस्तावित किया कि बुद्धिमत्ता केवल एकल संज्ञानात्मक क्षमता नहीं है, बल्कि यह विभिन्न रूपों में प्रकट होती है। उन्होंने आठ प्रमुख प्रकार की बुद्धिमताओं की पहचान की:
1. भाषिक बुद्धिमत्ता (Linguistic) – भाषा के प्रयोग में कुशलता,

2. तार्किक-गणितीय बुद्धिमत्ता (Logical-Mathematical) – तर्क और संख्या संबंधी विश्लेषण,

3. स्थानिक बुद्धिमत्ता (Spatial) – दृश्य और स्थानिक निर्णय क्षमता,

4. संगीतमय बुद्धिमत्ता (Musical) – ध्वनि, लय और संगीत की समझ,

5. शारीरिक-गतिशील बुद्धिमत्ता (Bodily-Kinesthetic) – शरीर के माध्यम से अभिव्यक्ति,

6. अंतरवैयक्तिक बुद्धिमत्ता (Interpersonal) – दूसरों के साथ संवाद और सहानुभूति,

7. अंतर्वैयक्तिक बुद्धिमत्ता (Intrapersonal) – आत्मचिंतन और आत्म-समझ,

8. प्राकृतिक बुद्धिमत्ता (Naturalistic) – प्रकृति से संबंध और पर्यावरण की समझ।

गार्डनर का सिद्धांत यह इंगित करता है कि हर विद्यार्थी की अधिगम क्षमता अलग होती है और शिक्षकों को चाहिए कि वे इन विविधताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षण गतिविधियों की रूपरेखा तैयार करें। इससे विद्यार्थियों को अपनी विशेष योग्यताओं के अनुरूप सीखने के अवसर मिलते हैं और वे अधिक आत्मविश्वास एवं रुचि के साथ ज्ञान अर्जित कर पाते हैं।

शिक्षण–अधिगम प्रक्रिया में अधिगम शैलियों का महत्त्व (Importance of Learning Styles in the Teaching–Learning Process)

1. व्यक्तिगत शिक्षण की सुविधा (Personalized Instruction)

जब शिक्षक विद्यार्थियों की अधिगम शैलियों की पहचान करते हैं, तो वे प्रत्येक छात्र की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के अनुसार शिक्षण पद्धति को अनुकूलित कर सकते हैं। यह शिक्षण को अधिक प्रभावशाली और लक्षित बनाता है, जिससे छात्र न केवल बेहतर समझ पाते हैं, बल्कि सीखने में अधिक रुचि भी दिखाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि किसी छात्र को दृश्य अधिगम शैली में रुचि है, तो उसके लिए ग्राफिक्स, चित्र, और वीडियो का प्रयोग अधिक उपयोगी होता है, वहीं किसी अन्य को श्रवण विधि अधिक अनुकूल हो सकती है। इस प्रकार, अधिगम शैली की समझ शिक्षक को व्यक्तिगत और सार्थक शिक्षण रणनीति विकसित करने में सहायता देती है।

2. अधिगम में रुचि और भागीदारी (Enhanced Student Engagement)

जब विद्यार्थियों की अधिगम शैली को ध्यान में रखकर शिक्षण गतिविधियाँ तैयार की जाती हैं, तो छात्र अधिक सक्रिय और रुचिपूर्वक भाग लेते हैं। वे अपनी पसंदीदा विधि के माध्यम से सामग्री को ग्रहण करते हैं, जिससे उनका ध्यान केंद्रित रहता है और वे विषयवस्तु से अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं। कक्षा में संवाद, सहयोगात्मक गतिविधियाँ और इंटरएक्टिव तकनीकें ऐसे वातावरण का निर्माण करती हैं जहाँ हर छात्र को सीखने का अवसर मिलता है। यह शिक्षण को एकतरफा प्रक्रिया से हटाकर द्विपक्षीय सहभागिता की ओर ले जाता है।

3. अकादमिक प्रदर्शन में सुधार (Improved Academic Performance)

जब विद्यार्थियों को उनकी अधिगम शैली के अनुसार शिक्षण सामग्री प्रदान की जाती है, तो वे अधिक प्रभावी ढंग से जानकारी को समझते और याद रखते हैं। इससे उनकी परीक्षा में सफलता की संभावना बढ़ जाती है। यह प्रक्रिया केवल रट्टा मारने तक सीमित नहीं रहती, बल्कि ज्ञान के गहरे स्तर तक पहुँचती है। अध्ययन से यह भी सिद्ध हुआ है कि जब छात्रों की अधिगम शैली से मेल खाती शिक्षण रणनीतियाँ अपनाई जाती हैं, तो उनका आत्मविश्वास और प्रेरणा भी बढ़ती है, जिससे उनका समग्र शैक्षिक प्रदर्शन बेहतर होता है।

4. समावेशी शिक्षा को बढ़ावा (Promotes Inclusive Education)

विभिन्न अधिगम शैलियों को पहचानने और सम्मान देने से शिक्षा प्रणाली अधिक समावेशी बन जाती है। इससे विशेष आवश्यकताओं वाले विद्यार्थियों को भी उनकी उपयुक्त अधिगम शैली के माध्यम से सीखने में मदद मिलती है। यह विविधता को स्वीकार करने और प्रत्येक विद्यार्थी की विशिष्टता को महत्व देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे कक्षा का प्रत्येक छात्र, चाहे वह किसी भी सामाजिक, शारीरिक या मानसिक पृष्ठभूमि से हो, समान रूप से शिक्षा ग्रहण कर सकता है। यह एक ऐसे शिक्षण वातावरण का निर्माण करता है जिसमें कोई भी छात्र पीछे नहीं छूटता।

5. शिक्षकों की रचनात्मकता में वृद्धि (Encourages Teacher Creativity)

जब शिक्षक विभिन्न अधिगम शैलियों के अनुसार शिक्षण विधियाँ अपनाते हैं, तो उन्हें परंपरागत तरीकों से आगे बढ़कर नवाचार की ओर रुख करना पड़ता है। इससे वे नई शिक्षण तकनीकों, गतिविधियों, और संसाधनों का उपयोग करने के लिए प्रेरित होते हैं। यह केवल छात्रों के लिए ही नहीं, बल्कि शिक्षकों के लिए भी एक रचनात्मक और विकासात्मक अनुभव बन जाता है। शिक्षकों का यह नवोन्मेषी दृष्टिकोण शैक्षिक वातावरण को अधिक प्रेरणादायक और आधुनिक बनाता है, जिससे कक्षा में नवीनता और ऊर्जा का संचार होता है।

6. आजीवन अधिगम को प्रोत्साहन (Supports Lifelong Learning)

जब छात्र अपनी स्वयं की अधिगम शैली को समझ लेते हैं, तो वे अपने लिए सबसे उपयुक्त अधिगम संसाधनों और तकनीकों का चुनाव करना सीख जाते हैं। यह आत्मनिर्भरता उन्हें जीवन भर सीखने की आदत विकसित करने में सहायक बनती है। वे किसी भी नई जानकारी या कौशल को सीखने के लिए अपनी शैली के अनुसार रणनीति बना सकते हैं, जिससे उनका आत्मविकास निरंतर जारी रहता है। इस प्रकार, अधिगम शैली की पहचान न केवल औपचारिक शिक्षा तक सीमित रहती है, बल्कि व्यक्ति के समग्र जीवन में सीखने की सतत प्रक्रिया को मजबूती प्रदान करती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

अंततः, यह स्पष्ट है कि अधिगम शैली की अवधारणा शिक्षण–अधिगम प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और समावेशी बनाने में सहायक है। इससे शिक्षक अपने विद्यार्थियों को बेहतर समझ पाते हैं और शिक्षण विधियों को उनके अनुरूप ढाल सकते हैं। इससे न केवल विद्यार्थियों की अकादमिक सफलता सुनिश्चित होती है, बल्कि वे आत्मनिर्भर, जिज्ञासु और आजीवन सीखने के लिए प्रेरित होते हैं। विविधता से भरे इस आधुनिक युग में अधिगम शैली को अपनाना गुणवत्तापूर्ण और समान शिक्षा प्रदान करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

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